एक्सक्लूसिवः झूठी उड़ान (भाग-2)

रफ़ाल सौदे की क़रार को लेकर अनिल अंबानी के रिलायंस समूह की मदद करने के लिए भारत सरकार के नियमों का उल्लंघन रक्षा ख़रीद प्रक्रिया तक ही सीमित नहीं है। इसे विशेष रूप से न्यूज़़क्लिक द्वारा प्रकाशित किया गया है।
https://www.newsclick.in/
यह भी सामने आया है कि डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रोमोशन (डीआईपीपी) के नियमों का भी रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड (आरएएल)द्वारा उल्लंघन किया गया है। इसे फ्रांसीसी विमान निर्माता डसॉल्ट एविएशन द्वारा ऑफ़सेट अनुबंध में शामिल किया गया था।
इस अनुबंध के चलते डसॉल्ट और आरएएल के बीच संयुक्त उद्यम (जेवी) का निर्माण हुआ जिसे डसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) कहा जाता है और नागपुर में रफ़ाल विमान और सिविल एयरक्राफ्ट फाल्कन के कल-पुर्जों के निर्माण के लिए नागपुर में एक संयंत्र की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ.
कॉर्पोरेट मामलों की वेबसाइट मंत्रालय के अनुसार, 24 अप्रैल, 2015 को आरएएल को एक कंपनी के रूप में शामिल किया गया था। लेकिन रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) की एक अन्य कंपनी रिलायंस कैपिटल लिमिटेड की वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 16 जून, 2015 को आरएएल ने भूमि आवंटन के लिए महाराष्ट्र सरकार को आवेदन दिया था।
29 अगस्त 2015 को, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी और रिलायंस एडीएजी के चेयरमैन अनिल अंबानी की मौजूदगी में आरएएल को 289 एकड़ के प्रारंभिक आवंटन के अलावा 105 एकड़ भूमि आवंटन का पत्र सौंपा। संबंधित सरकारी विभाग से कई स्मरणपत्रों के बाद एडीएजी ने 289 एकड़ के लिए पूर्व निर्धारित मूल्य का भुगतान करने में असमर्थता के चलते भूमि क्षेत्र को कम करने का फैसला किया था।
आरएसी को लाइसेंस दिए बिना बनाया गया जेवी
हालांकि, अप्रैल 2015 में आरएएल को डीआईपीपी से न तो मंज़ूरी मिली थी और न ही लाइसेंस की प्राप्ति हुई थी। डसॉल्ट के खुद के बयान के अनुसार इसी समय आरएएल के साथ संयुक्त उद्यम बनाया गया था (जेवी के गठन की तारीख़ को लेकर विवाद यहां स्पष्ट किया गया है)।
https://thewire.in/government/
21 नवंबर, 2015 को फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने प्रकाशित किया कि "डीआईपीपी ने रिलायंस इंफ्रा की आठ सहायक कंपनियों के 11 प्रस्तावों को सशर्त मंज़ूरी दे दी है, जिसमें रिलायंस डिफेंस टेक्नोलॉजीज, रिलायंस हेलीकॉप्टर, रिलायंस प्रोपल्सन सिस्टम्स, रिलायंस एयरो-स्ट्रक्चर और रिलायंस नेवल सिस्टम्स शामिल हैं।"
दरअसल, डीआईपीपी का कहना है - "जनवरी 2011 से 3 जुलाई 2018 तक रक्षा उद्योगों के तहत वस्तुओं के निर्माण के लिए जारी औद्योगिक लाइसेंसों की सूची में" - कि आरएएल को 22 फरवरी, 2016 को लाइसेंस प्राप्त हुआ। यह अप्रैल 2015 के 10 महीने के बाद हुआ था जब जेवी का गठन किया गया था।
http://dipp.nic.in/sites/
केवल सैन्य एयरक्राफ्ट के लिए लाइसेंस
इसके अलावा, आरएएल को केवल "सैन्य इस्तेमाल के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए हवाई जहाज और हेलीकॉप्टरों क अपग्रेड करने और निर्माण के लिए" ही लाइसेंस मिला था।
और तब भी जेवी के मिहान संयंत्र के उद्घाटन के बाद 27 अक्टूबर 2017 को डसॉल्ट एविएशन की एक प्रेस विज्ञप्ति में ये लिखा गया है:
"डीआरएएल डसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित सिविल जेट की लीगेसी फाल्कन 2000 श्रृंखला के लिए पुर्ज़ों का निर्माण करेगा और इस तरह इसकी ग्लोबल सप्लाई चैन का हिस्सा बन जाएगा। आने वाले वर्षों में रफ़ाल और फाल्कन विमान की अंतिम प्रक्रिया की संभावित स्थापना के बाद ये पहला कार्य प्राप्त होने की उम्मीद है।"
यह उस लाइसेंस का स्पष्ट उल्लंघन है जिसे आरएएल ने डीआईपीपी से प्राप्त किया है।
कोई कंपनी केवल सैन्य विमान के पुर्ज़ों के निर्माण के लिए लाइसेंस नहीं ले सकती है, और फिर उसी लाइसेंस के तहत नागरिक विमान के लिए पुर्ज़ों का निर्माण करने के लिए एक संयुक्त उद्यम में प्रवेश कर सकती है। तो आरएएल ने ऐसा कैसे किया?
हाल ही में 21 सितंबर, 2018 को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकोइस ओलांद के उस खुलासे के बाद जिसमें उन्होंने कहा था कि मोदी सरकार ने रिलायंस के अलावा ऑफसेट पार्टनर के लिए डसॉल्ट को कोई अन्य विकल्प नहीं दिया था, डसॉल्ट ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी किया जिसमें इस प्रकार कहा गया:
https://www.dassault-aviation.
"डसॉल्ट एविएशन और रिलायंस ने फाल्कन और रफ़ाल विमान के पुर्जों को बनाने के लिए नागपुर में एक संयंत्र स्थापित किया है।"
उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम 1951 के तहत, अध्याय 3 की धारा 11 ए में सूचीबद्ध उद्योगों के विनियमन के बारे में इस प्रकार कहा गया है:
http://dipp.nic.in/sites/
"केंद्र सरकार को छोड़कर औद्योगिक उपक्रम का मालिक जो धारा 10 के तहत पंजीकृत है या जिसके संबंध में धारा 11 के तहत लाइसेंस या अनुमति जारी की गई है, तब तक कोई नई वस्तु उत्पादन या निर्माण नहीं करेगा-
- 1. धारा 10 के तहत पंजीकृत औद्योगिक उपक्रम के मामले में, उसने ऐसे नए वस्तु के निर्माण के लिए लाइसेंस प्राप्त किया है; तथा
- 2. औद्योगिक उपक्रम के मामले में जिसके संबंध में कोई लाइसेंस या अनुमति धारा 11 के तहत जारी किया गया है, उसके पास निर्धारित तरीके से संशोधित की गई मौजूदा लाइसेंस या अनुमति है।"
पते में बदलाव
इसके अलावा, अनिल अंबानी के रिलायंस समूह के अधीन आरएएल सहित सभी 11 रक्षा कंपनियां एक ही पता बताती हैं - सर्वे नबंर 589, तालुका जाफ़राबाद, गांव लुनसापुर, ज़िला अमरेली, गुजरात।
फिर, यह डीआईपीपी नियमों का उल्लंघन है जो स्पष्ट रूप से बताती हैं कि किसी भी कंपनी के प्रारंभिक पंजीकरण में उल्लिखित उक्त स्थान के अलावा कोई भी स्थान या क्षेत्र में परिवर्तन मान्य नहीं होगा, और एक नया पंजीकरण करने की आवश्यकता होगी।
लेकिन आरएएल द्वारा नया लाइसेंस लेने या पते के परिवर्तन के लिए आवेदन करने का कोई सबूत नहीं है। तो यह कैसे हुआ कि आरएएल ने गुजरात में किसी पते पर लाइसेंस के लिए आवेदन किया लेकिन संयंत्र महाराष्ट्र में स्थित है?
यद्यपि, प्राथमिक महत्व के प्रश्न ये हैं:
क्या रक्षा मंत्रालय (एमओडी) - रफ़ाल ऑफ़सेट अनुबंध के मूल्यांकन में - को आरएएल के डीआईपीपी नियमों के उल्लंघन की जानकारी नहीं थी? यदि ऐसा हुआ, तो कंपनी की क्षमता के साथ साथ आरएएल द्वारा इन उल्लंघनों की जांच एमओडी को नहीं करना चाहिए था? और अगर उसने इनकी जांच की, तो मंत्रालय ने इन उल्लंघनों को कैसे नज़रअंदाज़ कर दिया?
या क्या रक्षा मंत्रालय इन उल्लंघनों के बारे में पूरी तरह अनजान था- जैसा कि दावा करती है कि सरकार इस बात से अनजान थी कि डसॉल्ट का भारतीय ऑफसेट पार्टनर कौन था?
रवि नायर ने रफ़ाल घोटाले की स्टोरी का खुलासा किया था और इस विषय पर एक पुस्तक लिख रहे हैं। न्यूज़़क्लिक के लिए उनके एक्सक्लूसिव का यह दूसरा हिस्सा है।
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