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प्रोफ़ेसर अली को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम ज़मानत, जांच के लिए SIT गठित

कोर्ट ने प्रो. अली की पोस्ट में प्रयुक्त भाषा की जटिलता को समझने और उसकी समुचित व्याख्या के लिए तीन आईपीएस अफ़सरों की एक एसआईटी बनाने का निर्देश दिया है, जिसमें कोई अधिकारी हरियाणा या दिल्ली से नहीं होगा।
prof ali

 

सुप्रीम कोर्ट ने अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद को अंतरिम ज़मानत दे दी है। शीर्ष अदालत ने उनके ख़िलाफ़ दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार करते हुए मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का निर्देश दिया है।

प्रो. अली को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर किए गए एक सोशल मीडिया पोस्ट के सिलसिले में हरियाणा पुलिस ने गिरफ़्तार किया था। 

आज, 21 मई को इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने अंतरिम ज़मानत देते हुए कहा कि प्रोफेसर महमूदाबाद सोनिपत की अदालत में ज़मानती बॉन्ड भरें। 

उन्हें पासपोर्ट जमा कराने और जांच में सहयोग करने का निर्देश भी दिया गया है। कोर्ट ने साफ़ किया कि वे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ या इससे संबंधित किसी भी विषय पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे।

अदालत में यह भी साफ किया कि "एसआईटी में हरियाणा या दिल्ली से कोई अधिकारी नहीं होगा," 

Live Law की ख़बर के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया– "नोटिस जारी करें। याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर से जुड़े दो कथित आपत्तिजनक ऑनलाइन पोस्टों की सामग्री को ध्यान में रखते हुए, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जांच पर रोक लगाने का कोई उचित कारण नहीं बनता। हालांकि, पोस्ट में प्रयुक्त भाषा की जटिलता को समझने और उसकी समुचित व्याख्या के लिए हम हरियाणा के पुलिस महानिदेशक (DGP) को निर्देश देते हैं कि वे तीन आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित करें, जिनमें से कोई भी हरियाणा या दिल्ली से संबंधित न हो। यह एसआईटी एक पुलिस महानिरीक्षक (IG) के नेतृत्व में होगी, और इसके एक सदस्य के रूप में एक महिला अधिकारी अनिवार्य रूप से शामिल हों।" 

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिबल ने प्रो. अली की तरफ़ से अदालत में तर्क पेश किए। उन्होंने अदालत का ध्यान प्रो. अली के फेसबुक और इंस्टाग्राम प्रोफाइल पर पोस्ट की गईं उनकी टिप्पणियों की ओर आकर्षित कराया। उन्होंने अदालत के समक्ष वे टिप्पणियाँ पढ़ीं औ कहा कि "यह एक अत्यंत देशभक्तिपूर्ण बयान हैं।" 

जस्टिस कांत ने प्रो. अली की टिप्पणी पर कहा, "उन्होंने युद्ध पर टिप्पणी करने के बाद राजनीति की तरफ रुख किया!"

Bar & Bench की ख़बर के अनुसार, न्याय पीठ ने कहा— "जो बातें वास्तविक (बोना फाइड) नीयत से कही गई हैं, वे जांच का विषय बन सकती हैं। समूचा संदर्भ यह है कि वे युद्ध-विरोधी हैं। वे यह कहते हैं कि युद्ध के कारण परिवार और आम नागरिक प्रभावित होंगे। साथ ही वे यह भी कहते हैं कि युद्ध सामग्री बनाने वाले देश इससे लाभ उठाएंगे। ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा, जो इस प्रकार की भाषा की बारीकियों को समझता हो, जांच की जा सकती है—क्योंकि कुछ शब्दों के दोहरे अर्थ हो सकते हैं"।

प्रोफेसर अली ख़ान महमूदाबाद को 18 मई को हरियाणा पुलिस ने गिरफ़्तार किया था। निचली अदालत में पेश किए जाने के बाद उन्हें दो दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया और फिर 27 मई तक न्यायिक हिरासत में रखने का आदेश दिया गया था।

उनके ख़िलाफ़ एफआईआर और गिरफ़्तारी के बाद देशभर के कई शिक्षाविदों, बौद्धिकों और छात्रों ने विरोध दर्ज कराया है। 

 

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