ख़बरों के आगे–पीछे: दिल्ली में 'मज़बूत' सरकार की बेबसी!

दिल्ली में जब आम आदमी पार्टी की सरकार थी तब उसके सभी फैसलों पर उप राज्यपाल या तो रोक लगा देते थे या अपने हिसाब से मंजूरी देते थे। केजरीवाल सरकार को कार्यालय के लिए स्टेशनरी खरीदने की फाइल भी उप राज्यपाल के पास भेजनी होती थी। फिर भी आम आदमी पार्टी की सरकार के 10 साल में दिल्ली के किसी निजी स्कूल की फीस बढ़ाने की हिम्मत नही हुई और न दिल्ली में बिजली आपूर्ति की सेवा दे रही दोनों कंपनियों को अपने शुल्क बढ़ाने की हिम्मत हुई। लेकिन जैसे ही आम आदमी पार्टी की सरकार गई और भाजपा की सरकार बनी, जिसकी केंद्र में सरकार भी है, जिसके उप राज्यपाल हैं, जिसके पास एमसीडी भी है और जो सबसे शक्तिशाली है, उसके होते दिल्ली के निजी स्कूलों ने फीस बढ़ानी शुरू कर दी और बिजली के शुल्क भी बढ़ने लगे।
हैरानी है कि इतनी शक्तिशाली भाजपा स्कूलों को फीस बढ़ाने से नहीं रोक पा रही है। स्कूलों ने न सिर्फ फीस बढ़ाई है, बल्कि फीस नहीं चुकाने वालों को स्कूल से निकाल भी दिया है। स्कूलों के बाहर प्रदर्शन करने वालों के साथ धक्कामुक्की हुई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी अभिभावकों को बढ़ी हुई फीस का आधा हिस्सा जमा कराने को कहा है। स्कूलों को रोकने में नाकाम दिल्ली सरकार कह रही है कि वह एक अध्यादेश लाकर फीस बढ़ोतरी रोकेगी। सवाल है कि 'कमजोर’ केजरीवाल को तो अध्यादेश लाने की जरुरत नहीं पड़ी, फिर मजबूत भाजपा सरकार को ऐसी जरुरत क्यों पड़ रही है?
सुप्रीम कोर्ट में स्टालिन की दूसरी बड़ी जीत
तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले है और उससे पहले मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को केंद्र सरकार के खिलाफ मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट से लगातार बड़ी जीत मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन में हुए कथित घोटाले की जांच के मामले में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को कड़ी फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश की पीठ ने न सिर्फ जांच पर रोक लगा दी, बल्कि यह भी कहा कि एजेंसी सारी हदें पार कर रही है। सर्वोच्च अदालत ने कहा की ईडी ने संघीय व्यवस्था का भी ख्याल नहीं रखा। इस फैसले का तमिलनाडु सरकार और डीएमके ने स्वागत किया और इसे एक बड़ी जीत की तरह प्रचारित किया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों को लंबित रखने के मामले में एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल के पास पॉकेट वीटो नहीं है कि वे विधानसभा से पारित विधेयकों को अनंतकाल तक लटका कर रखे। अदालत ने कहा कि राज्यपाल को एक निश्चित अवधि में इस पर फैसला करना होगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को भी तीन महीने में इस पर फैसला करना होगा। इस मामले में राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को रेफरेंस भेजा है। लेकिन अदालत के फैसले के साथ ही राज्यपाल के रोके हुए 10 विधेयकों को अपने आप मंजूरी मिल गई है। यह राज्य सरकार और डीएमके की बड़ी जीत थी।
दिल्ली में जगह-जगह तिरंगे की दुर्दशा
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सरकार ने बड़े अभियान के तहत पूरे महानगर में दो-तीन किलोमीटर के दायरे में ऊंचे-ऊंचे खंबों पर तिरंगा लगवाया था। जब तक आम आदमी पार्टी की सरकार थी, नियमित अंतराल पर तिरंगे बदले जाते थे। लेकिन सरकार बदलते ही स्थिति बदल गई है। अब दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई है और रेखा गुप्ता मुख्यमंत्री है, लेकिन अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि केजरीवाल सरकार के लगवाए तिरंगे का क्या करना है? तिरंगे के प्रति प्रेम जताते हुए अक्सर तिरंगा यात्रा निकालने वाली भाजपा की सरकार इसे लगवाए रखेगी और पहले की तरह नियमित अंतराल पर झंडा बदला जाएगा और उसका रखररखाव होता रहेगा या उसे हटा दिया जाएगा? यह सवाल इसलिए है क्योंकि कई जगह तिरंगे के क्षतिग्रस्त होने की खबर है। कई लोगों ने सोशल मीडिया के जरिये बताया है कि कहां-कहां तिरंगा क्षतिग्रस्त हो गया है। पुरानी दिल्ली के इलाके में बाड़ा हिंदू राव अस्पताल के आगे, रिज के पास लगा झंडा क्षतिग्रस्त हुआ है तो गाजियाबाद से दिल्ली आने के रास्ते में यमुना पुल के पास दिखने वाले झंडा भी क्षतिग्रस्त हो गया है। जहां झंडा क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है वहां भी उसका रंग उतर गया है या झंडा गंदा हो गया है। अगर दिल्ली की भाजपा सरकार तिरंगे को लगाए रखना चाहती है तो उसे जल्दी से जल्दी झंडों की सफाई और क्षतिग्रस्त हो गए झंडों को बदलने का आदेश देना चाहिए, अन्यथा सभी झंडे हटा लेना चाहिए।
सरना कोड को लेकर झारखंड में उबाल
केंद्र सरकार ने अभी तक जनगणना की अधिसूचना जारी नहीं की है। माना जा रहा है कि अगले साल जनगणना हो सकती है और उसी के जातिगत गणना भी होगी। लेकिन उससे पहले झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा जेएमएम, कांग्रेस और राजद ने अलग सरना धर्म कोड का मामला गरमा दिया है। तीनों पार्टियों ने रांची में बड़ा प्रदर्शन किया और राजभवन जाकर राज्यपाल संतोष गंगवार को ज्ञापन सौंपा। जेएमएम, कांग्रेस, राजद और वाम दलों के नेता चाहते हैं कि जनगणना के फॉर्म में सरना कोड का अलग कॉलम दिया जाए। उनका कहना है कि पिछली बार ऐसा कॉलम था और देश में करीब 80 लाख लोगों ने अपना धर्म सरना लिखवाया था। गौरतलब है कि आदिवासी समाज अपनी अलग पहचान के लिए हिंदू धर्म से अलग सरना कोड की मांग करता रहा है। बड़ी संख्या में आदिवासी अपने को हिंदू से अलग और सरना कोड वाला मानते है। झारखंड में सरना बनाम हिंदू की बहस ने भाजपा की हार मे बड़ी भूमिका निभाई है। भाजपा के कई नेता मानते है कि दक्षिणी छोटानागपुर के इलाके में चर्च और ईसाई समुदाय ने सरना और ईसाई आदिवासियों को एक बताने का अभियान चलाया है। बहरहाल, अलग सरना धर्म कोड का अभियान अभी तो झारखंड में चल रहा है लेकिन जल्दी ही ओडिशा और छत्तीसगढ़ के साथ-साथ देश के दूसरे राज्यों में भी यह अभियान शुरू जाएगा। जेएमएम और कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि इस बार के जनगणना फॉर्म से सरना का कॉलम हटाया जा रहा है।
अमिताभ बच्चन के सुर बदले-बदले से
हिंदी फिल्मों के 'महानायक’ के तौर पर प्रचारित किए गए अमिताभ बच्चन पिछले 11 साल से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन कर रहे हैं या उसका विरोध करने वाली तमाम बातों पर मौन साधे रहते हैं। उनकी पत्नी जया बच्चन समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य हैं, फिर भी अमिताभ बच्चन की लाइन अलग है। इसके लिए उन्हें सोशल मीडिया में काफी ट्रोल भी किया जाता है। उनकी चुप्पी पर सवाल उठाए जाते हैं और मनमोहन सिंह की सरकार के समय किए गए उनके ट्विट खोज कर निकाले जाते हैं और पूछा जाता है कि अब वे ऐसे ट्विट क्यों नहीं कर रहे हैं? गौरतलब है कि मनमोहन सिंह की सरकार के समय पेट्रोल के दामों में दो रुपये की बढ़ोतरी होने पर भी अमिताभ बच्चन चिंता जताते हुए ट्विट कर दिया करते थे। बहरहाल भारत के चौथी सबसे बडी अर्थव्यवस्था बनने की खबर पर उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट डाली है, जिसमें भारत के चार ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का श्रेय पिछले 78 साल में हुए कामकाज को दिया। अमिताभ बच्चन ने कहा है कि सिर्फ 78 साल पहले आजाद हुए देश के लिए यह अविश्वसनीय उपलब्धि है। इस तरह एक तो उन्होंने माना है कि देश 2014 में नहीं, बल्कि 78 साल पहले आजाद हुआ और दूसरे यह माना है कि यह पिछले 11 साल की उपलब्धि नहीं है। सोशल मीडिया में भाजपा के समर्थकों को अमिताभ बच्चन की यह बात पसंद नहीं आ रही है।
भाजपा अध्यक्ष का चुनाव चुनौती बना
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव एक बार फिर टल गया। इस बार पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बहाने चुनाव टला है। अगले महीने केंद्र में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का एक साल पूरा हो रहा है। इसके साथ ही जेपी नड्डा को राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए भी एक साल हो जाएगा। पहले उन्हें छह महीने का कार्यकाल विस्तार मिला था। उसके बाद से ही किसी न किसी बहाने चुनाव टल रहा है और अब यह यक्ष प्रश्न बन गया है कि प्रदेशों में भाजपा संगठन का चुनाव नहीं हो पा रहा है इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव टल रहा है या राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है इसलिए प्रदेशों में चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं? कहा जा रहा है कि प्रदेशों में चुनाव हो जाएंगे तो उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव टालना संभव नहीं होगा। इसलिए वहां चुनाव रोके गए हैं। अगर ऐसा तो फिर सवाल है कि ऐसी क्या मुश्किल हो गई है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर सहमति ही नहीं बन पा रही है? नितिन गडकरी से लेकर राजनाथ सिंह और अमित शाह से लेकर जेपी नड्डा तक अध्यक्ष चुनने में भाजपा को कभी भी परेशानी नहीं हुई। इस बार ऐसा क्या है कि पार्टी अध्यक्ष नहीं चुन पा रही है? ऐसा लगता है कि भाजपा नेतृत्व अध्यक्ष पद और उसके चुनाव को एक साधारण परिघटना बनाने में लगा हुआ है। इसीलिए पिछले एक साल से कामचलाऊ अध्यक्ष रख कर अध्यक्ष के चुनाव को टाला जा रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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