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प्रो. अली ने आख़िर ऐसा क्या लिखा कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया!

भारत-पाकिस्तान संघर्ष के संदर्भ में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रो. अली ने आख़िर ऐसा क्या लिखा था जिसपर इतना विवाद और बवाल हो गया। पहले आपको यह सब जानना ज़रूरी है।
Prof. Ali Khan

भारत-पाकिस्तान संघर्ष के संदर्भ में टिप्पणी करने वाले  हरियाणा की अशोका यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद की गिरफ़्तारी को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध सामने आया है। राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता व अन्य लोग इस गिरफ़्तारी को अलोकतांत्रिक और मनमाना बताते हुए विरोध कर रहे हैं। 

सोशल मीडिया पर उनके समर्थन में बड़ी संख्या में देश की जानी-मानी शख़्सियत लिख रही हैं और हस्ताक्षर अभियान भी चल रहा है। इस मामले में शिकायतकर्ता के अलावा हरियाणा पुलिस और हरियाणा महिला आयोग की भी आलोचना की जा रही है। 

प्रोफ़ेसर अली राजनीति विज्ञान और इतिहास के प्रोफ़ेसर हैं और अशोका यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष भी हैं। उनकी गिरफ़्तारी हरियाणा की सोनीपत पुलिस ने स्थानीय निवासी योगेश की शिकायत के आधार पर की है। हरियाणा पुलिस ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान के ख़िलाफ़ दो समुदायों में नफ़रत भड़काने की धारा के तहत मामला दर्ज किया है।

इससे पहले इस मामले में हरियाणा राज्य महिला आयोग ने भी प्रोफ़ेसर अली ख़ान को समन जारी कर उनसे जवाब मांगा था। 

तो आख़िर प्रो. अली ने ऐसा क्या लिखा था जिसपर इतना विवाद और बवाल हो गया। पहले आपको उसे जानना ज़रूरी है। 

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान संघर्ष शुरू होने पर प्रो. अली ने अपने फेसबुक एकाउंट पर 8 मई 2025 को एक टिप्पणी की। इसे पढ़ना बहुत ज़रूरी है–

प्रो. अली ने लिखा—

“Strategically India has actually begun a new phase in terms of collapsing distinction between military and terrorist (non-state actors) in Pakistan. In effect the response to any terrorist activity will invite a conventional response and so this puts the onus on the Pakistani military to make sure that it cannot hide any longer behind terrorists and non-state actors. In any case the Pak military has used militarised non-state actors to destabilise the region for far too long while also claiming to be victims on the international stage. It has also used the same actors- some of whom were targeted in the recent strikes- to foment sectarian tension in Pakistan. Operation Sindoor resets all received notions of Indo-Pak relationships as the response to terrorist attacks will be met with a military response and removes any semantic distinction between the two. Despite this collapse, care has been taken by the Indian armed forces to not target military or civilian installations or infrastructure so that there is no unnecessary escalation. The message is clear: if you don’t deal with your terrorism problem then we will! The loss of civilian life is tragic on both sides and is the main reason why war should be avoided.
There are those who are mindlessly advocating for a war but they have never seen one let alone lived in or visited a conflict zone. Being part of a mock civil defense drill does not make you a solider and neither will you ever know the pain of someone who suffers losses because of conflict. War is brutal. The poor suffer disproportionately and the only people who benefit are politicians and defence companies. While war is inevitable because politics is primarily rooted in violence - at least human history teaches us this- we have to realise that political conflicts have never been solved militarily. 
Lastly, I am very happy to see so many right wing commentators applauding Colonel Sophia Qureishi but perhaps they could also equally loudly demand that the victims of mob lynchings, arbitrary bulldozing and others who are victims of the BJP’s hate mongering be protected as Indian citizens. The optics of two women soldiers presenting their findings is importantly but optics must translate to reality on the ground otherwise it’s just hypocrisy. When a prominent Muslim politicians said “Pakistan Murdabad” and was trolled by Pakistanis for doing so- Indian right wing commentators defended him by saying “he is our mulla.” Of course this is funny but it also points to just how deep communalism has managed to infect the indian body politic. 
For me the press conference was just a fleeting glimpse- an illusion and allusion perhaps- to an India that defied the logic on which Pakistan was built. As I said, the grassroots reality that common Muslims face is different from what the government tried to show but at the same time the press conference shows that an India, united it its diversity, is not completely dead as an idea. 
Jai Hind” 

अब अगर हम इसे सामान्य हिंदी में समझे तो प्रो. अली कह रहे हैं—

“रणनीतिक दृष्टि से भारत ने अब एक नए चरण की शुरुआत कर दी है, जिसमें पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी और सैन्य (military) संस्थानों के बीच की पारंपरिक विभाजन रेखा को समाप्त कर दिया गया है। अब किसी भी आतंकी हमले की जवाबी कार्रवाई पारंपरिक सैन्य तरीके (conventional military response) से की जाएगी। इस बदलाव का सीधा असर यह है कि अब पाकिस्तान की सेना अपने पुराने तरीक़े—आतंकियों और ग़ैर-राज्य तत्वों (non-state actors) की आड़ में खुद को छुपाना—का सहारा नहीं ले सकती।

वास्तव में, पाकिस्तान की फ़ौज ने बहुत लंबे समय तक ऐसे हथियारबंद ग़ैर-राज्य समूहों (militarised non-state actors) का इस्तेमाल क्षेत्र में अस्थिरता फैलाने के लिए किया है। और इसी दौरान, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वह खुद को पीड़ित बताकर सहानुभूति बटोरती रही है। यही नहीं, इन्हीं संगठनों में से कुछ—जिन पर हाल की भारतीय कार्रवाइयों में निशाना साधा गया—को पाकिस्तान के भीतर सांप्रदायिक तनाव (sectarian tension) भड़काने के लिए भी इस्तेमाल किया गया है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत-पाक संबंधों को लेकर बनी तमाम पुरानी समझ को तोड़ता है। यह साफ़ कर देता है कि अब आतंकी हमलों का जवाब सीधे सैन्य कार्रवाई से दिया जाएगा, और अब आतंकवाद और पारंपरिक युद्ध (terrorism vs conventional war) के बीच कोई भाषाई या रणनीतिक अंतर शेष नहीं रखा जाएगा।

हालाँकि यह अंतर समाप्त कर दिया गया है, लेकिन भारतीय सेना ने बेहद संयम और रणनीतिक विवेक दिखाया है—यह सुनिश्चित करते हुए कि किसी सैन्य छावनी, नागरिक प्रतिष्ठान या बुनियादी ढांचे को लक्ष्य न बनाया जाए ताकि तनाव नियंत्रण से बाहर न हो।

संदेश बिल्कुल स्पष्ट है—अगर तुम अपने यहाँ पनप रहे आतंकवाद को नियंत्रित नहीं करोगे, तो हम करेंगे।

नागरिकों की जान का नुक़सान—चाहे किसी भी देश के क्यों न हों—दुखद और अक्षम्य है, और यही एक प्रमुख कारण है कि युद्ध से हर हाल में बचना चाहिए।

आज कुछ लोग बिना सोचे-समझे युद्ध का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन न तो उन्होंने कभी युद्ध देखा है, और न ही किसी संघर्ष क्षेत्र (conflict zone) का सामना किया है। किसी नागरिक सुरक्षा ड्रिल में हिस्सा लेना आपको सैनिक नहीं बनाता, और न ही आप कभी उस पीड़ा को समझ सकते हैं जो किसी युद्धग्रस्त परिवार या व्यक्ति को सहनी पड़ती है।

युद्ध एक वहशत है। इसका सबसे ज़्यादा खामियाज़ा गरीबों और कमज़ोर तबकों को भुगतना पड़ता है। और इससे फ़ायदा सिर्फ़ राजनेताओं और रक्षा कंपनियों (defence companies) को मिलता है।

हाँ, यह ज़रूर है कि इतिहास हमें बताता है कि राजनीति अंततः हिंसा से ही संचालित होती रही है, और इसीलिए कभी-कभी युद्ध अपरिहार्य भी हो जाता है। लेकिन इतिहास में शायद ही कोई राजनीतिक विवाद केवल सैन्य साधनों से पूरी तरह सुलझाया गया हो।

अंत में, मैं यह देखकर प्रसन्न हूँ कि कई दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफ़िया कुरैशी की सराहना कर रहे हैं, लेकिन शायद उन्हें उतनी ही शिद्दत से यह भी माँग करनी चाहिए कि भीड़ हिंसा के शिकार, बिना कानूनी प्रक्रिया के मकानों पर बुलडोज़र चलवाने वाले और भाजपा की नफ़रत की राजनीति के अन्य शिकार लोगों को भी समान रूप से एक भारतीय नागरिक के रूप में न्याय और सुरक्षा दी जाए।

दो महिला अफ़सरों द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस करना दिखने में एक महत्वपूर्ण दृश्य हो सकता है, लेकिन जब तक यह नज़ारा ज़मीनी स्तर पर ठोस बदलाव में तब्दील न हो, तब तक यह केवल एक ‘दृश्य राजनीति’ (optics) भर रहेगा—एक छलावा।

जब एक प्रमुख मुस्लिम नेता ने “पाकिस्तान मुर्दाबाद” कहा और पाकिस्तानी सोशल मीडिया ट्रोल्स ने उन्हें निशाना बनाया, तो भारत के दक्षिणपंथी तबकों ने उनका बचाव यह कहकर किया: “वो हमारे मुल्ला हैं।” यह बात हास्यास्पद लग सकती है, लेकिन यह भी दर्शाती है कि सांप्रदायिकता भारतीय राजनीति और समाज की रगों में कितनी गहराई तक समा चुकी है।

मेरे लिए यह प्रेस कॉन्फ्रेंस महज़ एक क्षणिक झलक थी—एक मायावी संकेत—उस भारत की, जो कभी पाकिस्तान की स्थापना की तर्कशून्यता के विरोध में खड़ा था।

जैसा कि मैंने पहले भी कहा—भारत के आम मुसलमानों की ज़मीनी सच्चाई, उस सरकारी तस्वीर से अलग है जो वहाँ पेश की गई, लेकिन साथ ही यह भी सच है कि विविधता में एकता वाला भारत पूरी तरह मरा नहीं है। वह अब भी साँस लेता है।

जय हिंद।”

अब बताइए इसमें ऐसा क्या है कि महिला आयोग सक्रिय हो गया। 

हरियाणा राज्य महिला आयोग ने उनके इस पोस्ट का स्वतः संज्ञान लेते हुए उन्हें 12 मई को समन जारी किया. इस समन में उनके इस बयान से 'सशस्त्र बलों में महिलाओं के कथित अपमान और सांप्रदायिक द्वेष को बढ़ावा देने' की बात कही गई।

हरियाणा महिला आयोग ने अपने नोटिस में छह बिंदुओं का ज़िक्र किया और इसमें 'कर्नल सोफ़िया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह समेत वर्दीधारी महिलाओं का अपमान और भारतीय सशस्त्र बलों में पेशेवर अधिकारियों के रूप में उनकी भूमिका को कमतर आंकने' की बात भी कही.

हरियाणा महिला आयोग ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान को 48 घंटे का समय देते हुए आयोग के सामने पेश होने को कहा और उनसे लिखित जवाब मांगा।

इसके बाद प्रोफ़ेसर अली ख़ान की तरफ़ से उनके वकीलों ने महिला आयोग को लिखित जवाब दिया. इस जवाब में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कही।

प्रोफ़ेसर अली ख़ान के वकीलों ने कहा कि वो इतिहास और राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने अपनी 'शैक्षणिक और पेशेवर विशेषज्ञता का इस्तेमाल' करते हुए ये बयान दिए हैं और इन्हें 'ग़लत समझा' गया है।

\इसके बाद 17 मई को सोनीपत के एक व्यक्ति योगेश के कहने पर हरियाणा पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज कर ली और 18 मई की सुबह गिरफ़्तारी भी कर ली। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक “योगेश ने बताया है कि वो जठेड़ी गांव के सरपंच भी हैं और उन्होंने इस मामले में एफ़आईआर दर्ज कराई है। योगेश ने बताया है कि वो बीजेपी के सदस्य भी है, हालांकि उनका कहना है कि इस मामले का पार्टी से कोई संबंध नहीं है।”

हरियाणा पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 (1)बी, 197 (1)सी, 152 और 299 के तहत प्रोफ़ेसर अली ख़ान के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है।

अब विडंबना देखिए कि सेना और सेना की अफ़सर कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी का वास्तव में अपमान करने वाला मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार का मंत्री विजय शाह खुलेआम घूम रहा है। हाईकोर्ट के सख़्त आदेश के बाद भी उसे बचाया जा रहा है। 

“दो समुदायों में नफ़रत भड़काने” के आरोप में जिन  प्रो. अली पर एफ़आईआर दर्ज की गई है वे प्रो. अली 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद किस क़दर आहत थे और उन्होंने इसकी कैसे निंदा की थी इसे आप ख़ुद देख लीजिए। 22 अप्रैल की फेसबुक पोस्ट में प्रो. अली लिखते हैं–

“My heart goes out to all those who are victims of the cowardly and dastardly terrorist attacks in Pahalgam. 
The perpetrators must be brought to justice and made examples of. 
Prayers for the families who have lost loved ones. The photos and videos are so heartbreaking.”

 

“मेरा दिल पहलगाम में हुए कायराना और नृशंस आतंकी हमलों के सभी पीड़ितों के साथ है। दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए और उन्हें ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए जो मिसाल बने। जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उनके लिए प्रार्थनाएँ। जो तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, वे बेहद दिल दहला देने वाले हैं।”

यही नहीं, इन प्रोफ़ेसर के विचार कितने व्यापक और संज़ीदा हैं इसका अंदाज़ा आप 11 मई 2025 की पोस्ट पढ़कर लगा सकते हैं—

“The blind bloodlust for war! 
Despite a ceasefire there are those who are baying for war. 
War has gone from being somewhat self contained to now being everywhere and nowhere at the same time. Civilians have always been impacted by war but due to military technology the impact is now exponentially much more than even two centuries ago. So when you clamour for war or you call for a country to be wiped out then what exactly are you asking? For the genocide of an entire people? I know Israel is getting away with doing this - and some Indians admire this- but do we really want to advocate the wholesale murder of children as potential future enemies? 
Just because you are far from the border or because you have internalised so much hate that you no longer think of human beings when you think of an entire country, people, religious community, ethnic group, or social group doesn’t mean you are safe. This goes for all places where this conflict. You cannot equate an entire people with their government. In any case war eventually hits everyone. It’s just a matter of time.
Think about what it means when you say “wipe them out,” “finish them,” “destroy them” etc? You are saying kill all the children, the elderly, minorities, those who are opposed to war on the other side and many other innocent people who want to do exactly what you want to do: be a father, a mother, a daughter, a son, a grandparent and a friend. You can only ask for such wholesale destruction if you have completely dehumanised them. 
This is what the media, religious/ community leaders, politicians and others seek to do: dehumanise the other so that you do not even see them as human beings. It’s happening on both sides of the Radcliffe line- there are madmen everywhere, but those closer to the border know what war means: it means arbitrary, unpredictable and senseless death. Those far from the border seem to think war is some kind of video game. This dehumanisation is symptomatic of deep seated insecurities within us because we somehow need to deny someone else’s humanity to affirm our own but the reality is that the minute we dehumanise someone else- even though they might represent the opposite of everything we stand for- then we have given in to our basest instincts. We have sown the seeds of our own destruction.People will tell you that those who call for peace are cowards. No I tell you. Those who sit at home and call for war are cowards because it is not their sons and daughters who have to go to battle. 
Anyway, how on earth will war ever lead to peace? Does more abuse lead to less trauma? The military industrial complex in the world is the most profitable business - $2.46 trilllion- in comparison pharma is $1.6 trillion and oil is $750 billion. War is about profit and greed not about ideals and values. The days of those wars have gone if indeed they were ever there. We like to tell tales of honour in war but these stories are actually often about warriors who are exceptional human beings who transcend their ego and base sense of self. How strange that, as Sassoon said, Soldiers conceal their hatred of war. Civilians conceal their liking for it.
The Gita like many other holy books speaks of the complex moral dilemmas of going into war and of what kind of violence is justified. Contrary to popular misconceptions the Gita is not about war but about the reasons for going into war including dharma, duty and righteousness. What makes war just? Even if we accept that war is inevitable because violence is a part of the human condition, it is precisely this - the violence within all of us- that we have to try and overcome. Wars fought for pride, ego and all the false ideologies that flow from them can never be just. Remember Krishn Ji’s main contention is that Arjun set aside his own ego. 
श्रीभगवानुवाच |
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भव: ||
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् || 
The Supreme Lord said: It is lust alone, which is born of contact with the mode of passion, and later transformed into anger. Know this as the sinful, all-devouring enemy in the world.
In the above verse from the Gita (3:37) the word for lust is kaam which doesnt only mean sexual desire but all kinds of material desire. Lust in some cases is the urge for money, physical cravings, craving for prestige, the drive for power, etc. Desire deceives the soul into believing that material objects will provide satisfaction. However when desires are satisfied, they produce greed; when they arent satisfied, we see anger. One commits wrongs under the influence of all three—lust, greed, and anger. They are all linked.
The Prophet said “do not desire to meet your enemy in battle but if you do then be patient.”
This patience is what is key. Once Imam Ali was in combat with a warrior called Amr ibn Abd Wadd during the battle of the Trench. Maulana Rumi says:
از علی آموز اخلاص عمل
شیر حق را دان مُطهَّر از دغل
Learn the purity of of actions from Ali
Know that the Lion of God is free from deceit 
 Imam Ali felled Abd Wadd and was about to kill him when the latter spat on his face. Imam Ali withdrew immediately. When someone asked why he did this, he said in that moment I would have killed him because I was angry. My ego would have got in the way. So the only honourable thing was to withdraw. 
The kind of war mongering we are seeing amongst civilians is actually disrespecting the seriousness of war and dishonouring the lives of soldiers whose lives are actually on the line. The recent trolling of the Vikram Misri, India’s foreign secretary, by supporters of the BJP who are clamouring for war actually shows just how blinding hate and anger can be. Imagine abusing someone who was following orders from politicians and trolling their family. This is the extent to which blood lust has gripped these people.”

“युद्ध की अंधी प्यास!

सीज़फायर के बावजूद कुछ लोग युद्ध की मांग कर रहे हैं, जैसे उनकी आत्मा को बस खून चाहिए।
युद्ध अब किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा—यह अब हर जगह है और कहीं भी नहीं।
नागरिक हमेशा से युद्ध की चपेट में आते रहे हैं, लेकिन सैन्य तकनीक के कारण अब इसका प्रभाव पहले की तुलना में कई गुना अधिक हो गया है—यहाँ तक कि दो शताब्दी पहले की तुलना में भी।

तो जब आप युद्ध की माँग करते हैं, या कहते हैं कि “इस देश को मिटा दो,” तो असल में आप क्या माँग कर रहे हैं? क्या आप पूरी की पूरी एक आबादी के नरसंहार की माँग कर रहे हैं?
मुझे मालूम है कि इस्राइल यह सब कर रहा है—और कुछ भारतीय इसकी सराहना भी करते हैं—लेकिन क्या हम वाक़ई बच्चों की सामूहिक हत्या का समर्थन करना चाहते हैं, केवल इसलिए कि वे संभावित “भविष्य के दुश्मन” हैं?

सिर्फ इसलिए कि आप सीमा से दूर हैं या आपके भीतर इतनी नफ़रत भर दी गई है कि आप अब किसी देश, समुदाय, धर्म, जातीय समूह या सामाजिक वर्ग के लोगों को इंसान मानना ही छोड़ चुके हैं—इसका मतलब यह नहीं कि आप सुरक्षित हैं।
यह बात हर उस जगह पर लागू होती है जहाँ संघर्ष है। आप किसी पूरे समुदाय को उसकी सरकार के साथ एकमात्र समझ कर नहीं देख सकते।

किसी भी हालत में, युद्ध आख़िरकार सबको अपनी चपेट में लेता है—यह बस वक़्त की बात होती है।

जरा सोचिए कि जब आप कहते हैं “उन्हें मिटा दो,” “ख़त्म कर दो,” “नेस्तनाबूद कर दो”—तो आप असल में क्या कह रहे हैं?
आप कह रहे हैं—उनके सारे बच्चे, बूढ़े, अल्पसंख्यक, युद्ध-विरोधी लोग और तमाम निर्दोष नागरिक—जो भी आपकी तरह एक पिता, एक माँ, एक बेटी, एक बेटा, एक दादी-नानी या कोई दोस्त बनकर जीना चाहते हैं—उन सबको मार डालो।
आप ऐसा केवल तभी कह सकते हैं, जब आपने उन्हें पूरी तरह 'ग़ैर-इंसान' मान लिया हो।

यही तो मीडिया, धर्म/सामुदायिक नेताओं, राजनेताओं और अन्य प्रभावशाली ताक़तों की कोशिश होती है—दूसरे को इतना अमानवीय बना दिया जाए कि आप उन्हें इंसान के रूप में देखना ही छोड़ दें।
यह दोनों तरफ़ की वास्तविकता है—रैडक्लिफ़ लाइन के दोनों पार।
पागल तो हर ओर हैं, मगर जो सीमा के पास रहते हैं, वे जानते हैं कि युद्ध का मतलब होता है—मनमाना, अनिश्चित और बेमतलब का मौत।
जो लोग सीमा से दूर हैं, वे युद्ध को वीडियो गेम समझने लगे हैं।

यह अमानवीकरण हमारे भीतर की गहरी असुरक्षा का प्रतीक है—हम अपनी इंसानियत को साबित करने के लिए दूसरों की इंसानियत को नकारने की कोशिश करते हैं।
मगर सच यह है कि जैसे ही आप किसी और को ग़ैर-इंसान मानते हैं—भले ही वह आपके जीवन मूल्यों के एकदम उलट हो—उसी पल आप अपने सबसे निम्नतर स्वभाव के अधीन हो जाते हैं।
आपने अपने विनाश का बीज बो दिया होता है।

लोग कहेंगे कि जो शांति की बात करते हैं, वे कायर हैं।
नहीं! मैं कहता हूँ—जो लोग घरों में बैठकर युद्ध की माँग करते हैं, वे असली कायर हैं।
क्योंकि युद्ध में न उनके बेटे-बेटियाँ मरते हैं, न उनके घर उजड़ते हैं।

आख़िर युद्ध कभी शांति कैसे ला सकता है?

क्या किसी के ज़्यादा अपमान से कम आघात होता है?

दुनिया में सैन्य-औद्योगिक तंत्र (military-industrial complex) सबसे ज़्यादा मुनाफ़े वाला व्यापार है—$2.46 ट्रिलियन डॉलर का।

तुलना करें तो फ़ार्मा $1.6 ट्रिलियन और तेल उद्योग $750 अरब डॉलर का है।

युद्ध आज सिर्फ़ मुनाफ़ा और लालच का खेल है—न कि आदर्शों और मूल्यों का।

अगर कभी ऐसा युग रहा भी हो, जब युद्ध ‘धर्मयुद्ध’ हुआ करते थे, तो अब वह बीत चुका है।

हम युद्ध में सम्मान की कहानियाँ सुनाते हैं, लेकिन वे अक्सर उन योद्धाओं की कहानियाँ होती हैं जो अपने अहं और स्वार्थ से ऊपर उठ गए।

सचमुच अजीब है—जैसा कि सेसून ने कहा था:

"सैनिक युद्ध से अपनी नफ़रत छिपाते हैं, और नागरिक उससे अपने लगाव को छिपाते हैं।"

गीता, और अन्य पवित्र ग्रंथों की तरह, युद्ध में नैतिक दुविधाओं की गहरी चर्चा करती है—और किस तरह का हिंसा उचित है, इसका विवेचन करती है।

लोकप्रिय भ्रम के विपरीत, गीता युद्ध के समर्थन में नहीं है, बल्कि युद्ध में जाने के कारणों—धर्म, कर्तव्य और न्याय—पर विचार करती है।

क्या युद्ध ‘न्यायोचित’ हो सकता है?

मान भी लें कि हिंसा मनुष्य की प्रवृत्ति है, तो भी यही आंतरिक हिंसा हमें जीतनी है।

जो युद्ध केवल अभिमान, अहंकार और झूठे विचारों के लिए लड़े जाते हैं, वे कभी भी ‘न्यायोचित’ नहीं हो सकते।

कृष्ण जी की मुख्य शिक्षा तो यही है—कि अर्जुन अपना अहं त्याग दे।

श्रीभगवान ने कहा:

"काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।

महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥" (गीता 3:37)

(अर्थ:
यह काम (लालसा) ही है—जो रजोगुण से उत्पन्न होता है, और जो बाद में क्रोध में बदलता है। यह पापी, सब-कुछ निगल जाने वाला शत्रु है—इसे ही इस संसार में अपना असली शत्रु जानो।)

पैग़ंबर मुहम्मद ने कहा था—

"दुश्मन से लड़ाई की इच्छा मत करो, लेकिन यदि लड़ाई हो जाए तो धैर्य रखो।"

यही धैर्य सबसे महत्वपूर्ण है।

एक बार इमाम अली युद्ध में अम्र इब्न अब्द वुद्द से लड़ रहे थे (खंदक की लड़ाई में)।

मौलाना रूमी कहते हैं:

"अज़ अली आमूज़ इख़लास-ए-अमल

शेर-ए-हक़ रा दान मुहत्तर अज़ दग़ल"

(अली से कर्मों की निर्मलता सीखो, क्योंकि हक़ का यह शेर छल-कपट से रहित है।)

आज जो नागरिक युद्ध की मांग कर रहे हैं, वे असल में युद्ध की गंभीरता का अपमान कर रहे हैं।

वे उन सैनिकों का भी अपमान कर रहे हैं, जिनकी जानें वाक़ई दाँव पर हैं।

हाल में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री को जिस तरह बीजेपी समर्थकों ने ट्रोल किया—केवल इसलिए कि वह युद्ध नहीं चाहते —वह दिखाता है कि कैसे घृणा और ग़ुस्सा लोगों की सोचने की क्षमता को मिटा देती है।

सोचिए—आप एक अफ़सर को गालियाँ दे रहे हैं जो नेताओं के आदेश पर काम कर रहा है—और उसकी परिवार को भी निशाना बना रहे हैं!

यही खून की प्यास अब लोगों की चेतना को लील रही है।”

अब बताइए ऐसे विचारक, विवेकवान और दूरदर्शी सोच रखने वाले एक प्रोफ़ेसर को किन आरोपों में गिरफ्तार किया जा रहा है। 

प्रोफ़ेसर अली ख़ान की पत्नी ओनाइज़ा ने बीबीसी को बताया, "सुबह क़रीब साढ़े छह बजे पुलिस की टीम अचानक हमारे घर पहुंची और बिना कोई जानकारी दिए प्रोफ़ेसर अली ख़ान को अपने साथ ले गई।"

ओनाइज़ा ने बताया, "मैं नौ महीने की गर्भवती हूं। जल्द ही मेरी डिलीवरी होने जा रही है, मेरे पति को बिना कोई ठोस कारण या वजह बताए ज़बरदस्ती घर से उठा लिया गया है।"

हरियाणा पुलिस ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद की गिरफ़्तारी की पुष्टि कर दी है। 

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सेना के 'ऑपरेशन सिंदूर' पर टिप्पणी के लिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया है।

मीडिया रिपोर्ट के मताबिक प्रो. अली पर दो मुकदमे दर्ज किए गए हैं। पहला मुकदमा सोनीपत के गांव जठेड़ी के सरपंच की शिकायत पर राई थाने में दर्ज किया गया। इसके बाद हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष की शिकायत पर दूसरा मामला भी दर्ज किया गया है। पुलिस ने प्रो. अली को राई थाना पुलिस ने गिरफ्तार किया है और अब दोनों मामलों में कोर्ट में पेश कर रिमांड पर लेने की कोशिश करेगी, ताकि मामले की गहन जांच की जा सकी। 

अब देखिए कि इतने साफ़ और संज़ीदा पोस्ट के लिए गहन जांच की ज़रूरत है। और बेहूदा बयान देने वाले नेता-मंत्री सब आज़ाद हैं।

गिरफ़्तारी का व्यापक विरोध

सोशल एक्टिविस्ट और स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव ने प्रो. अली की पोस्ट को शेयर करते हुए एक्स पर लिखा, "इस पोस्ट को पढ़िए और ख़ुद से पूछिए, इसमें महिला विरोधी क्या है? यह पोस्ट धार्मिक द्वेष कैसे फैला रही है? और यह भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को कैसे ख़तरे में डाल रही है? (एफ़आईआर में भारतीय न्याय संहिता की धारा 152). पुलिस ऐसी शिकायत के आधार पर कार्रवाई कैसे कर सकती है?"

योगेंद्र यादव ने ये भी लिखा, "ये भी पूछिए कि क्या मध्य प्रदेश के उस मंत्री का कुछ हुआ है, जिसने वास्तव में कर्नल सोफ़िया का अपमान किया था?"

Shocking, this arrest of Prof Ali Kahn Mehbubabad, Ashoka University.
Please read this post by him and ask yourself: What is anti women about this? How does this spread religious hatred or strife? And how on earth does it constitute an “Act endangering sovereignty, unity and… https://t.co/EePb6kL7NE pic.twitter.com/WJXenUNLNr

— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) May 18, 2025

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर प्रोफ़ेसर अली ख़ान की गिरफ़्तारी की ख़बर पोस्ट करते हुए लिखा, "लोकतंत्र की जननी."

"Mother of Democracy" https://t.co/n8U1gRDG7M

— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) May 18, 2025

लेखक और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद ने एक्स पर लिखा, "हरियाणा पुलिस ने डॉ. अली ख़ान को अवैध रूप से गिरफ़्तार किया है। बिना ट्रांज़िट रिमांड के उन्हें दिल्ली से हरियाणा ले जाया गया। रात 8 बजे एफ़आईआर दर्ज की गई और अगली सुबह 7 बजे पुलिस उनके घर पहुँच गई!"

उन्होंने इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से दख़ल देने की मांग की है और प्रबीर पुरकायस्थ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया है।

उन्होंने यह भी लिखा-- डॉ. अली ख़ान: दो दिन की पुलिस हिरासत। बस दर्ज़ कर लीजिए। भारत में एक आज़ाद मुसलमान ज़ेहन को यही क़ीमत चुकानी पड़ती है।

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सांसद मनोज कुमार झा ने भी अली ख़ान महमूदाबाद की गिरफ़्तारी को लेकर पोस्ट किया.

उन्होंने लिखा,

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ कोर्ट जाने की बात की।

सीपीआई(एम) ने भी इस गिरफ़्तारी का कड़ा विरोध किया है।

सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक लक्ष्मण यादव लिखते हैं–

ख़बर आ रही है कि अशोक यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर और राजनीति विज्ञान विभाग के हेड अली ख़ान महमूदाबादी को हरियाणा पुलिस ने आज सुबह गिरफ़्तार कर लिया है. @Mahmudabad के ऊपर आरोप लगाया गया कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ी एक पोस्ट की, जिसमें महिला सेनाधिकारियों से जोड़कर जो… pic.twitter.com/P1JZxAB7As

— Dr. Laxman Yadav (@DrLaxman_Yadav) May 18, 2025

जनवादी लेखक संघ समेत अन्य साहित्यिक-लेखक संघों ने भी इस गिरफ़्तारी का विरोध किया है। 

इसके अलावा सोशल मीडिया पर प्रो. अली के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चल रहा है जिसपर लगातार लोग हस्ताक्षर कर इस एफ़आईआर और गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं। 

डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (DTF) ने कहा है कि यह मामला राजनीतिक प्रतिशोध का प्रतीक है, जिसमें सत्ताधारी पार्टी से जुड़े लोगों की शिकायत के आधार पर कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया। हरियाणा महिला आयोग द्वारा लगाए गए आरोप भी बेबुनियाद हैं, जिन्होंने उनके संवेदनशील विश्लेषण को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया। डॉ. महमूदाबाद ने सेना की पेशेवर प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए सामाजिक रूप से वंचित वर्गों की रक्षा की बात की थी।

DTF ने चेताया कि यह गिरफ़्तारी एक ख़तरनाक मिसाल है, जिससे लोकतंत्र और शिक्षण संस्थानों में आलोचनात्मक सोच को खतरा है, जबकि सत्ताधारी पक्ष के लोग खुलेआम नफ़रत और सांप्रदायिक भाषण दे रहे हैं।

DTF ने डॉ. अली खान की तत्काल रिहाई और सभी आरोपों को वापस लेने की मांग की है, और अकादमिक व लोकतांत्रिक समुदायों से इस हमले का संवैधानिक तरीक़े से विरोध करने की अपील की है।

कुछ लोगों का कहना है कि यह शायद मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह की बयान की तरफ़ से जनता का ध्यान हटाने का एक तरीका है, लेकिन बीजेपी के रणनीतिकार शायद भूल गए कि इस प्रकरण से जनता का ध्यान सत्ता प्रतिष्ठान की नाइंसाफ़ी और भेदभाव की तरफ़ ज़्यादा जा रहा है। 

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