तिरछी नज़र: सरकार जी का 35 मिनट का फोन कॉल

हाल में ही खबर थी कि हमारे सरकार जी ने अमरीका के सरकार जी से पैंतीस मिनट टेलीफोन पर बातचीत की। यह टेलीफोन पर बात करने का इतिहास बहुत ही पुराना है। पुराने जमाने में रंगून से फोन आता था। 'मेरे पिया गए रंगून, किया है वहाँ से टेलीफून। तुम्हारी याद सताती है, जिया में आग लगाती है'। उसके बाद की फिल्मों में भी भी हीरो हीरोइन फोन पर गाने गाते रहे हैं। जैसे सुजाता में हीरो हीरोइन को फोन पर सुनाता है, 'जलते हैं जिसके लिए, तेरी आँखों के दीये। ढूंढ लाया हूँ वही गीत मैं तेरे लिए'। बाकी के कुछ टेलीफोनिक गीत गुणी पाठक खुद ढूंढ सकते हैं।
इससे पहले भी सरकार जी की ट्रंप जी से फ़ोन पर बात हुई थी। तब हुआ यह था कि हमारे सरकार जी कनाडा गए थे। 'जी सेवन' की कार्यवाही देखने। वहाँ पर सरकार जी को दर्शक की तरह से बुलाया गया था। ऐन टाइम पर सरकार जी को कनाडा के सरकार जी ने बुलवा लिया। और सरकार जी वहाँ इतने ठहाके मार कर हँसे कि बाकी सभी मुस्करा कर रह गए।
अमरीका के सरकार जी भी वहाँ पर थे। पर जब अमरीका के सरकार जी, मतलब ट्रंप जी को पता चला कि हमारे सरकार जी भी वहाँ पधारने वाले हैं, तो वे हमारे सरकार जी के वहाँ पहुंचने से पहली रात को ही खिसक लिए। मतलब अमरीका वापस लौट गए। जरूरी काम था। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल को दावत देनी थी। सच में, दोस्ती हो तो ऐसी हो। भले ही एक दूसरे से कन्नी काट जाओ पर फ़ोन पर बात तो करते रहो। तो ट्रंप जी ने सरकार जी को फोन लगा दिया।
ट्रंप जी ने हमारे सरकार जी से कहा कि जब यहाँ तक आए हो, तो हमारे यहाँ भी आ जाओ। हम तो पड़ोस में ही हैं। कुछ गप शप कर,लंच-डिनर करके जाना। हमारे सरकार जी को दो ही चीजों का तो शौक हैं। एक पहनने का और दूसरा खाने का। और हाँ, बातें बनाने का भी शौक है। ये बात तो उनके भक्त लोग भी मानते हैं। एक आदमी जिस पर पूरे देश का भार हो, एक छुट्टी तक नसीब न हो, इतने शौक तो पाल ही सकता है। और खाने का तो इतना शौक है कि पड़ोसी के यहाँ बिन बुलाये बिरयानी खाने चले गए। पर सरकार जी ने इस बार कंट्रोल किया। दोस्त के बुलाने पर भी दावत का मोह त्याग दिया।
जब आदमी इतना त्याग करे तो उसका गुणगान तो बनता ही है। तो सरकार जी ने अपने द्वारा ट्रंप के निमंत्रण को ठुकराने का गुणगान देश की जनता के सामने किया भी। उन्होंने बताया कि उन्होंने ट्रंप भईया को समझाया कि तुम्हारा खाना और गप शप तो बाद में भी होती रहेगी। अभी तो महाप्रभु की धरती पर जाना जरूरी है।
पर इस बार सरकार जी ने स्वयं फोन किया। इस बार फ़ोन करने की बारी सरकार जी की थी। असली वाली दोस्ती ऐसी ही होती है। एक बार फोन मैं करूँ तो एक बार तुम। तो सरकार जी ने ट्रंप जी को फोन किया। सरकार जी ने स्वयं बताया कि पैंतीस मिनट बात हुई। वैसे सरकार जी की उस बातचीत को हम सतरह मिनट की भी मान सकते हैं। आखिर आधा समय तो अनुवादकों ने ही खा लिया होगा। और हमारे सरकार जी की समझदानी ने जो एक्स्ट्रा टाइम लिया होगा, बीच बीच में जो 'वसुधैव कुटुंबकम' और 'लोकतंत्र की माँ' गाया होगा, सो अलग।
वैसे यह भी अनुमान है कि दोनों सरकार जी ने बिना अनुवादक के ही बात की होगी। उससे समय भी बचता है और बात सीक्रेट भी रहती है। समय की तो कोई बात नहीं है पर बात का सीक्रेट रहना जरूरी है। बात सीक्रेट रहने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि आप अपनी जनता को कुछ भी बहका सकते हैं। जो मर्जी हो बता सकते हैं। और इसकी जरुरत दोनों ही सरकार जी को है। अनुवादक की जरूरत ना पड़े इसलिए ट्रंप जी ने हिंदी में बात की और हमारे सरकार जी ने अंग्रेजी में। इसीलिए दो बात करने में ही पैंतीस मिनट लग गए।
बात पैंतीस मिनट इस लिए भी खिंची क्योंकि जब दो फेंकने वाले बात कर रहे हों तो बात लम्बी ही चलती है। ट्रंप जी बोलने से रुक ही नहीं रहे थे पर हमारे सरकार जी कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे। असलियत में उनका टेलीप्रोम्पटर गड़गड़ा गया था। अल्टीमेटेली बात सिर्फ यह हुई कि सरकार जी ने कहा, 'डोलंड, यू डीड नोट स्टोप डा वार। आए डीड'। ट्रंप जी अड़े रहे, 'नई मोडी, लडाई मेने ही रुकिवाई'। पैंतीस मिनट तक दोनों इसी बात पर लड़ते रहे। और फिर ट्रंप ने अडानी नाम की, अमरीका से भारत मार करने वाली, इंटरकन्टिनेटल मिसाइल दागी तो सीज़ फायर हुआ। इसके आलावा कोई और बात हुई हो तो सरकार जी देश को बताएं।
समझौता हुआ कि सरकार जी अपने देश की जनता को बताएंगे कि लड़ाई उन्होंने पाकिस्तान के अनुरोध पर रुकवाई और ट्रंप जी सारे विश्व को बताएंगे कि सीज़ फायर व्यापार की धमकी दे उन्होंने करवाया। दोनों दोस्तों की जीत हुई। हमारे सरकार जी को देश में चुनाव जीतना है और ट्रंप को नोबेल पुरस्कार।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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