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विश्लेषण: ईरान-इज़रायल, परमाणु क्षमता और अमेरिका-यूरोप का रुख़

जिन देशों की इज़रायल के नाभिकीय हथियार बनाने में मिलीभगत थी, वे ही अब सबसे जोर-शोर से इसका एलान कर रहे हैं कि न सिर्फ़ ईरान के पास कोई नाभिकीय हथियार नहीं रहने दिया जा सकता है, बल्कि उसके नाभिकीय बुनियादी ढांचे को ही पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाना चाहिए।
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अगर इज़रायल-ईरान संघर्ष-विराम टिका रह जाता है और अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप, ईरान के परमाणु ठिकानों पर अपने हमले के बाद, तय कर लेता है कि बहुत हुआ, तो हमें इज़रायल-ईरान युद्ध में उम्मीद की किरण नजर आ सकती है। अलबत्ता गज़ा में नरसंहार जारी है, जहां बीस लाख फिलिस्तीनियों के लिए चुनने के लिए दो ही विकल्प हैं, इज़रायली सेनाओं के हाथों तेज़ रफ्तार से मौत या भुखमरी से धीमी मौत। 

ग़ज़ा का नरसंहार हम हर रोज अपने टीवी के परदे पर लाइव देख रहे हैं। इज़रायल निश्चिंत है क्योंकि पश्चिम –पहले के उपनिवेशकर्ता यूरोपीय और उत्तरी अमेरिका के सैटलर औपनिवेशिक राज्य– इस नरसंहार के तमाम दुष्परिणामों से उसे बचा लेंगे।

इस अंधेरे वक्त में भी मैं सकारात्मक सोचना चाहता हूं। इज़रायल ने ईरान को लहूलुहान कर दिया हो सकता है, उसने उनके कई शीर्ष सैन्य नेताओं तथा वैज्ञानिक हस्तियों को मार दिया हो सकता है, उनकी कुछ नाभिकीय सुविधाओं को तथा मिसाइल लांचरों का नष्ट कर दिया हो सकता है– फिर भी युद्ध के 12वें दिन भी, इज़रायल के शहरों, उसके बुनियादी ढांचे– सैन्य तथा रणनीतिक, दोनों– पर चोट करने की ईरान के पास इतनी क्षमता तो थी कि, इज़रायल के नेतृत्व ने ट्रंप का युद्ध विराम स्वीकार कर लिया। 

पश्चिमी स्रोतों से इसकी भी रिपोर्टें आ रही थीं कि इज़रायल की मिसाइल-रोधी मिसाइलें खत्म होती जा रही थीं और अमेरिका भी उनकी भरपाई करने की स्थिति में नहीं था क्योंकि एक तो उसे ईरान के संभावित हमलों से अपने अड्डे की हिफाजत करनी थी और दूसरे रूस और यूक्रेन युद्ध भी अभी चल ही रहा है।

शुरुआत से ही यह साफ था कि इज़रायल, ईरान में ज्यादातर नाभिकीय सुविधाओं को तो ध्वस्त कर सकता था, लेकिन फोर्दो संयंत्र के लिए उसे अमेरिका की मदद की जरूरत होगी क्योंकि यह पहाड़ के अंदर गहराई में बना हुआ है। 13,605 किलोग्राम के जीबीयू-57, मासिव ऑर्डिनेंस पेनीट्रेटर (एमओपी) ही, फोर्दो यूरेनियम संवर्धन संयंत्र को नष्ट करने के लिए जरूरी गहराई तक मार कर सकते थे। और सिर्फ अमेरिकी बी-2 बॉमबर इन बमों को उनके निशाने पर गिरा सकते थे। साफ है कि इज़रायल ने हिसाब लगा लिया था कि  अगर उसे फोर्दो संयंत्र को नष्ट करना है तो अमेरिका की इस तरह की मदद की जरूरत होगी। 

हो सकता है कि ट्रंप प्रशासन के साथ शुरू से ही यह बातचीत की गयी हो, जिसमें अमेरिका-ईरान बातचीत, ईरान पर इज़रायल पर हमले के लिए परदा खड़ा करने के लिए ही की जा रही हो। इसलिए, एक ही सवाल रहता है कि युद्ध रोकने के लिए अब ट्रंप कितना गंभीर है और क्या वह ईमानदारी से ईरान के साथ शांति के लिए बात करेगा।

मैं उस दूसरे सवाल में नहीं जा रहा हूं, जो सामने आ गया है। इसकी संभावना है कि एमओपी बंकर बस्टर बम नाकाम रहे क्योंकि फोर्दो और ज्यादा गहराई में स्थित हो सकता है। अमेरिकी मीडिया के अनुसार, अमेरिकी खुफिया जानकारियों के अनुसार, ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम को चंद महीने का ही धक्का लगा है। इन प्रहारों से भी पहले विशेषज्ञों ने कहा था कि फोर्दो तथा नतांज की नयी सुविधाएं बहुत गहराई में और छतों की विशेष मजबूती के साथ बनी थीं जिन पर अमेरिकी एमओपी भी पार नहीं पा सकेंगे। और अगर फोर्दो तथा नतांज के ईरानी संयंत्र ध्वस्त भी हो गए हों, तब भी ईरानियों ने विखंडनीय सामग्री वहां से निकाल ली थी और उनके पास इतनी क्षमता है कि कम से कम 9-10 बम बना सकते हैं।

सवाल हमेशा से यह था कि क्या ईरान नाभिकीय हथियार बनाना चाहता है? या फिर वह यह उसके लिए एक सौदेबाजी के पत्ते का सवाल है, जिसके सहारे वह अपने लिए एक शांति संधि हासिल करना चाहता था और एक प्रमुख पश्चिम एशियाई देश व अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी भूमिका मनवाना चाहता है। यह ऐसा सवाल है जिसे ट्रंप प्रशासन को संबोधित करना होगा। इस युद्ध ने दिखा दिया है कि अमेरिका की मदद के बिना इज़रायल तो ईरान को दबा नहीं सकता है। और अगर अमेरिका इस युद्ध में घुसता है, तो इस क्षेत्र में उसके अड्डे भी मार की जद में आ जाएंगे।

अपने पोतों के अलावा भी अमेरिका की पश्चिम एशिया में कम से कम 19 ठिकानों पर सैन्य मौजूदगी है और यहां उसके करीब 40-50 हजार सैन्यकर्मी हैं। अमेरिका ने भी, जो इस 12 दिन की लड़ाई में कुछ समय के लिए उतरा था, अपने ‘‘हस्तक्षेप’’ को चंद नाभिकीय सुविधाओं तक ही सीमित रखा था, जार्ज बुश के इराक युद्ध के विपरीत है। ट्रंप ने इसकी सावधानी बरती थी और फोर्दो, इस्फहान तथा नतांज में नाभिकीय सुविधाओं पर अमेरिका के हमले को ‘सीमित प्रहार’ करार दिया था और उसके बाद फौरन संघर्ष विराम का एलान कर दिया। और जिस तरह पश्चिम एशिया में अमेरिका के फौजी अड्डे उसे इस क्षेत्र में सैन्य हस्तक्षेप करने की सामर्थ्य देते हैं, उसी तरह उसे मिसाइल हमलों के लिए वेध्य भी बनाते हैं। 

जनरल सुलेमानी की हत्या के बाद, ईरान ने अमेरिका को पूर्व-सूचना देने के बाद, इस क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य अड्डों पर मिसाइल हमले किए थे। हालांकि, सभी अमेरिकी सैनिक हमले के समय अपने बंकरों में थे, फिर भी करीब 50 अमेरिकी सैनिकों का ईरान के मिसाइल हमले के बाद, मानसिक अपघात के लिए उपचार कराना पड़ा था।

इस युद्ध को लेकर किसी तरह का हिसाब-किताब लगाने से पहले, इस लड़ाई में उठाए गए कुछ बुनियादी प्रश्नों पर नजर डाल लेते हैं—

इज़रायल, जी-7 और नाटो देशों के समर्थन से यह दलील देता आया है कि ईरान ने नाभिकीय अप्रसार संधि (एनपीटी) का उल्लंघन किया है और इसलिए, यह वैध है कि अमेरिका और इज़रायल, ईरान के नाभिकीय तथा अन्य बुनियादी ढांचे को तबाह करना चाहते हैं। यह झूठ है। एनपीटी, संवर्धन पर कोई पाबंदी नहीं लगाती है, सिर्फ नाभिकीय हथियार बनाने पर रोक लगाती है। प्रसंगवश बता दें कि इज़रायल ने एनपीटी पर दस्तख़्त नहीं किए हैं और उसके पास 90 से 200 तक नाभिकीय हथियारों का भंडार है।

आएईए के प्रमुख, ग्रोस्सी ने अल जजीरा और सीएनएन को बताया है कि इसके कोई साक्ष्य नहीं हैं कि ईरान कोई नाभिकीय हथियार बना रहा है। इसे देखते हुए कि आइएईए नाभिकीय शक्तियों की नजदीकी से काम करता है, ग्रोस्सी की इस दलील से कि ईरान को आइएईए के साथ और ज्यादा जानकारी साझा करनी चाहिए थी, यह सोचने की गुंजाइश छोड़ती है कि अगर ईरान ने वाकई ऐसा किया होता, तो इस जानकारी का नतीजा इज़रायल द्वारा ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम को निशाना बनाए जाने के रूप में सामने आया होता। 

हां! ईरान ने यूरेनियम का 60 फीसद तक संवर्धन किया है और यहां से 90 फीसद तक संवर्धन, कुछ ही हफ्ते का काम है। लेकिन, यह सिर्फ विखंडनीय सामग्री का मामला होगा। एक बम बनाने के लिए ईरान को और भी अनेक कदम उठाने की जरूरत होगी जिनमें बम के प्रोटोटाइप को टैस्ट करना भी शामिल है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी हिस्से डिजाइन के अनुरूप काम कर रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार और पश्चिमी अधिकारी यह कहते हैं कि उसे एक नाभिकीय हथियार बनाने में महीनों से लेकर, एक साल तक लग सकता है। इस सब के लिए अयातुल्ला अली खमेनेई द्वारा वह फतवा भी उठाया जाना होगा, जो नाभिकीय हथियारों के खिलाफ जारी किया है और जिसे अब तक नहीं हटाया गया है।

नेतन्याहू तो तीस साल से ज्यादा से यह प्रचार करता आ रहा है कि ईरान परमाणु बम बनाने से जरा ही ही दूरी पर है। हमें अब भी याद है कि उसने 2012 में संयुक्त राष्ट्र संघ में कार्टून चित्र पेश किया था कि ईरान, बम बनाने से महज चंद महीने दूर था। इज़रायल अब भी ईरान के बम से उतने ही दूर होने का दावा कर रहा है और यही दावा ईरान की नाभिकीय सुविधाओं पर उसके हमले के पीछे है और ट्रंप ने इस दावे को मान लिया है। 

ट्रंप समेत, ईरान की नाभिकीय बम बनाने की क्षमता को खत्म करना चाहने वाले सभी की समस्या यह है कि समझौते जेसीपीओए का ठीक यही तो उद्देश्य था, जिस समझौते में 2018 में ट्रंप मुकर गया था! विभिन्न पाबंदियों के बाद और अपनी नाभिकीय क्षमता पर इज़रायल-अमेरिका के हमले के बाद, ईरान जेसीपीओए के किसी संशोधित समझौते के लिए दोबारा क्यों तैयार होगा? या वह अपनी और ज्यादा नाभिकीय सुविधाएं आईएईए के लिए क्यों खोलेगा, जो अंतत: भविष्य के हमलों में निशाना बनायी जा सकती हैं? सवाल तो यह भी है कि अमेरिका और प्रमुख यूरोपीय शक्तियां इसके लिए कैसे सहमत हो सकते हैं कि इज़रायल के पास नाभिकीय हथियार होना तो स्वागतयोग्य है, लेकिन पश्चिम एशिया के दूसरे किसी देश के पास होना नहीं चाहिए।

आइए, इज़रायल के नाभिकीय हथियारों पर एक नजर डाल लें। उसके पास डाइमोना नाभिकीय रिएक्टर है, जो अमेरिका की मदद से बनाया गया है। अनुमानों के अनुसार इज़रायल के शस्त्र भंडार में 100 से 150 तक बम हैं और इसके अलावा उसके भंडार में इतना प्लूटोनियम है, जिससे अपने मौजूदा बम भंडार से दो से तीन गुने तक नाभिकीय बम बना सकता है। इसके बावजूद, पश्चिम के हिसाब से यह पूरी तरह से जायज है कि इज़रायल ने एनपीटी पर दस्तख़्त नहीं किए हैं और जितना उसका मन करे बम बना सकता है। यह एक जानी-मानी सचाई है कि फ्रांस और अमेरिका ने बम बनाने में इज़रायल की मदद की थी। यह राज तब बेनकाब हो गया था, जब मोरदेचाई वनुनु ने इस सिलसिले में फोटोग्राफ दिए थे और संडे टाइम्स को दस्तावेज दिए थे। इसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी थी और 18 साल जेल में काटने पड़े थे, जिनमें से 11 साल कैद-ए-तन्हाई में काटने पड़े थे। हैरानी की बात नहीं है कि जिन देशों की इज़रायल के नाभिकीय हथियार बनाने में मिलीभगत थी, वे ही अब सबसे जोर-शोर से इसका एलान कर रहे हैं कि न सिर्फ ईरान के पास कोई नाभिकीय हथियार नहीं रहने दिया जा सकता है, बल्कि उसके नाभिकीय बुनियादी ढांचे को ही पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाना चाहिए।                                                                           

 

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