तिरछी नज़र: नोट कीजिए, सरकार-जी के भाषण की अच्छाइयां

पिछले शुक्रवार स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ थी, पंद्रह अगस्त को। उस दिन सरकार जी ने देश की जनता को भाषण पिलाया। यह जो पंद्रह अगस्त को भाषण देने की एक प्रथा है वह शुरू से ही चली आ रही है। किसी भी सरकार जी ने, चाहे वह कितना भी साहसी, कितना भी महान रहा हो, इस प्रथा को तोड़ा नहीं है। जो लोग यह मानते हैं कि हमें स्वतंत्रता 1947 में नहीं, 2014 में मिली थी, वे लोग भी स्वतंत्रता दिवस पंद्रह अगस्त को ही मनाते हैं। उसी दिन भाषण देते और सुनते हैं।
मैंने इस बार के सरकार जी के भाषण में बहुत सी अच्छाइयां ढूंढी हैं। मित्रों को मुझसे शिकायत रहती है कि मैं सरकार जी की कमियां ही ढूंढता हूँ। जो व्यक्ति इतने साल से देश का सरकार जी है, जिसकी लोकप्रियता विश्व में नंबर एक पर बताई जाती है, जिसके विदेश दौरे पर देवियां फूट फूट कर रो पड़ती हैं, जो अपनी माँ की मृत्यु होते ही अपने को नॉन बायोलॉजिकल घोषित कर देता है, उसमें कोई न कोई अच्छाई तो होगी ही। तो मैंने सरकार जी के इस भाषण में अच्छाइयां ही अच्छाइयां ढूंढी हैं। और मैंने पाया कि सरकार जी के भाषण में तो सारी की सारी बातें अच्छी हैं। कोई बुरी बात है ही नहीं। वही कहावत है ना, 'अच्छा जो देखन मैं चला...
सबसे पहली अच्छी बात तो यह कि सरकार जी ने रिकॉर्ड तोड़ा। स्वतंत्रता दिवस पर किसी भी सरकार जी द्वारा दिये गए भाषण की लम्बाई का रिकॉर्ड। तोड़ने के लिए एक ही चीज सबसे अच्छी है, और वह है रिकॉर्ड। नेहरू, इंदिरा जी या मनमोहन सिंह के भाषण का रिकॉर्ड नहीं। उनके रिकॉर्ड तो सरकार जी पहले ही तोड़ चुके हैं। सरकार जी ने तो अपना ही पिछला रिकॉर्ड तोड़ा है। सरकार जी इस बार सौ मिनट की सीमा को पीछे छोड़ गए और एक सौ तीन मिनट लम्बा भाषण दिया। यह ऐतिहासिक था। देश के इतिहास में किसी सरकार जी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में सौ मिनट की रेखा को पहली बार पार किया।
इस एक सौ तीन मिनट लम्बे भाषण के कई लाभ हुए। सबसे बड़ा लाभ तो यह हुआ कि लोगों की एकाग्रता बढ़ी। ऐसे समाज में जहाँ लोग दस पंद्रह मिनट टिक कर नहीं बैठ सकते हैं, वहाँ हज़ारों लोगों को लाल किला मैदान में मंच के सामने पौने दो घंटे लम्बा भाषण सुनाना, लोगों की एकाग्रता बढ़ाने का ही काम है। इतना लम्बा भाषण सुनना सचमुच में तपस्या ही है। स्कूली बच्चे भी, पौने दो घंटे के भाषण के लिए, तीन चार घंटे बैठे रहें, इससे वे धैर्यवान ही बनते ही हैं। वैसे तो घर पर टीवी के सामने बैठ कर देखना, रेडियो के सामने बैठ कर सुनना भी तो आपके धैर्य की परीक्षा ही है। पर घर में यह स्वतंत्रता तो होती ही है कि आप पानी, चाय, कॉफ़ी पी सकते हैं। जा कर शंका निवारण कर सकते हैं पर वहाँ सामने बैठे हजारों लोगों को यह स्वतंत्रता भी नहीं थी।
इस भाषण में सबसे अच्छी बात यह रही कि सरकार जी ने इस भाषण में जो भी वायदे किए, उनकी कोई समय सीमा नहीं रखी। सरकार जी समझदार हो गए हैं। समझ चुके हैं कि कोई भी काम समय सीमा में रख कर करना नितांत ही बेवकूफी है। चाहे स्मार्ट सिटी हो या बुलेट ट्रेन, चाहे किसानों की दुगनी आय हो या हर साल की दो करोड़ नौकरियां, जब कुछ भी समय पर पूरा नहीं हुआ तो आगे आने वाले वायदे कैसे पूरे होंगे। तो सरकार जी ने अच्छा किया कि देश के विकास को, देश की उन्नति को समय सीमा में नहीं बांधा। तो इस बार जो भी वायदे किए उनकी कोई समय सीमा नहीं निश्चित की।
सरकार जी ने कहा कि निजी क्षेत्र साढ़े तीन करोड़ नौकरियां देगा। नौकरियों के बारे में सरकार जी का विज़न बहुत स्पष्ट रहा है। शुरू से ही रहा है। पहले कहते थे, मैं हर साल दो करोड़ नौकरियां दूंगा। वह नहीं हो पाया तो कहने लगे, पकौड़े तलना भी रोजगार है। उन्हीं दिनों पंक्चर लगाने को भी रोजगार माना गया पर वह अलग संदर्भ में माना गया। उसके बाद जनता से कहा गया कि नौकरी मांगने वाले नहीं, नौकरी देने वाले बनो। सरकार तो नौकरी देने वाली बन नहीं रही है, जनता ही बन जाये। और अब कह रहे हैं कि निजी क्षेत्र नौकरी देगा। कब तक देगा, कैसे देगा, यह स्पष्ट नहीं है। यह सरकार जी की अच्छाई ही है कि सरकार जी नौकरी के बारे में अपने बदलते विचारों को किसी से छिपाते नहीं हैं।
सरकार जी ने अपने इस भाषण में एक और अच्छी बात की। जहाँ तक मैं देख, सुन, पढ़ पाया, सरकार जी ने इस भाषण में एक भी बार नेहरू को दोष नहीं दिया। इस मामले में सरकार जी पहली बार आत्मनिर्भर लगे। सरकार जी ने पहली बार नेहरू, कांग्रेस या अन्य किसी विपक्षी दल का नाम लिए बिना इतना लम्बा बोला। नहीं तो सरकार जी नेहरू जी या फिर विपक्षी दलों को दोष दिये बिना दो मिनट भी नहीं बोल पाते हैं। इस स्वतंत्रता दिवस पर सरकार जी नेहरू जी के प्रेत से मुक्त हो गए, यह इस भाषण की उपलब्धि है।
इस स्वतंत्रता दिवस पर सरकार जी ने बहुत साहस दिखाया। नहीं, नहीं, मैं ऑपरेशन सिंदूर की बात नहीं कर रहा हूँ। सरकार जी ने यह स्वीकार करने का साहस किया कि देश में महंगाई बढ़ रही है। इसीलिए उन्होंने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा कि महंगाई कम करने के लिए जीएसटी कम किया जायेगा। लेकिन ठहरो जरा, यह काम अभी नहीं, दिवाली के आस पास किया जायेगा। हाँ, यह जरूर है कि सरकार जी ने यह नहीं बताया है कि यह काम इसी दिवाली को किया जायेगा या फिर अगली किसी दिवाली को। हो सकता है इस मामले में सरकार जी जब दीवाली की बात कर रहे हैं तो 2047 की दिवाली की बात कर रहे हों।
स्वतंत्रता दिवस पर दिये गए भाषण में सरकार जी ने और भी अधिक साहस का काम किया है। लालकिले की प्राचीर से, स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पहली बार किसी सरकार जी ने किसी ऐसे संगठन की प्रशंसा की है जिस पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या में लिप्त रहने का आरोप लग चुका है। जिस पर आज़ाद भारत की तत्कालीन सरकारें ही तीन तीन बार प्रतिबंध लगा चुकी हैं। जिसके बारे में यह माना जाता है कि उसका भारत के स्वतंत्रता संग्राम में तनिक भी योगदान नहीं रहा है। जिस पर देश के साम्प्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने का आक्षेप लगता रहा है। ऐसे संगठन की प्रशंसा करने का साहस सरकार जी स्वतंत्रता दिवस के अपने बारहवें सम्बोधन में जुटा सके, जो बहुत ही प्रसंशनीय है।
सरकार जी ने भाषण तो बहुत लम्बा दिया। पर यह तो जरूरी नहीं है कि मैं भी उनकी प्रशंसा में उतना ही लम्बा व्यंग्य लिखूं। लम्बा लिखूंगा तो मेरे पाठक उकता जायेंगे। उनके धैर्य की परीक्षा हो जाएगी जिसके मूड में मैं बिल्कुल भी नहीं हूँ। वे व्यंग्य पढना छोड़, कुछ और करने बैठ जायेंगे। हालांकि सरकार जी की प्रशंसा के लिए अभी तो बहुत कुछ बाकी है पर मैं तो अपना यह व्यंग्य यहीं समाप्त करता हूँ।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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