ख़बरों के आगे–पीछे: संसद में मोदी-शाह का ‘जलवा’ ख़त्म हुआ!

संसद में 11 साल में पहली बार
संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ विपक्ष ने जोरदार नारेबाजी की। लोकसभा में ''वोट चोर, गद्दी छोड़’’ और राज्यसभा में ''तड़ीपार गो बैक’’ के नारे लगे। हालांकि संसद में इस तरह की नारेबाजी होना कोई नई बात नहीं है, यह पहले भी होती रही है। इस बार खास बात यह रही कि दोनों सदनों में जब यह नारे लग रहे थे, तो वहां मौजूद भाजपा सांसदों ने विपक्ष की नारेबाजी का जरा भी प्रतिकार नहीं किया। पिछले 11 सालों में ऐसा पहली बार हुआ कि जब प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह की मौजूदगी में उनके ख़िलाफ़ संसद में नारे लगे और सत्ता पक्ष ने कोई जवाबी नारेबाजी नहीं की।
इसी के साथ राज्यसभा में एक खास बात यह देखी गई कि गृह मंत्री शाह ने मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को गिरफ्तारी और 30 दिन की हिरासत पर पद से हटाने के लिए लाए गए संविधान संशोधन विधेयक को अगली पंक्ति की अपनी सीट से पेश करने के बजाय चौथी कतार में खड़े होकर वहां से विधेयक पेश किया। यह भी पहली बार हुआ कि विपक्ष की ओर से विधेयक की प्रतियां फाड़ी गईं और उसके कागज के गोले बना कर गृह मंत्री की ओर उछाले गए। कागज के कई गोले उनके बिल्कुल सामने गिरे। इसे लेकर तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा कि अमित शाह ने डर के कारण अपनी सीट से विधेयक पेश करने के बजाय अपनी पार्टी के सांसदो के बीच खड़े होकर पेश किए।
कुछ तो मामला गड़बड़ है उत्तर प्रदेश में
भाजपा के मुख्यमंत्रियों में योगी आदित्यनाथ को सबसे शक्तिशाली मुख्यमंत्री माना जाता है। भाजपा और उसके समर्थक हलकों में योगी की लोकप्रियता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अगर ज्यादा नहीं है तो उनसे कम भी नहीं है। इसीलिए जब भी मोदी के उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा होती है तो उनका नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में ऐसा लग रहा है कि योगी के साथ कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सरकार के स्तर पर तो कई चीजें बिगड़ी हुई साफ दिख रही हैं।
पिछले दिनों राज्य के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एसपी गोयल को मुख्य सचिव बनाया गया, लेकिन एक हफ्ते के बाद ही वे अचानक लंबी छुट्टी पर चले गए। किसी को कारण नहीं पता है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि सरकार के अंदर कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी वजह से उन्हें अचानक छुट्टी पर जाना पड़ा। वैसे उनकी नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठा था। उधर पुलिस महकमे में पुलिस प्रमुख कार्यवाहक के रूप में ही काम कर रहे है।
मंत्रियों के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं चलने की चर्चा है। दोनों उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पहले से ही तनातनी चल रही है तो अब प्रधानमंत्री मोदी के करीबी अधिकारी रहे बिजली मंत्री अरविंद कुमार शर्मा भी उस कतार में शामिल हो गए हैं। यही नहीं, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी राज्य की नौकरशाही के तौर-तरीकों को लेकर पिछले दिनों सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी जताई थी।
कितने घुसपैठियों के नाम कटे?
बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के तरीके का व्यापक विरोध हो रहा है। संसद में भी पूरे सत्र भर इस सवाल पर खूब हंगामा हुआ है और उधर राहुल गांधी व तेजस्वी यादव बिहार में इसके खिलाफ वोटर अधिकार यात्रा कर रहे है। इस बीच सत्तापक्ष की ओर से आरोप लगाया जा रहा है कि विपक्षी पार्टियां घुसपैठियों के दम पर चुनाव जीतना चाहती हैं इसलिए वे एसआईआर का विरोध कर रही हैं। इससे ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव आयोग नागरिकता की पहचान करके विदेशी नागरिकों या घुसपैठियों के नाम मतदाता सूची से काट रहा है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है?
असल में चुनाव आयोग ने अभी तक नहीं कहा है कि उसने घुसपैठियों के नाम काटे हैं। आयोग के मुताबिक बिहार में जो 65 लाख नाम काटे गए हैं, उनमें विदेशी नागरिक होने के आधार पर किसी का नाम नहीं कटा है। हालांकि पहले चरण के दौरान यानी मतगणना प्रपत्र भरे जाते समय सूत्रों के हवाले से मीडिया में खबर दी गई थी कि बड़ी संख्या में बांग्लादेशी, रोहिंग्या और नेपाली लोग मतदाता बने हैं। लेकिन अंत मे जब मसौदा मतदाता सूची जारी हुई तो इस आधार पर किसी का नाम नहीं काटा गया था। अब दावों और आपत्तियों पर काम चल रहा है और 30 सितंबर या एक अक्टूबर को अंतिम मतदाता सूची जारी होगी। तभी पता चल पाएगा कि चुनाव आयोग ने कितने घुसपैठियों के नाम काटे हैं।
रेखा भी केजरीवाल के नक़्श-ए-क़दम पर!
दिल्ली में करीब दस साल तक मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल ने शासन की एक शैली विकसित की थी, जिसकी खासियत यह थी कि सरकार को जमीनी स्तर पर कोई बुनियादी काम नहीं करना होता है, लेकिन काम करते हुए दिखना होता है। छह महीने पहले भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री बनी रेखा गुप्ता ने भी केजरीवाल के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए पूरी निष्ठा से उनकी ही शासन शैली अपना रखी है।
केजरीवाल शैली की दूसरी खास बात यह है कि घोषणाएं करने में जरा भी पीछे नहीं रहना है और मीडिया से लेकर सड़कों तक पर घोषणाओं के प्रचार पर सरकारी खजाने को दोनों हाथों से लुटाना है। रेखा गुप्ता और उनकी सरकार यह काम भी पूरी तन्मयता से कर रही है। पिछले छह महीने में सैकड़ों घोषणाएं हुईं, हर घोषणा के साथ मुख्यमंत्री की तस्वीरों वाले विज्ञापन छपे और विज्ञापन की वजह से अखबारों व टीवी चैनलों ने खबरें छापी और दिखाईं। लेकिन जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हुआ।
मिसाल के तौर पर नालों की सफाई की खूब तस्वीरें चमकाई गईं लेकिन बारिश शुरू होने पर पूरी दिल्ली में पहले जैसा ही हाल रहा। बरसात और जलजमाव से जुड़ी घटनाओं में इस साल दिल्ली में 110 लोगों की मौत हुई है।
अभी तक महिला सम्मान योजना की राशि मिलना शुरू नहीं हुई है, प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में कुछ नहीं हुआ है और झुग्गियों की जगह मकान देने की योजना का प्रचार चल रहा है। केजरीवाल की तरह रेखा गुप्ता के बंगले का विवाद भी हुआ और अब केजरीवाल की तरह रेखा गुप्ता पर भी हमला हो गया है।
कांग्रेस के ‘महान सांसद’
मार्क ट्वेन का एक प्रसिद्ध कथन है कि आप चुप रह कर दूसरों को संदेह करने दीजिए कि आप मूर्ख हैं, बजाय इसके कि आप मुंह खोल कर दूसरों के उस संदेह को यकीन में बदल दें। यह कथन जिन नेताओं पर लागू होता है उनमें से एक हैं कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल। अक्सर राहुल गांधी के दाएं-बाएं मंडराने वाले केरल से लोकसभा सदस्य वेणुगोपाल भी असल में कांग्रेस को कभी भी फंसा देते हैं। वे सदन में राहुल गांधी के साथ आगे की कतार में क्यों बैठते हैं या राहुल उन्हें अपने साथ क्यों बैठाते है, यह भी समझ से परे है।
बहरहाल गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को जब नैतिकता और सुशासन का ढोल पीटते हुए मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को गिरफ्तारी और 30 दिन की हिरासत पर पद से हटाने के प्रावधान वाले संविधान संशोधन विधेयक पेश किए तो कांग्रेस की ओर वेणुगोपाल ने खड़े होकर कहा कि अमित शाह को नैतिकता की बात नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे गुजरात में जब गृह मंत्री थे और एक आपराधिक मामले में गिरफ्तार हुए थे तो उन्होंने गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा नहीं दिया था। दरअसल वेणुगोपाल अपने नंबर बढ़वाने के चक्कर में गलत बयानी कर गए और अमित शाह को अपने ऊपर चढ़ाई का मौका दे दिया। वेणुगोपाल का यह कहना तो सही है कि अमित शाह को नैतिकता की बात नहीं करना चाहिए लेकिन यह भी सही है कि अमित शाह ने गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दे दिया था। वेणुगोपाल इससे पहले सदन में विपक्षी ब्लॉक में बैठक व्यवस्था को लेकर भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के रिश्तों में खटास पैदा करवाने और राहुल से अखिलेश की दूरी बढ़वाने का कारनामा कर चुके हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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