नौकरियों के आंकड़ों की दर्दनाक हंसी

प्रधानमंत्री मोदी से लेकर सरकार में नीचे तक सभी लोगों द्वारा पाखंड के समर्थन की वजह से पिछले साल शुरू की गयी जनमत की परख अब मजाक बन गयी है। कल,सरकार ने अपनी तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं -भविष्य निधि (ईपीएफ), कर्मचारियों की स्वास्थ्य बीमा (ईएसआई) और पेंशन (एनपीएस) में कितने लोगों नामांकित हुए, पर नए आंकड़ें जारी किये। इन आँकड़ों से पता चलता है कि ईपीएफ में 1 करोड़ से अधिक, ईएसआई में 1.19 करोड़ और एनपीएस में 6.1 लाख नए सदस्य जुड़े हैं ।
पिछले साल इन सभी आंकड़ों को जोड़कर बड़े पैमाने पर नौकरियों की पैदावारी का दावा किया गया था. इस दावे की हर जगह आलोचना हुई और इसे गलत बताया गया। अभी हाल में ही जारी किये गए नए आंकड़ें प्रदर्शित कर रहे हैं कि "ये औपचारिक क्षेत्र में रोजगार के स्तर पर विभिन्न दृष्टिकोण हैं और समग्र स्तर पर रोजगार को नहीं मापते हैं. "
इस चेतवानी को इसलिए शामिल करना जरूरी है क्योंकि इन योजनाओं में होने वाले नामांकन नए मिलने वाले रोजगार को नहीं दर्शातें हैं क्योंकि एक ही व्यक्ति तीनों योजनाओं में भी नामांकन कर सकता है; सिर्फ नया नामांकन नई नौकरी के समान नहीं है क्योंकि अन्य लोग नौकरियां भी छोड़ रहे होते हैं इसलिए नौकरियों की असल रचना से मिले आंकड़ें ही अधिक प्रासंगिक हो सकते हैं। और, योजनाओं की अपनी सीमाएं हैं (जैसे आय की सीमा,योजनाओं के पात्र लिए कर्मचारियों की संख्या आदि) इसलिए ये आंकड़ें औपचारिक क्षेत्र की सभी नौकरियों को संभवतः प्रतिबिंबित नहीं कर सकते हैं, सामान्य नौकरियों की तो बात ही दूर है।
सरकार अब नए नामांकन को प्रदर्शित कर रही है साथ ही साथ योजनाओं को छोड़ने वाले लोगों की संख्या को भी बता रही है । उदाहरण के लिए, जबकि ईपीएफ में 107.5 लाख नए सदस्य नामांकित हुए, लेकिन 60.4 लाख मौजूदा सदस्यों ने इस योजना को छोड़ भी दिया है। तो इसमें शुद्ध जोड़ केवल 47.1 लाख का हुआ है।
लेकिन यह भी सवालों से मुक्त नहीं है। ये 47.1 लाख लोग पहले से कार्यरत हो सकते हैं, जो इस योजना में अब शामिल हो रहे हैं। इसे स्पष्ट करने के लिए कोई डेटा नहीं है। कुछ ने तर्क दिया है कि छोटे उम्र के लोग यानि 25 वर्ष तक की आयु के लोगों को पहली बार कर्मचारियों के रूप में माना जा सकता है। यह अनिश्चित है, और नौकरियों की कमी की स्थिति में यह नामुमकिन जैसा लगता है। खासकर लड़के 16-17 साल की उम्र से ही काम करना शुरू कर देते हैं । यह भी नहीं कहा जा सकता है कि ये नए नामांकन नौकरियों के औपचारिकरण के उपाय हैं क्योंकि कौन जानता है कि कोई औपचारिक नौकरी में काम कर रहा था या नहीं, वह भी ईपीएफओ का नवीनतम सदस्य बनने से पहले?
इसलिए, एकमात्र चीज जिसे वास्तव में पूर्ण निश्चितता के साथ कहा जा सकता है कि इन दस महीनों में, 60.4 लाख कर्मचारी इस योजना से बाहर चले गए। इनमें वे लोग शामिल होंगे जो मर गए थे, जो सेवानिवृत्त हुए थे,जो लोग अपनी नौकरियां खो चुके थे और नौकरी से स्थानांतरित होकर वहां चले गए थे जहां कोई ईपीएफ कवरेज नहीं है (जैसे आकस्मिक नौकरी या अनुबंध नौकरी)।
दूसरे शब्दों में कहा जाए ये आंकड़ें अस्थिरता दिखाती हैं, औद्योगिक रोजगार और इसकी सामाजिक सुरक्षा कवरेज की गड़बड़ी की असलियत बताती हैं। अन्य प्रमुख योजना जैसे कि ईएसआई के बारे में ये आंकड़ें और भी चिंताजनक हैं। पिछले दस महीनों में इस योजना में शामिल होने वाले लोगों से (1119 .7 लाख) अधिक ,इस योजना को छोड़ने वाले लोगों (130.1) की संख्या है । इसका मतलब है कि इस अवधि में नौकरियों की संख्या में 10.4 लाख की शुद्ध गिरवाट आई है।
बेशक, ईपीएफ की तरह ही, ईएसआई छोड़ने वाले लोगों में मरने वाले, सेवानिवृत्त वाले लोग आदि भी शामिल होंगे, लेकिन क्या इन आकस्मिकताओं में 1.3 करोड़ से ज्यादा लोग हो सकते हैं? अधिक संभावना है, कवरेज से बाहर एक बड़ा हिस्सा आसानी से बाहर हो गया है।
ये दोनों योजनाएं भारत में रोजगार के रेत के महल को प्रदर्शित कर रही हैं - सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के भीतर और बाहर नौकरियों के तेजी से बदलने परिणामस्वरूप आंकड़ों में गजब की अनियमितता आती है। ध्यान दें कि इन सभी को 'अस्थायी' आंकड़े के रूप में वर्णित किया गया है। जैसा कि न्यूजक्लिक ने पहले बताया था, सरकार का अनुमान भी समय के साथ खुद बदल जाता है।
बेरोजगारी के बढ़ते गुस्से से खुद को बचाने के लिए सरकार द्वारा जो तथाकथित 'रोजगार आउटलुक' रखा गया है वह सरकार की वेबसाइट मेगाबाइट के लायक भी नहीं है। यह इस समय की गंभीर वास्तविकता के बीच एक भद्द मज़ाक होगा, सिवाय इसके कि यह एक बड़ी त्रासदी को दर्शाता है - बेरोजगारों की विशाल आंकड़ों की त्रासदी। याद रखें, सीएमआईई के नवीनतम अनुमान के तहत वर्तमान में बेरोजगारी की दर 6.5 प्रतिशत की ऊंचे स्तर पर है ।
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