गरीब-पिछड़े तबके को फेलोशिप से बाहर करने की साज़िश! एसएफआई का प्रदर्शन

स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई) की केंद्रीय कार्यकारी समिति के आह्वान पर आज शुक्रवार को एसएफआई की सभी इकाइयों ने फेलोशिप बढ़ाने और उसके नियमित वितरण की मांग को लेकर प्रदर्शन किया।
एसएफआई ने देश के सभी राज्यों में विरोध प्रदर्शनों का अयोजन किया गया। आईआईटी मद्रास, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, कलकत्ता के प्रेजिडेंसी कॉलेज, हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साथ दिल्ली में भी विज्ञान क्षेत्र से जुड़े छात्रों ने भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय के समक्ष विरोध प्रदर्शन किया।
पिछले चार साल से जब से मोदी सरकार आई है शोध छात्रों के फेलोशिप में किसी भी तरह कि बढ़ोतरी नहीं हुई है जबकि महंगाई अपनी चरम सीमा पर है, बल्कि उसमे लगातार कटौती हुई है। कई सारे फेलोशिप जो समाज के पिछड़े तबके से आने वाले छात्रों के लिए हैं उनमें लगातार ऐसे नियम बनाए जा रहे हैं जिससे छात्रों का एक बड़ा तबका उसके लाभ से बाहर हो जाए। इन सभी मुद्दों को लेकर एसएफआई ने देशभर में विरोध प्रदर्शन किया। उनकी मुख्य मांग हैं-
1. इस सत्र से नॉन-नेट फेलोशिप कम से कम 50% तक बढ़ाई जानी चाहिए।
2. पिछले 4 वर्षों की महंगाई के अनुसार वृद्धि और जेआरएफ, सीएसआईआर और आईसीसीएसआर या आईसीएचआर की फेलोशिप का नियमित वितरण किया जाना है।
3. उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रवृत्ति प्रदान करते समय राशि की समानता को बनाए रखने की आवश्यकता है।
4. एमएनएफ, आरजीएनएफ या एसवीएसजीसी जैसे छात्रवृत्ति के लिए अधिसूचना, जो समाज के पिछड़े तबके के लिए है वो असामयिक और अनियमित नहीं हो सकती है। इसे नियमित किया जाना चाहिए।
5. स्नातकोत्तर स्तर में अधिक छात्रवृत्ति उन लोगों के लिए सुनिश्चित की जानी चाहिए जो समाज के कमजोर वित्तीय वर्ग से आते हैं।
एसएफआई के महासचिव मयूख बिश्वास ने न्यूज़क्लीक से बात करते हुए कहा की यूजीसी द्वारा बेहद शर्मनाक प्रयास किया गया है कि मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (एमएनएफ) और राजीव गाँधी नेशनल फेलोशिप (आरजीएनएफ) के लिए इस सत्र से नेट की योग्यता अनिवार्य कर दी गई है। (विशेष रूप से अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए), यह बहुत खतरनाक है। अल्पसंख्यकों और दलितों के लिए ऐसी विशेष कंडीशनिंग के तहत ये फेलोशिप रखी गईं थी ताकि उच्च शिक्षा में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ सके। इन वंचित समुदायों के लिए अधिक से अधिक अवसर बनाने में सरकार का प्रयास होना चाहिए। फेलोशिप की संख्या सीमित करने जैसे एक योजनाबद्ध हमले से हमारे समाज के एक बड़े वर्ग के लिए उच्च शिक्षा का दरवाजा बंद हो जाएगा।
मयूख कहते है की हमारा मानना है कि यह जातिवाद और इस्लामोफोबिया का एक स्पष्ट उदाहरण है जो आरएसएस बीजेपी का शुरू से मुख्य एजेंडा रहा था और संविधान के विचार के प्रति पूरी तरह से विरोधाभासी है।
शिक्षा का लगातार गिरता बजट
2013-14 के बजट में, शिक्षा क्षेत्र को कुल बजट का 4.57% आवंटित किया गया था। यह 2017-18 के बजट में 3.8% से कम हो गया है। 1966 में कोठारी आयोग की रिपोर्ट ने प्रस्तावित किया था कि जीडीपी का 6% शिक्षा के लिए आवंटित किया जाना चाहिए लेकिन 50 से अधिक वर्षों बाद भी नहीं हुआ है। मोदी सरकार पूरे शिक्षा क्षेत्र के लिए बजट जो पहले से कम है उसे और कम करने पर तुली हुई है। (इसमें स्कूल और उच्च शिक्षा शामिल है।)
दिल्ली के विधि विभाग के छात्र व एसएफआई के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विकास भदौरिया ने कहा कि मोदी सरकार ने यह ठान लिया है कि वो सार्वजनिक शिक्षा को बर्बाद करेगी, हम देख रहे हैं कि जिस तरह सामजिक न्याय का मज़ाक बनाया जा रहा है। समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को मिलने वाली फेलोशिप को मोदी सरकार ने आने के बाद से बंद कर दिया है, ये साफ दिखाता है कि वे नहीं चाहते हैं कि समाज का सबसे पिछड़ा तबका जो बहुत मुश्किल से विश्वविद्यालयो तक पहुँच पा रहा है, वो पढ़े और इन मनुवादियों से सवाल करे।
आगे वो कहते हैं कि इसलिए वो लगातर शिक्षा के बजट में कटौती कर रहे हैं, परन्तु वो नहीं जानते कि छात्र अपने हक के लिए लड़ने को तैयार हैं। हम एसएफआई भगत सिंह और अंबेडकर के सपनों का भारत चाहते हैं परन्तु ये संघ समर्थित भाजपा की सरकार भारत को मनु और गोलवलकर के सपनों का भारत बनाना चाहते है, लेकिन हम ये नहीं होनें देंगे और हमारा आज का विरोध प्रदर्शन इसको लेकर था।
मोदी सरकार में शिक्षा बदहाल
हिमाचल के रामपुर भी इन मांगों के साथ कुछ स्थानीय मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया गया। इस मौके पर एसएफआई इकाई उपाध्यक्ष नेहा ने कहा कि आज महाविद्यालय में छात्रों को उनकी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है। महाविद्यालय के अंदर इस कड़ाके की ठंड में लाइब्रेरी के अंदर छात्रों को अध्ययन करना बहुत मुश्किल हो रहा है, क्योंकि लाइब्रेरी में हीटर की सुविधा नहीं दी जा रही है। महाविद्यालय में छात्राओं की संख्या 65% से अधिक है फिर भी महाविद्यालय में गर्ल्स कॉमन रूम नहीं है।
नेहा ने कहा कि “वर्तमान समय में रिसर्च स्कॉलर को जो फेलोशिप मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल पा रही है जिस कारण छात्रों को शोध करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शोध छात्र व दिल्ली एसएफआई के उपाध्यक्ष सुमित कटारिया ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी कि इस सरकार ने शिक्षा प्रणाली का व्यावसायीकरण और भगवाकरण तेज से किया है। सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थानों के लिए बजट में भारी कटौती की गई है और उच्च शिक्षा का निजीकरण कर रही है। इसके साथ ही राजनीतिक नियुक्तियां (जो अक्सर अनुभवहीन और अक्षम होती हैं) और उन्हें कठपुतली की तरह प्रयोग करके और आरएसएस संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के माध्यम से, मोदी सरकार सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थानों में लोकतांत्रिक माहौल को खत्म कर रही है। इसका उदाहरण हमने कई बार देखा अभी हाल में ही इसी तरह का एक नियुक्ति हिन्दू कालेज के प्रिंसिपल की थी जिसे बाद में दिल्ली उच्च न्यायलय के गलत माना और इस नियुक्ति को रद्द कर दिय।
एसएफआई न केवल आने वाले सत्रों के लिए पिछली योग्यता जो फेलोशिप के लिए थी उसे जारी रखने की मांग करता है, बल्कि इन वंचित वर्गों के लिए अधिक छात्रवृत्ति देने की मांग भी करता है और इसके लिए एक ऑनलाइन पेटिशन भी साइन कराई जा रही है जिसे वो मानव विकास एवं संसाधन मंत्री को भेजेंगे।
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