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ख़बरों के आगे-पीछे: संसद से क्यों कतरा रही है सरकार?

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन सवाल पूछ रहे हैं कि जो बातें बताने के लिए भारत के सांसद आदि विदेश गए हैं वहीं बातें तो संसद में भी बतानी है। फिर क्यों सरकार इससे हिचक रही है? इसके अलावा भी वे कई मुद्दों की बात कर रहे हैं।
All Party Delegation
विदेश जाने वाला सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल

 

भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर और आतंकवाद के प्रति भारत के रूख की जानकारी दुनिया भर के देशों को देने के लिए केंद्र सरकार ने 59 लोगों को सात प्रतिनिधिमंडल में बांट कर विदेश भेजा है। ये सात प्रतिनिधिमंडल दस दिन तक दुनिया भर के देशों को बताएंगे कि आतंकवाद के प्रति भारत की क्या नीति है और कैसे वह सीमा पार के आतंकवाद का सामना कर रहा है। पाकिस्तान की पोल खोली जाएगी और भारतीय सेना के पराक्रम के बारे में भी दुनिया को बताया जाएगा। लेकिन यही बात विपक्षी पार्टियां चाहती है कि संसद में भी बताई जाए लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। जो बातें बताने के लिए भारत के सांसद, पूर्व सांसद और राजदूत आदि विदेश गए हैं वहीं बातें तो संसद में भी बतानी है। फिर क्यों सरकार इससे हिचक रही है

इतना ही नहीं भारतीय सेना की ओर से हर दिन एक नया वीडियो जारी किया जा रहा है, जिसमें बताया जा रहा है कि सेना ने कैसे ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया। दो दिन तक तीनों सेनाओं के बड़े अधिकारियों ने मीडिया के सामने बैठ कर ऑपरेशन की तमाम तकनीकी और रणनीतिक जानकारियां दी। इसके बाद ऐसी क्या संवेदनशील जानकारी बच जाती है, जो संसद में चर्चा होने पर दुनिया जान जाएगी?

जाहिर है संसद का सत्र नहीं बुलाने के पीछे राजनीति है। अभी सब कुछ एकतरफा तरीके से सरकार की ओर से कहा जा रहा है और वह नहीं चाहती है कि संसद में विपक्ष को एक बड़ा प्लेटफॉर्म मिले। 

परमाणु लीक की खबर अफ़वाह निकली

दुनिया भर के परमाणु ठिकानों की मॉनिटरिंग और सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी यानी आईएईए ने इस बात से इनकार किया है कि पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने से लीकेज हुई है। इस एजेंसी को यह स्पष्टीकरण इसलिए देना पड़ा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए चार दिन के सैन्य टकराव के बाद यह खबर तेजी से फैली थी कि भारत ने पाकिस्तान के किराना हिल्स पर स्थित परमाणु ठिकाने को निशाना बनाया है और इस हमले में परमाणु फैसिलिटी को नुकसान पहुंचा है। यह बात इतनी फैली कि सेना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बारे में सवाल पूछा गया। सेना ने बड़े विनोदपूर्ण ढंग से इस सवाल को टाल दिया। सेना की ओर से पत्रकार को कहा गया कि ''आपने अच्छा किया जो बता दिया कि किराना हिल्स पर पाकिस्तान का परमाणु ठिकाना है, हमें इस बारे में जानकारी नहीं थी’। लेकिन इससे अफवाहें खत्म नहीं हुईं। 

गौरतलब है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कहा कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध रुकवाया और लाखों लोगों को मरने से बचाया। उनकी बात में इशारा था कि दोनों देश परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने जा रहे थे। कहा जा रहा था कि भारत के मिसाइल हमले के बाद पाकिस्तान की परमाणु फैसिलिटी को नुकसान पहुंचा है, जिसके बाद उधर से जवाबी कार्रवाई की तैयारी हो रही थी। यह भी कहा गया कि इसी वजह से आननफानन मे सीजफायर की सहमति बनी। जो भी हो, आईएईए की घोषणा से काफी कुछ स्थिति साफ हुई है।

मजबूरी का नाम छगन भुजबल

महाराष्ट्र में छगन भुजबल को आखिरकार मंत्री बनाना पड़ा। सरकार बनने के छह महीने बाद उनको सरकार में शामिल किया गया। अकेले उनके लिए मंगलवार को राजभवन में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन हुआ। राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने उनको मंत्री पद की शपथ दिलाई। उन पर और उनके भतीजे समीर पर मनी लॉन्ड्रिग का मुकदमा चला था, जिसमें वे जेल भी गए थे लेकिन बाद में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने भी 2023 में उनके खिलाफ अपनी याचिकाएं वापस ले ली थी। पिछले साल नवंबर में सरकार बनने पर उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया था, जिससे वे खासे नाराज हुए थे। उनकी नाराजगी दूर करने के लिए उन्हें राज्यसभा में भेजे जाने का आश्वासन भी दिया गया लेकिन वह भी पूरा नहीं हुआ। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश से चार महीने में महाराष्ट्र के शहरी निकायों के चुनाव होने हैं। चूंकि छगन भुजबल महाराष्ट्र के सबसे प्रभावशाली पिछड़े नेताओं में से एक हैं, उन्हें मंत्री बनाना महायुति की मजबूरी हो गई थी। वे शरद पवार के करीबी और एनसीपी का पिछड़ा चेहरा रहे हैं। अभी वे अजित पवार की एनसीपी में हैं। नासिक के इलाके में उनका खासा असर है। नासिक में भी शहरी निकाय का चुनाव होना और महायुति को पता है कि भुजबल के बगैर वहां मुश्किल होगी। इसीलिए भुजबल को मजबूरी में मंत्री बनाना पड़ा। उन्हें धनंजय मुंडे की जगह मंत्री बनाया गया है, जिन्हें पिछले दिनों एक हत्याकांड में अपने करीबी नेता के गिरफ्तार होने पर इस्तीफा देना पड़ा था। 

विपक्ष को एकजुट कर रहे हैं स्टालिन

विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों की विधानसभाओं से पारित विधेयकों को अनंतकाल तक रोक कर रखने की हाल में बनी प्रवृत्ति को सुप्रीम कोर्ट ने आठ अप्रैल के फैसले से समाप्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तमिलनाडु के राज्यपाल और तमिलनाडु सरकार के विवाद को लेकर दायर याचिका मे आया था। इसलिए जब राष्ट्रपति की ओर से इस फैसले को लेकर अनुच्छेद 143 के तहत एक रेफरेंस सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया तो सबसे पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इसकी आलोचना की और केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह राज्यों में चुनी हुई सरकारों को कमजोर करने और उनका अधिकार कम करने का प्रयास है। 

अब खबर है कि स्टालिन इसके विरोध में विपक्षी पार्टियों को एकजुट करेंगे और इसका विरोध करने के लिए उन्हें तैय़ार करेंगे। वैसे सुप्रीम कोर्ट को रेफरेंस भेजने की खबर आने के तुरंत बाद सीपीएम ने भी इसकी आलोचना की। केरल की सीपीएम सरकार भी राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट गई है और तमिलनाडु मामले में दिए गए फैसले को केरल पर भी लागू करने की मांग कर रही है। बहरहाल, स्टालिन केरल, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, झारखंड आदि राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात करेंगे। ये सभी राज्य किसी न किसी रूप में राज्यपालों की भूमिका से परेशान रहे हैं। विपक्षी मुख्यमंत्री कानूनी और राजनीतिक दोनों तरह की लड़ाई की तैयारी करेंगे। वैसे आमतौर पर राष्ट्रपति के रेफरेंस से सुप्रीम कोर्ट के फैसले नहीं बदला करते हैं।

मोदी के हनुमान चिराग की अलग राजनीति

खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान कहने वाले केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान इन दिनों जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, वह हैरान करने वाली है। उन्होंने बिहार में 2020 का विधानसभा चुनाव भाजपा के परोक्ष समर्थन से अकेले लड़ा और नीतीश कुमार को बहुत नुकसान पहुंचाया। इस सबके चलते नीतीश का जनता दल (यू) विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी बन गया। बाद में नीतीश ने इसका बदला उनकी पार्टी तोड़ कर लिया। तब भाजपा ने चिराग का साथ नहीं दिया। उल्टे उनका घर भी खाली कराया। चाचा पशुपति पारस को केंद्रीय मंत्री भी बनाया। हालांकि बाद में भाजपा ने पशुपति पारस को किनारे करके चिराग से तालमेल किया और उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया। लेकिन अभी चिराग बिहार में अपनी अलग राजनीति कर रहे है। वे पिछले दिनों नीतीश कुमार से मिले। उससे पहले उन्होंने ऐलान किया कि चुनाव के बाद नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे। जब वे नीतीश से मिले तो उन्हें अपना एक मांगपत्र सौंपा, जिसे नीतीश ने तुरंत स्वीकार कर लिया। इसमें एक मांग पटना में रामविलास पासवान की मूर्ति लगाने की भी है। 

बहरहाल, इसके बाद चिराग ने कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादित बयान देने वाले मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह पर बड़ा बयान दिया। चिराग ने कहा कि अगर विजय शाह उनकी पार्टी में होते तो वे उन्हें हमेशा के लिए पार्टी से निकाल चुके होते। गौरतलब है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बावजूद भाजपा विजय शाह को बचाती रही है।

मौसम विभाग की लगातार विफलता

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग यानी आईएमडी की मौसम संबंधी भविष्यवाणियों की विश्वसनीयता पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। हालांकि मौसम विभाग उन थोड़े से सरकारी विभागों में है, जो कमाई कर रहा है। यह अलग बात है कि सरकारी एजेंसियों से ही उसे ज्यादा पैसा मिलता है। उसने पिछले साल डेढ़ सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई की है। लेकिन पिछले कुछ समय से मौसम संबंधी उसके पूर्वानुमान गलत निकलने से उसके कामकाज पर सवाल उठ रहे है। वैसे भी भारत में मौसम विभाग की भविष्यवाणी को मजाक का विषय ही माना गया है क्योंकि मौसम विभाग की ओर से जो भविष्यवाणी की जाती है अक्सर उसका उलटा होता है। लेकिन पिछले कुछ समय से मौसम के मिजाज को बिल्कुल नहीं भांप पाने का आरोप मौसम विभाग पर है। असल में इस महीने दिल्ली में तीन बार ऐसे तूफान आए, जिनके बारे में मौसम विभाग ने कोई अलर्ट जारी नहीं किया था। मौसम विभाग अलर्ट जारी करे और कुछ नहीं हो तो कोई फर्क नहीं पडता लेकिन अलर्ट जारी नहीं हो और कुछ बड़ा हो जाए तो उसका नुकसान होता है। इसकी शुरुआत एक और दो मई की दरम्यानी रात से हुई। उस दिन बड़ी तेज आंधी आई और खूब तेज बारिश भी हुई। इसका अलर्ट मौसम विभाग ने नहीं जारी किया था। अभी पिछले सप्ताह राजस्थान से धूल भरी आंधी चली और दिल्ली में उससे बड़ा नुकसान हुआ, उसका अंदाजा भी मौसम विभाग ने नहीं जाहिर किया। तेज आंधी और बारिश से विमानों के परिचालन पर बड़ा असर हुआ।

दिल्ली में ट्रिपल इंजन सरकार के बावजूद! 

राष्ट्रीय राजधानी में अब ट्रिपल इंजन की सरकार है। केंद्र में भाजपा की सरकार है, जिसके तहत दिल्ली का ज्यादातर कामकाज आता है। केंद्र के बनाए जीएनसीटीडी एक्ट के मुताबिक उप राज्यपाल ही असली सरकार है और उप राज्यपाल केंद्रीय गृह मंत्री को रिपोर्ट करते हैं। इसके बाद दिल्ली की राज्य सरकार भाजपा की है और अब दिल्ली नगर निगम में भी भाजपा की सरकार है। इतना ही नहीं पहली बार ऐसा हुआ है कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर में भी हर जगह भाजपा की सरकार है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ क्षेत्र एनसीआर में आते हैं। इन तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। इसके बावजूद दिल्ली में पानी, बिजली से लेकर प्रदूषण तक की समस्या गंभीर होती जा रही है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? क्या अब भी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा? या एनसीआर की सीमा से दूर लेकिन दिल्ली की हवा को प्रभावित करने वाले पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार और हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाएगा? यह पहली बार है कि मई में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है। अप्रैल में भी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता बहुत खराब रही। आमतौर पर दिल्ली में गर्मी के मौसम में हवा की क्वालिटी सुधर जाती है। अगर बारिश हो और तेज हवा चल रही हो तो हवा की गुणवत्ता और बेहतर हो जाती है। लेकिन भीषण गर्मी, तेज हवा और कई बार बारिश के बावजूद दिल्ली की हवा में सुधार नहीं हुआ है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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