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ख़बरों के आगे-पीछे: महाराष्ट्र में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के लिए पैसा!

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में महाराष्ट्र सहित कई राज्यों की राजनीति पर बात कर रहे हैं। साथ ही सवाल उठा रहे हैं कि “कहां पर सुरक्षित है बोलने की आज़ादी?”
Maharashtra Assembly
महाराष्ट्र विधानसभा (फ़ाइल फ़ोटो)

संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने के तो एक से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। सबसे बड़ा मामला 2005 में हुआ था, जब 11 सांसदों को संसद में सवाल पूछने के मामले में बरखास्त किया गया था। उनमें से ज्यादातर भाजपा के सांसद थे। अब भाजपा के शासन वाले महाराष्ट्र में पैसे लेकर सवाल पूछने से भी ज्यादा बड़ा मामला सामने आया है। यह मामला है पैसे लेकर विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाने का। इसका भंडाफोड़ तो उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने किया है लेकिन भाजपा सहयोगी एनसीपी के नेता भी इससे सहमत दिख रहे हैं। 

उद्धव ठाकरे की शिव सेना के नेता भास्कर जाधव ने बीते बुधवार को यह कह कर सनसनी मचा दी कि विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर के कार्यालय को पैसे देकर मैनेज किया गया है। उन्होंने सीधे स्पीकर पर आरोप नहीं लगाया लेकिन कहा जा रहा है कि कई विधायकों ने उनके कार्यालय को पैसे दिए और बदले में उन विधायकों के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। वे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए अलग-अलग मुद्दे उठा रहे हैं। निश्चित रूप से ये मुद्दे उठाने के पीछे उनका कोई हित होगा, जो जांच होने पर ही सामने आएगा। भाजपा की सहयोगी अजित पवार की एनसीपी ने इससे सहमति जताई है और कहा कि अचानक विधानसभा में ढेर सारे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव आने लगे हैं। ज्यादा ध्यानाकर्षण प्रस्ताव आने से विधायकों को बजट पर अपनी बात रखने का मौका नहीं मिल पा रहा है। अब देखना है कि इसकी जांच कैसे होती है या नहीं होती है! 

देश में कांग्रेस सबसे गरीब पार्टी!

कांग्रेस पार्टी इस समय आर्थिक संकट से गुजर रही है। पिछले 11 साल से केंद्र की सत्ता से बाहर होने और ज्यादातर राज्यों में चुनाव हारने की वजह से भी कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गई है कि वह देश की एक दर्जन राष्ट्रीय और बड़ी प्रादेशिक पार्टियों में सबसे गरीब है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव्स के वेंकेटेश नायक की ओर से किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि पिछले साल के लोकसभा चुनाव में सबसे कम पैसे जुटाने वाली पार्टियों में से एक कांग्रेस है और चुनाव के बाद पार्टियों के खाते मे जो पैसा बचा है उस लिहाज से भी कांग्रेस सबसे नीचे है। इस अध्ययन में पार्टियों के केंद्रीय मुख्यालय और राज्य कार्यालयों के फंड को शामिल किया गया है। एक दर्जन पार्टियों की सूची में बहुत भारी अंतर के साथ भाजपा सबसे ऊपर है और कांग्रेस सबसे नीचे है। बीच में तमाम प्रादेशिक पार्टियां हैं, जो सरकार में हैं या बरसों से सत्ता से बाहर हैं। 

हैरानी की बात है कि राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही बहुजन समाज पार्टी के पास भी कांग्रेस से तीन गुना से ज्यादा पैसा है। इस अध्ययन के मुताबिक पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के पास करीब 263 करोड़ रुपए का फंड था और चुनाव के बाद 134 करोड़ बचा। लोकसभा चुनाव से पहले देश की 22 पार्टियों के खाते का बैलेंस 11,326 करोड़ रुपए का था, जो लोकसभा चुनाव के बाद बढ़ कर 14,848 करोड़ रुपए का हो गया। इसका मतलब है कि कई पार्टियों को इतना पैसा मिला कि वे चुनाव में खर्च नहीं कर सकीं और उनके पैसे बच गए। चुनाव के बाद जो बैलेस बढ़ा है उसमें लगभग सारा पैसा भाजपा का है। पिछले साल लोकसभा चुनाव शुरू हुआ था तो भाजपा का ओपनिंग बैलेंस करीब 5,922 करोड़ रुपए का था। जून में चुनाव खत्म होने के बाद भाजपा के खाते में 10,107 करोड़ रुपए बचे। 

कर्नाटक का हनी ट्रैप मामला 

कर्नाटक में हनी ट्रैप का मामला तूल पकड़ता जा रहा है लेकिन हैरानी की बात है कि एक हफ्ते से ज्यादा समय से चर्चित इस मामले में अभी तक पुलिस की एंट्री नहीं हुई है। जैसा कि कांग्रेस सरकार के सहकारिता मंत्री राजन्ना दावा कर रहे है कि 48 नेताओं की सीडी और पेन ड्राइव बनी हुई है, जिनमें केंद्रीय मंत्री भी है, तो वे इस मामले की शिकायत पुलिस से क्यों नहीं कर रहे है? उनकी अपनी सरकार है और वे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के सबसे करीबी नेताओं में गिने जाते हैं। दोनों कांग्रेस मे आने से पहले जनता दल में साथ रहे हैं। 

अगर इस मामले में पुलिस की एंटी नहीं हुई है तो उसका कारण यह है कि यह मामला कांग्रेस में चल रहे अंदरुनी विवाद से जुड़ा हुआ है। इस मामले को सुलझाने के लिए बीते को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से उनके आधिकारिक आवास पर मुलाकात की, जिसमें खरगे के बेटे और राज्य सरकार के मंत्री प्रियांक खरगे भी शामिल हुए। दूसरी ओर उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने इस मसले पर चुप्पी साधी हुई है। वे कुछ नहीं बोल रहे है। एक तरफ वे चुप है और दूसरी ओर सिद्धारमैया का खेमा इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने मे लगा है। कहा जा रहा है कि हनी ट्रैप का रैकेट पूरे देश में फैला हुआ है। सवाल है कि क्या सिद्धारमैया खेमा इसमें केंद्रीय एजेंसियों का दखल चाहता है? अगले कुछ दिनों में इसमें कुछ और दिलचस्प खुलासे होंगे।

कहां पर सुरक्षित है बोलने की आज़ादी?

मुंबई में स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के ऊपर हो रहे मुकदमों और उनका स्टूडियो तोड़े जाने के खिलाफ तो खूब आवाजें उठ रही हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा के शासन में बोलने की आजादी सुरक्षित नहीं है। लेकिन सवाल है कि क्या बोलने की आजादी पर खतरा सिर्फ भाजपा शासित राज्यों में ही है या दूसरी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में भी यही स्थिति है? चेन्नई में एक यूट्यूबर के घर पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया क्योंकि उस यूट्यूबर ने स्वच्छता और पेयजल विभाग की पोल खोली थी। कुणाल कामरा की स्टैंडअप कॉमेडी भी यूट्यूब के लिए ही थी। उसी तरह चेन्नई के यूट्यूबर ने सरकारी विभाग में घोटाले की पोल खोलने वाला वीडिया बनाया तो दर्जनों लोगों की भीड़ ने घर पर हमला कर दिया। परिवार के सदस्यों को डराया, धमकाया और तोड़फोड़ की। उसके बाद यह धमकी देकर लौटे कि अगर अगली बार ऐसे वीडियो आए तो सबको घर में बंद करके आग लगा देंगे। 

संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रही एमके स्टालिन की सरकार चुप है। ऐसे ही तेलंगाना मे दो यूट्यूबर्स को कथित रूप से सरकार विरोधी वीडियो डालने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। अदालत ने उनको जमानत दे दी लेकिन मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की इस बात का कोई प्रतिकार नहीं है कि अगर उनकी सरकार पर इस तरह के हमले हुए तो नंगा करके सड़क पर परेड करवा देंगे। कुछ समय पहले ममता बनर्जी का कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट की गिरफ्तारी की खबर भी आई ही थी।

कर्नाटक में भाजपा के बॉस अभी भी येदियुरप्पा!

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भाजपा आलाकमान ने भले ही अनौपचारिक तौर पर सक्रिय राजनीति से अलग कर घर बैठा दिया हो लेकिन वे जब तब यह साबित करते रहते हैं कि कर्नाटक भाजपा के तो बॉस वे ही है। उनका और उनके बेटे कर्नाटक के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र का विरोध करने वाले वरिष्ठ नेता बासनगौड़ा पाटिल यतनाल को अनुशासन की कार्रवाई करते हुए छह साल के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया है। अभी सिर्फ एक ही नेता के खिलाफ कार्रवाई हुई है लेकिन इसके जरिए उन का साथ देने वाले सभी नेताओं को संदेश दे दिया गया है। असल में विधानसभा का चुनाव हारने के बाद से ही कर्नाटक भाजपा के कई नेताओं ने येदियुरप्पा और उनके बेटे के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। बसनगौड़ पाटिल यतनाल इस विरोध का चेहरा है। लेकिन परदे के पीछे से इसमें भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष और पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का भी नाम लिया जा रहा है। इसके अलावा पार्टी के विधायक रमेश जरकिहोली भी इसमें शामिल बताए जाते हैं। अभी इनमें किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। लेकिन बसनगौड़ा यतनाल को पार्टी से निकाल भाजपा नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि कर्नाटक में कम से कम अभी तो वही होगा, जो येदियुरप्पा चाहेंगे। अब देखना है कि उनके बेटे को पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर बनाए रखा जाता है या नहीं। इस विवाद की वजह से ही कर्नाटक में भाजपा संगठन का चुनाव लंबित है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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