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उत्तराखंड मुख्य सचिव को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

ऐसे हादसों अपना सब-कुछ गँवा देने वाले लोगों की ज़िन्दगी सिर्फ चंद दिनों या महीनों के लिए प्रभावित नहीं होती बल्कि सालोंसाल या कभी-कभी ताउम्र के लिए बदल जाती है I
Uttrakhand flood

प्राकृतिक आपदा से प्रभावित जनता के प्रति सरकार और प्रशासन का रवैया आमतौर पर उदासीन भरा ही होता है I ऐसे हादसों अपना सब-कुछ गँवा देने वाले लोगों की ज़िन्दगी सिर्फ चंद दिनों या महीनों के लिए प्रभावित नहीं होती बल्कि सालोंसाल या कभी-कभी ताउम्र के लिए बदल जाती है I इन आपदाओं को और भी भीषण बनाता है तथाकथित विकास के नाम पर प्रकृति के साथ हो रहा खिलवाड़ I 2013 में श्रीनगर आई बाढ़ के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ श्रीनगर बाँध आपदा संघर्ष समीति तथा माटू जनसंगठन ने इस मामले को उठायाI उन्होंने दावा किया कि शहर में घुस आया मलबा “अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड कंपनी” की वजह से हुआ क्योंकि कंपनी ने नदी के किनारे पर मलबा रखा हुआ था I इस मामले में उन्होंने इस कंपनी पर मुकदमा भी किया हैI इस मुकदमे की अगली तारीख़ 6 हफ्ते बाद की है और साथ ही उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को नोटिस भी भेजा है I इसी सन्दर्भ में श्रीनगर बाँध आपदा संघर्ष समीति तथा माटू जनसंगठन ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है I   

माननीय  उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड 2013 में आई आपदा में श्रीनगर बांध के कारण प्रभावित हुए परिवारों की ओर से अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड पर दाखिल मुआवजे के लिए चल रहे केस में उत्तराखंड के मुख्य सचिव को समुचित शपथ पत्र दाखिल करने के लिए कहा है। अगली तारीख 6 हफ्ते बाद की दी है I 

ज्ञातव्य है कि 2013 में आई आपदा में अलकनंदा गंगा पर बने श्रीनगर बांध कंपनी “अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड कंपनी” का नदी किनारे रखा मलबा अलकनंदा नदी में बह गया. इस लाखों टन मलबे के कारण श्रीनगर शहर के निचले हिस्सों में जब पानी भरा तो यह मलवा भी घरों में गैर सरकारी और सरकारी इमारतों में घुस गया. जब पानी धीरे-धीरे नीचे नीचे उतरा तो यह पूरा क्षेत्र लगभग समाधिस्त हो गया था. घरों में 8 फुट मिट्टी तक भर गई थी।

बांध कंपनी द्वारा लाई गई इस आपदा पर “ श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति” तथा “माटू जन संगठन” ने 2013 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में “अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी” पर मुआवजे के लिए दावा दायर किया. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने 19 अगस्त 2016 में अपने आदेश में वादियों को सही ठहराते हुए 9 करोड़ 27 लाख का मुआवजा मंजूर किया था. बांध कंपनी उसके खिलाफ माननीय उच्चतम न्यायालय में अपील दाखिल की थी. माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने 3 अक्तूबर २०१६ के आदेश में  प्रभावितों को अपने दावे उप जिला अधिकारी के पास जमा करने के लिए और उप जिलाधिकारी द्वारा उस पर अपनी रिपोर्ट न्यायलय में दाखिल करने का आदेश  दिया था।

प्रभावितों के वकील श्री संजय पारीख ने अदालत को बताया की प्रभावितों ने 2016 में अपने विस्तृत दावे उप जिला अधिकारी के समक्ष दायर किए. किंतु 1 साल बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार ने अभी तक उस पर अपनी रिपोर्ट दाखिल नहीं की है I माननीय न्यायाधीश श्री मदन लोकुर तथा माननीय न्यायाधीश श्री दीपक गुप्ता की बैंच ने  नाराजगी जताते हुए उत्तराखंड सरकार को अपना शपथ पत्र दाखिल करने के लिए कहा. बैंच 6 हफ्ते बाद पुनः केस की सुनवाई करेगी।

राज्य सरकार इस मसले पर गंभीर होती तो दो-तीन महीने में  ही जांच को पूरा करके अपनी रिपोर्ट दाखिल कर सकती थी. किंतु वादी कई बार उप जिलाधिकारी व जिलाधिकारी महोदय को मिले ओ उन्हें  एनजीटी के आदेश कीप्रतियां, उच्चतम न्यायालय के आदेश की प्रतियां भी दी गई Iकिंतु जांच का काम बहुत ही धीमी गति से चलाया जा रहा है I

हमारी अपेक्षा है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद संभवत सरकार व स्थानीय प्रशासन मामले की गंभीरता को समझेंगे और तुरंत कार्यवाही करके शपथ पत्र समय पूर्वक दाखिल करेंगे ताकि प्रभावितों को न्याय मिल सके.

-श्रीनगर बाँध आपदा संघर्ष समीति तथा माटू जनसंगठन

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