भारत-पाक संघर्ष: हमने क्या हासिल किया?

आख़िरकार हमने वास्तव में क्या हासिल किया? यही सवाल सबसे बड़ा संदेह और चुनौती है। इसका जवाब देना आसान नहीं है। सबसे अहम चीज़ है — शांति। इस पर कोई शक नहीं कि किसी एक जान का जाना भी सरकार की हर उपलब्धि को बेमानी और शर्मनाक बना देता है। लेकिन युद्ध में मौतें टाली नहीं जा सकतीं। इस "शांति" की क़ीमत कितनी है, इसका मूल्यांकन कर पाना भी मुश्किल है। दरअसल, हम शांति "ख़रीद" रहे हैं — और इसकी कीमत क्या है, यही मूल सवाल है।
चाहे जितना भी महंगा हो, संघर्षविराम (ceasefire) अनिवार्य और अमूल्य है। क्या यह कोई रणनीति थी — पहले अमेरिका जैसे देशों को विश्वास में लेकर संघर्षविराम की घोषणा कर देना, और फिर पाकिस्तान की हर ग़लती पर जवाबी हमला करना? या फिर ये सब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कोई और "रणनीतिक चाल" है?
एक ख़तरनाक भ्रांति
अब हम उस मुक़ाम पर नहीं हैं जहाँ यह कह सकें कि हमने जीत हासिल ली और दुश्मन हार गया — यह एक भ्रम है। कई लोग — यहाँ तक कि भाजपा के भीतर भी — चौंक गए। सेना की रणनीति और युद्ध की वीरता को महिमामंडित करने वाली सोशल मीडिया की आँधी के बीच उलझन और संदेह फैल गए। सरकारी समर्थकों और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के प्रचारकों में भ्रम और अफ़रातफ़री छा गई।
एक ओर सोशल मीडिया पर यह दावा किया गया कि पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया, और उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चरणों में गिरकर "प्लीज़ प्लीज़" कहने लगे। लेकिन ये दावे चंद मिनटों में धराशायी हो गए।
असल सवाल ये है:
संघर्षविराम क्यों किया गया? क्या इससे भारत को कोई ठोस लाभ मिला?
9 मई की रात को भारत सरकार ने पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हवाई हमलों की तस्वीरें जारी कीं। फिर 10 मई को, पहली स्ट्राइक में मारे गए आतंकियों के नाम बताए गए। भारत ने दावा किया कि हमारी सेना ने एक भी पाकिस्तानी मिसाइल को अपनी सीमा में प्रवेश नहीं करने दिया। यह एक अभेद्य रक्षा कवच की तरह सामने आई। आतंकियों और सैन्य ठिकानों पर एक के बाद एक हमलों में भारत ने ड्रोन गिराए, सीमा की रक्षा की।
लेकिन पाकिस्तान फिर सवाल बन गया — हमने हासिल क्या किया?
शांति ज़रूरी है — इसमें कोई शक नहीं। मगर क्या हमने वास्तव में शांति हासिल की है?
युद्ध — पसंद हो या न हो
यह युद्ध हम पर थोपा गया, चाहें हमें यह पसंद हो या न हो। उम्मीद करनी चाहिए कि पाकिस्तान को अंततः समझ आएगी। अब हमारे सैनिकों, नेताओं, सरकार और विपक्ष को एकजुट होकर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए काम करना होगा।
8 मई की रात करीब 11 बजे, पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के सांबा ज़िले के पास अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ड्रोन और मिसाइलों से घुसपैठ की कोशिश की। सात आतंकियों को मार गिराया गया। ये सभी जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े बताए गए।
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने कठोर निर्णय लिए। पाकिस्तान पर कूटनीतिक प्रतिबंध लगाए गए, पाकिस्तान के सरकारी एक्स (X) अकाउंट और कई पत्रकारों के अकाउंट निलंबित कर दिए गए,16 यूट्यूब चैनल बैन किए गए, जिनमें पूर्व क्रिकेटर शोएब अख़्तर का चैनल भी शामिल है। डॉन न्यूज़, जियो न्यूज़, समा टीवी, सुनो न्यूज़ और द पाकिस्तान रेफरेंस जैसे प्रमुख पाकिस्तानी मीडिया चैनलों पर प्रतिबंध लगाया गया। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का एक्स अकाउंट भी सस्पेंड कर दिया गया।
सरकार ने इन्हें आईटी रूल्स 2021 के तहत राष्ट्रहित में ज़रूरी कार्रवाई बताया।
भारतीय मीडिया पर रोक — ग़लत
DIGIPUB ने चिंता जताई जब 8 मई को The Wire वेबसाइट पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
अगर उद्देश्य केवल पाकिस्तान से आने वाले भड़काऊ कंटेंट को रोकना है, तो ठीक है —
लेकिन The Wire जैसी भारतीय समाचार वेबसाइट को ब्लॉक करना न्यायसंगत नहीं।
भाकपा महासचिव डी. राजा ने इसका विरोध किया।
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के अपार गुप्ता ने कहा कि द वायर पर बैन फेक न्यूज़ रोकने का हल नहीं है। (अब यह प्रतिबंध हटा लिया गया है।)
आतंकवाद और फ़ेक न्यूज़ — दोहरी चुनौती
पाकिस्तानी सेना और आतंकी समूह भारत को बार-बार उकसा रहे हैं। लेकिन अब आतंकवाद से भी बड़ा ख़तरा — फेक न्यूज़ बन गया है। हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है कि झूठी ख़बरों को चुनौती दे और तथ्यों की जाँच करे — यह अब राष्ट्ररक्षा जितना ही आवश्यक है।
कुछ लोगों ने कहा, यही वह समय है जब ‘पाक अधिकृत कश्मीर को मुक्त कराया जाए’ और पाकिस्तान को हमेशा के लिए शिकस्त दी जाए। जनता, सभी दल, एक साथ सेना के समर्थन में खड़े थे। लेकिन तब भी, पाकिस्तान ने संघर्षविराम के लिए हामी क्यों भरी, जबकि वह लगातार उसका उल्लंघन कर रहा है?
भारत ने पूर्ण संघर्षविराम की घोषणा की — यह सराहनीय कदम था।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई, और दोनों देशों के नेताओं से मुलाकात की।
लेकिन सवाल वही:
क्या वाक़ई आतंकी ढांचे ध्वस्त हुए?
क्या उनके नेता आत्मसमर्पण कर चुके हैं?
क्या पीओके में कोई बदलाव हुआ?
क्या पाकिस्तान ने कोई लिखित समझौता या प्रतिबद्धता दी?
आतंकवाद से भी घातक — झूठी ख़बरें
सरकार ने स्पष्ट किया कि "राजौरी में फिदायीन हमला" की ख़बर फर्ज़ी थी।
सात वायरल वीडियो की जाँच की गई — सभी झूठे पाए गए।
जलंधर में ड्रोन हमले की अफ़वाह भी झूठी निकली।
बेरूत (लेबनान) के 2020 के धमाके का वीडियो — भारत का बताकर फैलाया गया।
PIB फैक्ट चेक ने स्पष्ट किया: राजौरी में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ। जलंधर की आग कृषि भूमि में लगी थी, कोई ड्रोन हमला नहीं। जिलाधिकारी ने भी पुष्टि की।
अंततः, जैसे युद्ध और आतंकवाद कम नहीं थे, अब फ़र्ज़ी ख़बरों से भी उतनी ही बड़ी — बल्कि उससे भी ज़्यादा गंभीर लड़ाई की ज़रूरत है। जनता को सतर्क रहना होगा, सच्चाई को पहचानना होगा और शांति को बनाए रखना होगा, क्योंकि हमारा देश सिर्फ़ ज़मीन नहीं है — यह उसके लोग हैं, उनकी ज़िंदगियाँ हैं।
क्या यह उन्माद अब थमा है?
क्या आतंकवाद की यह सनक ख़त्म हुई है? संघर्षविराम के बाद भी पाकिस्तान ने सीमा पर बार-बार उल्लंघन किए हैं। पिछले दिनों में पाँच भारतीय राज्यों में ड्रोन देखे गए। एक ड्रोन श्रीनगर के राजबाग़ तक पहुँच गया। एक गुजरात के कच्छ में दिखा। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने श्रीनगर में गोलीबारी और धमाकों की पुष्टि की।
तो यह कैसा संघर्षविराम है? क्या यह एक झूठी शांति है?
जैसे कोई मिथकीय दावा करता हो कि देवताओं ने बलोचिस्तान को दो हिस्सों में बांट दिया, कुछ लोगों ने बढ़ा-चढ़ाकर यह ऐलान कर दिया कि "अब पाक अधिकृत कश्मीर हमारा हो चुका है" और "पाकिस्तान मानो नक़्शे से मिटने वाला है।" क्या वाक़ई पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया है? क्या वह शांति की भीख मांग रहा है? क्या कहीं कोई सच्ची समझौते की भावना दिखाई दी?
पहलगाम हमले में मारे गए लोगों के लिए सरकार के पास क्या जवाब है? अगर हमला शुरू किया गया था — तो फिर उसे रोका क्यों गया?
संघर्षविराम या मौत का आमंत्रण?
उम्मीद करें कि यह सच्ची शांति हो
आशा करें कि यह संघर्षविराम स्थायी और वास्तविक हो। यही हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है।
भारत के विदेश सचिव ने कहा — "कोई उल्लंघन हुआ तो कड़ा जवाब देंगे।"
पाकिस्तान के विदेश सचिव ने कहा — "हम प्रतिबद्ध हैं।"
संयुक्त राष्ट्र, बांग्लादेश, क़तर, तुर्की और ब्रिटेन समेत 30 देशों ने संघर्षविराम की सराहना की।
लेकिन क्या यह संघर्षविराम वास्तव में मौत का फ़रमान है (death warrant)?
पहलगाम में मारे गए लोगों की जान की क्या कोई क़ीमत नहीं?
पाकिस्तान ने LOC के पार 13 लोगों की हत्या की ज़िम्मेदारी ख़ुद ली।
तो हमने वास्तव में क्या हासिल किया?
तेलुगु के महान कवि गुरजाडा अप्पाराव ने कहा था:
"देश का मतलब सिर्फ़ मिट्टी नहीं, देश का मतलब है — उसके लोग और उनकी जानें।"
(एम. श्रीधर आचार्युलु, विधि प्रोफ़ेसर, हैदराबाद। ये लेखक के निजी विचार हैं।)
मूल अंग्रेज़ी में प्रकाशित यह आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें–
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