तिरछी नज़र: ‘मज़बूत पासपोर्ट’ के बाद हमारा ‘मज़बूत रुपया’

जब डायरेक्ट टिकट बुक हो गया तो पुराने स्विस एयरवेज के टिकट को वापस भी करना था। तो किया भी। जब से ये सारे काम ऑनलाइन हुए हैं तब से एक आसानी तो हुई है। सब काम घर बैठे ही हो जाते हैं। किसी भी काम के लिए कहीं जाना ही नहीं पड़ता है।
खैर जब टिकट रिटर्न कर लिया तो रिफंड की बात आई। ऑनलाइन ही जवाब आया कि रिफंड एक महीने के अंदर अंदर आपके कार्ड में वापस आ जायेगा। जो कटेगा वो तो कटेगा ही, जो मिलेगा वह भी एक महीने बाद मिलेगा। हमने सोचा यह अजीब बात है। जब टिकट ख़रीदा तो पैसा एकदम से ले लिया और अब जब वापस करना है तो एक महीना लगा रहे हैं। बात करने के लिए एक नम्बर उपलब्ध था।
तो उस पर फोन लगाया। फ़ोन स्पीकर पर ले लिया और ऐतिहातन पत्नी जी को भी साथ बिठा लिया। वहाँ से जो मधुर भाषनी बोल रही थी उसकी अंग्रेजी भी हमारे जैसी ही थी। हमें परेशान देख उसने हिंदी में ही बात शुरू कर दी। हमें गर्व हुआ, वहाँ स्विट्ज़रलैंड में बैठी कुड़ी हिंदी में बात कर रही है। हम हिन्दुओं को ना, गर्व बड़ी जल्दी हो जाता है। पर यह गर्व बड़ी जल्दी ही चकनाचूर हो गया। गलती हमारी ही थी। हम उनसे पूछ बैठे कि वह स्विट्ज़रलैंड में बैठे इतनी अच्छी हिंदी कैसे बोल रही हैं और उन्होंने बताया कि कॉल सेंटर भले ही स्विस एयर का है पर वह बोल गुरुग्राम से ही रही हैं।
खैर हमने जिज्ञासा प्रकट की, "हमारे रुपये कब तक वापस आएंगे"?
"कैसे दिए थे"?
"क्रेडिट कार्ड से", हमने जवाब दिया।
"तो क्रेडिट कार्ड में ही वापस आएंगे" उधर से जवाब आया।
"पर हमारी जिज्ञासा तो यह है कि हमारे रुपये वापस कब तक आएंगे"? हमने फिर कहा।
"रुपये वाला क्रेडिट कार्ड ही तो होगा ना", उन्होंने पूछा।
"हाँ", हमने कहा।
वह बोलीं, "तो फिर एक महीने में"।
हमने भी पूछा– "क्यों"?
वह भी कुछ मज़ाक़ के मूड में आ बैठी थीं। बोलीं, "आपने भुगतान रुपये में जो किया है"।
हमने कहा, "भुगतान तो सभी 'रुपये' में करते हैं"।
वह बोलीं, "नहीं, काफी लोग डॉलर में करते हैं, पाउंड में करते हैं, यूरो में करते हैं। और भी कुछ मुद्राएं हैं जिन में करते हैं। उन सबका रिफंड तुरंत हो जाता है। ऐसी कोई बीस बाइस मुद्राएं हैं जिनमें भुगतान किया हो तो रिफंड तुरंत हो जाता है। पर रुपये में किया है तो टाइम तो लगेगा ही"।
हमें लगा, यह क्या बात है। हम विश्व की पाँचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। तीसरी बनने के करीब हैं। क्या पता, कब सुबह या दोपहर को सो कर उठें और पता चले हम तीसरी अर्थ व्यवस्था बन चुके हैं, पांच ट्रिलियन पार कर चुके हैं। पर ये स्विस एयर वाले इस बात को समझ ही नहीं रहे हैं कि हमारा रुपया कितना मजबूत हो चुका है। हमने अपनी दुविधा उस फोन वाली बाला को बताई।
वह हँसते हुए बोलीं, "अंकल, हमारा रुपया बहुत ही मजबूत हो गया है। इसी लिए तो स्विस एयर वाले उसे एक महीने तक अपने पास रखना चाहते हैं। डॉलर, पाउंड, यूरो, किसी को नहीं रखना चाहते हैं। उन्हें एकदम रिफंड कर देते हैं। स्विट्ज़रलैंड में ना भारत के रुपये की बहुत चाह है। आप गूगल करोगे तो पता चलेगा, भारतीयों का कोई पैंतीस चालीस हज़ार करोड़ रुपया स्विस बैंकों में है। रुपया इतना मजबूत कभी नहीं था कि स्विस बैंक इतना सारा पकड़ कर रखें और सरकार जी इसका जिक्र तक न करें"।
रुपये की वास्तविक मजबूती हमारे सामने थी। और यह मजबूती विदेश में बार बार सामने आती रही। वैसे तो हमने पाउंड स्टर्लिंग का समुचित इंतज़ाम कर लिया था पर श्रीमती जी ने चलते हुए बीस हज़ार रुपये अपने पर्स में डाल लिए थे कि जरूरत के समय रुपया ही काम आता है। पर वह रुपया जरूरत पड़ने पर भी काम ना आया। वैसा का वैसा ही वापस आ गया। लंदन में कुछ ऐसे बड़े मनी एक्सचेंज वालों के पास भी गए जिन्होंने बड़े बड़े अक्षरों में बोर्ड लगा रखा था कि यहाँ हर करेंसी बदली जाती है पर रुपये की मजबूती देख वे भी लाचार हो गए। उसे बदल ना सके।
मजबूत पासपोर्ट के बाद हमने अपने रुपये की मजबूती भी देख ली थी। पर इंग्लैंड तो बहुत ही गरीब देश निकला। गरीब और आलसी लोगों का देश। उस बारे में बात अगली बार।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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