कटाक्ष: मनुस्मृति पढ़ाने तो दो यारो!

ये लो कर लो बात। ये सेकुलरिस्ट, ये वामी अब क्या बच्चों को मनुस्मृति पढ़ाने भी नहीं देंगे? पढ़ाने पर, जी हां सिर्फ पढ़ाने पर बल्कि पढ़ाने के आइडिया पर ही इतना हंगामा खड़ा कर दिया है, तो जरा सोचिए कि जब हिंदू राष्ट्र में मनुस्मृति लागू होगी तो ये कैसा तांडव करेंगे। फौज बुलानी पड़ेगी फौज; उससे कम में हालात संभलने से रहे।
हम तो कहते हैं कि इस खतरे की वजह से भी मोदी जी की सरकार को कम से कम इस मामले में किसी यूटर्न की इजाजत नहीं देनी चाहिए। अकेले अपने बूते बहुमत नहीं है तो न सही। बैसाखियों का सहारा लेने की मजबूरी है तो वह भी सही। जैसे वक़्फ कानून समेत सभी मामलों में जोड़-जुगाड़ का पुख्ता इंतजाम किया है, वैसा ही इंतजाम इस मामले में भी सही। पर एक बार मनुस्मृति पढ़ाने का फैसला ले लिया है, तो फिर मनुस्मृति पढ़ायी जाए।
दलितों-वलितों, महिलाओं-वहिलाओं के शोर मचाने की सरकार को परवाह नहीं करनी चाहिए। चार दिन शोर करेंगे, बहुत से बहुत दो-चार महीने शोर करेंगे, फिर खुद ही थक-हार कर बैठ जाएंगे। तब तक सरकार भी ध्यान बंटाने के लिए कोई न कोई मामला खड़ा कर ही देगी।
असली बात यह है कि मनुस्मृति पढ़ाने से शुरूआत तो हो। आज बच्चों को पढ़ाएंगे, तभी तो उनके देश के कर्णधार बनने तक, मनुस्मृति के लागू होने तक पहुंच पाएंगे। कहने में अच्छा नहीं लगता, पर सच है कि मनुस्मृति की पूजा करने वालों के राज को बिना शुरूआत के ही बारहवां साल लग गया है। अब शुरुआत के लिए ग्यारह साल भी कोई कम तो नहीं होते हैं। अब भी शुरूआत नहीं होगी तो कब होगी। आखिर, मनुस्मृति का नंबर कब आएगा!
पर हाय, मोदी जी के राज के बारहवें साल में भी लक्षण अच्छे नहीं हैं। राजधानी की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में मनुस्मृति पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला शुरू ही नहीं हो पा रहा है। और तो और संस्कृत विभाग तक में मनुस्मृति की पढ़ाई शुरू नहीं हो पा रही है। बेचारे संस्कृत विभाग ने धर्मशास्त्र स्टडीज के नाम से मनुस्मृति की पढ़ाई शुरू करने का फैसला लिया था, पर विरोधियों ने बेबात का हंगामा खड़ा कर दिया। जिद पकड़ ली कि बाकी सब विषयों की छोड़ो, संस्कृत विभाग में भी और उसमें भी धर्मशास्त्र स्टडीज तक में, मनुस्मृति की पढ़ाई नहीं होने देंगे। कहते हैं कि धर्मशास्त्र स्टडीज में चाहे रामायण पढ़ा लो, गीता पढ़ा लो, महाभारत पढ़ा लो, आपस्तंभ का, बौधायन का, वशिष्ठ का, किसी का भी धर्मसूत्र पढ़ा लो, चाहे तो नारद, याज्ञवल्क्य की स्मृतियां भी पढ़ा लो, पर मनुस्मृति नहीं पढ़ायी जाएगी।
हद तो यह है कि मनुस्मृति को पढ़ाने का विरोध वही लोग कर रहे हैं, जो मोदी राज पर पढ़ाई-लिखाई का विरोधी होने के इल्जाम लगाते हैं। बताइए, मोदी जी के आशीर्वाद से किसी किताब पर घोषित-अघोषित रोक लगायी जाए, तो उन पर शिक्षा से लेकर तर्क और बुद्धि-विरोधी होने तक की तोहमत और ये मनुस्मृति की पढ़ाई का रास्ता रोकें तो, डेमोक्रेसी की मांग। इतना दोहरापन कहां से लाते हैं ये मनुस्मृति-भक्तों का विरोध करने वाले!
फिर मनुस्मृति में विरोध करने वाली बात ही क्या है? जो लोग मनुस्मृति को निचली जातियों और औरतों वगैरह का विरोधी बताते हैं, उन्होंने अव्वल तो मनुस्मृति पढ़ी नहीं है और पढ़ी भी है तो समझी नहीं है। मनुस्मृति क्या है? मनुस्मृति हमारी प्राचीन और इसलिए आदर्श समाज व्यवस्था की संहिता है। मनुस्मृति में समग्रता में हमारे समाज का तानाबाना है और उसे सुरक्षित रखने का इंतजाम है। उसमें हरेक की जगह है, जो सुस्पष्ट और सुनिश्चित है। बल्कि हरेक की जगह हमेशा के लिए स्थायी या आरक्षित है। जो आरक्षण का झंडा उठाए फिरते हैं, नाहक मनुस्मृति के विरोधी बने फिरते हैं।
आरक्षण के आइडिया का ऑरिजिन तो मनुस्मृति में ही है। दलित के लिए और औरत के लिए सेवा का कार्य सुनिश्चित है और दासता का जीवन भी। क्षत्रिय के लिए राज करने का कार्य सुरक्षित है और प्रभुता का जीवन। ब्राह्मण के लिए पूजा-पाठ के बदले में वसूली का कार्य और परजीवी जीवन। और वैश्य के लिए कमाई का और सब का पेट पालने का कार्य।
कितनी सुंदर व्यवस्था है और सुचारु रूप से काम करने वाली। हजारों वर्षों से सारे विरोध के बावजूद चल रही है और हिंदू राष्ट्र बन गया तो मजे में हजारों वर्ष और चलेगी, जब तक हजार वर्ष वाला मोदी जी का रामलला की पहली प्राण प्रतिष्ठा के साथ शुरू हुआ नया युग चलेगा। आरएसएस वालों ने तो पहले ही पहचान लिया था कि मनुस्मृति ही असली भारतीय संविधान है। पर नेहरू जी ने नहीं सुनी। उल्टे, मनुस्मृति जलाने वाले आंबेडकर को संविधान बनाने का जिम्मा दे दिया। नतीजा यह कि साठ-पैंसठ साल यूं ही बर्बाद हो गए। वह तो ग्यारह साल पहले मोदी जी आ गए और मनुस्मृति का महत्व स्वीकार करने का सिलसिला शुरू हुआ। तब भी खास कुछ कहां हो पाया है। अभी तो कालेज-यूनिवर्सिटी में मनुस्मृति की पढ़ाई शुरू कराने पर ही झगड़ा पड़ा हुआ है; संविधान की जगह मनुस्मृति आएगी, कब।
पर हमें तो डर है कि अब भी हवा उल्टी ही चल रही है। ठीक से हंगामा शुरू भी नहीं हुआ था, पर दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ने एलान कर दिया कि मनुस्मृति नहीं पढ़ाने देंगे। धर्मशास्त्र स्टडीज में भी नहीं, किसी और पाठ्यक्रम में भी नहीं, बस मनुस्मृति नहीं पढ़ाने देंगे। जनाब यह मानकर अकड़े हैं कि उनके अकड़ने को ऊपर वालों का आशीर्वाद है। कह रहे हैं कि हमने तो पहले ही कह दिया था कि मनुस्मृति नहीं पढ़ायी जाएगी। पहले कानून के कोर्स के हिस्से के तौर पर मनुस्मृति पढ़ाने की बात आयी थी, तभी हल्ले-हंगामे के बाद कह दिया गया था कि मनुस्मृति नहीं पढ़ाएंगे। अब फिर कह रहे हैं कि मनुस्मृति नहीं पढ़ाएंगे। आगे के लिए भी अभी से कहे देते हैं कि जब तक ऊपर वालों का इशारा नहीं होगा, आगे भी अगर किसी विभाग ने मनुस्मृति पढ़ाने की कोशिश की, तो नहीं पढ़ाने देंगे।
बारहवें साल में भी अभी मनुस्मृति पढ़ाना शुरू होने का ही भरोसा नहीं है। फिर मनुस्मृति का राज आएगा, कब? बस एक ही बात की तसल्ली है कि कहीं लिखा हुआ नहीं है कि पहले मनुस्मृति पढ़ाना शुरू होगा, उसके बाद उसका राज आएगा। यह भी तो हो सकता है कि राज पहले आ जाए, मनुस्मृति पढ़ने-पढ़ाने का क्या है , वह तो बाद में भी होता रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)
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