तिरछी नज़र: बीमारी हो तो धनखड़ साहब जैसी…

बीमारी हो तो धनखड़ साहब जैसी, नहीं तो नहीं ही हो। माननीय को ऐसी बीमारी हुई कि माननीय ने इस्तीफा दे दिया। स्वास्थ्य ठीक न होने की वजह से इस्तीफा दे दिया। पर न तो बंदे को खुद ही पता है, न ही उनके चिकित्सक को पता है और न ही आम जनता को पता है कि बीमारी क्या थी। इस्तीफा दिया, ठीक किया। क्या करते, जब स्वास्थ्य ही ठीक नहीं चल रहा था। जब स्वास्थ्य ठीक न हो तो पदमुक्त हो घर बैठना ही ठीक होता है।
बीमार चल रहे हो तो काम का बोझ कम कर घर पर आराम करना उपयुक्त है। बीमारी का क्या है, कभी भी, किसी को भी, कहीं भी आ घेरती है। आप समझते हैं, स्वस्थ हैं, पर होते बीमार हैं। आप इस पल स्वस्थ हैं और अगले ही पल अस्वस्थ होते हैं। कई बार तो कोई दूसरा ही बताता है कि भई, आप बीमार हैं। आपसे आगे न हो पायेगा। आप तो त्यागपत्र ही दे दो।
हमारे उप राष्ट्रपति महोदय जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। वे ठीक थे। अपना काम कर रहे थे। मतलब ठीक नहीं थे पर अपने को ठीक समझ अपना काम किये जा रहे थे। जिस दिन त्यागपत्र दिया उस दिन भी दिन भर काम किया। एक मीटिंग भी बुलाई। जयपुर जाने का कार्यक्रम भी बनाया। पर क्या करते, अचानक ही पता चला कि स्वास्थ्य ठीक नहीं है। तत्काल राष्टपति महोदया को अपना इस्तीफा भेज दिया। बीमारी की गंभीरता को समझते हुए राष्ट्रपति महोदया ने भी उसे तत्काल स्वीकार कर लिया। न कोई आया, न किसी ने सांत्वना दी। किसी ने नहीं कहा कि सर, इस्तीफा मत दो। अच्छे से अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाएंगे। अमरीका, इंग्लैंड कहीं भी भेजेंगे पर इलाज में कोई कसर बाकी नहीं रहने देंगे। और न ही धनखड़ साहब ने खुद सोचा कि जब तक शरीर में एक भी सांस बाकी है, देश की सेवा करते रहेंगे। न मालूम क्या बीमारी हुई कि त्यागपत्र सौंप दिया।
उन्हें स्वयं नहीं पता चला कि स्वास्थ्य ठीक नहीं है, बीमार हैं। न तो बुखार हुआ, न कहीं दर्द। पेट भी ठीक ही था। हाथ पैर भी ठीक चल रहे थे। खांसी -जुखाम तक नहीं था। मतलब बीमारी का कोई लक्षण नहीं था। ऐम्स में भी भर्ती नहीं हुए थे। सारे वीआईपी खांसी-जुखाम में भी एम्स में भर्ती हो जाते हैं पर उप राष्ट्रपति जी नहीं हुए। बिना एम्स में ही भर्ती हुए किसी ने, जिसकी हर बात उप राष्ट्रपति जी मानते रहे हैं, कहा कि तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तुम त्यागपत्र दे दो। तो उन्होंने अपने को बीमार मान लिया, त्यागपत्र दे दिया।
उप राष्ट्रपति जी बीमार तो पड़े, त्यागपत्र भी दिया पर किसी को उनकी बीमारी के बारे में कुछ भी पता नहीं है। न तो उप राष्ट्रपति महोदय ने अपनी बीमारी के बारे में कुछ बताया और न ही कोई अन्य सामने आया और उनकी बीमारी के बारे में कुछ बताया। और तो और, हमारे सरकार जी, जिन्हें सबकुछ पता रहता है उन्होंने भी उपराष्ट्रपति महोदय को क्या बीमारी है, नहीं बताया। बस 'X' पर उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना कर के रह गए।
कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं कि जिन्हें सबको बताने में, मतलब पब्लिक्ली डिक्लेअर करने में शर्म आती है, हालांकि ऐसा नहीं होना चाहिए। इन बीमारियों से ग्रसित आदमी ज्यादा देर बैठा नहीं रह सकता है। और उपराष्ट्रपति को, जो राज्यसभा का सभापति होता है, लम्बे समय तक आसान पर बैठना तो पड़ता ही है। इसके अलावा प्रॉस्टेट की ग्रंथि के बढ़ने से भी, जो वृद्धावस्था में ही बढ़ती है, लगातार बैठे रहने में दिक्कत होती है क्योंकि बार बार टॉयलेट के लिए जाना पड़ता है। शुगर की बीमारी, अर्थात डायबिटीज भी अगर कंट्रोल में न हो तो भी बार बार लघुशंका के लिए जाना पड़ता है। हो सकता है, उन्हें इसी तरह की कोई तकलीफ रही हो।
वैसे कई बीमारियां ऐसी होती हैं कि आपको पता ही नहीं चलता है कि आप बीमार हैं। कोई दूसरा ही बताता है कि आप बीमार हैं। लेकिन आप दूसरे के बताने के बावजूद भी नहीं मानते हैं कि आप बीमार हैं। बल्कि आप उसे ही बीमार मानने लगते हैं जो आपको बीमार बता रहा होता है। ऐसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति, क्योंकि अपने को बीमार नहीं मानता है और दवाई तक नहीं खाता है, इस्तीफा देना तो दूर की बात है। क्या पता हमारे उप राष्ट्रपति महोदय जी को भी ऐसी ही कोई बीमारी रही हो। इसीलिए किसी दूसरे ने उन्हें बताया कि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और उनसे जबरन इस्तीफा ले लिया गया हो।
वीआईपी लोगों की स्वास्थ्य से सम्बंधित परेशानियों का पता चले तो जनता स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होती है। एड्स नामक बीमारी के बारे में लोगों में अरबों खरबों डॉलर के प्रचार से इतनी जागरूकता नहीं फैली जितनी तब फैली जब 1975 के विम्बलडन चैंपियन और अमरीकी टेनिस खिलाड़ी अर्थर ऐश को एड्स हुआ। इसी तरह से स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने में एंजेलना जोली का बड़ा योगदान रहा। भारत में भी दीपिका पादुकोण ने जब अवसाद के बारे में लोगों को अपने अनुभव बताये तब लोग अवसाद को बीमारी के तौर पर मानने लगे।
इसलिए उप राष्ट्रपति महोदय जी को बीमारी के बारे में सस्पेंस नहीं रखना चाहिए था। जब किसी बड़े व्यक्ति को कोई बीमारी होती है तो उस बीमारी के बारे में जनता में उत्सुकता बढ़ती ही है। जनता विभिन्न सूत्रों से उस बीमारी के बारे में जानना चाहती है। अगर उपराष्ट्रपति महोदय ने अपनी बीमारी का नाम बता दिया होता तो सारे अख़बार आज यह कयास नहीं लगा रहे होते कि धनखड़ जी ने इस्तीफा क्यों दिया बल्कि उस बीमारी के बारे में जनता को बता रहे होते, समझा रहे होते। अगर बीमारी सार्वजनिक कर दी होती तो जनता में उस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलती। सारे न्यूज़ चैनल विभिन्न दलों के स्पोक्स पर्सन्स को न बुला कर, डॉक्टरों को बुला कर उस बीमारी के बारे में जनता का ज्ञानवर्धन कर रहे होते।
एक और बीमारी है जो राजनीतिक होती है। उसको सभी छुपा कर रखते हैं। वह होती है, स्व-विवेक से निर्णय लेने की बीमारी। अपने बॉस से न पूछ कर काम करने की बीमारी। भारतीय राजनीति में यह एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है। इस बीमारी का निदान चिकित्सक नहीं कर सकते हैं। सम्पूर्ण राजनीति शास्त्र (Entire Political Science) पढ़े लिखे लोग ही इसका निदान और चिकित्सा कर सकते हैं। तो उन्होंने ही निदान किया और चिकित्सा भी।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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