चेन्नई: सेलम सड़क प्रोजेक्ट की जाँच करने की ज़रूरत

तमिलनाडु में इस समय केंद्र सरकार से वित्तपोषित दो बड़ी परियोजनाएँ चल रही हैं। पहली है, चेन्नई-सेलम आठ लेन सड़क प्रोजेक्ट और दूसरी है सलेम एयरपोर्ट प्रोजेक्ट। इन दोनों प्रोजेक्ट के लिए बहुत बड़े स्तर पर भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है, सेलम में केवल एयरपोर्ट बनाने के लिए तकरीबन 570 एकड़ ज़मीन अधिगृहीत की जानी है। इस भूमि अधिग्रहण का जनता बहुत कठोर विरोध भी कर रही है। तकरीबन दस हज़ार करोड़ रूपये की भारी भरकम राशि से 277 किलोमीटर आठ लेन सड़क प्रोजेक्ट की शुरआत ज़िला सलेम के अरियांपुर से होगी और समाप्ति चेन्नई के वंदालुर पर होगी। तकरीबन 1900 एकड़ ज़मीन अधिग्रहण करने के बाद बनने वाली इस सड़क से फायदा यह बताया जा रहा है कि इस एक्सप्रेसवे के बनने पर सेलम से चेन्नई की दूरी तय करने लगने वाले समय में तकरीबन 3 घंटे की कमी आएगी। इस प्रोजेक्ट के लिए तकरीबन 6,000 एकड़ खेती की ज़मीन अधिग्रहित की जाएगीI
इस प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन हथियाने का किसानों ने विरोध किया जो बढ़ता गया। अब हालत यह कि ज़मीन अधिग्रहण के खिलाफ लोगों के बीच आंदोलित रवैया पनप चुका है। पुलिस इस विरोध को शांत करने के लिए कानूनों की परवाह किये बिना दमनात्मक कार्यवाही कर रही है। ज़मीन मालिकों और विरोधियों के खिलाफ पुलिसिया दमन खुलेआम जारी है। जब इस दमन के खिलाफ मानव अधिकार कार्यकर्ताओं की टुकड़ी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट बनाने निकलती है तब इन्हें रोकने के लिए पुलिस इनके साथ बदसलूकी करती है - जैसा कि योगेंद्र यादव के खिलाफ अपनाया गया। किसानों के दुःख दर्द को सत्ता तक पहुँचाने की कोशिश में लगे योगेंद्र यादव को तमिलनाडु पुलिस ने केवल इसलिए गिरफ्तार कर लिया क्योंकि वह उन लोगों के दुःख दर्द को समझने जा रहे थे, जो चेन्नई-सलेम की 8 लेन सड़क के विकास में तबाह होने के कगार पर पहुँचने वाले हैं। कुछ घण्टों तक पुलिस हिरासत में रखने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया।
प्रोजेक्ट विरोध अभियान में खड़े किसान इस प्रोजेक्ट की वजह से होने वाली तबाही का उदहारण देते हुए कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट के लिए अरियांपुर से मंजूवाड़ी के बीच 37 किलोमीटर ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना है, इस ज़मीन पर धान, सुपारी, नारियल और बागवानी की अच्छी खासी खेती होती है। ज़मीन हथियाने की वजह से यहाँ की पूरी खेती बर्बाद हो जाएगी, पूरी जीवन शैली तबाह हो जाएगी। साथ ही उन्हें उनकी ज़मीनों का सही मुआवज़ा भी नहीं दिया जा रहाI
इस प्रोजेक्ट पर प्रशासन का पक्ष है कि कुछ चुनिंदा किसान ही इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं और इन किसानों की संख्या बहुत कम है। लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे इतर है। बहुत सारे किसानों ने शिकायत की है। पुलिस गाँवों में गश्त लगाती रहती है ताकि किसी को भी विरोध में इकठ्ठा होने न दिया जाए। स्थानीय पुलिस और प्रशासन इस प्रोजेक्ट के खिलाफ उठने वाली किसी भी तरह की आलोचना के प्रति शून्य सहनशीलता दिखा रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट की ज़रूरत पर उठने वाले किसी भी तरह के सवालों को कुचला जाता है, जो लोग सवाल उठाते हैं, उनके साथ पुलिस ज़ोर ज़बरदस्ती करती है। योगेंद्र यादव ने अपने एक बयान में कहा है कि, ''यहाँ पर कुछ तो गलत चल रहा है। जिस तरह से स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने बर्ताव किया, वह केवल गुस्सा नहीं है। यह आदेश ऊपर बैठे लोगों की तरफ से आया है, साफ़तौर पर दिखता है कि इसमें बहुत बड़ा आर्थिक फायदा शामिल है, जिसे सुरक्षित रखने की भरसक कोशिश की जा रही है। मैं तो यहाँ केवल साधरण फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के उद्देश्य से आया था लेकिन स्थानीय नौरशाही की घबराहट सुनिश्चित करती है कि यहाँ बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, जो अभी भी आँखों से ओझल है। निश्चित रूप से यहाँ के सच की बड़े स्तर पर जाँच पड़ताल करने की ज़रूरत है।"
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया (मार्क्सवादी) के राज्य सचिव के बालकृष्णन कहते हैं कि, ''इस प्रोजेक्ट में आने वाले गाँवों में इमरजेंसी जैसे हालत है। जो लोग इस प्रोजेक्ट के खिलाफ संगठन बनाते हैं और इस प्रोजेक्ट के लिए हथियाई जाने वाली ज़मीनों के सर्वे के खिलाफ खड़े होते हैं, उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। ऐसा नहीं है कि इस प्रोजेक्ट की वजह से केवल किसानी की ज़मीन हाथ से निकल जाएगी बल्कि लोगों के घर, गांव के गांव और पूरी जीवनशैली बरबाद हो जाएगी।''
इस प्रोजेक्ट के तहत तकरीबन 120 एकड़ वन्य ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना है। आठ वन्य संरक्षण के इलाकों से होते हुए यह सड़क गुज़रेगी। यह सब होना है लेकिन पर्यावरण और वन मंत्रालय की अब तक इसपर कोई पुख्ता रिपोर्ट नहीं आयी है। प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि यहाँ केवल 6,400 पेड़ कटेंगे।
इस प्रोजेक्ट को लेकर एक बड़ा अंदेशा यह लगाया जा रहा है कि विकास के नाम पर बनाई जा रही इन सड़कों का असली मकसद माइनिंग सेक्टर से जुड़े कॉर्पोरेट हितों को फायदा पहुँचाना है। अन्यथा क्या वजह है कि सलेम और चेन्नई के बीच जब पहले से ही तीन अलग-अलग तरह के रूट मौजूद हैं तो नया रूट बनाया जा रहा है? क्या वजह है कि ज़मीनों पर मौजूद खेती-बाड़ी और जीवनशैली का अंत कर कंक्रीट का विकास किया जा रहा है?
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