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आस्था की कांवड़ पर ‘नफ़रती गैंग’ का कब्ज़ा

कांवड़ यात्रा: अब नाम से नहीं पैंट खोलकर तय होगी खाने की शुद्धता!
KANWAR
मुज़फ़्फ़रनगर: कांवड़ मार्ग पर दुकानों और ढाबों पर पहचान अभियान

 

दोस्तो, सावन आ रहा है, कांवड़ यात्रा एक बार फिर शुरू हो रही है, लेकिन अब इसके साथ आस्था, भक्ति या उत्साह से ज़्यादा डर और आशंकाएं मन में घर करने लगती हैं। और यह डर यूं ही नहीं है, इसकी फिर शुरुआत हो गई है। पिछले साल तो हिंदू-मुस्लिम को लेकर नेमप्लेट का ही वितंडा शुरू हुआ था इस बार तो कांवड़ यात्रा मार्ग पर लोगों की पैंट ही खुलवाई जाने लगी है।

शिव और सावन

11 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो रहा है। यह महीना शिवभक्ति का महीना माना जाता है। 23 जुलाई को शिवरात्रि का त्योहार है। इस पूरे महीने शिवभक्त हरिद्वार समेत विभिन्न नदियों से पवित्र जल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। 

मैं भी इसका साक्षी रहा हूं। किशोर अवस्था तक मैंने भी ख़ूब कांवड़ उठाई है। हरिद्वार से कांवड़ लाने वाले कई परिजनों का बीच रास्ते में सहायक बना हूं। आज आप मुझे नास्तिक कह सकते हैं, लेकिन शिव आज भी मुझे बहुत प्रिय हैं। धार्मिक रूढ़ियों से अलग वे मुझे लोक के देवता लगते हैं। अपने से लगते हैं। देवता से ज़्यादा एक जीवन दृष्टि। जिसमें तप, प्रेम, त्याग, न्याय, ध्यान, करुणा का प्रमुख महत्व है। वे निर्जन में हिमालय पर वास करते हैं। भस्म लपेटे रहते हैं। भूतों और गणों के भी स्वामी कहे जाते हैं—वही लोग जो समाज द्वारा तिरस्कृत हैं, उन्हें शिव अपनाते हैं।

वह वैरागी हैं, औघड़ हैं, मलंग हैं।  वे सुर-असुर सबके देवता हैं। सबके प्रिय। उनका अभिषेक भी जल से किया जाता है। पूजा में मेवे नहीं बेल पत्र, धतूरा आदि चढ़ाए जाते हैं। इतना सादे, भोले भंडारी और सबसे बढ़कर प्रेम की अद्धभुत मिसाल, पराकाष्ठा। सती से ऐसा प्रेम जिसका दूसरा उदाहरण नहीं मिलता।

लेकिन अब उन्हीं के नाम पर इस कदर नफ़रत, हिंसा, सांप्रदायिकता फैलाई जा रही है कि कुछ कहते नहीं बनता। 

कांवड़ यात्रा

कांवड़ यात्रा सदियों से होती आ रही है। पहले इसमें दो तरह के लोग जाते थे– एक वो जो आस्थावान हैं, दूसरे जो घर या समाज से तिरस्कृत, अपमानित, बेरोज़गार। जिन्हें इस बहाने घर-समाज में कुछ सम्मान मिल जाता था। इसलिए इसमें दलित-पिछड़े भी जाते रहे।

फिर इसके बाद इसमें ऐसे युवा जुड़े जो कुछ मस्ती, सैरसपाटे या नशे आदि के लिए कांवड़ लाने लगे। 

लेकिन अब इसमें जो चौथी कैटेगिरी जुड़ी गई है जो बेहद ख़तरनाक है। 

ये लोग हैं हिंसक, हुड़दंगी, नफ़रती, सांप्रदायिक लोग। ये आस्थावान नहीं हैं, ये एक नफ़रती गैंग है, जिसके लिए शिव की भक्ति और कावड़ यात्रा एक मौका है, दूसरे लोगों ख़ासकर मुसलमानों को टार्गेट करने का। सांप्रदायिकता का ज़हर बोने का। इन लोगों को आज राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। या कहें कि ये टोली हिंदुत्ववादी दलों और संगठनों द्वारा ही पोषित और प्रायोजित गैंग है। 

आज की हक़ीक़त

यह सच है कि आज भी शिव में आस्था रखने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं। करोड़ों में। और इनमें लाखों लोग कांवड़ लेने जाते हैं। इनसे हमें कोई शिकायत नहीं। दिक़्क़त पैदा करते हैं यह मुट्ठी भर हुड़दंगी नफ़रती लोग जो आज इस पूरी यात्रा पर हावी हो गए हैं। और अब इन्हीं लोगों की वजह से पूरी कांवड़ यात्रा बदनाम हो गई है। इन लोगों के डर से बहुत से धार्मिक, आस्थावान लोग कांवड़ लाने से भी परहेज़ करने लगे हैं। 

इन नफ़रती हुड़दंगियों ने एक तरह से इस पूरी यात्रा पर कब्ज़ा कर लिया है। और इन्हें हिंदुत्व की राजनीति के चलते आरएसएस-बीजेपी और उससे जुड़े संगठन और शासन-प्रशासन का समर्थन मिल रहा है। यानी कहा जाए कि कांवड़ यात्रा का ‘राजनीतिक अपहरण’ हो गया है तो कुछ ग़लत न होगा। 

तभी तो इन्हें कांवड़ यात्रा के दौरान गुंडागर्दी की खुली छूट होती है। एक दिन जुमे या ईद की नमाज़ अगर सड़क पर हो जाए तो सरकार और प्रशासन को दिक्कत होने लगती है, लेकिन कांवड़ यात्रा के नाम पर अन्य लोगों के लिए महीना-महीना भर रास्ते रोक दिए जाते हैं। रूट डाइवर्ट कर दिया जाता है। लेकिन कोई टोकने वाला नहीं है।

इसके बाद भी आपने हर बार देखा होगा, कभी कांवड़ अपवित्र करने के नाम पर कभी किसी और बहाने सड़क चलते लोगों को निशाना बनाया जाता है, वाहनों में आग लगा दी जाती है, तोड़फोड़ की जाती है। अभी कांवड़ यात्रा शुरू नहीं हुई है लेकिन हरिद्वार से ख़बर आ रही है कि गंगा जल खंडित होने के आरोप में एक टेंपो चालक की पिटाई कर दी गई। चालक को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। 

और पिछले साल से एक नया ड्रामा शुरू हुआ है कांवड़ मार्ग के दुकानदारों, होटल-ढाबों और यहां तक रेहड़ी-ठेले वालों को भी अपनी नेमप्लेट लगाने का। यानी यह पहचान सुनिश्चित करने का कि फलां होटल-ढाबे या दुकान का मालिक हिंदू है या मुसलमान। और सिर्फ मालिक ही नहीं यानी किसके नाम पर दुकान रजिस्टर है यही नहीं… बल्कि कौन उसे चला रहा है, कौन कारीगर हैं। सब…। 

दरअसल यह सिर्फ़ नफ़रत नहीं मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की भी साज़िश है। जो केवल कांवड़ या नवरात्र पर ही नहीं अब तो हर समय गांव-मोहल्लों में मुसलमान फेरी वालों का प्रवेश निषेध आदि के बोर्ड लगाकर ऐलानिया तौर पर की जाने लगी है। रोज़ ख़बरें आती हैं कि यहां कश्मीरी शॉल बेचने वाले को पीट दिया गया, वहां लव जिहाद का आरोप लगाकर मुसलमानों को दुकान-मकान खाली करने का अल्टीमेटम दे दिया गया।  

इसे भी पढ़ें– धर्म की सियासत: नाम से पहचान के ज़रिये विभाजन और आर्थिक बहिष्कार की साज़िश

कभी किसी ने नहीं कहा कि आपको भोजन चुनने का अधिकार नहीं है। आप क्या खाएं, क्या न खाएं, कहां से खाएं, न खाएं ये आपकी इच्छा है। आपको खाने की क्वालिटी और शुद्धता से मतलब होना चाहिए, उसके शाकाहारी और मांसाहारी होने से मतलब होना चाहिए…कौन उसे बना रहा है, बेच रहा है, इससे आपको क्या मतलब। और अगर मतलब भी है तो आप इसके जरिये भेदभाव, छुआछूत और घृणा नहीं फैला सकते। कल आप कहेंगे कि जाति भी लिखिए, क्योंकि आपको दलितों से भी परहेज़ है!  

आपने कभी किसी शादी-ब्याह, समारोह में जाकर मेज़बान से पूछा है कि आप का हलवाई हिंदू है या मुसलमान। या उसके कारीगर और परोसने वाले यानी वेटर किस धर्म-जाति के हैं? 

हल्दीराम, बीकानेर या अग्रवाल साहब की मिठाई की दुकान पर जाकर पूछा है कि आपके ये लड्डू, पेड़े, रसगुल्ले बनाने वाला कारीगर कौन है, हिंदू या मुसलमान। 

या ये जो डिब्बा बंद मिठाइयां, नमकीन, ब्रेड, चॉकलेट आ रहे हैं उन्हें कहां कौन बनाता है, कौन पैक करता है, कौन डिलीवर करता है। यह पूछा है, नहीं… क्यों!, क्योंकि हमें सामान की गुणवत्ता से मतलब होता है, उसके मालिक या कारीगर से नहीं। 

और मैं पूछता हूं इन नफ़रती और शुद्धतावादी लोगों से वो कैसे तय करेंगे कि सड़क किनारे ठेले पर बिक रहे आम-केले हिंदू के बाग से आए हैं या मुसलमान के। लेकिन उन्हें इसे बेचने वाले से दिक्कत है। और इस तरह बेचने वाले के धर्म से आम-केला-अमरूद भी हिंदू-मुसलमान हो गए!

लेकिन इन नफ़रती लोगों को समझाने या रोकने की बजाय, पुलिस-प्रशासन इनकी शिकायत पर तुरंत कार्रवाई करता है और शासकीय आदेश जारी करता है कि नाम लिखा जाए। हैलीकॉप्टर से फूलों की वर्षा करता है। इसी वजह से इनके हौसले बढ़ते चले जा रहे हैं। 

यूपी और उत्तराखंड ने जब पिछले बार 2024 में ऐसे बेतुके फरमान जारी किए तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए साफ़ आदेश दिया कि दुकानदार को सिर्फ यह दिखाना चाहिए कि वह शाकाहारी या मांसाहारी भोजन बेच रहा है; नाम-पता बताना आवश्यक नहीं। 

संविधान के आर्टिकल 21 के अनुसार भी यह व्यक्ति की निजता और गरिमा के अधिकार का भी उल्लंघन है। 

लेकिन इस बार यह फिर शुरू हो गया है। योगी सरकार ने फिर इस बाबत निर्देश जारी कर दिए हैं। 

और इस सबसे शह पाकर यह नफ़रती गैंग अब तो एक क़दम और आगे बढ़ गया है। 

अब इन लोगों को केवल नाम से तसल्ली नहीं है, आधार देखकर तसल्ली नहीं है, अब तो ये पैंट खोलकर देख रहे हैं कि फलां आदमी हिंदू है या मुसलमान।

अभी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में ऐसी ही घटना हुई। 28 जून को दिल्ली–देहरादून नेशनल हाईवे 58 पर कांवड़ रूट पर किसी यशवीर महाराज की टीम ने दुकानों और ढाबों पर पहचान अभियान चलाया। इस दौरान "पंडित जी वैष्णो ढाबा" पर एक कर्मचारी से जबरन पैंट उतारने की कोशिश की गई ताकि धर्म की "पहचान" की जा सके। 

इसे क्या कहेंगे आप। आस्था, खाने-पीने में शुद्धता का आग्रह या नफ़रत, सांप्रदायिकता। 

इस मामले में कार्रवाई के नाम पर अभी तक सिर्फ़ 6 लोगों को पुलिस ने नोटिस दिया है। 

समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद एस.टी. हसन ने तो इसे “पहलगाम हमले जैसे आतंकी कृत्य” बताया है। क्योंकि वहां भी धर्म पूछकर मारा गया था। 

कांग्रेस सांसद इमरान मसूद और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और अन्य नेताओं ने इसे इसे धार्मिक उत्पीड़न और गैर-कानूनी करार दिया है। 

यह सब हो रहा है शिव के नाम पर, जो "बाह्य आडंबरों से परे, आंतरिक शुद्धता के प्रतीक हैं।" पौराणिक कथाओं के अनुसार जिन्होंने देवता, सुर-असुर किसी में भेदभाव नहीं किया। जिन्होंने समुद्र मंथन से निकला विष खुद पीकर संसार को बचाया लेकिन यह लोग उन्हीं के नाम पर पूरे देश-समाज में नफ़रत का ज़हर फैला रहे हैं। 

अंत में एक अपील सबसे ख़ासकर आस्थावान कांवड़ियों से कि इस तरह की नफ़रत और गुंडागर्दी का आगे आकर खुलकर विरोध कीजिए, वरना ये आपके धर्म और आस्था को जिस तरह बदनाम कर रहे हैं कल कांवड़ लाने या उठाने में आपको या आपके बच्चों को गर्व, श्रद्धा या शांति महसूस नहीं होगी बल्कि शर्म आएगी। 

 

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