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ख़बरों के आगे–पीछे: ममता बनर्जी ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकतीं

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में केंद्र की नीतियों समेत राज्यों की नीतियों और राजनीति पर बात कर रहे हैं।
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मोदी के 'मेहुल भाई’ का प्रत्यर्पण होगा?

गुजरात का भगोड़ा हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी बेल्जियम में गिरफ्तार किया गया है तो भारत में पीठ थपथपाई जा रही है कि सीबीआई के अनुरोध पर बिल्कुल टाइमली दखल देने से मेहुल चोकसी गिरफ्तार हुआ है। लेकिन गिरफ्तारी से क्या होता है? गिरफ्तार तो मेहुल चोकसी का भांजा नीरव मोदी भी है। उसने भी पंजाब नेशनल बैंक से हजारों करोड़ की धोखाधड़ी की और ग्राहकों को भी करोड़ों रुपए का चूना लगा कर फरार हुआ था। वह लंदन की जेल मे बंद है लेकिन उसका प्रत्यर्पण नहीं हो पा रहा है। इसीलिए सवाल है कि क्या मेहुल चोकसी का प्रत्यर्पण हो पाएगा? 

खैर अभी गिरफ्तारी को ही बड़ी बात मान लिया जाए, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक कार्यक्रम में जिसे 'हमारे मेहुल भाई’ कहा था, उसे गिरफ्तार करने एक बार भारतीय एजेंसियां कैरेबियाई द्वीप गई थीं और खाली हाथ लौटी थीं। अब कम से कम गिरफ्तारी हो गई है, लेकिन प्रत्यर्पण में बहुत अगर मगर है। कहा जा रहा है कि अगर कैरेबियाई देश एंटीगुआ चोकसी की नागरिकता रद्द कर दे तो बेल्जियम में पत्नी के नाम पर मिला अस्थायी नागरिकता कार्ड भी रद्द हो जाएगा और फिर वह सिर्फ भारत का नागरिक रह जाएगा और तब उसका प्रत्यर्पण आसान हो जाएगा। लेकिन इतने अगर मगर के बाद भी प्रत्यर्पण आसान नहीं है, क्योंकि वहां की अदालत को तय करना है कि भारत में जेलों की स्थिति कैसी है, चोकसी के साथ कैसा कानूनी बरताव होगा और चोकसी क्या सचमुच कैंसर का मरीज है। इन सबके बाद ही प्रत्यर्पण का फैसला होगा।

ममता बनर्जी ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकतीं

पश्चिम बंगाल में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के पीछे चाहे जो भी वजह रही हो, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकतीं। लेकिन वे बचने के लिए एक बार फिर वही दांव आजमाने की कोशिश कर रही हैं, जिसे वह एक बार पहले आजमाने में कामयाब रही हैं। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने फिर बांग्ला अस्मिता का दांव चला है और इस बार भी निशाने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हैं। 

गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2021 में ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बाहरी बता कर बांग्ला बनाम बाहरी का दांव खेला था। इस बार चुनाव से एक साल पहले वक्फ कानून के मामले को लेकर राज्य में हिंसा हुई है। ममता बनर्जी को समझ में आ रहा है कि वक्फ कानून का किसी को लाभ या हानि हो या न हो लेकिन अगर हिंसा और विरोध प्रदर्शन चलते रहे तो हिंदू ध्रुवीकरण होगा, जिसका नुकसान तृणमूल कांग्रेस को होगा। इसीलिए उन्होंने इस मामले में अमित शाह को निशाना बनाते हुए आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की शह पर बीएसएफ ने हिंसा भड़काई। इतना ही नहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से कहा कि वे अमित शाह को संभाल ले। उनकी इस बात का कोई आधार नहीं है, क्योंकि अमित शाह बंगाल में अभी कुछ भी करते नही दिख रहे है। फिर भी ममता बनर्जी ने मोदी से शाह को संभालने की अपील की। जाहिर है कि वे किसी न किसी तरह से दोनों का नाम लाना चाहती थीं।

लेफ्ट, राइट, सेंटर सब पर ईडी का शिकंजा

पता नहीं प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के अधिकारी और कर्मचारी क्या सोचते होंगे, जब उन्हें किसी नए विपक्षी नेता के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश मिलता होगा? लेकिन आम लोगों के लिए तो यह मजाक का विषय बन गया है। हर कोई जानता है कि ईडी की गाड़ी निकलेगी तो किसी न किसी विपक्षी नेता के घर पर ही रुकेगी। फिर चाहे वह नेता कांग्रेस का हो या वामपंथी दलों का हो, आम आदमी पार्टी का हो या किसी दूसरी प्रादेशिक पार्टी का हो। 

यह बात आंकडों से भी प्रमाणित है और अदालतों की टिप्पणियों में भी कई बार यह सुनने को मिला है। पिछले एक-दो हफ्ते में ईडी ने जो कार्रवाई की है उसमें भाजपा और उसकी मौजूदा सहयोगी पार्टियों को छोड़ कर बाकी सभी तरह की पार्टियों के नेताओं को निशाना बनाया गया है। लेफ्ट की बात करे तो ईडी का शिकंजा केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन की बेटी टी. वीना पर कस रहा है। केंद्र सरकार के कंपनी मामलों के मंत्रालय ने मुकदमे की मंजूरी दे दी है। राइट की बात करें तो आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार निशाने पर है। ईडी ने धनशोधन से जुड़े एक मामले में 15 अप्रैल को आम आदमी पार्टी के विधायक कुलतार सिंह के यहां छापा मारा। सेंटर की बात करें तो राजस्थान में कांग्रेस के बड़े नेता पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास के यहां 15 अप्रैल को ही ईडी ने छापा मारा। ज्यादा दिन नहीं बीते, जब छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के यहां ईडी ने छापा मारा था। सोनिया व राहुल गांधी पर भी ईडी का शिकंजा कस रहा है और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर डीके शिवकुमार तक कांग्रेस के अनगिनत नेताओं पर भी ईडी की तलवार लटकी हुई है।

दिल्ली के लोगों को आ रही 'आप’ की याद 

दिल्ली में भाजपा की सरकार बने अभी 100 दिन भी नहीं हुए हैं और लोग आम आदमी पार्टी की सरकार को याद करने लगे हैं। लेकिन सबको पता है कि अभी कुछ नही हो सकता है, क्योंकि चुनाव पांच साल बाद होंगे और तब तक हो सकता है कि भाजपा की सरकार स्थिति को बेहतर ढंग से संभाल ले। बहरहाल अभी तो ऐसा लग रहा है कि कुछ चीजें बेलगाम हो गई हैं। जैसे बिजली कटौती का मामला है। गरमी बढ़ते ही बिजली जाने लगी है। सरकार कह रही है कि स्थानीय स्तर पर रिपेयर और मेंटेनेंस के लिए बिजली काटी जा रही है लेकिन लोड शेडिंग का डाटा अलग कहानी बयां कर रहा है। कई इलाकों में पांच-पांच घंटे की बिजली कटौती हो रही है और इस बीच बिजली के दाम बढ़ाने की चर्चा भी शुरू हो गई है। 

प्रदूषण को लेकर आम आदमी पार्टी की सरकार कठघरे में खड़ी की जाती थी लेकिन सर्दी का मौसम बीत जाने के बाद भी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है और ग्रैप एक की पाबंदियां लागू करनी पड़ी है। 

उधर स्कूलों ने फीस बढ़ोतरी शुरू कर दी है। कई स्कूलों में 20 से 80 फीसदी तक की बढ़ोतरी की गई है। आम आदमी पार्टी की सरकार ने मनमानी फीस बढ़ोतरी रोक रखी थी, बल्कि जिन स्कूलों ने फीस बढ़ाई थी उनसे अभिभावकों को पैसे वापस कराए गए थे। सड़कों की मरम्मत और बुनियादी ढांचे के दूसरे काम भी जहां के तहां हैं। 

सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पलट सकती है सरकार!

क्या केंद्र सरकार राज्यपालों और राष्ट्रपति के अधिकारों को लेकर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकती है? हो सकता है कि अभी केंद्र सरकार कोई विधेयक लाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला न पलटे लेकिन संकेत है कि वह समीक्षा याचिका तो दायर करेगी ही। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के जज जेपी पारदीवाला की बेंच ने आठ अप्रैल को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। दो जजों की बेंच ने कहा कि राज्यपाल के पास पूर्ण या आंशिक वीटो का अधिकार नहीं है। वह विधानसभा से पारित विधेयक को नहीं लटका सकता है और उसे तीन महीने के भीतर फैसला करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही तमिलनाडु के सभी 10 लंबित विधेयकों को मंजूरी मिल गई। पहली बार ऐसा हुआ कि राज्यपाल के दस्तखत के बगैर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कोई विधेयक कानून बना। 

इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को भी बताया है कि अगर राज्य का विधेयक उनके पास आता है तो उनको अनिवार्य रूप से सुप्रीम कोर्ट से मशविरा करना होगा और वे भी विधेयक को तीन महीने से ज्यादा नहीं रोक सकतीं। इसको न्यायिक सक्रियता का नया दौर माना जा रहा है। लेकिन यह भी हकीकत है कि ऐसी स्थिति राज्यपालों के मनमाने बरताव के कारण ही आई है। फिर भी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार समीक्षा याचिका दायर करेगी और उसमें अगर मामले को संविधान पीठ के सामने नहीं भेजा जाता है या सुधार नहीं होता है तो सरकार विधेयक लाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदल सकती है।

रिसॉर्ट राजनीति का नया स्तर

कहीं राज्यसभा चुनाव के लिए तो कहीं सरकार गिरने से बचाने के लिए विधायकों को रिसॉर्ट में छिपाने की घटनाएं तो आम हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मेयर के चुनाव से पहले पार्षदों को नेपाल ले जाने की घटनाएं भी होती रही हैं। लेकिन अब रिसॉर्ट राजनीति एक नए स्तर पर पहुंच गई है। आंध्र प्रदेश इस मामले में भी देश को रास्ता दिखा रहा है। आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने विशाखापत्तनम शहर के मेयर के चुनाव से पहले अपने-अपने पार्षदों को मॉरीशस और श्रीलंका पहुंचा दिया। विशाखापत्तनम में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के पार्षदों की संख्या लगभग बराबर है। टीडीपी, जन सेना पार्टी और भाजपा के मिला कर 47 पार्षद हैं तो जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के पास 46 पार्षद हैं। कहा जा रहा है कि जगन की पार्टी के पार्षदों को तोड़ने की कोशिश हुई है। 

दूसरी ओर चंद्रबाबू नायडू की पार्टी को भी लग रहा है कि उनके कुछ पार्षद इधर-उधर हो सकते हैं। इसीलिए दोनों ने अपने पार्षद वहां से हटाए। एक पार्टी ने अपने पार्षदों को मॉरीशस भेजा है और दूसरी ने श्रीलंका। दोनों पार्टियों के बड़े और पुराने नेता पार्षदों की निगरानी के लिए भेजे गए है। गौरतलब है कि कई बार उत्तर और पश्चिम भारत के विधायकों को कर्नाटक के रिसॉर्ट में ले जाया जा चुका है और अब उधर के पार्षद भी स्थानीय रिसॉर्ट में नहीं रखे जा रहे हैं।

दिल्ली की मुख्यमंत्री को यमुना साफ़ दिखने लगी!

भाजपा की केंद्र और राज्यों की सरकारें पलक झपकते ही समस्याओं को छूमंतर कर देती हैं। जैसे केंद्र सरकार ने एक दिन अचानक ऐलान कर दिया कि भारत खुले में शौच से मुक्त हो गया। जबकि हकीकत यह है कि पूरे देश की बात छोड़िए राजधानी दिल्ली में ही हर दिन सुबह हजारों लोग खुले में शौच करने जाते दिखते हैं। इसी तरह से दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को यमुना कुछ-कुछ साफ दिखने लगी है। उन्हें मुख्यमंत्री बने हुए तीन महीने भी नहीं हुए है और जो काम दशकों में नहीं हुआ, वे उसके होने का दावा करने लगीं। उनका दावा है कि नालों की सफाई हुई है, इसलिए यमुना साफ दिखने लगी है। यह बड़ी अद्भुत तकनीक है। एक तीर से दो शिकार हुए। कहा गया कि नालों की सफाई हो गई और उसी से यमुना भी कुछ-कुछ साफ दिखने लगी। 

सवाल है कि जब दिल्ली के नालों का यमुना में गिरना बंद नहीं कराया गया तो नालों की सफाई से यमुना साफ कैसे हो जाएगी? सामान्य लॉजिक तो यह कहता है कि नालों के गंदा होने से जो गंदगी नालों से निकल कर सड़कों पर बहती थी वह अब सीधे यमुना मे गिर रही है तो इससे यमुना साफ होगी या ज्यादा गंदी होगी? लेकिन मुख्यमंत्री ने कह दिया कि यमुना साफ हो रही है। कहीं ऐसे ही किसी दिन यह ऐलान न कर दिया जाए कि यमुना साफ हो गई है और जो इस पर सवाल उठाएं उनको आंखों का इलाज कराने की नसीहत दी जाए!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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