ज्ञानवापी अपडेटः विवादित ढांचे के अध्ययन की पीआईएल ख़ारिज

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में विवादित ढांचे का विवाद फिर गरमाने लगा है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की फिर से सुनवाई होगी। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर में मिले ढांचे में शिवलिंग होने या फिर इसके फव्वारा होने के दावों का पता लगाने को आयोग गठित करने के लिए जो जनहित याचिका दायर की गई थी उसे खारिज कर दिया गया। लखनऊ खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट की कई नजीरों का हवाला देकर कहा कि याचिका को जनहित याचिका के रूप में पेश किया गया है, जिसमें जनता के व्यापक कानूनी अधिकार का कोई उल्लेख नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह याचिका सिर्फ प्रचार पाने के लिए दायर की गई है। ऐसे में इस जनहित याचिका को शुरुआत में ही खारिज कर दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने फैसले के खिलाफ अपील करने का प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए याची के आग्रह को भी सिरे से खारिज कर दिया। साथ ही यह भी कहा कि इस मामले में ऐसा कोई प्रश्न शामिल नहीं है जिसमें सुप्रीमकोर्ट के समक्ष अपील दायर करने के लिए प्रमाण पत्र जारी करने की आवश्यकता हो।
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यह फैसला वाराणसी और लखनऊ के सात याचियों के अधिवक्ता अशोक पांडेय के जरिए दायर जनहित याचिका पर सुनाया। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के बाद विगत 10 जून को आदेश सुरक्षित कर लिया था। याचियों का कहना था कि हिंदू दावा कर रहे हैं कि वहां शिवलिंग मिला है, जबकि मुसलमानों का दावा है कि यह एक फव्वारा है। याचियों ने कोर्ट से आग्रह किया कि ऐसे में संबंधित पक्षकारों को निर्देश दिया जाए कि ढांचे का अध्ययन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट अथवा हाईकोर्ट के वर्तमान या सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में आयोग गठित किया जाए। अगर शिवलिंग हो तो भक्तों को विधि विधान से पूजा अर्चना की अनुमति दी जाए और अगर यह फव्वारा हो तो इसे सुचारु किया जाए।
केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कहा गया था कि यह मामला वाराणसी से संबंधित है। ऐसे में याचिका लखनऊ पीठ में सुनवाई योग्य नहीं है। इस पर याचियों के वकील से कोर्ट ने कहा था कि सरकारी वकीलों की आपत्ति का जवाब दें। कोर्ट ने यह भी पूछा था कि वाराणसी के मामले में कैसे निर्देश दिया जा सकता है? जवाब में याचियों के अधिवक्ता ने संविधानिक प्रावधानों का हवाला देकर कहा था कि ऐसी कोई कानूनी अड़चन या रोक नहीं है कि यह मामला लखनऊ पीठ में सुनवाई लायक नहीं है। कुछ याची लखनऊ के हैं। मामला उनकी आस्था से जुड़ा है। ऐसे में यहां भी इसकी सुनवाई हो सकती है। राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही पेश हुए थे।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 21 को
ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित मामले में जल्द ही बड़ा फैसला आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार (21 जुलाई) को इस मामले की सुनवाई करने जा रहा है। लिस्ट के मुताबिक दोपहर दो बजे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के उस स्थान को संरक्षित रखने का आदेश दिया था, जहां हिन्दू पक्ष ने शिवलिंग होने का दावा किया था। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के जिला जज को इस मामले की सुनवाई का आदेश दिया था, जिसके बाद जिला जज इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं।
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद सालों पुराना है। यह काशी विश्वनाथ से सटा एक हिस्सा है, जिसे ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। विवाद की वजह मस्जिद परिसर की एक दीवार के भीतर श्रृंगार गौरी मंदिर है। हिंदू पक्ष का कहना है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाया गया है, जबकि मुस्लिम पक्ष इस दावे को झुठलाते आया है। उनका कहना है कि वक्फ की संपत्ति पर मस्जिद का निर्माण हुआ है।
इसी विवाद के बीच पिछले साल पांच महिलाओं की ओर से ज़िला अदालत में याचिका दाखिल की गई। उन्होंने ये तर्क दिया कि जिस स्थल को एक पक्ष मस्जिद बता रहा है, वो मस्जिद है ही नहीं. औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया। याचियों की मांग थी कि उन्हें ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति दी जाए।
इस मामले में कोर्ट ने सुनवाई करते हुए मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया। प्रशासनिक अधिकारियों और दोनों पक्षों की मौजूदगी में सर्वे कराया गया, जिसके अंतिम दिन हिंदू पक्ष की ओर से ये दावा किया गया कि ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग है। मस्जिद के वजु खाना स्थिति तालाब के बीचों-बीच एक आकृति दिखी, जिसे हिंदू पक्ष ने शिवलिंग बता रहा और मुस्लिम पक्ष फव्वारा। सर्वे रिपोर्ट सौंपे जाने से पहले ही वाराणसी के सिविल जज दिवाकर ने उक्त स्थान को सील करने का आदेश दे दिया। ऐसे में मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट गया और जिला कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सील हटाने की गुहार लगाई।
मुस्लिम पक्ष ने कहा कि जहां कथित शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है, वो मस्जिद का वजु खाना है। ऐसे में नमाजियों को उसके सील हो जाने से दिक्कत हो रही है। ऐसे में उक्त स्थल को मुक्त किया जाए। इस पर कोर्ट ने आदेश दिया कि उक्त स्थल को सील रखते हुए दूसरे पक्ष को कोई दिक्कत ना हो इसका ख्याल रखा जाए। अब इसी मामले में 21 जुलाई को सुनवाई होगी।
कानून के जानकारों का कहना है कि यदि मस्जिद की जगह मंदिर का हक दिया जाता है तो यह संसद द्वारा पारित एक्ट का उल्लंघन होगा। संसद में सन 1991 में 'प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट' पारित हुआ था। इसमें निर्धारित किया गया कि सन 1947 में जो इबादतगाहें जिस तरह थीं उनको उसी हालत पर कायम रखा जाएगा। साल 2019 में बाबरी मस्जिद मुकदमे के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इबादतगाहें इस कानून के मातहत होंगी। यह कानून दस्तूर हिंद की बुनियाद के मुताबिक है।
सुप्रीम कोर्ट में एक और नई याचिका
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल की गई है और विवादित स्ट्रक्चर की एएसआई से कार्बन डेटिंग कराने की मांग की गई है। सात हिंदू महिलाओं की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि इसका ग्राउंड पेनिट्रेशन राडार सर्वे भी होना चाहिए। इस मामले की सुनवाई करते हुए पहले सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि ज्ञानवापी में जहां से 'शिवलिंग' पाया गया है, उसकी सुरक्षा की जाए। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने मुस्लिम पक्ष को आदेश दिया था कि वह अगले आदेश तक किसी और स्थान पर वजू करे।
एडवोकेट विष्णु जैन के जरिए महिलाओं ने याचिका दायर कर मांग की है कि वह श्री काशी विश्वनाथ ट्रस्ट को आदेश दे कि वह ज्ञानवापी में मिले कथित शिवलिंग और पुराने मंदिर से सटी जमीन पर अपना कब्जा ले। विराजमान शिवलिंग की कालगणना नहीं की जा सकती। उसके परिधि में आने वाली पांच कोस भूमि पर मंदिर का अधिकार है। याचिका दायर करने वाली महिलाओं में से एक एडवोकेट, एक प्रोफेसर है और पांच अन्य सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग की सच्चाई जानने के लिए कार्बन डेटिंग कराई जाए।
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