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तिरछी नज़र: SIR फॉर्म में पूछा जाना चाहिए– आपने किसे वोट दिया और किसे देने वाले हैं?

अब SIR फॉर्म में एक कॉलम जरूर रखा जाये–कि आपने पिछले चुनाव में किसे वोट दिया था और आने वाले चुनाव में किसे वोट देने वाले हैं ताकि…।
SIR

संसद की कार्यवाही चल रही है। सभी संसद सदस्यों से ले कर सभी मंत्री तक उसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। और लें भी क्यों नहीं। आखिर बहस सिंदूर पर जो हो रही है, 'ऑपरेशन सिंदूर' पर। इसी ऑपरेशन सिंदूर पर तो सरकार जी अगले कई इलेक्शन लड़ेंगे। कम से कम तब तक तो लड़ेंगे ही जब तक इलेक्शन लायक कोई अन्य मुद्दा नहीं मिल जाता है। अब हम उन्नति कर चुके हैं। कम से कम इस मामले में तो कर ही चुके हैं। अब बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि चुनावी मुद्दे नहीं हैं। 

इलेक्शन के नाम पर ध्यान आया, इलेक्शन लोकतंत्र का सबसे बड़ा औजार है। लोकतंत्र होना है तो इलेक्शन होना भी जरूरी है। और इलेक्शन होना है तो उसे जीतना भी है। बाज लोग इलेक्शन जीतने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। हमारे सरकार जी भी उनमें से एक हैं। ठीक है, इलेक्शन जीते हैं तभी तो सरकार जी बने हैं। नहीं जीतते तो कोई और सरकार जी बना होता। तो सरकार जी बनने और बने रहने के लिए इलेक्शन जीतना बहुत ही जरूरी है।

चुनाव जीतने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। अब देखो बिहार में क्या हो रहा है। महाराष्ट्र रिपीट हो रहा है या फिर उससे भी आगे की बात हो रही है। लेकिन चुनाव आयोग जो भी कुछ कर रहा है, देश के लिए कर रहा है। मतलब सरकार जी के लिए ही कर रहा है। सरकार जी और देश अलग हैं क्या? अगर आप इन्हें अलग मानते हैं तो आप देशद्रोही हैं। ठीक है, अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं आया है। पर चार सौ सीट आ जातीं तो आ जाता। कोई शक है क्या?

अब चार सौ सीट नहीं आईं तो उसमें सारी गलती चुनाव आयोग की ही है। इसीलिए चुनाव आयोग को टाइट किया जा रहा है। और टाइट करने से रिजल्ट भी तो मिला है। महाराष्ट्र में ऐसे ही नहीं मिला था उम्मीद से भी अच्छा, मनमुताबिक परिणाम। महाराष्ट्र में चुनाव आयोग ने अच्छा काम किया था, उसी का परिणाम मिला था, और बीजेपी जीती थी।

अब चुनाव आयोग बिहार में काम कर रहा है। महाराष्ट्र से उल्टा कर रहा है। नहीं, नहीं, बीजेपी को हराने के लिए नहीं कर रहा है। कर तो बीजेपी को जिताने के लिए ही रहा है पर कर दूसरी तरह से कर रहा है। महाराष्ट्र में वोट बढ़ा कर किया गया, बिहार में वोट घटा कर किया जा रहा है। 

अब अगली बार जब भी कहीं भी एसआईआर हो, मतलब वोटर लिस्ट के पुनरनिरीक्षण की जरूरत हो, वोट जोड़ने या काटने की जरूरत हो तो जो फॉर्म भरवाया जाये उसमें एक कालम जरूर रखा जाये। वह यह कि आपने पिछले चुनाव में किसे वोट दिया था और आने वाले चुनाव में किसे वोट देने वाले हैं। जो सरकार जी की पार्टी का नाम लिखे उसे मतदाता लिस्ट में शामिल किया जाये और बाकी को देशद्रोही, विदेशी, या फिर कुछ और घोषित कर लिस्ट से बाहर फेंक दिया जाये। देखें सरकार जी की पार्टी कैसे हारती है और कोई और कैसे जीतता है।

देखिए, बात हमने संसद की शुरू की थी और बात करने लगे वोटर लिस्ट की। वोटर लिस्ट और संसद में सम्बन्ध है और बहुत गहरा संबंध है। वोट पा कर, चुनाव में जीत कर ही तो संसद में पहुंचते हैं। और वोट वही दे पाता है जिसका वोटर लिस्ट में नाम हो। और चुनाव भी वही लड़ पाता है जिसका वोटर लिस्ट में नाम हो। तो है ना संसद में पहुंचने और संसद में पहुंचाने में वोटर लिस्ट का महत्व।

संसद में पहुंचने से ध्यान आया हमारे सरकार जी जब पहली बार संसद में पहुंचे थे तब संसद की सीढ़ियों पर झुक गए थे। वहाँ की मिट्टी अपने माथे पर लगाई थी। 'संसद माता' को प्रणाम किया था। समझ तो तभी आ जाना चाहिए था कि अब संसद कैसे चलेगी। पर हम समझे नहीं। समझ जाना चाहिए था कि सरकार जी संसद को कितना महत्व देंगें, पर समझे नहीं। अब समझ आया है। जब संसद चलेगी, तब सरकार जी सब काम करेंगे पर संसद में नहीं आएंगे। विदेशी दौरे करेंगे, चुनावी सभाएं करेंगे, योजनाओं का उद्धघाटन करेंगे, परियोजनायें शुरू करेंगे, मतलब सब कुछ करेंगे पर संसद में नहीं आएंगे। आएंगे तो सुनने नहीं, सुनाने आएंगे। बिना प्रश्न सुने, उत्तर देने आएंगे।

संसद अब ऐसे चलेगी कि कोई मंत्री अब राज्यसभा में बोलेगा, आसन की परवाह किए बिना बोलेगा, कि रिकॉर्ड में सिर्फ वही जायेगा जो मैं बोलूंगा। लोकसभा में स्पीकर 'भारतीय, भारतीय' के नारे लगा रहे सदस्यों को शोर न मचाने, शांत हो जाने के लिए कहेंगे और मोदी, मोदी का शोर मचा रहे सदस्यों को देख कर मंद मंद मुस्कराएंगे। जी हाँ, अब 'भारतीय, भारतीय' कहना शोर माना जायेगा। जी हाँ, संसद अब ऐसे ही चलेगी।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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