तो इतना आसान था धर्म संसद को रोकना? : रुड़की से ग्राउंड रिपोर्ट

रुड़की के डाडा जलालपुर गांव में जो 27 अप्रैल को देखने को मिला वो शायद ही इस देश में इतना आम रह गया है। पुलिस-प्रशासन की ज़बरदस्त तैनाती ने गांव के नागरिकों में सुरक्षा का भाव पैदा किया। मगर यह सुरक्षा और यह तैनाती उस हिंसा के 10 दिन बाद हुई, जिस हिंसा में लोगों के वाहन जले, घर लुटे और दिल ओ दिमाग़ पर गहरा आघात हुआ। 27 अप्रैल को होने वाली हिन्दू महापंचायत/धर्म संसद को रोक लिया गया।
इससे पहले 26 अप्रैल की शाम को गांव के 5 किलोमीटर के दायरे में धारा 144 लागू कर दी गई थी, गांव में डेरा जमाए काली सेना के महंत दिनेशानंद भारती और उनके चेलों को गिरफ्तार कर लिया गया था। पुलिस-प्रशासन का निश्चित रवैया यही था कि पंचायत नहीं होने देनी है। यह रवैया पैदा हुआ सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल को उत्तराखंड पुलिस को कड़े निर्देश दिए थे कि धर्म संसद में हेट स्पीच को हर हाल में रोका जाए। गांव के मुसलमान सवाल उठाते हैं कि इस निर्देश के जवाब में प्रशासन ने जो कड़ी कार्रवाई की, वह उस वक़्त क्यों नहीं की गई जब 16 अप्रैल की रात को हिंसा भड़की थी?
हालांकि एडीएम पीएल शाह ने बयान देते हुए कहा, "हमने गाँव में पुलिस बल की तैनाती के साथ गांव में शांति कायम करने की कोशिश की है।"
न्यूज़क्लिक जब 27 अप्रैल की सुबह डाडा जलालपुर पहुंचा तो माहौल तक़रीबन सामान्य था। फ़ज़ा में चिंता तो थी, मगर डर या दहशत नहीं थी। पुलिस हर 10 कदम पर तैनात थी, गांव से 5 किलोमीटर की दूरी पर चेकिंग की जा रही थी। प्रशासन ने क़रीब 200 कॉन्स्टेबल, 30 महिला कॉन्स्टेबल, 50 से ज़्यादा इंस्पेक्टर, पीएसी की 11 कंपनी और दमकल की 2 गाड़ियां भी तैनात की हुई थीं। सवाल फिर वही उठता है, कि हिंसा के वक़्त पुलिस का रवैया इतना सख़्त क्यों नहीं था?
न्यूज़क्लिक ने गांव के मुसलमानों से बात की तो उन्होंने एक तरफ़ तो पुलिस तैनाती पर सुरक्षित महसूस किया मगर वहीं यह भी कहा कि बहुत देर बाद जागा है प्रशासन। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए मुहम्मद मेहरबान ने पूरे घटनाक्रम पर कहा, "अगर प्रशासन इस बात में पहले ध्यान दे देता तो मामला बढ़ता ही नहीं, मगर तैनाती से आज का दंगा बच गया। हम में और सैनियों में कोई विवाद पहले नहीं था।"
मोहसिन ने कहा, "पहले कोई दिक्कत नहीं थी, अभी भी उनमें से कुछ लड़के हैं जो लड़ाई करने को तैयार हैं। जब बुलडोज़र आया तब लोगों के दिल में दहशत बैठ गई थी।"
अपने ही गाँव के हिन्दू समुदाय के लोगों पर बात करते हुए मोहसिन ने कहा, "वो कहते हैं हमारा राशन पानी बंद कर देंगे, पाकिस्तान भेज देंगे; हमें क्या लेना देना है पाकिस्तान से!"
बता दें कि 16 अप्रैल की घटना के बाद से बजरंग दल, काली सेना जैसे हिन्दुत्ववादी संगठनों ने डाडा जलालपुर गाँव की घटना में लगातार ज़हर घोलने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। आनंद स्वरूप, दिनेशानन्द भारती, हिमांशु ने 27 अप्रैल की धर्म संसद में हिंदुओं के पहुँचने के लगातार आह्वान किए थे। मगर पुलिस ने कल दिनेशानंद को गिरफ्तार करने के बाद आज बजरंग दल के हिमांशु, काली सेना के आनंद स्वरूप को भी गिरफ्तार कर के ही रखा। गाँव के ज़्यादातर हिन्दू लड़के भी पुलिस हिरासत में लिए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल को उत्तराखंड पुलिस को निर्देश दिये और पुलिस-प्रशासन ने यह सारे कदम उठाए और कहा भी कि इसकी सीधी मॉनिटरिंग सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। सवाल उठता है कि अगर धर्म संसद को रोकना इतना आसान है तो बुराड़ी और ऊना की धर्म संसद को क्यों नहीं रोका गया जहां यति नरसिंहानन्द जैसे महंतों ने खुलेआम मुसलमानों के क़त्ल ए आम की बात की थी?
आनंद स्वरूप ने कल तक धमकी भरे वीडियो डालने का सिलसिला बंद नहीं किया था, मगर 27 अप्रैल को जारी वीडियो में उसने काली सेना के कार्यकर्ताओं से 'शांति' बनाने की अपील की।
गाँव वालों से बात कर के एक बात साफ हो जाती है कि हिंसा गाँव के कुछ युवा लड़कों और ज़्यादातर बाहर से आए लोगों ने की थी, पुलिस का भी यही कहना है। पुलिस ने गिरफ्तार किए गए लगभग सभी मुसलमानों को छोड़ दिया है, वे अभी ज़मानत पर बाहर हैं। न्यूज़क्लिक ने संजीदगी को देखते हुए उनसे बात करना ठीक नहीं समझा।
दो धर्मों की कहानी
हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों ने गाँव डाडा जलालपुर के बारे में एक बात कही - यहाँ तो ऐसा कभी नहीं हुआ था, यहाँ तो 50 साल से रामलीला निकल रही है।"
मेहरबान ने कहा, "आप बोलो जय श्री राम, निकालो जुलूस; हम भी साथ निकालेंगे मगर ये चिढ़ाने वाले गाने नारे चलाने का क्या मतलब है, ये सब तो राजनीति है।"
हालांकि ज़्यादातर युवा हिन्दू लड़के प्रशासन की तैनाती से दुखी नज़र आए। उनका कहना था, "प्रशासन हिन्दू विरोधी है, उसने छुरा घोंपा है।"
बुजुर्ग सुशीला भले ही दिनेशानन्द की बात से सहमत हों मगर उन्हें भी माहौल खराब होता दिख रहा था, "महंत जी ठीक बात कर रहे थे मगर प्रशासन ने भी ठीक किया, अब भीड़ में कोई कुछ बोल दे उल्टा सीधा और लड़ाई हो हम तो यह नहीं चाहते हम तो शांति चाहते हैं।"
गाँव में राशन की दुकान चलाने वाले एक हिन्दू शख़्स ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि बवाल से सारा काम रुक गया है, दूसरे गाँव का बंदा यहाँ नहीं आता। उन्होंने भी यही माना कि नफरत की राजनीति उनके गाँव में की जा रही है। उनका कहना था कि वह शांति चाहते हैं।
उनसे पूछा गया कि बवाल से क्या फ़र्क़ पड़ा तो उन्होंने कहा, "ईद की खीर खो गई हमारी और क्या हुआ!"
डर और दहशत बरक़रार
न्यूज़क्लिक ने पहले भी आपको उस घर के बारे में बताया था जिसमें रात 3 बजे सबसे आखिरी में हिंसा हुई। उस घर का मंज़र यह है कि घर में रहने वाले दिन में खेतों में छुपते हैं। 2 वयस्क और बाक़ी बच्चे इतना डरे हुए हैं कि वह अपने घर में ही सुरक्षित महसूस नहीं करते। उन्होंने बताया, "हमारी गाय को भी मारा उन्होंने घर भी जलाने की कोशिश की। वे तो चाहते हैं कि मुसलमानों का सब खतम हो जाए।"
इस डर को बढ़ाने का काम बजरंग दल जैसे संगठन लगातार कर रहे हैं। बजरंग दल हरिद्वार के हिमांशु ने कहा, "आज हमको यही सीख मिली है कि इनको हिंदुओं की ताकत का एहसास दिलवाना पड़ेगा। यह हिन्दुत्व की सदी है।"
वहीं आनंद स्वरूप ने भी यही कहा था कि यह रोक ज़्यादा दिन तक बरक़रार नहीं रहेगी।
डाडा जलालपुर गाँव में महापंचायत नहीं हुई और ज़िंदगी धीरे धीरे पटरी पर आ रही है। एक पुलिस अफ़सर ने कहा, "ये देहात है, यहाँ कोई दूध भी निकालेगा तो बेचने के लिए कहीं तो जाएगा ही।" प्रशासन की उपस्थिती गाँव में 5 मई सुबह 11 बजे तक रहने वाली है। इसी बीच 2 या 3 मई को ईद भी है, ऐसे में प्रशासन इस बात को लेकर भी सतर्क है कि कोई असामाजिक तत्व ईद के दिन कुछ बवाल न करे।
गाँव का एक माहौल, एक ढांचा होता है। वह ढांचा जो भी हो, अगर उसमें 10-11 दिन तक बाहर से आए लोग दरार डालने का काम करें तो उस ढांचे को, गांव की ज़िंदगी को कितना नुकसान पहुंचेगा इसका जवाब तो डाडा जलालपुर गाँव ही देगा।
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