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तमिलनाडु में राजनीति फिर से दोध्रुवीयता की ओर

तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव से पहले की सियासी हलचल का विश्लेषण
DMK AIADMK

तमिलनाडु में अगले विधानसभा चुनाव अप्रैल–मई 2026 में होने हैं। लेकिन इन चुनावों से एक साल पहले ही राज्य की राजनीति में बड़े स्तर पर फेरबदल शुरू हो गए हैं। हालिया सियासी घटनाओं में सबसे अहम रहा 12 अप्रैल को बीजेपी नेता अमित शाह द्वारा एआईएडीएमके-बीजेपी (BJP-AIADMK) गठबंधन की पुनर्बहाली की घोषणा। इस कदम ने राज्य की राजनीतिक समीकरणों को बुरी तरह से बदल दिया है और यह दोनों दलों की रणनीति में बड़ा बदलाव दर्शाता है।

एक समय था जब डीएमके (DMK) और एआईएडीएमके (AIADMK) के बीच की पारंपरिक दोध्रुवीयता कमजोर पड़ रही थी और राज्य की राजनीति बहुध्रुवीय (multipolar) और बहुकेन्द्रित (polycentric) होती दिख रही थी। इससे नए राजनीतिक दलों के लिए जगह बनती नजर आ रही थी।
इस दौर में कुछ नए दल उभरे—जैसे वन्नियार समुदाय पर आधारित पट्टाली मक्कल कच्ची ((PMK/Working People’s Party based primarily on the numerically significant Vanniar caste)), अभिनेता विजयकांत द्वारा स्थापित (अब उनकी पत्नी प्रेमलता के नेतृत्व में) देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कळगम (DMDK/Nationalistic Progressive Dravidian Organisation), सीमान का तमिल राष्ट्रवादी दल नाम तमिझर कच्ची (NTK), और हाल ही में अभिनेता विजय द्वारा शुरू की गई तमिऴग वेत्त्रिक कळगम (TVK), जिसकी भव्य शुरुआत 22 अगस्त 2024 को एक बड़ी रैली में हुई।

हालांकि दिखने में राजनीति बहुध्रुवीय लग रही थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में त्रिध्रुवीयता स्पष्ट दिखी।
2021 के विधानसभा चुनावों में साथ लड़े बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन का 2023 में टूटना इस दिशा में एक अहम मोड़ था। एआईएडीएमके के कई नेताओं को लगा कि बीजेपी उनके लिए बोझ बन गई है क्योंकि मुस्लिम मतों (25,000 से 40,000 तक) का नुकसान कई सीटों पर उठाना पड़ा। बीजेपी ने डीएमके का मुख्य विपक्ष बनने के लिए आक्रामक कोशिशें कीं, लेकिन डीएमके ने अपने गठबंधन के साथ मिलकर तमिलनाडु की सभी 39 सीटें जीत लीं।

बीजेपी ने हालांकि 2021 में एआईएडीएमके के कनिष्ठ सहयोगी के रूप में 20 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए जो 2.62% वोट हासिल किए थे, उसे 2024 में अकेले लड़ते हुए 11.38% तक पहुंचा दिया। फिर भी, 20.66% वोटों के साथ एआईएडीएमके ने स्पष्ट किया कि डीएमके के मुकाबले वह ही मुख्य विपक्ष है।

हाल के दिनों में बीजेपी की राष्ट्रीय नेतृत्व को कुछ यथार्थबोध हुआ लगता है। उसने एआईएडीएमके को फिर से साथ लाकर गठबंधन की घोषणा की। एआईएडीएमके नेतृत्व ने भी यह स्वीकार किया कि अकेले एम.के. स्टालिन को सत्ता से बाहर कर पाना संभव नहीं है। इस तरह तमिलनाडु में राजनीति एक बार फिर से दोध्रुवीयता की दिशा में लौटती दिख रही है—बीजेपी-एआईएडीएमके एक ओर और सत्तारूढ़ डीएमके दूसरी ओर।

अन्य दलों में भी अस्थिरता और अंदरूनी उठा-पटक

राज्य के अन्य छोटे दलों में भी उथल-पुथल और अस्थिरता देखने को मिल रही है। जो दल खुद को द्रविड़ पार्टियों के विकल्प के रूप में पेश कर रहे थे, वे अपनी सीमित राजनीतिक ज़मीन को भी और फैला पाने में असफल रहे हैं।

इन तमाम बदलावों की एक केंद्रीय वजह यह रही कि डीएमके सरकार स्थिरता के साथ सत्ता में बनी रही है। सरकार के खिलाफ कोई बड़ा जनविरोध या सत्ता विरोधी लहर (anti-incumbency) नजर नहीं आई है। अपने क्षेत्रीय राष्ट्रवाद, लोकलुभावन योजनाओं और अपेक्षाकृत उत्तरदायी शासन के ज़रिए डीएमके ने एक सकारात्मक छवि बनाई है। इसी वजह से विरोधी दलों को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन और सामाजिक समीकरण

बीजेपी ने अपनी रणनीति बदलते हुए तमिलनाडु में पार्टी अध्यक्ष को बदला। मुखर और आक्रामक भाषण देने वाले के. अन्नामलाई की जगह अपेक्षाकृत संतुलित छवि वाले नैनार नागेन्द्रन को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे सामाजिक समीकरण भी हैं—अन्नामलाई और एआईएडीएमके नेता एडप्पडी पलानीस्वामी दोनों गौंडर समुदाय से आते हैं, जबकि नागेन्द्रन थेवर समुदाय से आते हैं, जो तमिलनाडु के दक्षिणी ज़िलों में प्रभावशाली मुक्कुलथोर समुदाय का हिस्सा है।

असल में यह बदलाव इसलिए किया गया क्योंकि अन्नामलाई के तीखे बयानों और आचरण के कारण ही 2023 में गठबंधन टूटा था। उन्होंने द्रविड़ राजनीति के संस्थापक अन्नादुरई तक को नहीं छोड़ा था, जिससे एआईएडीएमके नेता नाराज़ हो गए थे। इसलिए बीजेपी को नेतृत्व में बदलाव करना पड़ा।

गठबंधन में अंतर्विरोध और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं

बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन में फिर भी अंदरूनी खटास बनी रह सकती है क्योंकि एआईएडीएमके नीति के स्तर पर केंद्र सरकार की कई नीतियों से असहमति जताती रही है—जैसे NEET से तमिलनाडु को छूट देने की मांग, हिंदी थोपे जाने का विरोध, और जनगणना आधारित सीटों के पुनर्वितरण (delimitation) का मुद्दा।

एआईएडीएमके के भीतर एडप्पडी पलानीस्वामी ने पार्टी पर अपनी पकड़ और मज़बूत की है। उन्होंने शशिकला, टीटीवी दिनाकरन और पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम को हाशिए पर डाल दिया है। अमित शाह द्वारा एडप्पडी को गठबंधन का नेता मानने और भावी मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने से उन्हें और मजबूती मिली है।

पीएमके, एनटीके और अन्य दलों की स्थिति

बीजेपी गठबंधन की एक और सहयोगी पार्टी पीएमके भी अंदरूनी कलह का शिकार है। लोकसभा चुनाव में कुछ भी हासिल न कर पाने के बाद डॉ. रामदास और उनके बेटे अंबुमणि रामदास के बीच खींचतान बढ़ गई है। जहां डॉ. रामदास चाहते थे कि पार्टी एआईएडीएमके से गठबंधन करे जिससे कुछ सीटें मिल सकती थीं, वहीं अंबुमणि मंत्रीपद की उम्मीद में बीजेपी के साथ गए। इस मतभेद के पीछे पीएमके के गढ़ में स्थित ट्रस्ट और चीनी सहकारी संस्थानों की संपत्तियों पर नियंत्रण को लेकर भी संघर्ष है।

तमिल राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति करने वाले सीमान की पार्टी भी विवादों में घिरी है। पार्टी की एक महिला नेता के साथ दुराचार के आरोपों के बाद उनकी साख गिरी है और अब कोई भी बड़ा दल उनसे दूरी बनाए हुए है।

डीएमके की सहयोगी पार्टी मारुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कळगम (एमडीएमके) भी अंदरूनी विवादों का सामना कर रही है—वायको और उनके बेटे के बीच तनाव है।

दलित राजनीति करने वाले विदुथलाई चिरुथैगल कच्ची (वीसीके) के नेता तिरुमावलवन ने भी हाल में दावा किया कि बीजेपी ने उन्हें केंद्रीय मंत्री पद का लालच देकर डीएमके से अलग होने का प्रस्ताव दिया। वीसीके भी आंतरिक असंतोष से जूझ रही है—डीएमके सरकार में सहयोगी दलों को उचित प्रतिनिधित्व न मिलने को लेकर असंतोष है।

विजय की पार्टी और भविष्य की दिशा

फिल्म अभिनेता विजय की पार्टी तमिऴग वेत्त्रिक कळगम (TVK) को लेकर तमाम मीडिया प्रचार के बावजूद यह स्पष्ट नहीं है कि वह विधानसभा चुनावों में कैसा प्रदर्शन करेगी। जब राजनीति फिर से दोध्रुवीय हो रही है, तब "डीएमके भी नहीं, बीजेपी भी नहीं" वाला उनका रुख सीमित असर डाल पाएगा।

तमिलनाडु की राजनीति फिर से स्पष्ट दोध्रुवीय संरचना की ओर बढ़ रही है—सत्तारूढ़ डीएमके एक ओर और पुनर्गठित बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन दूसरी ओर। अब देखने वाली बात यह है कि क्या यह गठबंधन डीएमके के मजबूत गढ़ में कोई सेंध लगा पाता है या नहीं। अभी के लिए, डीएमके तमिल क्षेत्रीय हितों की स्वाभाविक प्रतिनिधि बनी हुई है।

(लेखक राजनीतिक और आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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