कटाक्ष: संघ और बापू; बर्थ डे शेयरिंग बेनिफिट

गुरु गुड़ रहा और चेला शक्कर हो भी गया तो क्या? आखिर, मोदी जी के संगठन रूपी गुरु का मामला था। चेला बादल देखकर बेनिफिट ले सकता था, तो गुरु भी एक ही दिन बर्थ डे पड़ने के रिश्ते का बेनिफिट तो ले ही सकता था। इस बार गांधी जयंती पर आरएसएस का भी बर्थ डे पड़ने की देर थी कि संघ पुरुष राजघाट पहुंच गए, बापू को हैप्पी बर्थ डे करने और जवाब में अपना भी हैप्पी बर्थ डे कराने। वैसे हैप्पी बर्थ डे करने गये तो देश के प्रधानमंत्री भी थे और वह खुद कई बार याद दिला चुके हैं कि वह भी संघ पुरुष हैं, पर वह किस्सा और कभी।
अचानक हैप्पी बर्थ डे का शोर सुना तो बापू कुछ हड़बड़ा से गए। क्या शोर है, कुछ समझ में आया तो इधर-उधर देखने लगे, किस का बर्थ डे? पर संघ पुरुष ने झट कंफ्यूजन दूर कर दिया। बापू जी इधर-उधर क्या देख रहे हैं--आप को ही हैप्पी बर्थ डे। बापू और सकुचा गए--सभी जानते हैं कि मैंने तो जन्म दिन वगैरह कभी नहीं मनाया। संघ पुरुष को आशंका हुई, कहीं बापू उठकर न चले जाएं। झट से बोला--वैसे जन्म दिन मनाते तो हम भी कहां हैं? बस नागपुर में सरसंघचालक जी का उद्बोधन...। अब बापू को पूछना ही पड़ा--आज आपका भी जन्म दिन है? संघ पुरुष ने चहक के कहा--सौवां जन्म दिन। पहचाना नहीं--संघ? बापू बोले--हां! कुछ-कुछ पहचाना सा तो मुझे भी लग रहा था। आपने याद दिला दिया, तो अब काफी कुछ याद आ गया।
संघ पुरुष को उम्मीद थी कि शायद अब बापू उसे जवाबी हैप्पी बर्थ डे कहें। पर बापू ठहरे ‘चतुर बनिया’, उस तरफ ध्यान ही नहीं जाने दिया। लगे पूछने अमृतकाल में क्या चल रहा है। पर संघ पुरुष ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं। वह भी पीछा कहां छोड़ने वाला था। कहने लगा--आपको याद नहीं, आप एक बार तो हमारे शिविर में भी आए थे, वाह में। आपको हमारे स्वयंसेवकों के अनुशासन, समरसता और कर्तव्यनिष्ठा ने काफी प्रभावित किया था। आपने कृपापूर्वक उस सब की प्रशंसा भी की थी। आपकी प्रशंसा ने अपना कार्य जारी रखने के लिए हमारा बहुत उत्साहवर्धन किया। वैसे वह बात बहुत पुरानी हो गयी। आपको अब तक क्या याद होगी? पर अब हम संघ वाले जब जब भी आपका बर्थ डे मनाते हैं या आपका स्मरण करते हैं, संघ के शिविर को देखकर आप कितने प्रभावित हुए थे, उसका वर्णन जरूर करते हैं। हमारे बर्थ डे समारोह में पीएम जी ने...।
बापू धीरे से बोले--हां! मुझे भी खूब याद है। मैं तो इतना प्रभावित हुआ था, इतना प्रभावित हुआ था कि मैंने तो सोचा था कि मैं भी संघ में शामिल हो जाऊं। आजादी-वाजादी के चक्कर में पड़कर, नाहक अपना जीवन व्यर्थ क्यों करना? कांग्रेस-वांग्रेस सब बेकार थीं। आप लोगों को तो पक्के से याद होगा कि मैंने तो बाद में आजादी मिलने के बाद बाकायदा लिखकर कहा भी था कि कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए। पर जवाहरलाल नहीं माने। सरदार भी उनके साथ हो गए। मेरी इच्छा अधूरी ही रह गयी। अब सोचता हूं कि संघ के शिविर को देखने के बाद ही संघ में शामिल हो गया होता, तो जीवन यूं निरर्थक नहीं जाता। ऐसे पछताना नहीं पड़ता। क्या लगता है, अब भी मेरे लिए कोई चांस है? क्या मैं अब भी संघ में शामिल हो सकता हूं?
यह तो गुगली थी! संघ पुरुष थोड़ी देर को तो बिल्कुल कंफ्यूज ही हो गए। बुढ़ऊ जरूर मजाक कर रहे थे? मरणोपरांत हृदय परिवर्तन का मजाक? माना कि गांधी हृदय परिवर्तन पर काफी विश्वास करते थे। लेकिन, सत्याग्रह से, बलिदान से दूसरों का हृदय परिवर्तन करने पर ही। खुद गांधी का हृदय परिवर्तन कब, कौन करा पाया था? और तो और, संघ के शिविर के दौरे के बाद, संघ के प्रति जो उनका हृदय परिवर्तन हुआ, वह भी संघ पुरुष को याद आ गया। संघ, हिंदू महासभा, मुस्लिम लीग , सब में कांग्रेस वालों के शामिल होने पर पाबंदी ही लगवा दी। और सन 1942 में...! संघ पुरुष को याद कर के झुरझुरी सी आ गयी। इन्हीं के चक्कर में तो गोडसे जी को शहादत देनी पड़ी थी। और बुढ़ऊ अब मजाक कर रहे हैं--तब संघ में शामिल हो जाता!
संघ पुरुष ने हाथ जोड़ दिए। जाने के लिए नहीं, शिकायत करने के लिए। हमारा सौवां बर्थ डे हुआ तो क्या हुआ, आप फिर भी हमारे बुजुर्ग हैं। आदरणीय हैं। आज ही हमने कहा है, आप हमारे आदर्श हैं। हमें आपका अनुकरण करना है। हमने तो सोचा कि सौवें बर्थ थे पर आप से आशीर्वाद ले लेते हैं। बुजुर्गों से आशीर्वाद लेना, यह हमारा संस्कार है। फिर अब तो हमारा बर्थ डे नाता भी निकल आया। पर आप तो लगे मजाक करने। बापू ने हठात पूछ दिया--क्या संघ में अब भी हंसी-मजाक एलाउड नहीं है। और फिर जवाब की प्रतीक्षा किए बिना, बापू खुद ही हंस दिए।
पर बुढ़ऊ ने बात को फिर घुमा दिया। कहने लगे कि वैसे संघ में शामिल होने वाली बात मैंने मजाक में नहीं कही थी? क्या अब भी गुंजाइश है? संघ पुरुष के मुंह से हैरानी में अचानक निकल गया--मगर क्यों ? अब बापू समझाने की अपनी शाश्वत मुद्रा में आ गए। बोले—यहां लंबा-चौड़ा प्लाट घेर कर बैठे-बैठे बोर हो गया हूं। सोचता हूं कि पब्लिक के लिए ही कुछ करता चलूं। अमृतकाल है तो क्या हुआ, भारत विकसित देश बनने के रास्ते पर फर्राटे भर रहा है तो क्या हुआ, सुना है कि आपके भागवत जी ने भी माना है कि पब्लिक के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। पर राजनीतिक पार्टी बनाऊं तो शाह जी ईडी, सीबीआई, आईटी, दंड संहिता, एफआईआर, सब पीछे लगा देंगे। बचने के लिए उनके गठजोड़, उनकी पार्टी में ही चला जाऊं, पर उससे भी क्या ? वहां भी तो सिर्फ मोदी, मोदी ही करने पर संतोष करना पड़ेगा। और रहे कुर्सी के फायदे, उनका मोह मुझे कभी नहीं था। इससे अच्छा तो सीधे संघ में ही चला जाऊं। कम से कम ईडी, सीबीआई वगैरह से बचा भी रहूंगा और पब्लिक के भले का कुछ न कुछ काम तो कर ही मरूंगा।
संघ पुरुष की आंखों में आंसू आ गए। बापू डर गए। कहने लगे--मैं तो मजाक कर रहा था। सॉरी, बर्थ डे पर हंसाने की जगह तुम्हें रुला दिया। संघ पुरुष ने रोते-रोते कहा—आपके आने, नहीं आने वाली बात नहीं है। बात यह है कि हम भी मोदी, मोदी करने के अलावा और कुछ कहां कर पा रहे हैं। हां! मस्जिदों के सामने हिंदू नौजवानों को नचाने को, अब्दुल की चूड़ी टाइट करने को, देश को भीतर तक दुश्मनों और दुश्मनों के दुश्मनों में बांटने को और शानदार मंदिर और उनसे भी शानदार अपने दफ्तर-महल बनवाने को ही कुछ करना मान लिया जाए तो बात दूसरी है। बापू बोले—बर्थ डे गिफ्ट वाला सिक्का और डाक टिकट क्यों भूल गए? जवाब आया--उसमें भी तो खोट है--देने वाले की नीयत का खोट। सिक्के में हमारे नाम में ही गलती है और टिकट झूठा है। ऐसी चीजों से दिल कैसे बहलाएं? बापू ने कंधे पर हाथ रखकर कहा--मैं तो एक ही तसल्ली दे सकता हूं। जब मन ज्यादा अशांत हो मेरे पास चले आना। यहां बड़ी शांति है। और आने के लिए कोई शर्त भी नहीं है—सत्य और अहिंसा बरतने की भी नहीं। यहां आकर हिंदू-मुस्लिम मत करना बस। जवाब आया—हिंदू-मुस्लिम हम करते कहां ही हैं। यह तो बस हिंदू-विरोधियों का दुष्प्रचार है !
अब गांधी यह कहते हुए उठ गए--मेरे आराम करने का समय हो गया। मिलते हैं अगले बर्थ डे पर। संघ पुरुष राजघाट से उलझन में लौटे—आखिर गांधी ने किस के बर्थडे पर मिलने की बात कही होगी; अपने या संघ के!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं)
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