पंजाब की सियासत पर कितना असर डालेगा जालंधर उपचुनाव का नतीजा?

जालंधर लोकसभा उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) को 34.05 फ़ीसदी वोट के साथ बड़ी जीत हासिल हुई है। आप प्रत्याशी सुशील कुमार रिंकूू को 302097 वोट मिले। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार कमलजीत कौर चौधरी 243450 वोटों (27.4 फ़ीसदी) केेे साथ दूसरेेेे नंबर पर रहीं। शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन तीसरेेे स्थान पर रहा, उसे 158354 (17.85%) वोट हासिल हुए। भाजपा को 134706 वोट (15.19 फ़ीसदी) वोट मिले। कांग्रेस, भाजपा, अकाली-बसपा गठबंधन केेे लिए यह बहुत बड़ा झटका है। चारों पार्टियों के बीच कांटे का मुकाबला था। पहले यह सीट कांग्रेस के पास थी और वह चार बार से यहां चुनाव जीतती आई है। लेकिन इस बार 'आप' से हार गई। पंजाब में आप सत्तारूढ़ पार्टी है और यहां पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल तथा मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी। खुद केजरीवाल ने यहां कई रैलियां और रोड शो किए। आप सरकार के विधायकों समेत पूरा मंत्रिमंडल मान की अगुवाई में जालंधर में डटा रहा। इस मुश्किल सीट पर जीत हासिल करने के लिए 'साम दाम दंड भेद' का रुख अख्तियार किया गया। कांग्रेस, भाजपा और अकाली-बसपा गठबंधन ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन मतगणना के दिन आखिरकार आम आदमी पार्टी ने इस सीट पर जीत हासिल ली की। हालांकि वोटिंग वाले दिन मतदाताओं की तरफ से कम उत्साह देखने को मिला था। दस मई को इस सीट के लिए सिर्फ़ 54% वोटिंग हुई थी।
गौरतलब है कि पंजाब में मान सरकार के गठन के बाद संगरूर लोकसभा उपचुनाव हुए थे। अति आत्मविश्वास के चलते आप वहां से हार गई थी। मुख्यमंत्री वहां से सांसद थे और यह मानकर चल रहे थे कि आप वहां से बगैर ज़्यादा मेहनत के एक 'लहर' में जीत हासिल कर लेगी लेकिन अकाली दल, अमृतसर के सिमरनजीत सिंह मान वहां से जीते। संगरूर में मिली हार के बाद आप फूंक-फूंक कर कदम उठा रही थी। आम आदमी पार्टी ने जालंधर के पुराने कांग्रेसी और पूर्व विधायक सुशील कुमार रिंकू को पार्टी में शामिल किया और टिकट दी। उपचुनाव की पूरी कमान मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने खुद संभाली। पार्टी अगर हारती तो यह साल में संगरूर उपचुनाव के बाद दूसरी बड़ी हार होती। यकीनन इससे मान सरकार का रुतबा कम होता और प्रतिद्वंद्वियों को बल मिलता। सूबे में पार्टी के भीतर मान के ख़िलाफ़ बाकायदा गुटबंदी है। पार्टी हारती तो मान का इकबाल और उनकी स्वीकृति कम हो जाती।
वैसे, जालंधर लोकसभा उपचुनाव में दलबदलूओं ने भी खूब जलवा दिखाया। सांसद बने सुशील कुमार रिंकू पहले कांग्रेस में थे। आप में शामिल होते ही टिकट हासिल कर ली। बेशक वह इसी शर्त पर आप में गए थे। उनके साथ बड़े पैमाने पर कांग्रेसियों ने आप का दामन थाम लिया। भाजपा प्रत्याशी इंदर सिंह अटवाल पहले शिरोमणि अकाली दल में थे। चुनाव से ऐन पहले उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली और टिकट भी। शिअद के कई नेता और कार्यकर्ता उनके साथ भाजपा में शामिल हुए। ऐसी आवाजाही तमाम प्रमुख राजनीतिक दलों में चुनाव से पहले बनी रही।
पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील कुमार जाखड़ कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा में आ गए थे। उनके साथ भी कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भाजपा में गए। दलबदल करने वाले कैप्टन, जाखड़, मनप्रीत सिंह बादल और शेष नेता जालंधर उपचुनाव में खूब सक्रिय रहे लेकिन मतदाताओं पर उनका 'नया भाजपाई रंग' नहीं चढ़ा। हालांकि दलबदल का यह खेल आप की जीत और कांग्रेस की हार की वजह ज़रूर बना। दो दशक के बाद कांग्रेस जालंधर संसदीय सीट से हारी। कांग्रेस प्रत्याशी करमजीत कौर को जिताने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा, नवजोत सिंह सिद्धू, पार्टी प्रदेशाध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग और राणा गुरजीत सिंह ने एकजुट होकर पूरा ज़ोर लगाया था। कपूरथला से विधायक राणा गुरजीत सिंह के हाथों में कमान थी। राणा गुरजीत सिंह चुनावी रणनीति में माहिर माने जाते हैं लेकिन पंजाब कांग्रेस का यह 'चाणक्य' इस बार (बल्कि शायद पहली बार) मात खा गया।
इस चुनावी शिकस्त ने भाजपा को भी बड़ा सबक दिया है कि तमाम तरह की कवायद के बावजूद वह पंजाब को मनमर्जी से हासिल नहीं कर सकती। केंद्र के आठ मंत्रियों ने भाजपा प्रत्याशी के लिए लगातार प्रचार किया। जवाब सामने है। कहीं न कहीं यह भी साफ हुआ है कि बगैर शिरोमणि अकाली दल के भाजपा का जनाधार पंजाब में बेहद सिमटा हुआ है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह अब पंजाब भाजपा का बड़ा चेहरा हैं। वह कहते हैं, "जालंधर लोकसभा उपचुनाव में आम आदमी पार्टी ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया। जीत इसी वजह से हासिल हुई। एक उपचुनाव से तय नहीं किया जाना चाहिए कि पंजाब में भाजपा का कोई भविष्य नहीं।"
उधर, शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता, पूर्व मंत्री डॉ. दलजीत सिंह चीमा कहते हैं, "आप ने सरकारी ताकत के दम पर यह उपचुनाव जीता है। 2024 के आम चुनावों में पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी।"
आम आदमी पार्टी के बुढलाडा से विधायक और वरिष्ठ नेता प्रिंसिपल बुधराम के मुताबिक लोगों ने मान सरकार की नीतियों का समर्थन करते हुए उनके पक्ष में मतदान किया। खैर वजह जो भी हो, लेकिन जालंधर उपचुनाव में आप की जीत के बड़े सियासी मायने हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सूबे की सियासत पर इसका दूरगामी असर पड़ेगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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