वेनेजुएला : 21वीं सदी के साम्राज्यवाद की एक प्रयोगशाला

हाल के वर्षों में वेनेजुएला की राजधानी कराकस में लोकतांत्रिक तथा संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने के लिए वेनेजुएला के उच्च वर्ग के कुछ लोगों के साथ मिलकर डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने किन किन साधनों का इस्तेमाल किया है, इसे पूरे विश्व ने भलीभांति देखा है। अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने वेनेजुएला के ख़िलाफ़ अमानवीय प्रतिबंध लगाए हैं, इस देश को कूटनीतिक और राजनीतिक तौर पर अलग-थलग करने के लिए महाद्वीपीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर क्षेत्रीय और अन्य सहयोगियों पर दबाव डाला, कई मौकों पर वेनेजुएला के दक्षिणपंथी ताक़तों को हिंसक विरोध प्रदर्शन करने में मदद की, बड़े कॉरपोरेट मीडिया घरानों के माध्यम से निकोलस मादुरो की सरकार के ख़िलाफ़ एकतरफा बयानों और फ़र्ज़ी ख़बरों के ज़रिये नामुनासिब मीडिया युद्ध छेड़ दिया।
कराकस में 23 जनवरी की घटना को इस बड़े राजनीतिक परिदृश्य में सत्ता परिवर्तन करने के लिए नागरिक तख्तापलट की एक और असफल कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए। इस घटना ने लैटिन अमेरिका के भू-राजनीति में वेनेजुएला के भविष्य को लेकर बहस और अटकलों को तेज़ कर दिया है। इस कड़ी में यह एक अभूतपूर्व मामला बन गया है।
विकिपीडिया भी अब मादुरो को वेनेजुएला के 46 वें पदस्थ राष्ट्रपति के रूप में दिखाता है जिन्होंने 19 अप्रैल 2013 को पदभार ग्रहण किया है और जुआन गाएदो को वेनेजुएला के अंतरिम पदस्थ राष्ट्रपति के रूप में दिखा रहा है जिन्होंने हाल ही में यानी 23 जनवरी 2019 को पदभार संभाला है। इस महीने की शुरुआत में यानी 10 जनवरी को मादुरो ने सुप्रीम कोर्ट में वेनेजुएला के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी क्योंकि नेशनल एसेंबली उनके शपथ लेने को लेकर घोर विरोधी हो गई थी।
वेनेजुएला के संविधान में वैसे व्यक्ति जिनका चुनाव राष्ट्रपति के रूप में हो चुका है और उन्होंने आधिकारिक रूप से पदभार ग्रहण नहीं किया है तो उनके लिए प्रावधान है कि नेशनल एसेंबली में शपथ समारोह न होने पर विशेष स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में शपथ ले सकते हैं। 23 जनवरी 2019 को जब कराकस के बोलिवर स्क्वायर पर जुआन गाएदो ने वेनेजुएला के अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली तो इस घटना ने विश्व के लोगों में भ्रम पैदा कर दिया। इन सबके बावजूद जब वास्तविक राष्ट्रपति अभी भी जीवित और सक्रिय था तो कैसे कोई देश का राष्ट्रपति होने की शपथ ले सकता है?
हालांकि वे लोग जो पिछले कुछ वर्षों में वेनेजुएला के हालिया घटनाक्रमों पर नज़र बनाए हुए हैं वे इसे एक अलग दृष्टिकोण से देखते हैं। गाएदो का कार्य एक अभूतपूर्व और चौंकाने वाला प्रतीत हो सकता है लेकिन उनके कार्य और उनके उद्देश्यों का बड़े संदर्भ में अध्ययन किया जाना चाहिए कि वाशिंगटन प्रशासन पिछले कुछ समय से वेनेजुएला के कुलीन वर्ग और उसके विदेशी सहयोगियों के साथ मिलकर क्या योजना बना रहा है।
इस पर विचार करना चाहिए कि वेनेजुएला में मई 2018 में राष्ट्रपति चुनाव हुए जिसमें मादुरो ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी हेनरी फाल्कन को वोटों के बड़े अंतर से हराया था और एक बार फिर छह साल के कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति का चुनाव जीत लिया। पूरी दुनिया में कॉरपोरेट मीडिया घरानों द्वारा इस चुनाव प्रक्रिया की बड़े पैमाने पर आलोचना की गई थी हालांकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों द्वारा किसी प्रकार की निंदा नहीं की गई थी जो पूरे चुनाव प्रक्रिया पर नज़र रखने के लिए इस देश में मौजूद थे।
हालांकि मादुरो सरकार पर हमला करने और उसे उखाड़ फेंकने के लिए अगस्त 2017 में पेरू में लैटिन अमेरिका, कैरिबियन और कनाडा की राइट विंग सरकारों द्वारा तथाकथित लीमा समूह का गठऩ किया गया। इसने राष्ट्रपति के लिए गाएदो के दावे को वैद्यता देने और अपना समर्थन करने में कोई समय नहीं गंवाया और ठीक इसी वक्त उसने साफ तौर पर कहा कि वे वेनेजुएला में किसी सैन्य हस्तक्षेप के पक्ष में नहीं थे। वज़ह बिल्कुल साफ है। सैन्य हस्तक्षेप के ज़रिए सशस्त्र संघर्ष से मामले को सुलझाने के बजाए अधिक समस्याएं पैदा होंगी जिसके परिणामस्वरूप वेनेजुएला के लोग देश से निकल जाएंगे और लैटिन अमेरिका के पड़ोसी देशों में शरण लेंगे।
वर्तमान में बाहर रहने वाले तीन मिलियन वेनेजुएला के शरणार्थियों में कोलंबिया में लगभग एक मिलियन हैं जो सबसे अधिक हैं। इसके बाद पेरू में 5,00,000 से अधिक, इक्वाडोर में 2,20,000 से अधिक, अर्जेंटीना में 1,30,000, चिली में 1,00,000, पनामा में 94,000 और ब्राज़ील में 85,000 हैं। इसके अलावा वेनेजुएला के प्रवासियों को शरण देने वाले सभी लैटिन अमेरिकी देशों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अवगत कराया है कि हालांकि उन्होंने शरणार्थियों को स्वीकार कर लिया है लेकिन आने वाले दिनों में उन्हें यहां रखने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता होगी। दिलचस्प बात यह है कि राइट विंग सरकारों के नेतृत्व वाला लीमा समूह राजनीतिक, वैचारिक और आर्थिक मोर्चों पर लगातार मादुरो प्रशासन पर हमला करता रहा है लेकिन यह सैन्य हस्तक्षेप के अमेरिकी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर पाया है। लीमा समूह द्वारा व्यक्त की गई यह अनिच्छा वेनेजुएला में सैन्य रूप से हस्तक्षेप करने की वाशिंगटन की आकांक्षा में एक बड़ी बाधा रही है।
21 वीं सदी के दूसरे दशक में वेनेजुएला और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेपवादी दृष्टिकोण ट्रम्प प्रशासन को अपने देश में उबलते मुद्दों से लोगों का ध्यान आंशिक रूप से हटाने में मदद करता है। वेनेजुएला में राजनीतिक और आर्थिक संकट की तरफ पूरे विश्व का ध्यान खींचकर उन्होंने लैटिन अमेरिकी क्षेत्र पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के प्रयास किया है जिसे अमेरिका एक सदी से अधिक समय से नज़रअंदाज़ करता रहा है।
एक पड़ोसी देश को कमज़ोर करने की मंशा को भी मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में देखना होगा जहां ट्रम्प प्रशासन के अधीन अमेरिका जलवायु परिवर्तन, प्रवास, व्यापार युद्ध और चीन, रूस तथा अन्य देशों के साथ राजनयिक झगड़े जैसे कई मोर्चों पर विफल रहा है। भारत ने भी गाएदो को अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में मान्यता देने में अमेरिका का समर्थन करने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि "हिंसा का सहारा लिए बिना रचनात्मक बातचीत और चर्चा के माध्यम से अपने मतभेदों को हल करने के लिए राजनीतिक समाधान खोजना वेनेजुएला के लोगों का काम है।"
विश्व व्यवस्था में तेज़ी से हो रहे बदलाव के साथ जहां विश्व मामलों के कई प्रमुख मुद्दों पर अमेरिका द्वारा खींची गई रेखा का हमेशा आंख बंद कर पालन नहीं किया जाता है वहीं अमेरिका को लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के कुछ देशों में सत्ता परिवर्तन लाकर शक्तियों का प्रयोग करना आसान लगता है। हालांकि यह ध्यान देना दिलचस्प है कि न तो विपक्षी दल अब स्व-घोषित वेनेजुएला के अंतरिम राष्ट्रपति गाएदो के नेतृत्व में और न ही मादुरो शासन पर हमला करने वाले अन्य पश्चिमी देशों और लीमा समूह के साथ अमेरिकी प्रशासन अभी भी आर्थिक संकट को दूर करने के लिए किसी योजना पर चर्चा नहीं कर रहे हैं। कराकस में शासन परिवर्तन को लेकर उनका जुनून दर्शाता है कि उनका मूल उद्देश्य आर्थिक संकट को हल करना नहीं है बल्कि वेनेज़ुएला के तेल क्षेत्र तक अमेरिका का पहुंच आसान बनाने के लिए राष्ट्रीय कुलीन वर्गों को व्यापार में वापस लाना है।
तीन प्रमुख मुद्दे वेनेजुएला में भविष्य में कार्रवाई के पथ को प्रभावित कर सकते हैं। पहला यह कि 23 जनवरी को अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में गाएदो के सार्वजनिक शपथ समारोह के बाद रक्षा मंत्री व्लादिमीर पादरिनो ने अगले दिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां उन्होंने मादुरो की सरकार के राष्ट्रीय सशस्त्र बलों के पूर्ण समर्थन की घोषणा की। रक्षा मंत्री के साथ तीनों सशस्त्र बलों के नेता भी थे। मादुरो की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने के लिए बाहर से अमेरिकी प्रशासन और देश के भीतर राइट विंग बलों द्वारा किए गए बेशर्म और निरंतर अपील के संदर्भ में उनके प्रेस कॉन्फ्रेंस को काफी शक्ति मिली।
लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित मादुरो की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए तख्तापलट का नेतृत्व करने के लिए सशस्त्र बलों से वेनेजुएला के राइट विंग विपक्ष द्वारा लगातार अपील की गई। इसके बावजूद वाशिंगटन डीसी स्थिति वेनेजुएला के दूतावास से संबद्ध सैनिक ने सार्वजनिक रूप से तथाकथित अंतरिम राष्ट्रपति गाएदो के नेतृत्व को स्वीकार करने के अपने फैसले की घोषणा को छोड़कर इस अपील का अनुकूल परिणाम नहीं मिला। इसलिए अब इस अपील में एक बदलाव हुआ है जिसमें गाएदो ने नागरिकों से कहा है कि वे सशस्त्र बलों से आने वाले दिनों में मादुरो सरकार के ख़िलाफ़ अपनी राजभक्ति बदलने और विद्रोह करने के लिए शांति से अपील करें।
अमेरिका ने ज़ाहिर तौर पर उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार की सहायता के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की है। देश के भीतर राइट विंग ताकतें और वाशिंगटन में ट्रम्प प्रशासन अच्छी तरह से समझ रहा है कि अगर वे सशस्त्र बलों का ज़ेहन और राजभक्ति बदलने में कामयाब होते हैं तो मादुरो की सरकार लंबे समय तक क़ायम नहीं रह सकती है और सशस्त्र बलों से समर्थन के अभाव में उसके पास व्यावहारिक रूप से लड़ाई के लिए कुछ बचता नहीं है। हालांकि 21वीं सदी के शुरुआती वर्षों में ह्यूगो चावेज़ द्वारा शुरू की गई सशस्त्र बलों के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन ने वेनेजुएला में सैन्य तख्तापलट की कल्पना को बेहद मुश्किल बना दिया है। सैन्य या नागरिक तख्तापलट को अंजाम देना एक ऐसी प्रथा थी जिसे 20वीं सदी में अमेरिका ने लैटिन अमेरिका में बहुत बार इस्तेमाल किया था।
दूसरी तरफ मादुरो ने हाल ही में अमेरिकी सरकार के साथ सभी राजनयिक और राजनीतिक संबंधों को ख़त्म करने, वाशिंगटन स्थित वेनेजुएला दूतावास को बंद करने और कराकस में अमेरिकी राजनयिकों तथा कर्मचारियों को वेनेजुएला छोड़ने के लिए 72 घंटे का समय दिया था। इस पर अमेरिका ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे कराकस में अमेरिकी दूतावास को बंद नहीं करेंगे क्योंकि वे मादुरो को अब वेनेजुएला के राष्ट्रपति के रूप में नहीं मानते हैं। मादुरो को जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने के लिए उकसाने के लिए यह स्पष्ट रूप से ट्रम्प प्रशासन का एक और सामरिक कदम प्रतीत होता है और वे इस तरह कोई ग़लती करे ताकि वाशिंगटन प्रशासन इसे भुना सके। मादुरो इस स्थिति पर किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं जो भविष्य में दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक से अंततः कोई अनुकूल परिणाम सामने नहीं आया जिसका ट्रम्प प्रशासन पिछले सप्ताह से उम्मीद कर रहा था क्योंकि विशेष रूप से वेनेजुएला को रूस, चीन, क्यूबा और तुर्की के सशक्त समर्थन के कारण माइक पोम्पेओ वेनेजुएला के ख़िलाफ़ सदस्य देशों का सर्वसम्मत समर्थन हासिल करने में विफल रहे। यूरोपीय संघ के कुछ राष्ट्रों द्वारा मदुरो सरकार को हटने और निष्पक्ष चुनाव शुरु कराने के लिए अल्टीमेटम दी गई जिसकी कराकस प्रशासन ने कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि यह वेनेजुएला के लोगों की संप्रभुता और स्वतंत्रता पर हमला है।
वर्तमान परिदृश्य में वेनेजुएला वास्तव में साम्राज्यवाद की एक प्रयोगशाला बन गया है जहां अमेरिका लीमा समूह, अमेरिकी देशों और यूरोपीय संघ के संगठन से समर्थन प्राप्त कर रहा है। अमेरिका एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विभिन्न तरीकों और साधनों का इस्तेमाल करना जारी रखे हुए है लेकिन इसका एहसास करने में विफल रहा है कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई मादुरो की सरकार इतनी आसानी से नहीं गिरेगी क्योंकि इसके खंभे (लाखों चेविस्ता) यथावत हैं और अपने संवैधानिक राष्ट्रपति को समर्थन कर रहे हैं।
कराकस में अमेरिका और राइट विंग ताक़तों को यह समझने की आवश्यकता है कि इस स्थिति को हल करने का एकमात्र रास्ता बातचीत ही है, इन सबके बावजूद भले ही मादुरो सरकार आज गिर जाती है तो लाखों चैविस्ता रातों-रात लापता नहीं हो जाएंगे। जितनी जल्दी हो वे इसे समझें तो उतना ही ये सब के लिए बेहतर होगा। आने वाले दिनों में वेनेजुएला में निर्णायक राजनीतिक परिणाम 21 वीं सदी के लैटिन अमेरिकी भू-राजनीति में परिभाषित करने वाला एक लम्हा बन सकता है।
(लेखक सुरेंद्र सिंह नेगी हैदराबाद स्थित द इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेजेज यूनिवर्सिटी में अध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)
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