फेक्ट चेक : प्रधानमंत्री का लाल क़िले से किया गया 5 करोड़ सेनेटरी पैड का दावा सही नहीं है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल क़िले की प्राचीर से अनेक दावे और घोषणाएं की हैं। अपने भाषण में उन्होंने ग़रीब बहन-बेटियों के स्वास्थ्य की भी चिंता ज़ाहिर की और अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा-
“ग़रीब बहन-बेटियों के स्वास्थ्य की भी चिंता ये सरकार लगातार कर रही है। हमने जन औषधि केंद्र के ऊपर एक रुपये में सेनेटरी पैड पहुंचाने के लिए एक बहुत बड़ा काम किया है। 6 हज़ार जन औषधि केंद्रों में पिछले कुछ थोड़े से समय में करीब पांच करोड़ से ज्यादा सेनेटरी पैड हमारी इन ग़रीब महिलाओं तक पहुंच चुके हैं। ”
प्रधानमंत्री द्वारा लाल क़िले से जो दावा किया गया है उसकी थोड़ी पड़ताल करते हैं और उसके संदर्भ पर बात करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि पांच करोड़ सेनेटरी पैड की बिक्री हुई है। उन्होंने साफ-साफ नहीं बताया कि ये आंकड़ा किस समयावधि का है। उन्होंने कहा “पिछले कुछ समय में”, पड़ताल से बचने के लिये इस तरह का धुंधलका वो जान-बूझकर छोड़ते हैं। दूसरी बात उन्होंने कही कि “एक रुपये में”। तो हम इन दोनों बातों को ही आधार बना लेते हैं और इस दावे की जांच-पड़ताल करते हैं।
जांच-पड़ताल
गौरतलब है कि सुविधा सेनेटरी नैपकिन की शुरुआत 4 जून 2018 को गई थी और इसके क्रियान्वन की जिम्मेदारी बीपीपीआई (ब्यूरो ऑफ फार्मा पीसीयू ऑफ इंडिया) को सौंपी गई थी। उस वक्त प्रति पैड कीमत ढाई रुपये थी। “सुविधा सेनेटरी पैड” की कीमत एक रुपया, 27 अगस्त 2019 को की गई थी। ज्यादा जानकारी के लिए केमिकल एंड फर्टिलाइज़र मंत्री मनमसुख मांडवीय का ये ट्वीट देखिये।
#WomenEmpowerment isn't about just featuring successful women, it is about focusing on health, hygiene & comfort of women across the country. Proud to launch #Suvidha now at just ₹1/pad. This will ensure hygienic periods to crores of my sisters and mothers. #SuvidhaHuaSasta pic.twitter.com/HmqEKO1UyD
— Mansukh Mandaviya (@mansukhmandviya) August 27, 2019
तो हम मान लेते हैं कि प्रधानमंत्री 27 अगस्त 2019 के बाद का आंकड़ा प्रस्तुत कर रहे हैं। क्योंकि एक रुपया प्रति सेनेटरी पैड की कीमत 27 अगस्त 2019 को ही की गई थी। अब एक बार नज़र डालते हैं बीपीपीआई की वर्ष 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट पर। जिसमें बताया गया है कि 27 अगस्त 2019 के बाद से कुल 60 लाख 25 हज़ार सेनेटरी पैड की बिक्री हुई है। रिपोर्ट आप इस लिंक पर देख सकते हैं। पेज नंबर 35 पर आपको ये जानकारी मिल जाएगी।
एक बार के लिए फिर भी मान लेते हैं कि ये रिपोर्ट 31 मार्च तक की हो सकती है। तो आप पीआईबी की ये प्रेस विज्ञप्ति देखिये। प्रेस इंफोर्मेशन ब्यूरो के अनुसार ये विज्ञप्ति केमिकल और फर्टिलाइज़र मंत्रालय ने जारी की है। इस विज्ञप्ति के अनुसार 10 जून 2020 तक कुल 3.43 करोड़ सेनेटरी पैड की बिक्री हुई है।
तो अब सवाल ये उठता है कि बाक़ी के करीब डेढ़ करोड़ नैपकिन क्या प्रधानमंत्री ने खुद अपनी तरफ से जोड़ दिये।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये भी कहा कि सेनेटरी पैड की कीमत एक रुपया है। जबकि सच्चाई ये है कि प्रति पैड एक रुपया कीमत है। सेनेटरी पैड के एक पैकेट में चार पैड होते हैं और इस पैक की कीमत चार रुपये है। चूंकि सेनेटरी पैड पैक में बिकते हैं, खुले नहीं। तो कीमत एक रुपया बताना सही होते हुए भी भ्रामक जानकारी है। सेनेटरी नेपकिन के इन पैक की कीमत 4 रुपये से लेकर 15 रुपये तक है। इन सेनेटरी पैड की कीमत के बारे में ज्यादा जानकारी के लिये बीपीपीआई की वेबसाइट पर देखिये।
घोषणा का संदर्भ और देशकाल
ये समझना भी ज़रूरी है कि जब प्रधानमंत्री लाल क़िले की प्राचीर से महिलाओं के स्वास्थ्य बारे एक भ्रामक आंकड़ा और जानकारी देते हुए अपनी पीठ थपथपाते हैं उस वक्त देश में माहवारी के दौरान महिलाओं की स्थिति क्या है। महिला स्वास्थ्य एवं स्वच्छता विषय पर एनडीटीवी का एक विशेष अभियान है। जिसके तहत इस विषय पर खास कवरेज़ की जाती है। इस बारे एनडीटीवी की इस रिपोर्ट पर नज़र डालिये जिसमें बताया गया है कि भारत में सिर्फ 12 प्रतिशत महिलाओं तक ही नेपकिन की पहुंच है।
अगर थोड़ा पीछे जाएंगे तो देखेंगे कि जो प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर दावे कर रहा है, उसी की सरकार ने 2017 में सेनेटरी नेपकिन पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगाया था। जिसका देश भर में महिलाओं ने कड़ा विरोध किया था।
मामला हाइकोर्ट तक पहुंच गया था। हाइकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि सरकार नेपकिन से जीएसटी हटाने की स्थिति में है या नहीं? केंद्र सरकार ने जवाब दिया था कि रॉ मैटेरियल आयात करना पड़ता है और कुछ अन्य व्यवहारिक दिक्कतें है जिसकी वजह से जीएसटी हटाना संभव नहीं है।
गौरतलब है कि सिंदूर, बिंदी, पूजा सामग्री, कंडोम आदि को टैक्स मुक्त रखा गया था। उसी समय सेनेटरी नेपकिन को जीएसटी मुक्त करने के लिये “लहू का लगान” नाम से एक अभियान भी चला था। पीटिशन डाली गई थी। हस्ताक्षर अभियान चले थे। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी, सांसद सुष्मिता देव, दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल और अन्य अनेक लोगों ने नेपकिन से जीएसटी हटाने के लिए आवाज़ उठाई थी। व्यापक विरोध के फलस्वरुप सरकार को सेनेटरी नेपकिन से जीएसटी हटाना पड़ा था। ग़रीब महिलाओं के स्वास्थ्य की चिंता के प्रधानमंत्री के दावे को इस रोशनी में भी देखना चाहिये।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते रहते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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