दो टूक: नई पीढ़ी ने तो बैलेट पेपर की लूट चंडीगढ़ मेयर चुनाव में देखी है मोदी जी!
सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल को चुनाव बैलेट पेपर से कराने या वीवीपैट की सौ फ़ीसदी पर्चियों के मिलान की याचिकाएं ख़ारिज कर दीं। इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभा में इसका श्रेय लेने की कोशिश की और विपक्ष पर निशाना साधा कि बैलेट पेपर लूटने का इरादा रखने वालों के सपने चूर-चूर हो गए। लेकिन इसी के साथ वे ये बताना भूल गए कि अगर नई पीढ़ी ने बैलेट पेपर की लूट देखी है तो वो उन्हीं के कार्यकाल में, उन्हीं की पार्टी द्वारा चंडीगढ़ मेयर चुनाव में देखी है। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी देखा और चुनाव परिणाम को पलट दिया।
ईवीएम पर पिछले काफ़ी समय से शक बढ़ता जा रहा है। यही वजह थी कि चुनाव बैलेट पेपर से कराने या VVPAT की सौ फ़ीसदी पर्चियों के मिलान की मांग की जा रही थी। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं थीं।
मुख्य याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) की ओर से डाली गई थी। जिसकी ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण केस लड़ रहे थे। इसमें चुनाव आयोग और सरकार को पार्टी बनाया गया था।
26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की दो सदस्यीय पीठ ने इन याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। कोर्ट का कहना था कि बिना सोचे-समझे सिस्टम पर सवाल उठाना बेवजह शक को बढ़ावा देना है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि चुनाव प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। बैलेट से चुनाव नहीं होगा और मतदाता ईवीएम से ही चुनाव करेगा। और वीवीपैट की सौ फ़ीसदी पर्चियों का मिलान भी नहीं किया जाएगा। हालांकि कोर्ट ने ईवीएम की जांच का रास्ता खोल दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दूसरे या तीसरे नंबर पर आने वाले किसी कैंडिडेट को शक है तो वह रिजल्ट घोषित होने के 7 दिन के भीतर चुनाव आयोग में शिकायत कर सकता है। इसके बाद चुनाव आयोग अपनी एक्सपर्ट कमेटी से इसकी जांच कराएगी।
किसी भी लोकसभा क्षेत्र में शामिल विधानसभा क्षेत्रवार की कुल ईवीएम में से 5% मशीनों की जांच हो सकेगी। इन 5% ईवीएम को शिकायत करने वाला प्रत्याशी या उसका प्रतिनिधि चुनेगा।
इस जांच का खर्च कैंडिडेट को ही उठाना होगा। चुनाव आयोग ने बताया- जांच की समय सीमा और खर्च को लेकर जल्द ही जानकारी शेयर की जाएगी।
जांच के बाद अगर ये साबित होता है कि EVM से छेड़छाड़ की गई है तो शिकायत करने वाले कैंडिडेट को जांच का पूरा खर्च लौटा दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 3 निर्देश भी दिए हैं।
1. सिंबल लोडिंग प्रक्रिया के पूरा होने के बाद इस यूनिट को सील कर दिया जाए। सील की गई यूनिट को 45 दिन के लिए स्ट्रॉन्ग रूम में स्टोर किया जाए।
2. इलेक्ट्रॉनिक मशीन से पेपर स्लिप की गिनती के सुझाव का परीक्षण कीजिए।
3. यह भी देखिए कि क्या चुनाव निशान के अलावा हर पार्टी के लिए बारकोड भी हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में सरकार के लिए कोई निर्देश नहीं दिया गया है।
VIDEO | Here's what advocate Prashant Bhushan said on Supreme Court rejecting pleas seeking complete cross-verification of votes cast using #EVMs with Voter Verifiable Paper Audit Trail (#VVPAT).
"The court has not accepted our demands but has directed the Election Commission to… pic.twitter.com/YuvvXhVVB8
— Press Trust of India (@PTI_News) April 26, 2024
यह बात हुई सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की। हालांकि इसके बाद भी ईवीएम को उठे सवाल जहां के तहां बने हुए हैं। इससे विपक्ष या लोगों का शक दूर हुआ है, तो कहा जा सकता है कि नहीं।
यह तो पहले से पता था कि बैलेट पेपर से चुनाव की पुरानी प्रक्रिया पर लौटाना अब संभव नहीं है। लेकिन चुनाव की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए कुछ और क़दम ज़रूर उठाए जा सकते थे। जैसे वीवीपैट की सौ फ़ीसदी नहीं तो कम से 50 फ़ीसदी पर्चियों का मिलान किया जा सकता था। अगर नहीं तो कम से कम मतदाता के हाथ में वीवीपैट की पर्ची को दिया जा सकता था, जिसे देखकर वह इत्मिनान करता और उसे एक बॉक्स में डाल देता। या फिर वीवीपैट के शीशे का रंग बदलना आदि।
ख़ैर, इस पर बहस चलती रहेगी। सवाल उठते रहेंगे। सवाल बैलेट पेपर से चुनाव पर भी उठते रहे थे। एक दौर में बूथ कैप्चरिंग, बैलेट पेपर को फाड़ना, मत पेटियों को लूटने आदि की भी बहुत अधिक शिकायतें आती थीं। हालांकि उसमें और ईवीएम के चुनाव में यह फ़र्क़ है कि वो लूट, वो बूथ कैप्चरिंग छिप नहीं पाती थी, सबको दिखाई देती थी और ऐसे बूथों पर पुनर्मतदान होता था। लेकिन ईवीएम के जरिये वोट चोरी का पता ही नहीं चलता। और आपको बता दें कि ईवीएम पर सिर्फ आज का विपक्ष यानी कांग्रेस या इंडिया गठबंधन या अन्य दल या लोग ही सवाल नहीं उठाते बल्कि जब बीजेपी विपक्ष में थी तो उसने भी ईवीएम का बहुत विरोध किया था। 2009 में जब कांग्रेस सत्ता में थी तब बीजेपी के नेताओं ने ईवीएम का विरोध करते हुए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की थी। उस समय के बीजेपी के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर तमाम सवाल खड़े किए थे। यही नहीं भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने तो बाक़ायदा 'इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से लोकतंत्र को ख़तरे' पर एक किताब तक लिख डाली थी।
ख़ैर दौर बदला और अब बीजेपी सत्ता में है तो उसके सुर बदल गए हैं। लेकिन दिलचस्प है कि वो खुद को लोकतंत्र के चैंपियन और ईवीएम के रक्षक के तौर पेश कर रही है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कही। उन्होंने आरजेडी और इंडिया गठबंधन पर प्रहार करते हुए कहा कि उन्होंने ईवीएम को लेकर जनता के मन में शक पैदा करने का पाप किया है और सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से उनके बैलेट पेपर लूटने के सारे सपने चूर-चूर हो गए हैं।
RJD और कांग्रेस के INDI गठबंधन को न देश के संविधान की और न ही लोकतंत्र की परवाह है।
INDI गठबंधन के हर नेता ने EVM को लेकर जनता के मन में संदेह पैदा करने का पाप किया है।
लेकिन, आज सुप्रीम कोर्ट ने मतपेटियों को लूटने का इरादा रखने वालों को ऐसा गहरा झटका दिया है कि इनके सारे सपने… pic.twitter.com/mCKgmJHr4M
— BJP (@BJP4India) April 26, 2024
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बहुत दिलचस्प बयान है। वे यह बताना भूल गए कि बैलेट पेपर की लूट की सबसे ताज़ा घटना उन्हीं के राज और उन्हीं की पार्टी की है। नई सदी यानी सन् 2000 और उसके बाद पैदा हुई पीढ़ी ने शायद पहली बार बैलेट पेपर की लूट इसी 2024 में चंडीगढ़ मेयर चुनाव में ही देखी। जहां बीजेपी के पक्ष में दिनदहाड़े चुनाव अधिकारी के जरिये ही बैलेट पेपर लूट लिए गए।
ईवीएम को लेकर आम सहमति 1998 के बाद ही बन पाई थी और सन् 2000 के बाद ही ये बाक़ायदा चलन में आई।
तो नई पीढ़ी यानी 18 से 24 साल के युवा मतदाताओं ने तो बैलेट पेपर से चुनाव की पहली लूट चंडीगढ़ में ही देखी।
आपको याद होगा कि चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर के लिए 30 जनवरी 2024 को चुनाव हुए थे। यहां चुनाव बैलेट पेपर से हुए थे और इसमें जनता द्वारा सीधा चुनाव भी नहीं होता। पार्षद और स्थानीय सांसद ही वोट डालते हैं। महज़ 36 वोट थे, तब भी इतना बड़ा खेला हो गया। इस चुनाव में इंडिया गठबंधन यानी आप व कांग्रेस के साझा उम्मीदवार को 20 वोट मिले थे लेकिन उसमें से 8 वोट अवैध घोषित कर निरस्त कर दिए गए और इस प्रकार कुल 16 वोट पाकर भी बीजेपी के उम्मीदवार मनोज सोनकर को विजयी घोषित कर दिया गया।
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ये चोरी, ये लूट कैमरे के सामने पकड़ी गई। और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी आधार पर फ़ैसला किया। सोचिए अगर सीसीटीवी नहीं होते तो बैलेट पेपर की लूट जिसे सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र की हत्या कहा, वो कभी पकड़ में न आती।
BJP ने Chandigarh Mayor Election में की लोकतंत्र की हत्या‼️
मेयर चुनाव में INDIA Alliance🇮🇳 के पास बहुमत होने के बाद जीत निश्चित थी
लेकिन BJP ने गुंडागर्दी कर मेयर चुनाव जीत कर बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी
अगर बीजेपी एक मेयर चुनाव में ऐसी धक्केशाही कर रही है
तो लोकसभा… pic.twitter.com/5Y3Pbi3opO
— AAP (@AamAadmiParty) January 30, 2024
20 फ़रवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने मेयर चुनाव का पुराना नतीजा रद्द करते हुए और अवैध घोषित किए आठ वोट को वैध घोषित करते हुए दोबारा गिनती करवाई। इस तरह आप व कांग्रेस के संयुक्त प्रत्याशी के पक्ष में 20 वोट मिले। और उन्हें विजयी घोषित कर दिया गया।
कोर्ट ने चुनाव अधिकारी को नोटिस जारी किया कि उन्होंने अदालत में झूठ बोला।
वीडियो का संदर्भ देते हुए, सीजेआई ने पीठासीन अधिकारी को फटकार लगाई और कहा कि “क्या वह इसी तरह से चुनाव आयोजित कराते हैं? यह लोकतंत्र का मज़ाक है। यह लोकतंत्र की हत्या है। इस आदमी पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए।”
तो इस एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि अगर बैलेट पेपर की लूट का कोई दोषी है तो वो बीजेपी है। क्योंकि पीठासीन अधिकारी ने बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में ही ये सब धांधली या लोकतंत्र की हत्या की थी। लेकिन मोदी जी शुक्रवार, 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसले का श्रेय लेते हुए चंडीगढ़ चुनाव के फ़ैसले पर टिप्पणी करना भूल गए।
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चंडीगढ़ के बाद दूसरा उदाहरण हमारे सामने सूरत का है जहां चुनाव की नौबत ही नहीं आई। जी हां, सूरत में बीजेपी प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हो गए। यहां मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के प्रत्याशी का पर्चा ख़ारिज कर दिया गया और बाक़ी निर्दलीय प्रत्याशियों का पर्चा वापस करा दिया गया। इनमें बीएसपी का प्रत्याशी भी शामिल था। इस तरह वहां बैलेट पेपर या ईवीएम का झगड़ा ही ख़त्म कर दिया गया। क्योंकि मतदाता मताधिकार के प्रयोग से ही वंचित रह गया। अब इसी तरह की शिकायतें गुजरात से भी आ रही हैं कि प्रत्याशियों को डरा-धमका कर उनका पर्चा वापस कराया जा रहा है।
इसी तरह की आशंकाएं अब वाराणसी यानी बनारस से भी सामने आ रही हैं। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। वे 2014 से लगातार यहां के सांसद हैं। इस बार 2024 में भी वे यहीं से लड़ने जा रहे हैं। वाराणसी में आख़िरी दौर में 1 जून को चुनाव होगा। 7 मई से नामांकन प्रक्रिया शुरू होगी। वहां इंडिया गठबंधन से कांग्रेस के अजय राय प्रत्याशी हैं। उन्होंने भी आशंका जताई कि उनका पर्चा भी रद्द किया जा सकता है और उनके ऊपर केस भी दर्ज कराया जा सकता है। इस तरह प्रधानमंत्री मोदी भी शायद निर्विरोध निर्वाचित होना चाहते हैं।
कल, यानी 26 अप्रैल को दूसरे दौर के चुनाव के दौरान यूपी के गौतमबुद्ध नगर में मैंने एक व्यक्ति से पूछा कि चुनाव को लेकर कोई उत्साह क्यों नहीं दिखाई दे रहा। लोग वोट करने क्यों नहीं आ रहे हैं (नोट- यूपी समेत पूरे उत्तर भारत में अभी दो चरणों में हुए मतदान में इस बार वोटिंग परसेंटेज 2019 के मुकाबले काफ़ी गिरा है। हालांकि उस समय भी अप्रैल की गर्मी में चुनाव हुए थे।) तो उसका जवाब था कि जब लोगों को पता है कि सारा खेल ही ईडी और ईवीएम का है तो वो वोट देकर क्या करेंगे।
एक आम मतदाता का यह जवाब हमारे लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया पर बेहद कड़ी टिप्पणी है। इसे हमारे सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुनना और समझना चाहिए कि आज चुनाव को लेकर विश्वास किस स्तर पर आ गया है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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