सीएए विरोध: निःशुल्क वकील और क्राउडफ़ंडिंग यूपी हिंसा के पीड़ितों की मदद कर रहे हैं

लखनऊ : 25 साल के मोहम्मद इम्तियाज़ को लखनऊ पुलिस ने 19 दिसंबर, 2019 को सीएए विरोध के मद्देनज़र हुई हिंसा में उनकी कथित भूमिका को लेकर गिरफ़्तार किया था। वह अभी भी जेल में बंद हैं क्योंकि उनका परिवार केस लड़ने के लिए वकील का इंतज़ाम नहीं कर सकता है।
इम्तियाज़ की बहन, आमना ख़ातून, जो ज़िंदा रहने के लिए इम्तियाज़ की कमाई पर निर्भर थीं, ने बताया कि वे आर्थिक दिक़्क़तों की वजह से किसी भी वकील का इंतज़ाम केस लड़ने के लिए नहीं कर सकते हैं, लेकिन शुक्र है कि कुछ वकील बिना पैसे लिए और क्राउडफ़ंड की सहायता से उनके परिवार का मुकदमा लड़ने को तैयार हैं।
आमना कहती हैं, “तीन दिनों तक घर में खाना नहीं था क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं थे। इम्तियाज़, परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था और जब से पुलिस ने उसे झूठे केस में फंसाया है, हमारे घर में खाने के लिए कुछ नहीं हैं। हम जब एक वक़्त के भोजन के लिए काफ़ी संघर्ष कर रहे थे तो हमारे पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने हमारी मदद की। अपने भाई के केस को लड़ने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है।"
आमना को उनका केस लड़ने के लिए कई निशुल्क और समर्थक वकीलों ने, सामाजिक कार्यकर्ताओं और यहां तक कि पत्रकारों ने भी संपर्क किया था, जो परिवार की मदद के लिए तैयार थे, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंक के डर से आमना ने सभी समर्थन की पेशकश को ठुकरा दिया था। उनके भाई के केस को हाल ही में एक नि:शुल्क वकील ने उठाया जो इस केस को क्राउडफ़ंड की मदद से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन्स एसोसिएशन की पदाधिकारी मधु गर्ग का कहना है कि हाल में घटी घटनाओं के कारण इम्तियाज़ का परिवार बहुत डरा हुआ है। वे उनसे केवल एक बार मिले हैं क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे। गर्ग ने न्यूज़क्लिक को बताया, "कुछ लोग उनकी आर्थिक मदद करने के लिए तैयार थे, लेकिन उन्होंने उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था और अब एक नि:शुल्क वकील ने केस हाथ में ले लिया है और केस लड़ने के लिए इम्तियाज़ के दोस्तों की मदद ले रहे हैं।"
नि:शुल्क वकील
पिछली 19 दिसंबर को समाज के विभिन्न समूहों द्वारा सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों में शामिल होने के गुनाह के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 5,558 लोगों को डीटेन किया गया था और 1,240 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था।
आधिकारिक स्रोतों से हासिल नए आंकड़ों के मुताबिक़ 42 लोगों को ज़मानत मिल गई है, जबकि 150 से अधिक अभी भी जेल में बंद हैं।
नई दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले वकील अली ज़ैदी ने जेल में बंद पीड़ितों की मदद करने के लिए कई केस अपने हाथ में लिए है। उन्होंने कहा, "पीड़ितों में से कई आर्थिक रूप से इतने कमज़ोर हैं कि वे जेल में बंद अपने परिजनों से मिलने का ख़र्च भी नहीं उठा सकते हैं, और इन केसों के संवैधानिक समाधान का विकल्प भी नहीं चुन सकते हैं, क्योंकि वकीलों की फ़ीस काफ़ी महंगी हैं।"
अली ने न्यूज़क्लिक को बताया, “कई अन्य लोग भी पुलिस अत्याचार के शिकार लोगों की मदद कर रहे हैं। पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ भी लोगों की मदद कर रही है और दिल्ली, इलाहाबाद और लखनऊ के कई स्वतंत्र वकील इन केसों को उठाने के लिए आगे आए हैं। मैंने हाल ही में दो लोगों को जेल से बाहर निकाला और उसी आधार पर 48 से अधिक अन्य लोगों को बिजनौर की अदालत से ज़मानत मिल गई है क्योंकि पुलिस उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत पेश नहीं कर सकी।”
अश्मा इज़्ज़त, जो लखनऊ स्थित एक वकील हैं, और 'संविधान बचाओ देश बचाओ आंदोलन’ की क़ानूनी टीम की प्रमुख हैं, ने बताया, “हमने हाल ही में 18 लोगों को जेल से बाहर निकाला है और अभी भी 100 से अधिक लोग जेल में बंद हैं। हम नि:स्वार्थ भाव से वकीलों के रूप में काम कर रहे हैं क्योंकि ये सभी लोग बहुत ग़रीब पृष्ठभूमि से आते हैं और उनके परिजन वकीलों की मोटी फ़ीस देने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं। जो जेलों में बंद हैं उनमें से कुछ वेटर हैं और सड़क के किनारे छोटी खाने की दुकानों पर काम करते हैं। जब वे काम कर रहे थे तो उन्हें पुलिस ने उठा लिया था।”
इज़्ज़त ने कहा कि वे ऐसे लोगों का डाटा इकट्ठा करने के लिए भी काम कर रही हैं जो लोग पीड़ितों की मदद करने में सक्षम हों।
क्राउडफ़ंडिंग (जन सहयोगी फ़ंड)
राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में हुए प्रदर्शन के दौरान 25 से अधिक लोगों को कथित रूप से हुई हिंसा के दौरान मार दिया गया था, जो हिंसा सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी। उनमें से, कई अपने परिवारों के लिए एकमात्र कमाई का साधन थे। इसलिए, कुछ लोग ऐसे ग़रीब परिवारों की मदद के लिए आगे आए हैं और ऑनलाइन मंचों के माध्यम से बड़ी राशि एकत्र की गई है।
क्राउडफ़ंड की वेबसाइट OurDemocracy.in पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार- सामाजिक और राजनीतिक कारणों से भड़की हिंसा के पीड़ितों की मदद के लिए - 5,093,000 रुपये से अधिक की राशि एकत्रित की गई है।
एकत्रित फंड का विवरण:
1) कानपुर पीड़ितों के लिए 7.36 लाख फ़ेसबुक पेज के ज़रिये एकत्रित किए गए।
-इसमें से 3 लाख रुपए आफ़ताब आलम के परिवार को दिए गए।
-इसमें से 3 लाख रुपए मौहम्मद रईस के परिवार को दिए गए।
-इसमें से 1.36 रुपए लाख मौहम्मद सैफ़ के परिवार को दिए गए।
2) इमराना के लिए भी धन जुटाया गया। जो मेरठ में मारे गए आसिफ़ की पत्नी हैं। (जो टायर मैकेनिक और अनाथ थे)
https://www.ourdemocracy.in/Campaign/SupportImrana
10.5 लाख रुपए जुटाए गए जिसमें से 10.14 लाख रुपए जल्द ही दिए जाएंगे।
3) मेरठ में मारे गए अलीम अंसारी के भाई सलाउद्दीन के लिए फ़ंड जुटाया गया।
https://www.ourdemocracy.in/Campaign/AleemAnsari
इसमें 8 लाख रुपए जुटाए गए। .
4) ज़हीर के लिए फ़ंड जुटाया गया है।
https://www.ourdemocracy.in/Campaign/SupportfamilyofZaheer
अब तक 90,000 रुपये जुटाए गए हैं। अभियान अभी भी जारी है।
5) पटना में मारे गए अमीर हंजला के लिए तारिक़ अनवर ने फंड इकट्ठा किया।
https://www.ourdemocracy.in/Campaign/JusticeForAmir
इसमें 10.26 लाख रुपए जुटाए गए
6) सुलेमान जो बिजनौर में मारा गया। अंशुलिका दुबे ने उनके लिए फ़ंड जुटाया।
https://www.ourdemocracy.in/Campaign/justiceforsuleman
इसमें 3.29 लाख रुपये जुटाए गए। यह अभियान अब रुक गया है।
7) बिजनौर में मारे गए अनस के लिए दीपक गुप्ता ने फंड जुटाया
https://www.ourdemocracy.in/Campaign/JusticeForAnas
इसमें 10.62 लाख रुपए जुटाए गए।
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
CAA Protests: How Pro Bono Lawyers and Crowdfunding Are Helping UP Violence Victims
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