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INTERVIEW: 'भारत को पाकिस्तान के साथ कभी अधूरी और अनिर्णायक "लड़ाइयां" नहीं लड़नी चाहिए'

भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञ भरत कर्नाड ने भारत-पाकिस्तान के बीच चार दिवसीय संघर्ष का विश्लेषण किया।
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भरत कर्नाड, राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन के एमेरिटस प्रोफेसर (Centre for Policy Research) और यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के विशिष्ट फेलो हैं। वे भारत की परमाणु नीति पर कई किताबें लिख चुके हैं। उनके प्रमुख पुस्तकों में Staggering Forward: Narendra Modi and India’s Global Ambition और Why India is Not a Great Power (Yet) शामिल हैं।


वरिष्ठ पत्रकार रश्मि सहगल ने कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष पर उनसे बातचीत की। प्रस्तुत हैं संपादित अंश—

प्रश्न: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस हालिया भारत-पाकिस्तान विवाद में दखल क्यों दी? क्या उन्हें इसके परमाणु संघर्ष में बदलने का डर था? जबकि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने पहले सार्वजनिक रूप से कहा था कि "यह हमारा मामला नहीं है", लेकिन एक दिन बाद अमेरिका दोनों पक्षों से बात करता नज़र आया और सार्वजनिक बयान भी जारी किए। आपकी टिप्पणी?

भरत कर्नाड: इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं—

पहला, ट्रंप की यह प्रवृत्ति कि हर अंतरराष्ट्रीय मुद्दे में ‘शांति दूत’ बनकर सुर्खियाँ बटोरें—इस बार भारत-पाक झगड़े में कूदकर उन्होंने झूठा दावा किया कि उन्होंने दोनों सरकारों पर दबाव डाला और संघर्ष रुकवाया।

दूसरा, भारत द्वारा पाकिस्तान के नूर खान एयरबेस (चकला) पर मिसाइल हमला, जो कि उनके स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन—यानी परमाणु सचिवालय—का मुख्यालय है, और संभवतः किरणा हिल्स (Kirana Hills) में स्थित परमाणु भंडारण स्थलों को भी निशाना बनाया गया, जिससे अमेरिका को अनावश्यक रूप से परमाणु युद्ध का भय सताने लगा।

प्रश्न: एक प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार ने रिपोर्ट किया कि भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के पंजाब में किरणा हिल्स स्थित परमाणु संरचना पर हमला किया, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया। दो सवाल हैं—

पहला, परमाणु ठिकाने आम तौर पर काफ़ी मज़बूती से बनाए जाते हैं और ऐसे हमलों को झेल सकते हैं।

दूसरा, पाकिस्तानी विशेषज्ञों का कहना है कि उनके परमाणु ठिकाने पूरे देश में फैले हुए हैं। आपकी राय?

भरत कर्नाड: हां, परमाणु हथियार स्थल आम तौर पर विभिन्न जगहों पर फैले होते हैं और भौतिक रूप से काफ़ी मज़बूती से संरक्षित रहते हैं।

प्रश्न: ट्रंप ने बाद में एक ट्वीट में कहा कि अमेरिका की दखल से यह संघर्ष रुका और वे एक "न्यूट्रल साइट" पर दोनों देशों के बीच मध्यस्थता को तैयार हैं। यदि अमेरिका को शामिल होने दिया गया, तो यह द्विपक्षीय मुद्दा नहीं रह जाएगा। इससे भारत की विदेश नीति पर क्या असर पड़ेगा?

भरत कर्नाड: मैं पिछले 20 वर्षों से अपनी किताबों और लेखों में आगाह करता रहा हूं कि अमेरिका से ज़्यादा नज़दीकी रिश्ते भारत के लिए खतरनाक हैं। वॉशिंगटन धीरे-धीरे आपको हल्के में लेने लगता है और मनमानी करता है। जब वेंस ने मोदी को कॉल किया, तब प्रधानमंत्री को दो टूक शब्दों में कहना चाहिए था—"चुप रहो! और दूर रहो। ये तुम्हारा मामला नहीं है।"

और फिर इस बात को सार्वजनिक भी करना चाहिए था कि भारत ने अमेरिका से साफ़ कहा कि हस्तक्षेप न करे। लेकिन इसके बजाय, एस जयशंकर और विदेश मंत्रालय ने 'न्यूट्रल साइट' जैसी बातों पर गोलमोल बयान दिए। नतीजा यह हुआ कि हम फिर से कूटनीतिक रूप से पीछे हटे और अमेरिका ने भारत-पाक को फिर से जोड़कर देखना शुरू कर दिया, जबकि भारत 20 वर्षों से इसे अलग रखने की कोशिश कर रहा था।

प्रश्न: जब भारतीय सुरक्षा बल कह रहे थे कि हम युद्ध में जीत रहे हैं, तो क्या भारत को इतनी जल्दी युद्धविराम के लिए तैयार हो जाना चाहिए था? कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने “जीत के मुहाने से हार छीन ली।” आपकी राय?

भरत कर्नाड: भारत का पलड़ा वाक़ई भारी था—हमारी मिसाइलें निशाने पर लग रही थीं जबकि पाकिस्तान की मिसाइलें भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम द्वारा निष्क्रिय की जा रही थीं। लेकिन समस्या ये थी कि मुरिदके और बहावलपुर के अलावा सरकार के पास कोई दीर्घकालिक रणनीतिक उद्देश्य ही नहीं था।

जैसा कि मैंने अपनी 7 मई की ब्लॉग पोस्ट में लिखा था—LOC को सीधा करने के लिए हाजी पीर जैसे क्षेत्र को कब्ज़े में लेने की कोई तैयारी नहीं थी, जो कि श्रीनगर घाटी में आतंकवादियों की घुसपैठ का मुख्य मार्ग है।

या फिर स्कार्दू पर कब्ज़ा कर Siachen और Saltoro Muztagh की सीमा को तार्किक बनाने का कोई विचार नहीं था। ये सब चीजें संभव थीं, जैसा कि मैंने 30 अप्रैल की पोस्ट में लिखा था। इसीलिए आज निराशा है।

प्रश्न: पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के भीतर आतंकी ढांचों पर हमला कर सबक़ सिखाने की कोशिश की। क्या आपको लगता है कि इससे कोई प्रतिरोधक प्रभाव पड़ा? अगर हम कोई नई मिसाल कायम करना चाह रहे थे, तो क्या हमें हमले जारी नहीं रखने चाहिए थे?

भरत कर्नाड: नहीं। इससे बस यह होगा कि ISI (पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी) अब और अधिक रचनात्मक ढंग से लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के लड़ाकों को ट्रेनिंग देगी और इन्हें नई पहचान The Resistance Front (TRF) के तहत और अधिक छिपाकर, कम दिखने लायक तरीकों से तैनात करेगी।

प्रश्न: दोनों पक्ष जीत का दावा कर रहे हैं—पाकिस्तान कहता है कि उसने भारत के चार विमान गिराए, भारत भी दावा कर रहा है लेकिन कोई सबूत नहीं दिया। नतीजतन, पश्चिमी मीडिया पाकिस्तान के पक्ष को अधिक विश्वसनीय मान रहा है। आपकी प्रतिक्रिया?

भरत कर्नाड: यह तो तय ही है कि जब युद्ध अनिर्णायक हो, तो दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत का दावा करते हैं। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि भारत को कभी पाकिस्तान के साथ आधे-अधूरे, अनिर्णायक "युद्ध" नहीं लड़ने चाहिए। लेकिन मोदी सरकार ने फिर से वही किया और अब पाकिस्तान के राज्य और मीडिया में डींगें हांकने का माहौल बन गया है।

प्रश्न: इस संघर्ष के दौरान पश्चिमी पर्यवेक्षकों ने चीनी सैन्य तकनीक की सराहना की—कहा गया कि J-10C लड़ाकू विमान ने भारत के राफ़ेल को मार गिराया। साथ ही, भारत के स्वदेशी हथियारों के प्रदर्शन पर आपकी टिप्पणी?

भरत कर्नाड: असल में शुरुआत में पाकिस्तान एयर फोर्स को बढ़त थी। उन्होंने अपने पास मौजूद सैन्य तकनीकों का बेहतर उपयोग किया—जैसे कि चीनी J-10C मल्टीरोल फाइटर जिसमें PL-15E लॉन्ग रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल लगी थी और स्वीडिश Saab Erieye एयरबोर्न अर्ली वार्निंग सिस्टम।

लेकिन फिर भारतीय सेना ने मझोले दूरी के हमले वाले ब्रह्मोस मिसाइल और रूसी S-400 एयर डिफेंस सिस्टम का ज़बरदस्त इस्तेमाल शुरू किया जिससे पाकिस्तान के हमलों को निष्फल कर दिया गया।

प्रश्न: प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए चेतावनी दी थी कि यदि भविष्य में आतंकवादी घटनाएँ होती हैं तो भारत पूरा प्रतिशोध लेगा। लेकिन इसका पाकिस्तान पर कोई असर नहीं दिखा। हाल ही में शोपियां में तीन आतंकियों को मारा गया। ऐसे में हमें पाकिस्तान से कैसे निपटना चाहिए?

भरत कर्नाड: अगर हमने हाजी पीर और/या स्कार्दू पर कब्ज़ा किया होता, तो यह साफ़ संदेश जाता कि हर आतंकी हमले की कीमत पाकिस्तान को PoK (पाक अधिकृत कश्मीर) के हिस्से खोकर चुकानी होगी। यह एक ठोस प्रतिरोध और हतोत्साहन बनता—"आतंकवाद = ज़मीन की हानि" का सिद्धांत।

लेकिन ऐसी सख्त और निर्णायक नीति के लिए जबरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए—जो हमारे देश ने अब तक कभी नहीं दिखाई (1971 के युद्ध को छोड़कर)। 

(रश्मि सहगल एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार निजी हैं।)

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित यह इंटरव्यू पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें--़

INTERVIEW: ‘India Should Never Fight Indecisive ‘Wars’ With Pakistan’

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