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तिरछी नज़र: पिछले जन्म के पापों को धोने का सुअवसर!

अब सरकार जी ने विदेश में बसने की एक और विधि इज़ाद की है- 'मनी ड्रेन' की। मुश्किल नहीं, बहुत ही आसान काम है।
DUBAI
तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार

 

सरकार जी देश में लौट आये हैं। यह खबर है। सरकार जी का विदेश जाना इतनी बड़ी खबर नहीं बनती है जितनी बड़ी खबर लौट आना बनती है। तो बड़ी खबर यह है कि सरकार जी लौट आये हैं। वैसे सरकार जी का विदेश जाना भी इस बार बड़ी खबर बना क्योंकि सरकार जी कई छोटे छोटे देशों से बड़ा बड़ा सम्मान इशू करा लाये। किसी देश ने अपना सबसे ऊपर वाला सम्मान दे दिया तो किसी देश ने ऊपर वाले से नीचे वाला।

सरकार जी तो अपने डिप्लोमेटिक पासपोर्ट पर किसी भी देश जा सकते हैं लेकिन उनकी कोशिशों से हमें कहीं भी जाना मुश्किल हो गया है। उनके एफर्ट से हम सब भारतीयों का पासपोर्ट दिन दुगनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा है। यह उनका ही प्रताप है कि हमारा पासपोर्ट जो पहले, 2014 में 76वें स्थान पर होता था, अब उन्नति कर 148वें स्थान पर पहुंच गया है। सरकार जी ने इतनी उन्नति से अठारह अठारह घंटे काम करके हासिल की है। अगर सरकार जी पूरे चौबीस घंटे काम करते तो अवश्य ही 199 देशों की रैंकिंग में सर्वोच्च 199वां स्थान प्राप्त करते। कोई बात नहीं, अभी तीन-चार साल बाकी हैं, वह स्थान भी प्राप्त कर लिया जायेगा।

वैसे अब विदेश में बसना आसान हो गया है। नहीं, नहीं, अमरीका में, यूरोप के देशों में तो बसना मुश्किल ही होता जा रहा है पर दुबई में बसना आसान हो गया है। मुझे यह खबर मिली और यह खबर मुझे ही नहीं, लाखों करोड़ों लोगों को दुबई में बसने की यह अच्छी खबर मिली है। यह खबर इतनी व्यापक थी कि बड़े बड़े चैनलों ने भी इस पर कार्यक्रम कर डाले। 

खबर थी कि मात्र तेइस लाख रुपये खर्च कर आप दुबई में बस सकते हैं। पहले यह मुद्रा साढ़े चार करोड़ रूपये से अधिक होती थी। आपको साढ़े चार करोड़ रुपये या उससे अधिक का मकान खरीदना होता था या उतने ही पैसे दुबई में किसी व्यवसाय में लगाने होते थे। इसलिए अब हम गर्व से कह सकते हैं कि हम भारतीयों के लिए और कहीं नहीं तो दुबई में महंगाई जरूर कम हुई है और छप्पर फाड़ कर कम हुई है। कोई चीज जो पहले साढ़े चार करोड़ में मिल रही हो, अब तेइस लाख में मिलने लगे तो कितने प्रतिशत कम हुई। जरा हिसाब तो लगाना। मुझसे तो ख़ुशी के मारे हिसाब ही नहीं लग रहा है। 

भारत में जीवन यापन भले ही महंगा हो गया हो, पर विदेश में बसना कितना सस्ता हो गया है। सब सरकार जी की ही कृपा है।

पहले विदेश में बसना मुश्किल भी था और महंगा भी। सरकार जी की सरकार बनने से पहले तो यह बहुत ही मुश्किल था। या तो यहाँ इतना पढ़ो कि कोई विदेशी कम्पनी आपको 'हायर' कर ले या फिर विदेश में पढ़ाई पर इतना खर्च करो कि वहीं की कोई कम्पनी वहीं का वहीं तुम्हें 'हायर' कर ले। दोनों के लिए ही दिमाग़ और पैसा, दोनों ही बहुत लगाना पड़ता था। तब इसे हम 'ब्रेन ड्रेन' कहते थे।

पर अब सरकार जी ने विदेश में बसने की एक और विधि इज़ाद की है- 'मनी ड्रेन' की। मुश्किल नहीं, बहुत ही आसान काम है। बस बैंक से हज़ारों करोड़ का क़र्ज़ लो और विदेश भाग जाओ। कहीं कोई रुकावट नहीं। न तो यहाँ इमाइग्रेशन वाले रोकेंगे और न ही वहाँ की कोई बॉर्डर एजेंसी रोकेगी। पर यह इतना भी आसान नहीं है जितना आप समझ बैठे हैं। इसके लिए कुछ अहर्ततायें जरूरी हैं। जाति की, राज्य की, धर्म की। लेकिन उनका जिक्र यहाँ नहीं। उनका जिक्र किया तो कोर्ट केस भुगतना पड़ेगा। उनमें से एक का जिक्र कर के तो नेता प्रतिपक्ष कोर्ट केस भुगत ही रहे हैं। बाकी की बता कर मैं भी कोर्ट केस में फंसना नहीं चाहता हूँ। आप समझदार हैं तो खुद ही समझ लीजिये अन्यथा भक्त बने रहिए।

सरकार जी ने पहले कई बार कहा था। और डंका बजा बजा कर कहा था। विदेश में कहा था और अपने ही देश के लिए कहा था। कहा था, "न जाने पिछले जन्म में क्या पाप किया था जो हिंदुस्तान में पैदा हुए। यह भी कोई देश है, यह भी कोई सरकार है। ये भी कोई लोग हैं"। मुझे तो लगता है, सरकार जी ने भी पिछले जन्म में जरूर ही पाप किये होंगे जो हिंदुस्तान में पैदा हुए। 

सरकार जी जब से सरकार जी बने हैं तब से देश से ज्यादा विदेश में रह कर जरूर ही अपने पिछले जन्म के पाप धो रहे हैं। आंकड़े गवाह हैं, सरकार जी के कार्यकाल में ये जो लाखों देशवासी विदेश जा कर बस रहे हैं, अपने पिछले जन्म के पाप ही तो धो रहे हैं। सरकार जी को अधिक से अधिक लोगों को पिछले जन्म के पाप धोने देने का श्रेय तो जाता ही है।

दुबई ने यह जो तेइस लाख में दुबई में स्थाई निवास की स्कीम निकाली थी, वास्तव में ही बहुत अच्छी थी, एक ऑफॉर्डेबल हाउसिंग स्कीम जैसी। आम जनता के लिए, कम खर्च में पिछले जन्म में किये पापों को धोने का सुअवसर। इसके आलावा, दुबई में एक खासियत और है। जिसे अज़ान की आवाज़ हमारे देश में ध्वनि प्रदूषण लगती है, वही आवाज़ उसे वहाँ मधुर संगीत लगने लगती है। और हिन्दू राष्ट्र की खुजली भी कम हो जाती है। 

लेकिन खुदा को भी हमारी खुशियाँ मंजूर नहीं है। दो तीन दिन में ही पता चल गया कि यह तेइस लाख में दुबई में स्थाई निवास की खबर फेक है। पर हम उसे सच मान बैठे। मन है ना, ऐसी ही चीज है। मनपसंद चीज अगर फेक भी हो तो भी उसे सच मान बैठता है। सच तो यह है कि दुबई में बसने के लिए तेइस लाख नहीं, साढ़े चार करोड़ रुपये ही चाहिए। भगवान जाने, पिछले जन्म में किये पापों को कम खर्च में धोने का सुअवसर कब आएगा। पर जरा सब्र करो, सरकार जी की कोशिशों से विदेश में बसने का सबका नम्बर आएगा। और ज्यादा जल्दी है तो 'डंकी रूट' तो है ही ना।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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