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ग्राउंड रिपोर्टः इंसाफ़ के लिए निकली न्याय-यात्रा

चंदौली का नाम यूपी के उन ज़िलों में शुमार है जो सूबे को सर्वाधिक राजस्व देते हैं। सरकार ने इसे ज़िले का ओहदा तो दिया, लेकिन अफसरों, कर्मचारियों के लिए आवास और सरकारी महकमों के लिए वह दफ़्तर ही बनवाना भूल गई। चंदौली अब न्याय मांग रहा है।
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सफेद शर्ट, काली कोट-पैंट में सात लोगों का जत्था बनारस से लखनऊ जाने वाले हाईवे पर सीधा चला जा रहा है। इनके पीछे है एक छोटी सी कार है जिस पर लगा है न्याय-यात्रा का पोस्टर। कार के आगे तिरंगा। हल्की फुहार हो या फिर तेज़ बारिश, उसमें भी उनके क़दम रुकते नहीं हैं।

ये नज़ारा बनारस के लोगों ने देखा तो उत्सुकता भी हुई कि आख़िर यह न्याय-यात्रा क्यों निकाली गई है? बाद में मालूम पड़ा कि ये यात्रा पिछले 26 सालों से चंदौली की उपेक्षा से परेशान लाखों लोगों की ज़िंदगी से जुड़ी है, जिसका नेतृत्व वहां के कुछ साहसी अधिवक्ता कर रहे हैं। यह न्याय-यात्रा चंदौली के सत्तारूढ़ दल के नेताओं की रहस्यमयी ख़ामोशी का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करेंगी। लखनऊ होते हुए न्याय-यात्रा दिल्ली जाएगी और पीएम-सीएम से मिलकर चंदौली में एक अदद जिला मुख्यालय व चंदौली के साथ नाइंसाफी का सवाल खड़ा करेगी।

चंदौली से निकली न्याय यात्रा, दूसरी यात्राओं से कई मायने में अनूठी है। जानते हैं क्यों? चंदौली का नाम यूपी के उन जिलों में शुमार है जो सूबे को सर्वाधिक राजस्व देते हैं। सरकार ने इसे जिले का ओहदा तो दिया, लेकिन अफसरों, कर्मचारियों के लिए आवास और सरकारी महकमों के लिए वह दफ्तर ही बनवाना भूल गई। चंदौली अब न्याय मांग रहा है।

अधिवक्ताओं का यह दल 8 सितंबर 2023 को न्याय पदयात्रा पर निकला तो उन्हें विदा करने के लिए हजारों लोगों का हुजूम उमड़ा। बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष व वर्तमान सदस्य हरिशंकर सिंह समेत सिविल बार अध्यक्ष चन्द्रभानु सिंह ने हरी झंडी दिखाकर पद-यात्रियों को रवाना किया। न्याय संकल्प के साथ दिल्ली के लिए पदयात्री रवाना हुए तो ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने जगह-जगह उनका माल्यार्पण कर उनका स्वागत व सम्मान किया। न्याय-यात्रा की अगुवाई अधिवक्ता जन्मेजय सिंह कर रहे हैं।

दड़बेनुमा कमरों में बैठते हैं अफसर

भारी जनसमर्थन लेकर सात अधिवक्ताओं का दल 9 सितंबर 2023 को बनारस पहुंचा। न्याय-यात्रा के बनारस पहुंचने पर बनारस बार ने जोरदार स्वागत किया। बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा सदस्य हरिशंकर सिंह ने बनारस में न्याय यात्रा को हरी झंडी दिखाई। यह न्याय-यात्रा लखनऊ होते हुए दिल्ली जाएगी। पदयात्रा पर निकले अधिवक्ता सीएम और पीएम से मिलने की कोशिश करेंगे।

न्याय-यात्रा के संयोजक अधिवक्ता जन्मेजय सिंह "न्यूजक्लिक " से कहते हैं, "देश को आजाद कराने में अहम भूमिका अदा करने वाला चंदौली सरकारी उपेक्षा का शिकार है। कितने शर्म की बात है इस जिले के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक सालों से किराये के आवास में रह रहे हैं। जिले के प्रशासनिक अफसरों के पास कायदे का न तो दफ्तर है और न ही आवास। कर्मचारियों का हाल यह है कि वो दड़बेनुमा किराये के कमरों में बैठकर किसी तरह से काम करते हैं। पिछले 26 सालों से झूठे आश्वासन देकर चंदौली को छला जा रहा है। यहां दीवानी न्यायालय के लिए भवन तक नहीं है। न्यायिक अफसरों के आवास नहीं बन सके हैं। जिला जज का दफ्तर किराये के भवन में है। डीएम, एसपी, एडीएम समेत तमाम जिला स्तरीय अफसर के पास अपना दफ्तर और आवास नहीं है। शासनादेश के मुताबिक, जिन अफसरों को स्थायी रूप से चंदौली में रहना चाहिए उनमें से ज्यादातर बनारस से ड्यूटी करने आते-जाते हैं।"

चंदौली में डीएम दफ्तर पर हरी झंडी दिखाकर न्याय यात्रियों को  रवाना करते वरिष्ठ अधिवक्तात

चंदौली की दुर्दशा के लिए जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराते हुए अधिवक्ता जन्मेजय सिंह कहते हैं, "बीजेपी सरकार इस जिले की घोर उपेक्षा कर रही है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर महीने दो-चार मर्तबा बनारस आते हैं, लेकिन इसी जिले का हिस्सा रहे चंदौली में झांकने की जरूरत नहीं समझते। 55 दिनों तक लगातार आंदोलन चलाया गया, लेकिन सत्तारूढ़ दल के नेताओं पर कोई असर नहीं हुआ। अलबत्ता वो इस कोशिश में जुटे रहे कि हम अपना आंदोलन वापस ले लें। न्याय-यात्रा अब तभी लौटेगी, जब मांगें पूरी होंगी। इसके लिए चाहे हमें अपना बलिदान क्यों न देना पड़े।"

कब खत्म होगा न्याय का इंतजार

पूर्वांचल के बेहद पिछड़े जिले चंदौली के लोग करीब ढाई दशक से न्याय का इंतजार कर रहे हैं। 26 बरस पहले मायावती सरकार ने इसे जिले का दर्जा दिया, लेकिन सुविधाएं मयस्सर नहीं हुईं। यहां न कोर्ट-कचहरी के लिए जगह है और न अफसरों के लिए आवास। चंदौली पहले बनारस का बड़ा हिस्सा था। यूपी का सबसे खूबसूरत झरना राजदरी-देवदरी इसी जिले में है। चंदौली के नौगढ़ में घने जंगलों के चलते पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के लोग सांस लेते हैं।

चंदौली की करीब तीस फीसदी आबादी बनारस रहती है, जो पिछले दो टर्म से देश का प्रधानमंत्री चुन रही है। फिर भी चंदौली उपेक्षा का शिकार है। पिछले तीन दशक से यूपी में जितने भी नए जिले बनाए गए, उनमें चंदौली इकलौता है, जिसके पास अपना कुछ भी नहीं है। यह स्थिति तब है जब सूबे के काबीना मंत्री महेंद्रनाथ पांडेय चंदौली से ही लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिले के चार में से तीन विधायक बीजेपी के हैं। इन नेताओं की चुप्पी जनता को साल रह रही है। स्थायी कोर्ट, प्रशासनिक अफसरों के दफ्तर, कर्मचारियों के आवास और अधिवक्ताओं के लिए चेंबर के लिए चंदौली के अधिवक्ता लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

दीवानी कोर्ट भवन की कौन कहे, विकास भवन, पुलिस लाइन, जिला जेल, आरटीओ, रोडवेज, सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स समेत दर्जनों विभागों के अफसरों-कर्मचारियों के पास कोई ठांव नहीं है। यह स्थिति तब है जब साल 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने सूबे के मुख्य सचिव को जिले की सभी सुविधाओं का बंदोबस्त करने का कड़ा निर्देश जारी किया था। उस समय सरकार ने चंदौली में छह महीने के अंदर सभी बुनियादी जरूरतें और सुविधाएं मुहैया कराने के लिए हाईकोर्ट में हलफानाम दिया था। मियाद बीत जाने के सालों बाद भी अपना वादा पूरा नहीं कर सकी। चंदौली के अधिवक्ता और जिले के प्रबुद्ध नागरिक समय-समय पर आवाज बुलंद करते रहे। कई मर्तबा कोर्ट-कचहरी तक बंद रहे, लेकिन सरकार की कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

चंदौली का सृजन 1997 में किया गया था। तब से लेकर आज तक 26 साल गुजर गए। अफसर अपने लिए एक अदद दफ्तर और आवास के लिए तरसते हैं। सरकारी बसें आती-जाती हैं, पर स्टैंड नहीं है। चंदौली के जिला जज ट्रांजिट हॉस्टल और कलेक्टर डिग्री कॉलेज के प्राचार्य के आवास में रहते हैं। पुलिस अधीक्षक ने सिंचाई विभाग के डाक बंगले पर कब्जा कर लिया है। यही स्थिति एसडीएम सदर की है। चंदौली से पहले जितने भी जिले सृजित किए गए, वहां सरकार ने सभी बुनियादी सुविधाएं मुहैया करा दी। इस जिले की स्थिति यह है कि यहां 90 फीसदी विभागों के पास अपना दफ्तर नहीं है और अफसरों-कर्मचारियों के लिए अभी तक आवास तक नहीं बनाए जा सके हैं। यह स्थिति तब है जब कई विभागों के लिए सालों पहले जमीन आवंटित और चिह्नित की जा चुकी है।

चंदौली पर उपेक्षा की मार

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस जिले की कुल जनसंख्या 19 लाख 52 हजार 713 और क्षेत्रफल 2,484.70 वर्ग किमी है। इस जिले में 1651 गांव और 16 पुलिस स्टेशन हैं। चंदौली के दक्षिण-पूर्व में बिहार, उत्तर-पूर्व में गाजीपुर, दक्षिण में सोनभद्र, और दक्षिण-पश्चिम में मिर्ज़ापुर है। यूपी और बिहार की सीमा रेखा तय करने वाली कर्मनाशा नदी इसी जिले में है। चंदौली में पहले सिर्फ तीन तहसीलें- चकिया, चंदौली और सकलडीहा हुआ करती थीं। सपा की सरकार बनी तो नौगढ़ और मुगलसराय में दो नई तहसीलों का सृजन किया गया।

अतीत में झांकने से पता चलता है कि चंदौली में सदियों पहले मगध वंश परंपरा के शासक ब्रह्मदत्त का प्रभुत्व था। बाद में तमाम राजाओं ने यहां राज किया। साल 1775 में यह इलाका अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। इस राज्य के अंतिम राजा महाराज विभूति नारायण सिंह थे, जिन्होंने करीब आठ साल तक राज किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने इस इलाके में नहरों का जाल बिछाया तो इस इलाके की माटी सोना उगलने लगीं और चंदौली ने धान के कटोरा का रुतबा हासिल कर लिया। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म मुगलसराय में साल 1904 में हुआ था। देश के मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चंदौली के चकिया इलाके के भभौरा गांव के रहने वाले हैं। कंठ कोकिला गिरजा देवी और विद्याधरी बाई भी चंदौली की थीं।

मिटती जा रही चंदौली की हस्ती

चंदौली सिर्फ एक नाम नहीं, एक परंपरा है। ऐसी परंपरा जिसे अपने लंबे इतिहास और रवायत पर गर्व है। यहां के रीति-रिवाज और परंपराएं प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। चंदौली की मुकम्मल पहचान सिर्फ इतनी सी है कि यहां जो भी मुसाफिर आता है वह प्रकृति की अनंत गहराइयों में डूब जाता है। हक्का-बक्का कर देता है चंदौली। यकीन कीजिए, चंदौली में आदर के भाव के साथ जो भी ढूंढेंगे, हर चीज पाएंगे। भक्ति भी और वरदान में शक्ति भी।

चंदौली के वरिष्ठ पत्रकार आरिफ कहते हैं, "चंदौली प्रकृति का वह प्रतीक है जो इतिहास और परंपराओं पर गर्व करने की ताकत देता है। चंद्रकांता के देश का नौगढ़ चंदौली में ही है, जिसे पढ़ने, देखने और सुनने के लिए दुनिया भर के लोगों ने हिंदी सीखी। जैव-विविधता से भरे इस इलाके में जड़ी-बूटियों और औषधियों का ऐसा खजाना है जिनके जरिये जानलेवा बीमारियों पर विजय पाने की सदियों पुरानी परंपराएं हैं। नौगढ़ वन विश्राम गृह के पास एक पत्थर की गुफा से होती हुई करीब एक हजार साल पुरानी सुरंग है जो विजयगढ़ तक जाती है। साल 1961 में इसके मुख्य द्वार को बंद कर दिया गया था। एक दूसरी सुरंग चुनारगढ़ तक जाती थी। इसे पहले नैनागढ़ गुफा के नाम से जाना जाता था। लतीफ़ शाह डैम और मकबरा देखने के काबिल है।"

"पर्यटकों को लुभाने वाले देवदरी जल प्रपात के पास एक काफी पुराना वृक्ष है। इसके एक ही तने से पांच प्रजातियों के वृक्ष निकले हैं, जिसमें पीपल, पाकड़, वट, समी और गूलर के वृक्ष हैं। मान्यता है कि इसी वृक्ष की वजह से इस स्थान को देवदरी नाम दिया गया। राजदरी-देवदरी और औरवाटांड को आमतौर पर हर किसी ने देखा होगा, लेकिन कर्मनाशा जलप्रपात को देखने की बात ही कुछ और है। छानपातर-करकटगढ़ जलप्रपात के नाम से मशहूर इस झरने के मोहक नजरे आप निहारते रह जाएंगे। नौगढ़ के जंगलों के झुरमुट से सूरज के झांकने का दृश्य देखेंगे तो लहालोट हो जाएंगे और वो मंजर आपके दिल में हमेशा के लिए समा जाएगा। चंदौली में ढेरों रमणीक स्थल होने के बावजूद यहां आज भी विकास सपना है। बिजली आती है, लेकिन दबे पांव आती है। खासतौर पर तब आती है जब लोग सो रहे होते हैं।"

ग्रामीण पत्रकार एसोसिएश के जिलाध्यक्ष आनंद सिंह कहते हैं, "चंदौली का चकिया कभी काशी नरेश का स्टेट हुआ करता था और बबुरी राजा बब्रु वाहन की राजधानी। चंदौली की जितनी उपेक्षा आज हो रही है, उतनी पहले कभी नहीं हुई। इस इलाके की उपेक्षा सिर्फ अफसर ही नहीं, सरकार भी कर रही है। सर्वविदित है कि गुड गवर्नेंस और फास्ट सर्विस डिलीवरी देनी है तो यह छोटे जिलों से ही संभव है। जिले बड़े दायरे में होते हैं तो जिला मुख्यालय आने-जाने के लिए जनता को मीलों सफर तय करना पड़ता है। छोटे जिले होते हैं तो प्रशासनिक व्यवस्था पर निगरानी बनी रहती है। दूर-दराज गांवों तक के लोगों को जिला मुख्यालय पर बैठे अफसरों तक पहुंचने में आसानी रहती है।"

चंदौली के उपेक्षा का सवाल उठाते हुए सिविल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चंद्रभानु सिंह कहते हैं, "इस जिले में जन-जन तक विकास तभी पहुंचेगा जब अफसर सर्व सुलभ होंगे। नया जिला बनाने पर सरकार को सिर्फ एक बार धन खर्च करना पड़ता है, लेकिन बाद में सरकार और जनता को बड़ा फायदा होता है। चंदौली में मुकम्मल तौर पर जिला मुख्यालय बनने पर गांव, पंचायत, ब्लॉक और जिले के बीच सीधा संवाद होगा। तभी तेज औद्योगिक विकास, बेहतर कानून और व्यवस्था, फास्ट सर्विस डिलीवरी तरक्की की सीढ़ियां बनेंगी। चंदौली के कई इलाके दुर्गम हैं। नौगढ़ इलाका तो कई सालों तक नक्सलवाद के शिकंजे में रहा। यहां बहुत से ऐसे इलाके हैं जहां प्रशासनिक तंत्र को चलाना बहुत मुश्किल है। दिक्कत यह है कि जिला बनाकर सरकारें चंदौली को भूल गईं। डबल इंजन की सरकार आई, मगर चंदौली के हिस्से में कुछ भी नहीं आया।"

वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर सिंह कहते हैं, "चंदौली से न्याय-यात्रा एक बड़ा संदेश देने निकली है। ऐसा संदेश जो जनता की उपेक्षा करने वाली सरकार को बड़ा सबक सिखा दिया करती हैं। इस यात्रा का मक़सद नफ़रत के माहौल को ख़त्म करना, सद्भावना पैदा करना और चंदौली को भारत से जोड़ना है। चंदौली में अफसरों-कर्मचारियों के लिए आवासीय सुविधा और अदालतों के लिए कायदे के कमरे नहीं होने की वजह से जनता को ढेरों मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए जितनी सरकार जिम्मेदार है उससे ज्यादा नौकरशाही। चंदौली से निकली न्याय-यात्रा यूपी ही नहीं, देश में बड़ी लहर पैदा करेगी। साथ ही इस जिले की उपेक्षा करने वाले नेताओं और हुक्मरानों को आगामी लोकसभा चुनाव में करारा सबक भी सिखाएगी।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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