भारत: किसान आंदोलन पंजाब के राजनीतिक भविष्य को क्या दिशा दे सकता है?

अनुरूप कौर संधू पिछले साल दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर थीं, जब भारत ने अपने पूरे इतिहास में किसानों के सबसे बड़े विरोध प्रदर्शनों में से एक का चश्मदीद बना था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्तारूढ़ सरकार द्वारा बनाए गए विवादास्पद तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर देश के उत्तरी राज्यों से, मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हजारों किसानों ने राजधानी दिल्ली की सीमाओं तक मार्च किया था।
किसानों के महीनों चले विरोध के बाद आखिरकार सरकार को मजबूर हो कर दिसम्बर 2021 में उन तीनों कानूनों को निरस्त करना पड़ा था।
संधू एक नई, युवा पीढ़ी की सदस्या हैं, जो भारतीय राजनीति में किसान की यूनियनों एवं उनके द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों से बने संवेग से उत्पन्न नई पार्टियों के सदस्य के रूप में शामिल हो रही है।
पंजाब में रविवार को विधानसभा चुनावों के लिए मतदान होने के साथ ही उन्हें अपनी पहली परीक्षा का सामना करना पड़ेगा। संधू पंजाब के श्रीमुक्तसर साहिब में संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हैं, जो कि किसान यूनियन नेताओं के एक समूह द्वारा गठित एक नई राजनीतिक पार्टी है।
29 वर्षीय संधू ने किसान विरोध आंदोलन के दौरान दिल्ली के बाहरी इलाके में डेरा डाले हुए हजारों किसानों का जिक्र करती हुईं दायचे वेले (डीडब्ल्यू) को बताया, "हमारे राजनीतिक दलों ने हमें विफल कर दिया है। हमें अपने अधिकारों के लिए पूरे एक साल के लिए दूसरे राज्य की दहलीज पर बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा।”
संधू ने कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) जो 2012 में एक वैकल्पिक पार्टी के रूप में गठित की गई थी और जिसकी दिल्ली में सरकार है, उसने भी विरोध के दौरान किसानों का समर्थन नहीं किया। उन्होंने कहा कि एसएसएम उन लोगों का बेहतर प्रतिनिधित्व करेगा जो किसानों के सरोकारों में विश्वास करते हैं।
I am thankful to @ssmpunjab for giving me the opportunity to be a part of the change that Punjab needs.
I am glad to announce my candidature from Sri Muktsar Sahib for #PunjabElections2022 . Need your support and blessings.#NewProfilePic #SSM pic.twitter.com/flRV72XgeL— Anuroop Kaur Sandhu (@AnuroopSandhu) January 17, 2022
किसानों के विरोध ने राजनीतिक आंदोलन को वेग दिया
2020 में कोरोना महामारी के बीच नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने तीन कृषि विधेयक पेश किए थे।
सरकार ने इस बिल को किसानों को देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने और बिना लाइसेंस वाले खरीदारों के साथ पूर्व-सहमत मूल्य पर करार करने की आजादी देने वाला बताया था।
हालांकि, कई किसानों ने कहा कि उन्हें पहले से ही ये रियायतें हासिल हैं, और सरकार पर आरोप लगाया कि वह उपज को न्यूनतम मूल्य पर बेचा जाना सुनिश्चित करने की अपनी जवाबदेही से बच रही है।
किसानों को डर था कि कृषि क्षेत्र में सरकार के लाए ये सुधार उन्हें निगमों के रहमोकरम पर छोड़ देंगे, जहां सरकारी सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं।
किसानों के विरोध प्रदर्शनों के दौरान 700 से अधिक किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। यह पूछे जाने पर कि क्या उनके परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना है, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने कहा कि उनके पास किसानों की इन मौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
हालांकि, संधू और अन्य लोग किसान-प्रदर्शनकारी की मौतों पर नज़र रख रहे थे। उन्होंने "द ह्यूमन कॉस्ट ऑफ द फार्मर्स प्रोटेस्ट" नामक एक परियोजना के हिस्से के रूप में विरोध से जुड़ी हरेक मौत पर गौर किया था।
उन्होंने कहा "मैं देखना चाहती थी कि सरकार किस हद तक इस मुद्दे से उदासीन हो सकती है। क्या उन्हें वास्तव में एक नागरिक के रूप में हमारी परवाह थी? अगर उन्होंने ऐसा किया होता, तो एक भी खोई हुई जान का उपहास नहीं करती।”
पंजाब की कृषि पहचान
जहां संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) नामक किसान संघों के एक संगठन ने प्रदर्शनों का नेतृत्व किया, वहीं पंजाब की पार्टियों ने भी विरोध करने वाले किसानों के समर्थन में रैलियां कीं।
पंजाब मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर राज्य है और लोगों ने अपनी पार्टी लाइनों से ऊपर उठकर कर किसानों के साथ अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया था।
यही वजह है कि पंजाब में भाजपा की सहयोगी और केंद्र सरकार में शामिल सबसे पुरानी सहयोगी दक्षिणपंथी पार्टी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने किसानों के मुद्दे पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को छोड़ दिया था।
पंजाब के तरनतारन शहर में एक सीट के लिए शिअद के उम्मीदवार हरमीत सिंह संधू ने कहा कि उनकी पार्टी भी विरोध का हिस्सा थी, और एसएसएम "हमारे बड़े पैमाने पर कृषि प्रधान समाज में किसानों का एकमात्र प्रतिनिधि नहीं है।"
तीन बार से शिअद के विधायक रहे हरमीत ने कहा, "हमारे प्रतिनिधि प्रत्येक विरोध स्थल पर थे, लेकिन हमने पार्टी के झंडे का इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि किसान आंदोलन ने पार्टी लाइन पर आधारित विभाजन से कहीं आगे चला गया था-यह पंजाब सूबे के भविष्य का सवाल बन गया था।"
एसकेएम किसान संघ संगठन ने कहा कि आंदोलन को किसी भी राजनीतिक दल द्वारा सहयोजित नहीं किया जाएगा और कानूनों के निरस्त होने के बाद एक राजनीतिक दल के रूप में संगठन के विधानसभा चुनाव में भाग लेने की किसी भी धारणा को खारिज कर दिया था।
सतनाम, जो अमृतसर में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख हैं, उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "उस समय, यूनियनों ने जोर देकर कहा कि वह सक्रिय राजनीति में भाग नहीं लेंगी। अब, उसके कई समर्थक अपने प्रति विश्वासघात महसूस कर रहे हैं क्योंकि वे एसएसएम के निर्माण को उस वादे को पूरा करने में विफलता के रूप में देखते हैं।”
पंजाब का निर्णायक चुनाव
प्रो. सिंह ने इस सप्ताह के राज्य चुनाव को सामान्य से अलग बताया। इस चुनाव में पंजाब की राजनीति में शिअद और कांग्रेस जैसी पार्टी के पारंपरिक नेता अपनी मूल सीटों को बरकरार रख सकते हैं, पर सूबे में आम लोगों की बातचीत आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियों एक मौका देने पर हो रही है।
राजनीतिविज्ञान के प्रो.सिंह ने कहा, "पंजाब में वर्तमान में बढ़ते कर्ज और मादक पदार्थों की लत सहित लंबे समय से चल रहे मुद्दे इस चुनावी दौर में मतदाताओं की बातचीत का हिस्सा नहीं हैं।"
"इसकी बजाय, यह चुनाव पारंपरिक और नए राजनीतिक अभिजात वर्ग के बीच का संघर्ष है।"
एक स्वतंत्र पंजाबी पत्रकार संदीप सिंह ने कहा कि एसएसएम ने जहां सामाजिक मुद्दों को अपने घोषणापत्र में सबसे आगे रखा है, वहीं इस नवगठित पार्टी को वह समर्थन नहीं मिल रहा है, जिसकी उन्हें उम्मीद थी।
संदीप सिंह ने दाइचे वेले से बातचीत में यह जानकारी दी कि नई दिल्ली में किसानों का विरोध आंदोलन जब अपने चरम पर था तो लोग पार्टी लाइन के बाहर जा कर उसका समर्थन कर रहे थे। पर अब वे अपनी पारंपरिक निष्ठाओं पर लौट आए हैं। हालांकि कुछ लोग बदलाव की तलाश में आप की ओर झुकते दिख रहे हैं।"
पंजाब के अमृतसर के एक बाजार में दिखा चुनावी माल
हालांकि, संधू ने कहा कि दिल्ली की पार्टी आप को पंजाब की सरकार नहीं सौंपी जा सकती।
"आम आदमी पार्टी पंजाब की पार्टी नहीं है, वह यहां के लोगों को नहीं समझती है। दिल्ली पंजाब से बहुत अलग है। हम मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान राज्य हैं और आप जिस कॉर्पोरेट मॉडल का पालन करती है, उसे यहां दोहराया नहीं जा सकता है।"
राजनीति की ओर रुख करने के लिए एसएसएम की आलोचना करने के बावजूद, सिंह ने कहा कि राजनीतिक दल अपनी जड़ों की विरासत की वजह से चलते हैं।
"इन चुनावों में लड़ने वाले सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की जड़ें सामाजिक आंदोलनों में हैं।"
जबकि कांग्रेस पार्टी भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हुई थी, शिअद का उदय 1920 के दशक की शुरुआत में भारतीय गुरुद्वारों में सुधार के लिए चलाए गए एक आंदोलन से हुआ था।
आप का गठन कांग्रेस की यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान घोटाले और भ्रष्टाचार की पृष्ठभूमि में पैदा हुए एक नागरिक समाज आंदोलन से हुआ था, जैसे कि एसएसएम किसानों के विरोध आंदोलन में अपनी जड़ें जमा रहा है।
लेकिन एसएसएम इस चुनाव में सिर्फ सीटें जीतने की कोशिश नहीं कर रहा है, संधू ने कहा।
"हम मतदाताओं के बीच जागरूकता फैला रहे हैं कि उन्हें एक उम्मीदवार से क्या उम्मीद करनी चाहिए। एसएसएम अन्य दलों को भी प्रेरित कर रहा है कि वे अपने बेहतर उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारें।"
(कॉपी संपादन: वेस्ली रान)
सौजन्य: DW
अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें
India: How Farmers' Movement May Shape Punjab's Political Future
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