Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

अमेरिका-इज़रायल के ख़िलाफ़ दुनियाभर में प्रदर्शन, UN में तत्काल युद्ध विराम का प्रस्ताव

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस घटनाक्रम पर आपात बैठक बुलाई, जिसमें रूस, चीन और पाकिस्तान ने तत्काल युद्धविराम का प्रस्ताव रखा।
Protests in the US
अमेरिका के ईरान पर हमले का दुुनियाभर में विरोध हो रहा है।

CPI M

इज़रायल द्वारा ईरान पर थोपी गई जंग में अब अमेरिका के शामिल होने से स्थिति बेहद गंभीर हो गई है। बीते शनिवार देर रात अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों — फ़ोर्डो, नतान्ज़ और इस्फ़हान — पर हवाई हमला किया। हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया के तमाम देशों ने गहरी चिंता ज़ाहिर की है। उधर, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, तुर्की, पाकिस्तान, भारत और कई खाड़ी देशों में आम लोग सड़कों पर उतरकर अमेरिका और इज़रायल की सैन्य कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने इन हमलों को “ज़रूरी सैन्य कार्रवाई” बताया है, जबकि ईरान ने इसे "सीधा युद्ध" करार देते हुए जवाबी हमलों की चेतावनी दी है। ईरान के विदेश मंत्री ने साफ़ कहा है कि स्ट्रेट ऑफ हॉरमुज़ को बंद करना अब उनके विकल्पों में है, जिससे वैश्विक तेल आपूर्ति पर संकट गहरा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस घटनाक्रम पर आपात बैठक बुलाई, जिसमें रूस, चीन और पाकिस्तान ने तत्काल युद्धविराम का प्रस्ताव रखा। महासचिव अंतोनियो गुटेरेस ने कहा कि “दुनिया एक खतरनाक मोड़ पर खड़ी है और इसे पीछे खींचना ही एकमात्र रास्ता है।” अमेरिका ने फिलहाल इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार किया है।

चीन ने अमेरिका पर “संयुक्त राष्ट्र चार्टर के खुले उल्लंघन” का आरोप लगाया है और वैश्विक समुदाय से संयम बरतने की अपील की है। रूस ने इसे “अंतरराष्ट्रीय कानूनों का मज़ाक” बताते हुए अमेरिका के ख़िलाफ़ निंदा प्रस्ताव का समर्थन किया।

भारत ने भी हालात पर गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि सभी पक्ष शांति और संयम बरतें। प्रधानमंत्री मोदी ने एक बयान में कहा कि “विवाद का हल संवाद से निकलेगा, बमबारी से नहीं।” इसी के साथ ‘ऑपरेशन सिंधु’ के तहत भारत ने इराक और ईरान से फंसे भारतीय नागरिकों की वापसी शुरू कर दी है।

हालांकि विपक्षी दलों ने भारत की प्रतिक्रिया को नाकाफ़ी बताते हुए अमेरिका-इज़रायल की स्पष्ट निंदा की मांग की है–

कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गज़ा में इजरायल के विनाश और ईरान पर मोदी सरकार की चुप्पी की आलोचना की और कहा कि भारत के सैद्धांतिक रुख और मूल्यों को त्याग दिया गया है।

तमाम अंग्रेज़ी अख़बारों और कांग्रेस के X हैंडल पर जारी बयान में सोनिया गांधी ने कहा कि अभी भी बहुत देर नहीं हुई है। भारत को आवाज बुलंद करनी चाहिए और पश्चिम एशिया में संवाद को प्रोत्साहित करने के लिए उपलब्ध हर राजनयिक मंच का उपयोग करना चाहिए। सोनिया ने पश्चिम एशिया को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भी आलोचना की।

पांच वामपंथी दलों के संयुक्त बयान में कहा गया – “यह हमला सिर्फ़ ईरान नहीं, पूरे पश्चिम एशिया और वैश्विक शांति पर हमला है”

वामपंथी पार्टियों — माकपा (CPI-M), भाकपा (CPI), भाकपा माले (CPI-ML Liberation), आरएसपी और फ़ॉरवर्ड ब्लॉक — ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए अमेरिका और इज़रायल के हमले को “ईरानी संप्रभुता और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का गंभीर उल्लंघन” बताया है। इन दलों ने इसे साम्राज्यवादी हमले की संज्ञा दी जो पश्चिम एशिया को अस्थिर करने और वैश्विक संसाधनों पर कब्ज़े की साज़िश का हिस्सा है।

एमए बेबी (CPI-M), डी राजा (CPI), दीपंकर भट्टाचार्य (CPI-ML), मनोज भट्टाचार्य (RSP), देवराजन (Forward Bloc) के हस्ताक्षर से जारी बयान के अनुसार, अमेरिका और इज़रायल इस हमले को ईरान के परमाणु हथियार विकसित करने की आशंका के आधार पर सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि IAEA के महानिदेशक राफ़ेल ग्रॉसी ने 19 जून को स्पष्ट कहा कि उन्हें ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को लेकर कोई निर्णायक प्रमाण नहीं मिला है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने भी ऐसी कोई ठोस जानकारी नहीं दी है।

वाम दलों ने याद दिलाया कि ईरान अब भी परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का हस्ताक्षरकर्ता है और इसके बावजूद 12 जून को इज़रायल ने हमला किया — ताकि अमेरिका और ईरान के बीच संभावित कूटनीतिक संवाद को विफल किया जा सके। अब अमेरिका ने भी इज़रायल के साथ मिलकर हमला किया, जबकि राष्ट्रपति ट्रम्प ने पहले बातचीत के लिए दो हफ्तों का समय मांगा था। इससे साफ़ है कि इस गठजोड़ का असली इरादा सिर्फ़ ईरान को निशाना बनाना नहीं, बल्कि पूरे पश्चिम एशिया पर साम्राज्यवादी नियंत्रण स्थापित करना है।

बयान में कहा गया कि अमेरिका ने ईरान पर B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स से 'बंकर बस्टर' बम गिराए, ठीक वैसे ही जैसे इराक पर बिना किसी पुख़्ता सबूत के हमला किया गया था। यह पूरी तरह इराक युद्ध की पुनरावृत्ति है — जहां बाद में ये दावे झूठे साबित हुए थे।

वाम दलों ने चेताया कि यह हमला निश्चित तौर पर संघर्ष को और तेज़ करेगा, जिससे न सिर्फ़ वैश्विक शांति को खतरा होगा, बल्कि भारत जैसे देशों में आम लोगों की आजीविका और तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ेगा। प्रवासी मज़दूरों और कामकाजी तबकों पर इस युद्ध का सीधा असर पड़ेगा।

बयान के अंत में वाम दलों ने भारत सरकार से मांग की कि वह तुरंत अमेरिका-इज़रायल परस्त विदेश नीति से दूरी बनाए और वैश्विक युद्धविरोधी प्रयासों में शामिल हो। साथ ही, उन्होंने देशभर में जनविरोध और प्रदर्शन आयोजित करने का आह्वान किया, और सभी शांति-पसंद नागरिकों से इस “साम्राज्यवादी हमले” की निंदा करने की अपील की।

इस बीच अमेरिका और यूरोप के कई शहरों में बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, लंदन, बर्लिन, इस्तांबुल, कराची और भारत में दिल्ली, लखनऊ कोलकाता में हज़ारों प्रदर्शनकारी “नो वॉर” और “स्टॉप इज़रायल” के पोस्टर लिए विरोध जता रहे हैं। कई जगह पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प की भी खबरें हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह टकराव जल्द नहीं रुका, तो यह पूरे पश्चिम एशिया को एक लंबे युद्ध में झोंक सकता है — जिसका असर सिर्फ़ इज़रायल या ईरान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरी दुनिया भुगतेगी।
उधर ऑयल मार्केट में इस जंग का सीधा असर देखा जा रहा है। तेल के दाम सोमवार, 23 जून को 5 महीनों के उच्च स्तर पर पहुंच गए—इसके पीछे होर्मूज़ जलडमरूमध्य में संभावित खतरा प्रमुख है।

 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest