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ख़बरों के आगे-पीछे: यूपी में मायावती-ओवैसी साथ आएंगे!

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन, उत्तर प्रदेश, बंगाल, मणिपुर और बिहार की राजनीति की बात कर रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती फिर से भाईचारा बनाने की कोशिश में लगी हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि यह भाईचारा दलित और ब्राह्मण या दलित और अन्य समाज का नहीं, बल्कि दलित और मुस्लिम का है। बताया जा रहा है कि आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर के बढ़ते असर की काट में मायावती को यह विकल्प दिख रहा है कि वे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ तालमेल करके लड़े तो उत्तर प्रदेश में अपना जातीय आधार बचा सकती हैं। वे कांग्रेस की ओर से मुस्लिम और दलित को साधने के लिए किए जा रहे प्रयासों को पंक्चर करने के लिए भी इस दिशा में सोच रही हैं। इसलिए उनकी इस योजना को भाजपा का ब्लूप्रिंट माना जा रहा है।

असल में बिहार विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर जीते इकलौते उम्मीदवार ने जीत के बाद मायावती और ओवैसी की तस्वीर के सामने खड़े होकर मीडिया से बात की। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार भी उनके साथ थे। इससे यह कयास शुरू हुआ है कि बसपा और एमआईएम का तालमेल हो सकता है। ध्यान रहे बिहार में ओवैसी की पार्टी एमआईएम 28 सीटों पर लड़ी थी और उनमें से 20 सीटों पर एनडीए की जीत हुई है। एमआईएम के अपने पांच उम्मीदवार जीते हैं और उसे नौ लाख से ज्यादा वोट मिला है। अगर उत्तर प्रदेश में बसपा और एमआईएम साथ आते हैं तो यह कांग्रेस के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के लिए भी बड़ा सिरदर्द होगा।

पीके से सवाल पूछने वालों से सवाल?

बिहार में चुनाव के पहले तक मुख्यधारा का जो मीडिया प्रशांत किशोर को एक मजबूत विकल्प के तौर पर पेश कर रहा था, अब वही मीडिया उन पर सवालों की बौछार कर रहा है। चुनाव नतीजों के बाद प्रशांत किशोर अपनी टीम के साथ मीडिया के सामने आए तो मीडियाकर्मी उन पर बुरी तरह टूट पडे। सबसे ज्यादा सवाल इस बात को लेकर पूछा गया कि उन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार को 25 से ज्यादा सीटें आ गई तो वे राजनीति छोड़ देंगे और अगर जन सुराज पार्टी को साधारण बहुमत जितनी सीटें आती हैं तो वे इसको अपनी हार मानेंगे। उनसे बार-बार पूछा गया कि क्या वे अब राजनीति छोड़ेंगे? प्रशांत किशोर ने इस सवाल का भी जवाब दिया। 

मगर सवाल मीडिया से भी है कि उसने नीतीश कुमार और अमित शाह से कभी सवाल पूछा? नीतीश कुमार ने जब एनडीए छोड़ कर राजद से गठबंधन किया था तो कहा था कि मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन अब भाजपा के साथ नहीं जाएंगे। लेकिन वे फिर भाजपा के साथ गए। इसी तरह जब उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ा तो अमित शाह ने कहा था कि नीतीश के लिए अब भाजपा के खिड़की-दरवाजे सब बंद हैं। लेकिन फिर भाजपा ने लाल कालीन बिछा कर नीतीश का स्वागत किया। क्या किसी ने नीतीश कुमार अमित शाह से इस बारे में सवाल पूछा? पूछा होता तो नीतीश तो फिर भी जवाब दे देते लेकिन अमित शाह से सवाल करने के बारे में तो कोई सोच भी नहीं सकता। 

पीएमओ की बात गृह मंत्रालय नहीं मानता!

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा है कि अलग गोरखालैंड को लेकर गोरखा समूहों से वार्ता के लिए केंद्र की ओर से नियुक्त वार्ताकार के मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय ने राज्य सरकार से वादा किया था कि इस पर विचार किया जाएगा। लेकिन पीएमओ की बात पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ध्यान नहीं दिया और उसकी ओर से नियुक्त वार्ताकार ने 10 नवंबर को आधिकारिक रूप से वार्ता शुरू करने की घोषणा कर दी। यह बताने के लिए ममता बनर्जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी, जिसमें उन्होंने वार्ताकार की नियुक्ति के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखी चिट्ठी और उस पर पीएमओ की ओर से आए जवाब की कॉपी भी जारी की। उन्होंने पढ़ कर सुनाया कि पीएमओ की ओर से वार्ताकार की नियुक्ति पर विचार करने को कहा गया था। लेकिन उसके बाद वार्ताकार बनाए गए पूर्व आईपीएस अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने 10 नवंबर को चिट्ठी जारी कर दी।

ममता बनर्जी का कहना है कि केंद्र ने राज्य सरकार से सलाह मशविरा नहीं किया गया और एकतरफा तरीके से वार्ताकार की नियुक्ति कर दी, सरकार का यह कदम संविधान में शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से को अलग राज्य बनाने की मांग का भाजपा के कई नेता समर्थन कर रहे है। अगले साल के चुनाव से पहले यह बहुत संवेदनशील मामला है। हालांकि यह दोधारी तलवार की तरह है। भाजपा अगर राज्य के बंटवारे का कोई भी प्रयास करती है तो उसे पूरे राज्य में इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।

मणिपुर में सरकार बनाने की कवायद

भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर मणिपुर में सरकार बनाने की कवायद कर रही है। इसी सिलसिले में भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष और पूर्वोत्तर में भाजपा का काम संभाल रहे सांसद संबित पात्रा हाल ही में मणिपुर गए थे। गौरतलब है कि इस साल के शुरू से मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है और विधानसभा निलंबित रखी गई है। लेकिन एक तो विधानसभा अनंतकाल तक निलंबित नहीं रखी जा सकती है और दूसरे डेढ़ साल के बाद विधानसभा का चुनाव होने वाला है। इसलिए भाजपा के नेता इस बात को लेकर परेशान है कि वे चुनाव की तैयारी करें या सरकार गठन का इंतजार?

पूर्व केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला राज्य के राज्यपाल है। राष्ट्रपति शासन लागू करने और उसके बाद हुए कई समझौतों के कारण राज्य में लगभग शांति बहाल हो गई है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार और भाजपा दोनों कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। एक तो भाजपा में कई खेमे बन गए हैं, जो मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह भी अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं हैं। लोकसभा चुनाव में दोनों सीटों पर हार जाने के कारण भाजपा चुनाव को लेकर चिंता में है। इसलिए माना जा रहा है कि अगर सरकार बनाने की संभावना दिखती है तो एक महीने के अंदर सरकार गठन हो जाएगा। अगर सरकार बनाना संभव नहीं हुआ तो विधानसभा भंग हो जाएगी और अगले साल असम के साथ मणिपुर में भी चुनाव होगा। 

ज्योतिष की सलाह पर शपथ का समय

बिहार में नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है लेकिन यह पहली बार हुआ कि उन्होंने ज्योतिष के बताए समय के हिसाब से शपथ ली। पहले नीतीश कुमार को गांधी मैदान में दिन में एक बजे शपथ लेनी थी। लेकिन बाद में उसे बदल कर साढ़े 11 बजे कर दिया गया। राजभवन की ओर से जो निमंत्रण पत्र भेजा गया उसमें एक बजे का समय दिया गया था। बड़ी संख्या में लोगों को एक बजे का निमंत्रण मिल गया। बताया जा रहा है कि बाद में किसी ज्योतिष ने कहा कि एक बजे का समय ठीक नही है। ज्योतिष के हिसाब से साढ़े 11 बजे का समय तय किया गया।

जब समय बदला तो दोबारा कार्ड छपवाने का समय नहीं था। इसीलिए जो निमंत्रण पत्र बाद में भेजे गए उनमें पेन से एक बजे की जगह साढ़े 11 बजे का समय लिखा गया। इतना ही नहीं ज्योतिष ने सलाह दी कि शपथ साढ़े 11 बजे से शुरू होकर 11 बज कर 50 मिनट तक समाप्त हो जाना चाहिए। यानी शपथ के लिए सिर्फ 20 मिनट का विंडो था। इसीलिए पहले कहा जा रहा था कि इस अवधि में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री की शपथ हो जाए तब भी ठीक है। लेकिन बाद मे रास्ता निकाला गया कि मुख्यमंत्री और दोनों उप मुख्यमंत्रियों की शपथ के बाद मंत्रियों को पांच-पांच के बैच में शपथ दिलाई गई और इस तरह 11 बज कर 50 मिनट के विंडो में शपथ का काम पूरा किया गया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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