सरकारी तेल शोधन कारखानों का पूरा स्वामित्व निजी हाथों में सौंपने की सुगबुगाहट पर ट्रेड यूनियनों ने चिंता जताई

क्या सरकारी स्वामित्व वाले तेल शोधन कारखाने (रिफाइनरी) में 100 फ़ीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति होनी चाहिए?
नरेंद्र मोदी सरकार ने इस प्रस्ताव पर अलग-अलग मंत्रालयों से सुझाव मंगवाए हैं। इस सुझाव की पृष्ठभूमि में देश की दूसरी सबसे बड़ी तेल शोधक सरकारी कंपनी - भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) के निजीकरण की तरफ बढ़ते कदम हैं। इस बीच ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि तेलशोधन के सरकारी कारखानों पर विदेशी नियंत्रण को लेकर चिंतित हैं।
ट्रेड यूनियन के सदस्यों का कहना है कि निजी क्षेत्र के तेल और गैस की बड़ी कंपनियों की घुसपैठ से राष्ट्र की ऊर्जा सुरक्षा के ऊपर गंभीर आर्थिक नतीज़े होंगे। इसलिए यह लोग सरकारी तेल शोधन कारखानों के निजीकरण के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि विदेशी खिलाड़ियों के प्रभाव से, घरेलू आबादी के हितों के सामने मौजूद चुनौतियां में बढ़ोत्तरी ही होगी।
जैसा PTI ने 20 जून को अपनी रिपोर्ट में बताया, केंद्रीय उद्योग मंत्रालय 'स्वचलित रास्ते (ऑटोमेटेड रूट)' के सहारे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में 100 फ़ीसदी विदेशी निवेश की अनुमति देने के लिए, तेल और गैस क्षेत्र की FDI नीति में बदलाव पर विचार कर रहा है। इससे विनिवेश की नीति पर "सिद्धांत" आधारित सहमति बनेगी। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि इस प्रस्ताव को उल्लेखित करता एक कैबिनेट मसौदा, अलग-अलग मंत्रालयों में विचार के लिए भेजा गया है।
फिलहाल, स्वचलित रास्ते (ऑटोमेटिक रूट) से PSU द्वारा किए जाने वाले पेट्रोलियम शोधन में, घरेलू हिस्सेदारी का विनिवेश किए बिना, 49 फ़ीसदी FDI की अनुमति है। केंद्रीय कैबिनेट ने 2019 में BPCL के निजीकरण के फ़ैसले पर मुहर लगाई थी, जिसके तहत केंद्र की 53.29 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेची जानी है। लेकिन महामारी द्वारा पैदा किए गए आर्थिक संकट और तेल क्षेत्र के कर्मचारियों के विरोध के चलते तबसे कोई बड़ी प्रगति नहीं हो पाई थी।
2019 में उसी महीने BPCL के कर्मचारियों ने दूसरी सरकारी तेल कंपनियों के कर्मचारियों के साथ मिलकर, सरकार द्वारा देश के "रत्न" की बिक्री को आत्मघाती बताया था और एक दिन की हड़ताल की थी। इसी तरह, पिछले साल सितंबर में 4,800 BPCL कर्मचारी निजीकरण के खिलाफ़ अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए हड़ताल पर चले गए थे।
सरकारी अपील के बाद BPCL में सिर्फ़ तीन कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई थी। जिनमें वेदांता और दो निजी कंपनियां शामिल थीं।
अब केंद्र इस वित्तवर्ष में विनिवेश का कार्यक्रम पूरा करना चाहता है, रिपोर्टों के मुताबिक़ केंद्र को आशा है कि इस साल जुलाई के आखिर और अगस्त की शुरुआत तक बिक्री-खरीद समझौते का मसौदा तैयार हो जाएगा।
पेट्रोलियम एंड गैस वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (PFWFI) के स्वदेश देव रॉये ने आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र BPCL को निजी खिलाड़ियों के हाथों में सौंपने के लिए "आतुर" है। वह कहते हैं कि हाल में 100% FDI का प्रस्ताव भी इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए।
उन्होंने सोमवार को न्यूज़क्लिक को बताया, "मोदी सरकार यह पहले ही साफ़ कर चुकी है कि वो BPCL का निजीकरण करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। अब सरकार द्वारा किसी भी हालत में कंपनी की जल्द बिक्री की भी चर्चा है। विदेशी खिलाड़ियों को पूरे स्वामित्व की अनुमति देने के लिए लाया गया प्रस्ताव इसी दिशा में एक और कोशिश है।"
रोये, सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन के सचिव भी हैं। उनका कहना है कि BPCL के निजीकरण से देश की ऊर्जा सुरक्षा "निजी खिलाड़ियों के हाथों में आ जाएगी।" विदेशी खिलाड़ियों की मौजूदगी से हमारी चुनौतियां सिर्फ़ बढ़ेंगी, वक़्त यह बता ही देगा।
कोचीन रिफाइनरी वर्कर्स एसोसिएशन के महासचिव अजी एमजी का कहना है, "नरेंद्र मोदी सरकार आत्मनिर्भर भारत का नारा देती है, लेकिन इसी दौरान विदेशी खिलाड़ियों को BPCL का स्वामित्व लेने का न्योता देती है। यह राष्ट्र के लिए ख़तरा है और इसका विरोध किया जाना चाहिए।"
उन्होंने सवाल किया कि क्या कोई निजी फर्म, खासकर जब वह विदेशी हो, क्या वो दूसरे क्षेत्रों के विकास के लिए "रणनीतिक निवेश" करेगी। जबकि BPCL ऐसा करती आ रही है।
लेकिन नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ऑफिसर्स एसोसिएशन (NCOA) के आलोक कुमार रॉय का कहना है कि FDI आने से तकनीकी विकास देश में आएगा, लेकिन यह दूसरा मुद्दा है। वह कहते हैं, "हम सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के पक्ष में नहीं हैं।"
जाने-माने अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक पहले ही खनन संसाधन उत्पादित करने वाले क्षेत्र में FDI की मुख़ालफ़त हैं। उनका कहना है कि सीमित संसाधनों का खनन सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत होना चाहिए। प्रभात पटनायक कहते हैं, "चूंकि यह संसाधन सीमित हैं, तो यहां ना केवल इस तरह के खनिज के खनन की ऊचित दर तय करने का सवाल है, बल्कि इस खनिज के हर ग्राम की बिक्री से जो भी पैसा मिलेगा, उसका इस्तेमाल सामाजिक तौर पर जरूरी समझने वाले उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही होना चाहिए।"
इस महीने की शुरुआत में सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़ी ट्रेड यूनियनों की 'अखिल भारतीय समन्वय समिति' की बैठक में, पेट्रोलियम क्षेत्र में मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में, 'धीरे-धीरे लेकिन निरंतर और लंबी लड़ाई' के लिए ठोस संगठनिक काम शुरू करने का फ़ैसला लिया गया है।
15,000 से ज़्यादा पेट्रोल पंप और 6,000 से ज़्यादा LPG वितरकों के साथ, BPCL के पास पेट्रोलियम उत्पादों के बाज़ार की 24 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। इस बड़े नेटवर्क के अलावा, BPCL की चार में तीन रिफाइनरी को भी विनिवेश प्रक्रिया के तहत निजी क्षेत्र के हाथों में सौंप दिया जाएगा।
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