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तिरछी नज़र: विमान दुर्घटना और सरकार जी की फ़ोटो!

मैं गारंटी से कहता हूँ, ऐसा फ़ोटो न भूत में किसी सरकार जी का खिंचा है और न ही भविष्य में खिंचने की उम्मीद है।
plane crash and MODI
फ़ोटो साभार

अहमदाबाद में बहुत ही दुःखद दुर्घटना हुई। हवाई जहाज के रनवे से उड़ान भरते ही नीचे गिरने से एक के आलावा सभी सवार मर गए। जहाँ हवाई जहाज गिरा, वहाँ एक मेडिकल कॉलेज का हॉस्टल था। दोपहर का समय था, हॉस्टल के मैस में कुछ भावी डॉक्टर लंच कर रहे थे। उनमें से भी कुछ इस दुर्घटना में मारे गए और कुछ घायल भी हुए। 

अब जब यह दुर्घटना हुई है, तो किसी ना किसी की जिम्मेदारी तो बनती ही है। लेकिन दुर्घटना की जिम्मेदारी लेने कोई नहीं आता है। इसकी बजाय कोई अच्छा कार्य हुआ होता तो उसका श्रेय लेने सभी आ जाते हैं। और सरकार जी के होते हुए किसी और को इसका मौका भला कहाँ मिलता है। अब देखो, चिनाब नदी पर पुल बना तो सरकार जी झंडा लहराने अकेले जा पहुंचे। साथ में कोई नहीं। सारा श्रेय खुद को। कहीं कोई जिक्र नहीं कि पुल का विचार किस की सरकार में आया। पुल का बजट किन सरकार जी ने पास किया। और पुल की नींव कौन से सरकार जी ने रखी। बस सभी कुछ अभी वाले सरकार जी हो गए। सारा श्रेय उन्हीं का हो गया।

अब देखो, ऑपरेशन सिंदूर हुआ। अच्छा हुआ या नहीं, पता नहीं। पर हुआ जरूर और वोट दिलाऊ हुआ। तो सरकार जी हर जगह छाए हुए हैं। बड़े बड़े चौराहों पर छाए हुए हैं, पेट्रोल पंपो पर छाए हुए हैं, बस अड्डों पर और रेलवे स्टेशनों पर छाए हुए हैं। और तो और, रेल के टिकट पर भी छपे हुए हैं। मतलब आप श्रेय लेने में सबसे आगे हैं। 

और सच में कहा जाये तो श्रेय तो बनता ही है। सेना का श्रेय बनता है। किन्हीं एक दो पोस्टर में सेना के वीरों के साथ सेना के सर्वोच्च कमांडर, राष्ट्रपति महोदया जी फोटो भी छपवा दी होता तो सेना का मनोबल भी बढ़ता। श्रेय सरकार जी से इतर किसी और को भी जाता। पर यह सरकार जी को मंजूर नहीं है। श्रेय लेना हो तो स्वयं मौजूद हैं, पर जब जिम्मेवारी की बात आए तो कोई नहीं है। कम से कम आज की सरकार में तो कोई नहीं है।

अहमदाबाद में हुई इस वायुयान दुर्घटना की जिम्मेदारी ना तो सरकार जी ने ली है और न ही सरकार जी की सरकार में किसी और ने। इसलिए न तो किसी ने इस्तीफा दिया और न ही किसी को निकाला गया। और जिम्मेदारी है किस की, यह वे कभी भी नहीं बताते हैं। ना तो पुलवामा की जिम्मेदारी किसी की बताई और ना ही अब हुए पहलगाम की। हाँ, पाकिस्तान की जरूर बता दी गई। उसमें नया क्या है। वह तो हम हर बार बताते हैं।

और तो और, रेल दुर्घटनाओं, पुल टूटने की, सड़कें धसने की जो इतनी सारी घटनाएं होती हैं उनमें भी किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। सरकार जी के राज में जिम्मेदारी किस चिड़िया का नाम है, किसी को नहीं पता है। महीनों की जाँच पड़ताल के बाद किसी लाइन मेन या फिर जूनियर इंजीनियर को जिम्मेदार बता एक्शन ले लिया जाता है। और सरकार जी यह भी कहते हैं कि हमारी सरकार में इस्तीफा नहीं होता है। वह पहले की सरकारों में ही होता था।

मुंबई अटैक में तत्कालीन गृहमंत्री जी ने इस्तीफा दे दिया था। कहा जाता है कि वह कपड़े बदलने की वजह से लिया गया था। अरे भाई, अगर कपड़े बदलने से इस्तीफा लिया-दिया जाने लगे तब तो हमारे सरकार जी तो सैकड़ों बार इस्तीफा दे चुके होते। सरकार जी हर रोज इस्तीफा देते और हर रोज पदभार ग्रहण करते। सुख हो या दुख, वे तो दिन में तीन चार बार कपड़े बदलते ही हैं।

लेकिन सरकार जी जिम्मेदारी तय करें या न करें पर जिम्मेदारी तो बनती ही है। सबसे पहली जिम्मेदारी तो राइट बन्धुओं की है। उन्होंने ही आखिर कोई सवा सौ साल पहले एयरोप्लेन बनाया था। उन्होंने बनाया ही क्यों? न वे एयरोप्लेन बनाते और न ही अहमदाबाद की दुर्घटना होती। इसी तरह रेलवे में नित हो रही दुर्घटनाओं के लिए भी रिचर्ड ट्रेविथिक ही जिम्मेवार है। शास्त्री जी तो बेवकूफ थे। सारी जिम्मेदारी रिचर्ड ट्रेविथिक पर डाल, रेल मंत्री बने रहते।

दूसरी जिम्मेदारी बनती है, नेहरू की। नेहरू जी को स्वर्ग सिधारे साठ साल से ज्यादा हो गए पर देश में हो रही हर दुर्घटना के लिए वे आज भी जिम्मेदार हैं। इतना जिम्मेदार व्यक्ति विश्व इतिहास में कोई और हुआ हो, मुझे तो ध्यान नहीं आता है। और हाँ, अच्छे कामों के लिए तो सरकार जी हैं ही। आप पूछेंगे नहीं ना, कि नेहरू जिम्मेदार कैसे हैं? आपने आज तक नहीं पूछा है कि जो घटना आज हो रही है, उसका जिम्मेदार नेहरू कैसे है। अलबत्ता आप यह जरूर सुन सकते हैं कि अगर नेहरू की जगह पटेल प्रधानमंत्री बनते तो अहमदाबाद वाली यह हवाई जहाज दुर्घटना हरगिज नहीं होती। 

नेहरू की गलती तो है ही। अगर नेहरू ने 1953 में टाटा की एयरलाइन का राष्ट्रीयकरण नहीं किया होता तो यह दुर्घटना नहीं हुई होती। वह तो भला हो सरकार जी का कि उन्होंने 2023 में एयरलाइन टाटा को वापस दे दी। इसका असर इतना तो हुआ ही कि एक आदमी तो बच गया। नहीं तो सारे के सारे मारे जाते। हवाई दुर्घटना में कोई बचता है भला। सरकार जी के प्रताप से बचा वह। सरकार जी उससे जा कर अस्पताल में मिल भी आये।

खैर गलती किसी की भी रही हो, राइट बन्धुओं की, नेहरू जी की, पायलट की या फिर किसी ग्राउंड स्टॉफ की, हमारे सरकार जी को तो एक अद्भुत फोटो खिचवाने का मौका मिल ही गया। फोटो ऐसी जैसी कभी किसी ने भी नहीं खिंचवाई होगी। हवाई जहाज का पिछवाड़ा एक बिल्डिंग पर टिका है। सरकार जी उसे एकटक देख रहे हैं और फोटोग्राफर जमीन पर लेट कर पिचहत्तर डिग्री के कोण से फोटो खींच रहा है। अद्भुत फोटो है। मैं गारंटी से कहता हूँ, ऐसा फोटो न भूत में किसी सरकार जी का खिंचा है और न ही भविष्य में खिंचने की उम्मीद है। मैं भगवान जी की कसम खा कर कहता हूँ, आने वाले सरकार जी, भारत के ही नहीं, सभी देशों के सरकार जी इस विलक्षण फोटो को देख कर जलेंगे। सोचेंगे, कितना विचित्र प्राणी था। मानवीय त्रासदी के समय भी फोटो के लिए पोज़ बना रहा था।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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