अहमदाबाद विमान हादसा: AAIB के बरअक्स सरकारी जांच से उठे सवाल

एयर इंडिया के बोइंग 787-8, ड्रीमलाइनर की उड़ान संख्या एआई-171 जो अहमदाबाद से लंदन के गेटविक हवाई अड्डे के लिए रवाना हुई थी, 12 जून 2025 को उड़ान भरने के फौरन बाद, दु:खद तरीके से जमीन पर आ गिरी। विमान में सवार चालक दल के सभी 10 सदस्य और 232 यात्रियों में से एक को छोडक़र सभी यात्री इस दुर्घटना में मारे गए। एक यात्री जरूर संयोग से बच गया और विमान दुर्घटना की जगह से चलकर, घायलों व मृतकों को लेने आयी एंबुलेंस तक पहुंच गया।
और भी दु:खद यह रहा कि यह विमान मेडिकल कॉलेज के होस्टल के मैस तथा रिहाइशी इमारतों जा टकराया। घटना के चार दिन बाद तक जारी सरकारी वक्तव्य तक, आधिकारिक रूप से मृतकों की संख्या कोई अंतिम संख्या नहीं दी गयी थी, फिर भी जमीन पर कम से कम 30 और लोगों की मौत होने का अनुमान था।
पिछले एक दशक की यह बदतरीन विमान दुर्घटना थी। भारत में और किसी विमान दुर्घटना में इतनी मौतें नहीं हुई थीं। यह बोइंग ड्रीमलाइनर के साथ हुई पहली दुर्घटना थी, जबकि उसके अमरीकी निर्माता पहले ही अपने बोइंग 737 मैक्स विमान की सत्यानाशी दुर्घटनाओं से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
यह भारत में पिछले कई दशकों की सबसे खराब दुर्घटना थी और टाटा-सिंगापुर एयरलाइन्स द्वारा एयर इंडिया का अधिग्रहण किए जाने के बाद से, उसके किसी विमान की पहली बड़ी दुर्घटना थी।
वैसे तो भारत का हवाई यात्रा बाजार, सबसे तेजी से बढ़ रहे हवाई यात्रा बाजारों में से है, फिर भी उसके अपने हिस्से की दुर्घटनाएं तथा विमान सुरक्षा संबंधी प्रतिष्ठागत समस्याएं भी रही हैं, जोकि किसी देश के आधुनिकीरण की माप का एक महत्वपूर्ण पैमाना माना जाता है।
इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन या आईसीएओ के प्रोटोकाल के अनुसार, भारत में एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टीगेशन ब्यूरो (एएआईबी) ने एक जांच शुरू कर दी है। एएआईबी एक ऐसा निकाय है, जिसका गठन आईसीएओ के अनुलग्नक 13 के प्रावधानों के अंतर्गत किया गया है। एएआईबी की जांच तमाम साक्ष्य एकत्रित कर के, एक महीने के अंदर अपनी अंतरिम रिपोर्ट दे देगी और ज्यादा से ज्यादा 12 महीने में अपनी अंतिम रिपोर्ट दे देगी, जो जांच के और दायरे का और विस्तार करेगी।
बहरहाल, किन्हीं अज्ञात कारणों से केंद्र सरकार ने भी इसके समानांतर एक उच्च स्तरीय कमेटी (एचएलसी) गठित कर दी है और यह कमेटी दूसरे बहुुत सारे मुद्दों के अलावा दुर्घटना के कारणों की जांच भी करेगी।
दुर्घटना कैसे हुई?
इस दुर्घटना ने उड्डयन विशेषज्ञों तथा प्रेक्षकों को, सामान्य से ज्यादा उलझन में डाल दिया है। मुख्यधारा के और ऑनलाइन मीडिया में विश्लेषणों तथा राय की बाढ़ आयी हुई है। हम इस शोर को बढ़ाना तो नहीं चाहेंगे, बहरहाल कुछ नुक्ते जरूर दर्ज करना चाहेंगे, जिससे हमारे पाठक अपने ईर्द-गिर्द उठ रही चर्चाओं की हिलोरों को समझ सकें।
अब तक ज्ञात तथ्य इस प्रकार हैं– विमान सैकड़ों टन ईंधन से पूरी तरह से लदा हुआ था, ताकि बिना रुके, 10 घंटे की और करीब 7,000 किलोमीटर की उड़ान भर सके। इसलिए, एआई-171 के लिए यह जरूरी था कि इस गर्म दिन पर, जब तापमान 40 डिग्री से ऊपर चल रहा था, हवाई पट्टी की पूरी 3.5 किलोमीटर की लंबाई का उपपोग करता, जिससे वह आवश्यक गति पकड़ पाता और उड़ान भरने के लिए जरूरी इंजन थ्रस्ट (thrust) या पॉवर हासिल कर पाता।
इस अत्यधिक-स्वचालित विमान में, किसी भी महत्वपूर्ण पैरामीटर को लेकर कोई चेतावनी नहीं आ रही थी। विमान ने सामान्य तरीके से, हालांकि थोड़े सुस्त तरीके से उड़ान भरी और 685 फीट की ऊंचाई पर पहुंच गया। तभी अचानक विमान धीमा होने लगा, नीचे आने लगा और उड़ान भरने के कुछ 17 सेकेंड में जमीन पर आ गिरा।
दुर्घटना को लेकर तीन प्रमुख अनुमान प्रस्तुत किए जा रहे हैं–
पहला यह कि दोनों इंजनों से पावर मिलनी बंद हो गयी, जोकि अपने आप में बहुत ही असमान्य तो है, फिर भी असंभव नहीं है। ड्रीमलाइनर जैसे आधुनिक विमान इस तरह से डिजाइन किए जाते हैं कि वे एक इंजन पर भी उड़ान भर सकते हैं। शुरूआती रिपोर्टों के अनुसार पायलट को यह कहते हुए सुना गया था कि उसे कोई या पर्याप्त थ्रस्ट नहीं मिल रहा था। यह विमान से किसी पक्षी के टकराने से भी हो सकता है, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों ने पक्षियों के कोई झुंड नहीं देखे थे।
यह ईंधन के प्रदूषण या ईंधन की आपूर्ति कट जाने से भी हो सकता है, लेकिन इसकी संभावना बहुत ही कम है क्योंकि दोनों इंजनों की अपनी स्वतंत्र आपूर्ति होती है। बहरहाल, जो भी हो थ्रस्ट ही नहीं मिलने का मतलब होता है, विमान का रुक जाना। इस स्थिति में पर्याप्त ‘‘लिफ्ट’’ या डैनों में ऊपर उठाने वाली शक्ति के अभाव में, विमान उड़ता नहीं रह सकता है।
दूसरा अनुमान यह है कि विमान के डैनों पर स्थित कंट्रोल सर्फेस, जिन्हें फ्लैप्स तथा स्लैट्स कहा जाता है, उड़ान से पहले गलत स्थिति में थे। इसकी बहुत ही कम संभावना है क्योंकि उस सूरत में काकपिट में तेज आवाज में चेतावनियां आने लगतीं। या फिर हो सकता है कि को-पायलट ने, पायलट के निर्देश पर विमान के पहिए ऊपर उठाने के बजाए गलती से विमान के फ्लैप्स को ही पीछे खींच लिया हो। लेकिन, वीडियो में विमान के पहिए स्पष्ट रूप से नीचे किए हुए दिखाई दे रहे हैं। उस सूरत में भी सिग्नल सक्रिय हुए होते, लेकिन इतनी कम ऊंचाई पर दुरुस्ती के लिए समय नहीं मिला होता।
तीसरा अनुमान है विमान की हाइड्रोलिक्स या इलैक्ट्रिकल व नियंत्रण प्रणालियों का फेल होना, जिसने तमाम अतिस्वचालित प्रणालियों को अस्तव्यस्त कर दिया हो सकता है।
यहां एक सावधानी जरूरी है– ‘‘पायलट की गलती’’ बहुत सी विमान दुर्घटनाओं में आसान बहाना बन जाती है। ऐसा इस मामले में तो इसलिए और भी संभव है क्योंकि दोनों पायलट मारे गए हैं। लेकिन, वास्तव में अनेक ‘‘पायलट की गलतियां’’ खुद ही खराब डिजाइन का नतीजा होती हैं, जैसे कि विमान के पहिए ऊपर उठाने और फ्लैप्स को बंद करने के लीवरों का पास-पास होना या उनका आसानी से अंतर करने लायक नहीं होना या पहियों के ऊपर न उठने की स्थिति के लिए सायरन की व्यवस्था नहीं होना। अगर पायलटों पर दोष लगाया जाना है, तो इन सब की पड़ताल होनी चाहिए और डेटा को दोबारा चैक किया जाना चाहिए।
बहरहाल, एक महीने में तो सब पता चल ही जाना चाहिए।
बोइंग की ख़तरनाक गड़बड़ियां
बोइंग के 737 मैक्स एयरलाइनर की 2018 तथा 2019 की डरावने तरीके से इसी तरह की दुर्घटनाओं के बाद, दुनिया भर में सभी 737 मैक्स विमानों को जमीन पर उतार दिया गया था। इसके बाद हुई विस्तृत जांच के दौरान डिजाइन की त्रुटियां, साफ्टवेयर की समस्याएं तथा अमरीका में बोइंग के संयंत्रों में व्यवस्थागत विनिर्माण दोष और गुणवत्ता नियंत्रण के मुद्दे निकल कर सामने आये थे। यह भी पता चला था कि प्रमाणन तथा नियमन निकाय, फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (एफएए) की भी बोइंग के साथ मिलीभगत थी। वह बुनियादी तौर पर इस विमान विनिर्माता को, किसी बाहरी जांच के बिना, खुद ही प्रमाणन करने की इजाजत दे रहा था। बाद में चले मुकदमों में बोइंग को फौजदारी तथा दीवानी प्रकरणों के जरिए, भारी जुर्माने भरने पड़े थे। दुर्घटनाओं, मुआवजे के भुगतानों और लंबे समय तक विमानों के जमीन पर उतारे रखे जाने के चलते बोइंग को 20 अरब डालर का नुकसान हुआ था। इसके अलावा 1200 आर्डरों के कैंसिल होने के रूप में, उसे करीब 60 अरब डालर का नुकसान और उठाना पड़ा था। बाद में आए नये प्रबंधन के पुनर्गठन तथा सुधार के सारे वादों के बावजूद, बोइंग को लेकर गुणवत्ता के मुद्दे बने ही रहे हैं।
इस दौरान अनेक व्हिसिलब्लोअर सामने आए हैं, जिन्होंने अमरीकी कांग्रेस तक के सामने गवाहियां दी हैं। उन्होंने कंपनी पर बेहद खराब शॉर्ट कट अपनाने व विनिर्माण के खराब आचार अपनाने, जान-बूझकर गुणवत्ता मानकों का उल्लंघन करने और बोइंग तथा उसके उप-कांट्रैक्टरों द्वारा गुणवत्ता नियंत्रण प्रोटोकॉलों को धता बताए जाने के आरोप लगाए हैं। कोई ड्रीमलाइनर विमान तो किसी गंभीर दुर्घटना में संलिप्त नहीं रहा है, फिर भी व्हिसिलब्लोअरों का यह कहना है कि तमाम विफलताएं जमा हो सकती हैं और आगे चलकर गंभीर दुर्घटनाओं का कारण बन सकती हैं।
अहमदाबाद दुर्घटना के लिए फौरी प्रासंगिकता की बात यह है कि व्हिसिलब्लोअरों ने खोजी रिपोर्टरों को बताया है कि बोइंग कंपनी गुपचुप तरीके से विदेशी ग्राहकों को, जिनमें भारत भी शामिल है, ऐसे विमान दे रही थी, जिनमें विनिर्माणगत दोष हो सकते थे।
यह उम्मीद की जाती है कि एएआईबी की जांच में इन मुद्दों पर प्रकाश डाला जाएगा और सभी पहलुओं की पड़ताल की जाएगी।
अलग सरकारी जांच क्यों?
इसी संदर्भ में, अहमदाबाद दुर्घटना की ही जांच करने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी (एचएलसी) के गठन को लेकर चिंताएं पैदा हुई हैं। हालांकि, एचएलसी के गठन से संबंधित आदेश यह कहता है कि ‘‘यह अन्य जांचों का स्थानापन्न नहीं होगी’’, इस दावे को सीधे-सीधे काटता है इस जांच का घोषित उद्देश्य जो है, ‘‘दुर्घटना के बुनियादी कारण का पता लगाना’’, मशीनरी के फेल होने, मानवीय त्रुटि जैसे कारकों का आकलन करना और ब्लैक बाक्सों, विमान के मेंटीनेंस के रिकार्डों की छानबीन करना, एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों से बात करना और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग करना। ये सब पूरी तरह एएआईबी (Aircraft Accident Investigation Bureau) के दायरे में आते हैं, जिसकी जांच का आदेश आईसीएओ के अनुलग्नक 13 के अंतर्गत दिया गया है।
एचएलसी एक अवांछित समानांतर जांच होगी, जो सरकार में उच्चतम स्तरों का हाथ अपनी पीठ पर होने के चलते, एएआईबी की जांच को कमजोर करेगी। सीपीआई (एम) ने तथा पीपुल्स साइंस मूवमेंट जैसे वैज्ञानिक निकायों ने, नागरिक उड्डïयन मंत्रालय से मांग की है कि एचएलसी की विचार शर्तों में बदलाव किए जाएं और एएआईबी की जांच के साथ इसके सारे दोहरावों को दूर किया जाए।
भारत ने एएआईबी का गठन ठीक इसीलिए किया था कि आईसीएओ के साथ लंबे समय से चले आते विवादों को हल किया जाए। ये विवाद सरकार के हस्तक्षेप की धारणा और डीजीसीए में हितों के टकराव से संबंधित थे, जोकि नियमनकर्ता था, प्रमाणन प्राधिकार भी था, सुरक्षा इंस्पेक्टर भी था, जो दुर्घटनाओं की जांच भी करता था।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा गठित एचएलसी, जिसमें डीजीसीए भी शामिल है, एएआईबी जांच में दखलंदाजी के जरिए इस विवाद को फिर से भड़का देती है। दुर्घटना की जांच की प्रक्रिया में सरकार के दखलंदाजी करने से, इस तरह से टांग अड़ाने के पीछे की मंशा के सवाल उठेंगे ही।
दूसरी ओर, दुर्घटना की जांच के पहलू को छोड़कर, उड्डयन सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए, एचएलसी की जांच की जो वृहत्तर संभावनाएं हो सकती हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए। अहमदाबाद में, हवाई अड्डे से सिर्फ 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मेडिकल कॉलेज की पांच मंजिला बिल्डिंग से विमान जा टकराया था। लेकिन, पास में ही भीड़ भरे इलाके में और और बड़े अस्पताल तथा प्रतिष्ठान भी थे, जो बस संयोग से ही बच गए। इससे पहले की दुर्घटना जांचों की सिफारिशें, जिनका संबंध ‘‘टेबल टॉप’’ हवाई अड्डे के ऑपरेशन के नियम-कायदों, हवाई अड्डे से बसाहटों की दूरी, हवाई अड्डे के रख-रखाव, रनवे एंड सेफ्टी एरियाज़ (आईईएसए) के लिए स्पेसिफिकेशन आदि से है, मानकीकरण, परिपालन, निगरानी और जनता, यात्रियों, चालक दल तथा विमान की सुरक्षा, सभी के हित में लागू किए जाने का तकाजा कर रही हैं। एचएलसी वाकई एक अमूल्य सेवा कर रही होगी, अगर वह समग्रतापूर्ण तरीके तथा सार्थक ढंग से इन पहलुओं को, आगे के परिपालन के लिए लेती है।
(लेखक दिल्ली साइंस फोरम और ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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