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न्यायाधीश लोया के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेराफेरी हुई

कारवां मैगज़ीन मैगज़ीन ने नागपुर के एक डॉक्टर और भाजपा के बीच पुराने संपर्कों का खुलासा किया I
Judge Loya

न्यायाधीश लोया की मौत में एक और मोड़ आया, कारवां मैगज़ीन ने बताया है कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेरफेर किया गया था। रिपोर्ट में पोस्टमार्टम में छेड़छाड़ के पीछे राजनीतिक ताकत को उजागर किया । इसमे डॉ. मकरंद व्यवहारे -जब वो  सरकार के नागपुर मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक विभाग में थे-और तब उनके भाई के जो कि वर्तमान महाराष्ट्र के वित्त मंत्री सुधीर मुन्गंतिवर के मध्य संबध पर ध्यान आकर्षित कराया है | रिपोर्ट के अनुसार डॉ. व्यवहारे ने लगातार अपने सहयोगियों को याद दिलाया करते और उनके संबंधों के बारे में बताते थे । जब वह एक स्नातकोत्तर छात्र थे  तो उनकी एक प्रोफेसर के साथ गंभीर बहस हुई । बहस के बाद, प्रोफेसर को स्थानांतरित कर दिया गया था। हालांकि, इस बात का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है कि डॉ. व्यवहारे का इससे कोई लेना-देना हैI लेकिन क्योंकि वे हमेशा ही अपने संपर्कों और संबंधो के बारे में लोगों को बताते रहते थे, इसलिए उनका इस मामले से सम्बन्ध होना कोई अविश्वसनीय बात नहीं लगतीI

कारवां मैगज़ीन द्वारा साक्षात्कार के अज्ञात कर्मचारियों के मुताबिक, डॉ० व्यवहारे उस दिन आसमान्य रूप से जल्दी आये थे जिस दिन न्यायाधीश लोया की लाश को लेकर आया गया। जिससे लगता है कि उन्हें ज़रूर पहले से ही पता होगा कि आज लाश को लाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वह उस दिन चिड़चिड़े से लग रहे थे और उन्होंने आमतौर पर जितना धूम्रपान करते हैं उससे अधिक किया। उन्होंने डॉ० एन.के. तुम्राम को निर्देश दिया कि रिपोर्ट में क्या लिखा जाए। डॉ. व्यवहारे के भाई, सुधीर मुन्गंटीवार 1995 में भाजपा के महाराष्ट्र के पार्टी अध्यक्ष थे। उनके मुख्यमंत्री बनने की भी चर्चा थी, हालांकि बाद में देवेंद्र फडणवीस को नामित किया गया। कारवां मैगज़ीन के लेख की सामग्री निश्चित रूप से पोस्टमार्टम में राजनीतिक दख़ल के बारे में है |

डॉ० तुम्राम का नाम रिपोर्ट में लिखा हुआ है लेकिन डॉ० व्यवहारे का नहीं |  उस समय पर उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि पहली बार उन्होंने डॉ० व्यवहारे को शारीरिक रूप से पोस्ट-मॉर्टम के संचालन में रुचि लेते  हुए देखा। उन्होंने न्यायाधीश लोया के सिर के पीछे घाव को अनदेखा किया, साथ ही साथ, उन अन्य लक्षणों को भी, जिनकी वजह से ये मौत अप्राकृतिक प्रतीत हो रही थी। हालांकि, इस बात के कोई सबूत नहीं थे कि जज लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई, फिर भी उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि रिपोर्ट में मृत्यु का कारण यही दर्ज़ किया जायेI

यह कोई अकल्पनीय नहीं है कि महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल के सदस्य डॉ. व्यवहारे को पोस्टमार्टम रिपोर्ट को प्रभावित करने का आदेश दिया गया था। सहकर्मियों और अधीनस्थों ने उल्लेख किया कि उन्होंने अपने संपर्कों का पूरा उपयोग किया | उन्होंने अतीत में भी पोस्ट-मॉर्टम के साथ हेरफेर किया है | यह अपने गृहनगर से लाशों के साथ अधिकतर ऐसा करते थे | अक्सर मौत के समय से संबंधित मामूली बदलाव दर्ज़ किया करते थेI  एक कर्मचारी के अनुसार संभवतः एक पूरी जाँच के बाद ये पूरा नतीजा बदल सकता है। एक घटना का उल्लेख किया गया जहाँ एक लाश के पेट खोलने के बाद कीटनाशक की भारी गंध उठी | यह रिपोर्ट में  आसानी से छोड़ा दिया गया था | यदि वह व्यक्ति एक किसान था तो इस पर असर पड़ेगा कि कैसे किसान आत्महत्याएँ दर्ज़ की जा रही हैं। इस प्रकार, ये जो संबंध डॉ. व्यवहारे और मंत्री सुधीर के मध्य मौजूद है वह एक साझेदारी है |

अन्य विवरण जैसे कि रिपोर्ट को बदलने की तारीखें भी बदली हैं। ऐसा भी हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने सुनवाई के दौरान पोस्टमार्टम रिपोर्ट में एक पेज ही नहीं था। न्यायालय ने पृष्ठ लाने के निर्देश दिए। हालांकि पृष्ठ केवल तहसीन पुनावाला को उपलब्ध कराया गया, अन्य याचिकाकर्ताओं, बॉम्बे वकील संघ और यहाँ तक कि एडमिरल रामदास को भी नहीं उपलब्ध कराया गया। इस स्तर पर यह निश्चित रूप से न्यायपालिका के सर्वोत्तम हित में होगा की वो न्यायधीश लोया की मौत में एक स्वतंत्र जाँच के आदेश दें |

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