कटाक्ष: सब जीते, हारा कोई नहीं!

विरोधी कम से कम अब तो मानेंगे कि मोदी जी विश्व गुरु हैं। युद्ध विराम का ऐसा चमत्कार क्या विश्व गुरु के सिवा और कोई कर सकता है? ऐसा युद्ध विराम, जिसमें सब जीते हैं, हारा कोई नहीं है।
सब जीते हैं, माने सचमुच सब जीते हैं। भारत को तो खैर जीतना ही था। इसलिए नहीं कि वह पाकिस्तान से कई गुना बड़ा है। इसलिए नहीं कि उसके पास पाकिस्तान से कई गुना बड़ी सेना है। पाकिस्तान से कई गुना बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसलिए भी नहीं कि गलती पाकिस्तान की थी, जो आतंकवादियों को सिर्फ पनाह ही नहीं, पैसा-हथियार, सब कुछ देता है। इसलिए भी नहीं कि पहलगाम हत्याकांड में भारत आतंकवाद का शिकार था, और इस कांड की सारी दुनिया ने निंदा की थी, जबकि कोई मुंह से कहे या नहीं कहे, सारी दुनिया को इसका एहसास था कि पाकिस्तान किसी न किसी तरह इन आतंकवादियों का शरीक-ए-गुनाह था। भारत को सबसे बढक़र इसलिए जीतना था क्योंकि उसके पास मोदी जी हैं; छप्पन इंच की छाती वाले मोदी जी!
और मोदी जी अकेले थोड़े ही हैं। मोदी जी के पास आईटी सेल से चलने वाली ट्रोल सेना है, जो पलभर में सच को झूठ और झूठ को सच कर सकती है और मोदी जी के बड़े से बड़े दुश्मन को हाथ मिलाते ही चित्त कर सकती है। मोदी जी के पास संघ परिवार है, जो इन सब को आपस में और मोदी जी के साथ मजबूती से बांधकर रखता है। और मोदी जी के पास बल्कि उनकी गोदी में, गोदी मीडिया है, जो युद्ध शुरू होने से पहले ही मोदी जी की जीत का शंखनाद करने का एक्सपर्ट है। गोदी मीडिया, जिसने एक गोला तक दगे बिना करांची बंदरगाह को पूरी तरह से तबाह करा दिया। गोदी मीडिया, जिसने पाकिस्तान की सीमा में एक पांव तक रखे बिना, रावलपंडी पर भारत का कब्जा करा दिया। गोदी मीडिया, जिसने एक ही शाम में किसी चैनल पर आधे तो किसी चैनल पर पूरे पाकिस्तान पर, भारत का झंडा फहरा दिया। गोदी मीडिया, जिसने किसी के जरा सी आवाज तक उठाए बिना, पाकिस्तानी सेना के प्रमुख का तख्ता पलटवा दिया। ऐसी-ऐसी सेनाओं के ऊपर से, देश की सरकारी फौज और, मोदी जी के नये भारत को तो जीतना ही था।
और जीतना, पाकिस्तान को भी था। माना कि पाकिस्तान के पास नरेंद्र मोदी नहीं हैं और उसे शहबाज शरीफ से ही काम चलाना पड़ रहा है। पर पाकिस्तान के पास सेना प्रमुख आसिम मुनीर भी तो हैं, असली हुक्म जिनका ही चलता है। मुनीर की छाती छप्पन इंच से ज्यादा न सही, पर उससे कम भी नहीं है। शरीफ और मुनीर के पास आइटी सेल न सही, पर पाकिस्तान के पास भी ट्रोल सेना तो है। और तरह-तरह के नॉन स्टेट एक्टर्स की सेनाएं भी। शरीफ और मुनीर की गोदी में न सही, पर पाकिस्तान के पास गोदी टीवी तो जरूर है। ऐसा गोदी टीवी जिसने भारत के पटना बंदरगाह की जंगी तबाही की कहानी सुना दी, जिसके बाद से सुनते हैं कि पटना वाले ढूंढ ही रहे हैं कि उनके हिस्से का समंदर कहां है?
ऐसी-ऐसी फौजों के ऊपर से पाकिस्तान की सरकारी सेना भी। पाकिस्तान को भी जीता हुआ घोषित होना ही था। जुड़वांओं की नियति भी तो जुड़ी हुई बतायी जाती है। फिर इतिहास भी तो यही बताता है। 1948 से लेकर 2019 तक, हर बार पाकिस्तान में पाकिस्तान ही जीता है, 1971 में भी। फिर पाकिस्तान इसी बार जीतने से कैसे चूक सकता था।
पर मोदी जी के विश्व गुरुडम का कमाल देखिए, उन्होंने भारत और पाकिस्तान को तो खैर जितवाया ही, इस बार ट्रंप साहब को भी जितवा दिया। तभी तो युद्ध विराम से भारत और पाकिस्तान से भी ज्यादा, ट्रंप साहब खुश हैं। और ट्रंप साहब खुश क्यों न हों। इस्राइल और फिलिस्तीन के युद्ध में तो खैर ट्रंप साहब इस्राइल के पाले में खेल रहे हैं, फिर भी ग़ज़ा के खाली कराए जाने की उनकी मंशा आसानी से पूरी होने के आसार नहीं हैं; पर रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध रुकवाने के लिए तो ट्रंप साहब राष्ट्रपति की गद्दी संभालने से भी पहले से लगे हुए थे। पर बात चंद दिनों के सीजफायर से आगे नहीं जा पायी है, जबकि लड़ाई सालों से जारी है। पर भारत और पाकिस्तान के बीच सिर्फ चार दिन में सीजफायर हो गया: 7 को लड़ाई शुरू हुई, 10 को सीज फायर हो गया। इतनी क्विक डिलीवरी पर भी ट्रंप जी खुश नहीं होते तो कब खुश होते।
लेकिन, इससे जो मोदी जी के विरोधी अमरीका से मध्यस्थता कराए जाने का शोर मचा रहे हैं और मोदी जी को शिमला समझौते के दोनों देशों के झगड़े में किसी तीसरे का दखल मंजूर नहीं करने के संकल्प की याद दिला रहे हैं, वह सब गलत है। माना कि ट्रंप ने दोनों देशों के बीच सीजफायर होने का एलान किया है। खुद भारत और पाकिस्तान ने बाद में, ट्रंप ने ही सबसे पहले यह सीजफायर होने का एलान किया है। माना कि ट्रंप ने ही फौरन और मुकम्मल सीजफायर का एलान किया है। लेकिन, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि अमरीका के कहने से सीजफायर हुआ है! बेशक, ट्रंप ने यह कहा है, अमरीका के उप-राष्ट्रपति ने कहा है, अमरीका के विदेश सचिव ने कहा है, कि अमरीका की मध्यस्थता में सीजफायर हुआ है। लेकिन, भारत ने और यहां तक कि पाकिस्तान ने भी कहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत से सीजफायर हुआ है। भारत और पाकिस्तान में जो देशभक्त हैं, वे भारत और पाकिस्तान की बात सच मानेंगे या अमरीका की? फिर हमारी सेहत पर क्या फर्क पड़ता है, ट्रंप जी कुछ भी कहें और कुछ भी मानें।
इसीलिए, मोदी जी किसी ट्रंप-वंप की बात का खंडन करने के चक्कर में नहीं पड़ने वाले। उल्टे उनके हिसाब से तो यह अच्छी बात है कि ट्रंप शासन यह मानकर खुश हो रहा है कि उसकी मध्यस्थता में सीजफायर हुआ है। हमारी हल्दी लगी न फिटकरी और रंग चोखा! बल्कि यही सोचकर भारत और पाकिस्तान ने ट्रंप को सबसे पहले सीजफायर का एलान करने का मौका दे दिया। सिर्फ एलान करने में अगला जीत मानने को तैयार है, इससे सस्ता सौदा और क्या होगा? सब जीते, हारा कोई नहीं। रही पब्लिक की बात, तो उस बिचारी ने युद्ध मांगा ही कब था!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं)
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