ख़बरों के आगे–पीछे: भाजपा को दिल्ली के लिए चेहरे की तलाश
रॉबर्ट वाड्रा की चुनौती पर मोदी क्या करेंगे?
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दी है कि वे उन पर लगाए जा रहे आरोपों को साबित करें या फिर इस तरह के आरोप लगाना बंद करें।
दरअसल हरियाणा के चुनाव में कई दिनों से इंतजार किया जा रहा था कि कांग्रेस राज के भ्रष्टाचार की बात करने के लिए मोदी या गृह मंत्री अमित शाह रॉबर्ट वाड्रा का नाम कब लेंगे। प्रधानमंत्री ने 25 सितंबर को और अमित शाह ने 23 सितंबर को लोगों की यह मंशा पूरी की। दोनों ने हरियाणा की अलग-अलग चुनावी रैलियों में कहा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में हरियाणा को दलालों और दामाद के हवाले कर दिया था। उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा को निशाना बनाते हुए कहा कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार के समय किसानों की जमीन छीन कर दामाद को दे दी गई थी। सवाल है कि हरियाणा चुनाव के समय ही मोदी और शाह को रॉबर्ट वाड्रा क्यों याद आते हैं।
केंद्र और हरियाणा में 10 साल से भाजपा की सरकार है तो फिर डबल इंजन की सरकार ने किसानों की जमीन छीन कर किसी दामाद को देने के मामले की जांच क्यों नहीं कराई और अगर कराई तो उसका नतीजा क्या रहा? जो सरकार किसी भी मामले में बगैर किसी ठोस सबूत के मुख्यमंत्रियों को पकड़ कर जेल में डाल दे रही हैं, उसने इतने आरोप लगाने के बावजूद रॉबर्ट वाड्रा को क्यों नहीं पकड़ा? अब तो खुद रॉबर्ट वाड्रा ने चुनौती दी है। प्रधानमंत्री को इस चुनौती का जवाब देना चाहिए।
गिरफ़्तारी के डर से अमेरिका नहीं गए अजीत डोभाल?
सरकार का ढिंढोरची मीडिया जिस शख्स को 'इंडिया का जेम्स बांड’ बताता है, वह इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अमेरिका यात्रा पर नहीं जा सका। 'जेम्स बांड’ यानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के न जा पाने की जो आधिकारिक वजह बताई गई, वह दिलचस्प है। सरकार के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि प्रधानमंत्री के 'जेम्स बांड', जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के कारण अमेरिका नहीं गए। लेकिन सच यह है कि कनाडाई-अमेरिकी नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू ने 17 सितंबर को न्यूयॉर्क के दक्षिणी जिले के यूएस डिस्टि्रक्ट कोर्ट में एक दीवानी मुकदमा दायर किया है, जिसमें भारत सरकार के कुछ अधिकारियों द्वारा उसकी हत्या के लिए कथित रूप से रची गई साजिश के लिए हर्ज़ाने की मांग की गई है।
अदालत ने भारत सरकार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, रॉ के पूर्व प्रमुख सामंत गोयल, विक्रम यादव ( जिन्हें खुफिया एजेंसी के एजेंट के रूप में पहचाना गया है), और एक कारोबारी निखिल गुप्ता को तलब किया है। खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस के नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू ने इसे बड़ा मुद्दा बना रखा है। इस वजह से अमेरिकी प्रशासन भी उसकी पीठ ठोकता रहा है। हालांकि भारत सरकार ने मुकदमे को 'पूरी तरह से अनुचित और निराधार’ बताया है, लेकिन अमेरिकी अदालतों का कोई भरोसा नहीं, क्योंकि वे भारत की अदालतों जैसी नहीं हैं और समझा जाता है कि वे पूरी तरह दबाव मुक्त होकर काम करती हैं।
भाजपा को दिल्ली के लिए चेहरे की तलाश
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और आतिशी को टक्कर देने के लिए एक चेहरे की तलाश कर रहा है। उसे ऐसा चेहरा चाहिए, जो जातीय समीकरण की कसौटी पर खरा हो और लोक लुभावन भी हो। इससे पहले भाजपा दो महिला चेहरों को आजमा चुकी है और नाकाम रही है। सबसे पहले 1998 में सुषमा स्वराज को आजमाया गया था और उस बार जो भाजपा हारी तो आज तक नहीं जीत पाई है। भाजपा ने दूसरी बार 2015 में किरण बेदी को आजमाया। उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पेश करके चुनाव लड़ने को मीडिया ने भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बताया था। लेकिन सिर्फ तीन सीटें ही मिली थीं। खुद किरण बेदी भी नहीं जीत सकी थीं। वह भाजपा का अभी तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा।
भाजपा 1993 में पहली और आखिरी बार जीतने के बाद सिर्फ 2013 में जीत के करीब पहुंची थी, जब वह डॉक्टर हर्षवर्धन के नेतृत्व में 32 सीटें जीती थी। पता नहीं, क्यों भाजपा ने हर्षवर्धन को किनारे कर दिया। बहरहाल, अब कहा जा रहा है कि दिल्ली में पार्टी का चेहरा बनाने के लिए स्मृति ईरानी और बांसुरी स्वराज के नामों पर विचार किया जा रहा है। स्मृति ईरानी पंजाबी हैं और दिल्ली की ही रहने वाली हैं, जबकि बांसुरी स्वराज नई दिल्ली से सांसद हैं, सुषमा स्वराज की बेटी हैं, ऑक्सफोर्ड में पढ़ी हैं और वकील हैं। इनके अलावा मनोज तिवारी (प्रवासी), प्रवीण खंडेलवाल (वैश्य) और प्रवेश साहिब वर्मा (जाट) के नाम भी नाम भी विचाराधीन हैं।
नीतीश का भाजपा के आगे समर्पण
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब पूरी तरह भाजपा के हो गए हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति भाजपा नेताओं की तरह स्वामीभक्ति दिखाते हुए उनकी अमेरिका यात्रा की तारीफ की है। उन्होंने मोदी की यात्रा को बहुत उपलब्धियों भरा बताया है। राम मंदिर निर्माण पर पत्र लिख कर मोदी को श्रेय देने और उनकी अमेरिका यात्रा की तारीफ करने के बाद सवाल उठ रहा है कि यह सब नीतीश कर रहे हैं या उनके सलाहकार उनसे करा रहे हैं?
पटना में इस बात की चर्चा है कि नीतीश के सलाहकार बने नेताओं और कुछ पूर्व अफसरों ने भाजपा और केंद्र सरकार के सामने सरेंडर किया हुआ है। इसका कारण कुछ तो राजनीतिक है और कुछ एजेंसियों का डर है। एक पूर्व अधिकारी इन दिनों नीतीश कुमार के यहां सबसे ज्यादा सक्रिय हैं और सारे कामकाज वे ही देख रहे हैं। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा पहले भाजपा में ही रह चुके हैं और अभी भी भाजपा के शीर्ष नेताओं से उनके तार जुडे हुए हैं। जनता दल (यू) और भाजपा के बीच कड़ी का काम वे ही कर रहे हैं। सो, संभव है कि जनता दल (यू) की राजनीतिक लाइन पर उनकी वजह से भाजपा का असर दिख रहा हो। केंद्रीय मंत्री और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी जिस अंदाज में यू टर्न लिया है और भाजपा व नरेंद्र मोदी की तारीफ शुरू की है उससे लग रहा है कि नीतीश का पूरा इकोसिस्टम ही भाजपा के हिसाब से काम कर रहा है।
कांग्रेस की शिकायत के बाद सक्रिय हुई भाजपा
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अमेरिका में 8 से 11 सितंबर के बीच जो कुछ कहा उसे लेकर भारतीय जनता पार्टी ने राहुल के खिलाफ पहली शिकायत 19 सितंबर को दर्ज कराई। सोचने वाली बात है कि करीब 10 दिन तक भाजपा के नेता किस बात का इंतजार कर रहे थे? अगर राहुल ने आरक्षण को और सिखों की लेकर जो कहा, वह देश की एकता, अखंडता और सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने वाला था तो भाजपा नेताओं ने तुरंत मुकदमा दर्ज क्यों नहीं कराया? भाजपा नेताओं ने राहुल गांधी के खिलाफ प्रदर्शन किया था और धमकी भी दे थी लेकिन कहीं पर भी मुकदमा दर्ज नहीं कराया था।
इस बीच कांग्रेस नेताओं ने राहुल के लिए कहे जा रहे अपशब्दों और धमकियों को लेकर भाजपा नेता तरविंदर सिंह मारवाह और रवनीत सिंह बिट्टू व भाजपा की सहयोगी शिव सेना के एक नेता के बयानों के खिलाफ दिल्ली के तुगलक रोड थाने में मुकदमा दर्ज कराया। यह मुकदमा दर्ज होने के बाद भाजपा नेताओं की नींद खुली तो उन्होंने जवाबी कार्रवाई के तौर पर 19 सितंबर को मुकदमे दर्ज कराने का सिलसिला शुरू किया। दिल्ली के साथ उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ मे भी राहुल के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। हैरानी की बात है कि भाजपा नेताओं की भावना आहत हुई थी 9 या 10 सितंबर को लेकिन उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ 19 और 20 सितंबर को। जाहिर है कि यह भावना आहत होने का मामला नहीं है, बल्कि शिकायत के बदले शिकायत करने यानी बदले की कार्रवाई है।
महाराष्ट्र के साथ नहीं होगा झारखंड का चुनाव
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि महाराष्ट्र में नवंबर के दूसरे हफ्ते में विधानसभा का चुनाव होगा। इसलिए माना जाना चाहिए कि चुनाव उसी समय होगा। लेकिन सवाल है कि क्या झारखंड का विधानसभा चुनाव भी उसके साथ ही होगा या उसमें एक महीने की और देरी होगी? यह सस्पेंस खुद मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने पैदा कर दिया है। उनके नेतृत्व में चुनाव आयोग की टीम पिछले सोमवार को झारखंड के दौरे पर गई थी। वहां राजीव कुमार ने कहा कि राज्य में समय पर चुनाव होगा। उनका यह कहना अस्पष्ट है। समय तो हो गया है। चुनाव में छह महीने रह जाते हैं तो गेंद आयोग के पाले में चली जाती है और उसके बाद जब भी चुनाव होता है तो वह समय पर होना ही कहा जाता है। इस लिहाज से तो महाराष्ट्र के साथ नवंबर के दूसरे हफ्ते में झारखंड में भी चुनाव हो जाना चाहिए। लेकिन झारखंड को लेकर सस्पेंस है क्योंकि वहां विधानसभा का कार्यकाल पांच जनवरी 2025 तक है। वहां पिछली बार यानी 2019 में चुनाव 30 नवंबर से 20 दिसंबर के बीच पांच चरणों में हुआ था। तो समय पर चुनाव होने का शाब्दिक अर्थ यह हो सकता है कि दिसंबर में चुनाव हों। लेकिन अगर चुनाव आयोग ऐसा कुछ भी करता है तो उसकी साख पर बड़ा सवाल उठेगा। एक देश, एक चुनाव के लिए अपने को तैयार बता रहा आयोग अगर दो राज्यों के चुनाव एक साथ नहीं करा पाए तो क्या कहा जाएगा!
महाराष्ट्र में तीसरे मोर्चे का गठन
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में सीधा मुकाबले दो गठबंधनों के बीच होगा। एक तरफ सरकार चला रही महायुति है तो दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी है। महायुति में भाजपा, शिव सेना और एनसीपी के बीच सीट बंटवारे की बात चल रही है तो दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिव सेना और शरद पवार की एनसीपी भी इसी काम में जुटी हैं। इस बीच एक तीसरा गठबंधन तैयार हो रहा है। राज्य में तीन बड़े नेता, जो अलग-अलग सामाजिक समूहों का नेतृत्व करते हुए स्वतंत्र राजनीति के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने हाथ मिला लिया है। दो पूर्व सांसदों संभाजी छत्रपति और राजू शेट्टी के साथ निर्दलीय विधायक बच्चू काडू ने मिल कर परिवर्तन महाशक्ति का गठन किया है। संभाजी छत्रपति को भाजपा ने सांसद बनाया था और वे छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज हैं। सो, जाहिर है कि वे मराठा वोट की राजनीति करते हैं। राजू शेट्टी स्वाभिमानी शेतकरी संगठन चलाते हैं और स्वाभिमानी पक्ष नाम से पार्टी बना रखी है। नाम से ही जाहिर है कि वे किसान राजनीति करते हैं। तीसरे नेता बच्चू काडू हैं, जो दलित समाज से आते हैं। सो, मराठा, किसान और दलित नेताओं का एक संगठन बन कर तैयार हो गया है। प्रकाश आंबेडकर की पार्टी भी है। इस गठबंधन के साथ उसके तालमेल की बात होती है या नहीं यह देखने वाली बात होगी। लेकिन तीन अलग-अलग समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं का गठबंधन कई सीटों पर दोनों बड़े गठबंधनों के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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