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शशि थरूर का चयन : अब राजनीति आगे, देश पीछे

सरकार ने आतंकवाद पर देश की स्थिति स्पष्ट करने के लिए विदेशों में सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधि मंडल भेजने का फ़ैसला किया। सरकार ने यह फ़ैसला तो किया लेकिन यहीं से देश पीछे चला गया और राजनीति आगे आ गई।
Shashi Tharoor
फ़ाइल फ़ोटो

 

जम्मू-कश्मीर के सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगांव में आतंकवादियो द्वारा की गई 26 पर्यटकों की हत्या के बाद पूरे देश का गुस्सा चरम पर पहुंच गया। लोग आतंकवादियों के इस कुकृत्य को देखते हुए उन्हें और उनको संरक्षण देने वाले पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाने की बात करने लगे। सत्ताधारी दल समेत पूरे विपक्ष ने एक सुर में बात की। सरकार ने भी बदला लेने के लिए सेना को पूरी छूट दे दी। सेना ने पाकिस्तान और उसके संरक्षण में पल रहे आतंकवादियों को सबक सिखाने का अभियान भी शुरू किया कि अचानक सरकार ने सीज फायर स्वीकार कर लिया। सीज फायर की घोषणा भी भारत या पाकिस्तान ने नहीं की बल्कि तीसरे देश अमेरिका के राष्ट्रपति ने की। यह एक और पेचीदा मसला बनकर सामने आया। अभी तक कश्मीर के मसले को भारत - पाक आपस में ही सुलझाते रहे हैं। 1971 के शिमला समझौते के तहत इसमें तीसरे पक्ष को शामिल नहीं किया जाता था लेकिन इस बार अमेरिका के रूप में तीसरा पक्ष भी शामिल हो गया था। भारत सरकार ने जिस सेना को पूरी छूट दी थी सीज फायर का फैसला लेते वक्त उससे पूछा तक नहीं। जिस विपक्ष ने उसे पूरा समर्थन दिया था उससे बात तक नहीं की। सरकार के इस फैसले से सब लोग हतप्रभ रह गये। इस मुद्दे पर जो एकजुटता पूरे देश में अब तक दिख रही थी, सरकार के इस फैसले के बाद उस पर संशय खड़ा हो गया। अभी तक देश के लोग और विपक्ष जो एक सुर में सरकार के हर फैसले को समर्थन दे रहे थे, उनके मन में सवाल उठने लगे। दबी जुबान से सवाल पूछे भी जाने लगे। लेकिन सत्ताधारी दल और भारत सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आ रहा था।

बाद में सरकार ने आतंकवाद पर देश की स्थिति स्पष्ट करने के लिए विदेशों में सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधि मंडल भेजने का फैसला किया। सरकार ने यह फैसला तो किया लेकिन यहीं से देश पीछे चला गया और राजनीति आगे आ गई।

सरकार ने देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के दो सबसे बड़े नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से बात की। प्रतिनिधि मंडल में विदेश जाने वाले कांग्रेस नेताओं के नाम मांगे। कांग्रेस ने चार नेताओं के नाम दे भी दिये। लेकिन सरकार की तरफ से उनमें से सिर्फ एक नेता को प्रतिनिधि मंडल में शामिल किया गया। सरकार ने अपनी ओर से शशि थरूर का नाम शामिल कर दिया। अब सवाल उठता है कि अगर सरकार को अपने ही ढंग से नाम तय करना था तो कांग्रेस से नेताओं के नाम ही क्यों मांगे ? फिर जिस व्यक्ति को सरकार ने प्रतिनिधि मंडल में शामिल किया वो व्यक्ति कौन है ? शशि थरूर। इसमें कोई शक नहीं कि शशि थरूर प्रतिनिधिमंडल में भेजे जाने के लिए देश के सबसे योग्य सांसद हैं। वे चार बार से लोकसभा सदस्य हैं, विद्वान हैं, अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ है, अपनी बात बहुत प्रभावी तरीके से रखते हैं, यूनाइटेड नेशन्स में काम करने का लंबा अनुभव है, अमेरिका में लंबे समय तक रहे हैं। लेकिन क्या उनके इन गुणों के कारण उन्हें प्रतिनिधि मंडल में शामिल किया गया ? ऐसा लगता नहीं। 

दरअसल इस समय शशि थरूर कांग्रेस नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं। शशि थरूर मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़े जिसमें वे बुरी तरह से पराजित हुए। शशि थरूर को उम्मीद थी कि उन्हें पार्टी संगठन में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी, वो भी नहीं मिली। शशि थरूर केरल से सांसद हैं। केरल में अगले साल विधान सभा के चुनाव होने हैं। कुछ न मिलता देख शशि थरूर ने राज्य की राजनीति में घुसने की कोशिश की और अपने आप को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने की कोशिश की। लेकिन वहां के नेताओं ने उन्हें खारिज कर दिया। वहां पहले से ही बहुत मारामारी है। के वेणुगोपाल, रमेश चेन्नीथला, सनी जोसेफ, अदूर प्रकाश, एपी अनिल कुमार, पीसी विष्णुनाथ, शफी परमबिल, वीडी सतीशन वहां पहले से ही मौजूद हैं। 

कांग्रेस पार्टी से शशि थरूर के विवादों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हवा दे रहे हैं। बीजेपी के पास केरल में कोई चेहरा नहीं है। मेट्रो मेन श्रीधरन को पार्टी ने चेहरा बनाने की कोशिश की। लेकिन उनकी कोशिश औंधे मुंह गिरी। अब बीजेपी को लगता है कि अगर शशि थरूर उसे मिल जाएं तो पार्टी को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल उन पर बहुत मेहरबान हैं। वे उनकी तरफ कुछ ज्यादा ही तवज्जो दे रहे हैं। कुछ समय पहले राज्य में एक बंदरगाह का उद्घाटन हुआ। उसका उद्घाटन नरेंद्र मोदी ने किया। उद्घाटन समारोह में मंच पर प्रधानमंत्री के साथ वहां के मुख्यमंत्री पी विजयन ( वामपंथी नेता ) और कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी थे। तब प्रधानमंत्री ने चुटकी भी ली थी कि इस मंच को देखकर बहुत लोगों की रातों की नींद हराम हो जाएगी। उनका इशारा कांग्रेस नेतृत्व की ओर ही था।

शशि थरूर को लेकर भाजपा और प्रधानमंत्री हमेशा ही हमलावर रहे हैं। प्रधानमंत्री तो 2014 के अपने चुनाव प्रचार में शशि थरूर पर निजी हमला तक कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि किसी ने देखा है 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड। तब सुनंदा पुश्कर शशि थरूर की गर्ल फ्रेंड थीं और एक आईपीएल टीम की फ्रेंचाइजी के मामले में प्रधानमंत्री ने उन्हें 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड कहा था। बाद में जब सुनंदा पुश्कर की दिल्ली के एक होटल में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई तो उसे लेकर भी बीजेपी शशि थरूर पर अभी तक हमलावर रहती है। फिर शशि थरूर अचानक मोदी और बीजेपी के इतने प्रिय कैसे हो गए ? जाहिर है कांग्रेस नेतृत्व से उनका बढ़ता विवाद और बीजेपी में उनके शामिल होने की उम्मीद के चलते ही बीजेपी और मोदी जी उनकी ओर हसरत भरी नजरों से देख रहे हैं। 

आपको याद होगा ऐसा ही प्रेम कभी मोदी जी ने कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को लेकर दिखाया था। तब गुलाम नबी आजाद राज्य सभा में कांग्रेस के नेता थे। बाद में उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अपनी नई पार्टी बनाई। लेकिन जनता ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। आजकल वे कहां हैं, किसी को नहीं पता। शशि थरूर इस बात को जानते हैं। इसीलिए वे नेतृत्व से तमाम नाराजगी के बावजूद कांग्रेस से अलग नहीं हो रहे हैं। उन्हें पता है कि केरल में बीजेपी का कुछ नहीं है। अगर वे कांग्रेस छोड़ते हैं और बीजेपी में शामिल होते हैं और बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी बना देती है तो भी उनकी गति गुलाम नबी आजाद जैसी ही होने वाली है। इसलिए वे कोई ऐसा कदम नहीं उठा रहे। वे चाहते हैं कि कांग्रेस ही कोई ऐसा कदम उठाये जिससे उनकी सांसदी बची रहे। इसीलिए वे कांग्रेस नेतृत्व को चिढ़ा रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व ने उनका नाम अपनी ओर से प्रतिनिधि मंडल के लिए नहीं भेजा लेकिन जैसे ही उनका नाम घोषित किया गया उन्होंने बढ़कर उसका स्वागत किया।

मुझे अपने जनसत्ता ( दैनिक समाचार पत्र ) के दिनों की एक घटना याद आ रही है। एक संवाददाता थे। उनकी तत्कालीन ब्यूरो चीफ से नहीं बनती थी। वो जो बीट देखते थे उसकी ओर से अमेरिका जाने का एक निमंत्रण आया। अखबारों में आम तौर पर निमंत्रण संस्थान के नाम आता है लेकिन वो संवाददाता जानते थे कि अगर निमंत्रण संस्थान को आया तो उन्हें नहीं जाने दिया जाएगा। तो उन्होंने निमंत्रण सीधे अपने नाम से मंगा लिया। इस पर ब्यूरो चीफ ने आपत्ति की। उसने संवाददाता से कहा कि अगर बिना संस्थान की अनुमति से जाओगे तो वापस लौटने पर संस्थान में जगह नहीं मिलेगी। लेकिन रिपोर्टर ने उसकी परवाह नहीं की। वो अमेरिका गया। लेकिन जब वो लौटकर आया तो उसे संस्थान छोड़ना पड़ा। संयोग से शशि थरूर भी अमेरिका ही जा रहे हैं। कांग्रेस ने अपनी सूची में उन्हें शामिल भी नहीं किया है। फिर भी ज्यादा उम्मीद है कि वो अमेरिका जाएंगे ही। लेकिन लौटने पर क्या होगा ? कोई जाने ना ।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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