बिहार दिवस: देश के पहले सत्याग्रह वाला चंपारण, गांधी से जेपी तक

बिहार आज अपना स्थापना दिवस मना रहा है। इस मौके पर राजधानी पटना के गांधी मैदान में राज्य सरकार की ओर से तीन दिनों के कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज इस भव्य समारोह का उद्घाटन किया और 24 मार्च को राज्यपाल फागू चौहान इसका समापन करेंगे। इस कार्यक्रम में अपने-अपने क्षेत्र के नामचीन कलाकार प्रस्तुति देंगे।
मां सीता और भगवान महावीर की जन्मस्थली बिहार का इतिहास काफी पुराना है। 110 साल पहले आज ही के दिन यानी 22 मार्च 1912 को बिहार को बंगाल से अलग कर एक राज्य बनाया गया। इस तारीख को हर साल स्थापना दिवस मनाया जाता है। साल 1912 में बंगाल से अलग हुए बिहार का वर्ष 1935 में विभाजन हुआ और उड़ीसा को इससे अलग कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद बिहार का एक बार फिर विभाजन हुआ और वर्ष 2000 में झारखंड को इससे अलग कर नया राज्य बनाया गया।
आज़ादी की लड़ाई में बिहार का योगदान
आजादी की लड़ाई में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस संघर्ष में सैंकड़ों-हजारों लोग अंग्रेजों की प्रताड़ना का शिकार हुए और जेल गए। इस लड़ाई में यहां के लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और देश को स्वतंत्र कराने में मदद की।
बिहार में महात्मा गांधी का पहला सत्याग्रह
आजादी की लड़ाई में चंपारण सत्याग्रह की अहम भूमिका रही है।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में नील किसानों की मुक्ति के लिए अंग्रेजों के खिलाफ देश का पहला सत्याग्रह बिहार के चंपारण से वर्ष 1917 में हुआ था। इसेचंपारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधी जी के अथक प्रयास के बाद वर्ष 1918 में गवर्नर-जनरल ने चंपारण एग्रेरियन बिल पर हस्ताक्षर किया और 135 सालों से चली आ रही नील की जबरन खेती की व्यवस्था समाप्त हुई।
खुदीराम बोस को फांसी
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अपने देश की स्वतंत्रता के लिए फांसी पर चढ़ने वाले खुदीराम बोस सबसे कम उम्र के युवा थे। जब उनको फांसी दी गई थी तब उनकी उम्र महज 19 वर्ष थी। उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दी गई थी। उन्होंने अपने साथी प्रफुल्लकुमार चाकी के साथ मुजफ्फरपुर के सत्र न्यायाधीश किंग्सफोर्ड को मारने की योजना बनाई थी लेकिन वे असफल हो गए थे।
होमरूल आंदोलन
वर्ष 1916 में भारत में होमरूल आंदोलन शुरू हुआ था। एनी बेसेंट ने मद्रास में एवं बाल गंगाधर तिलक ने पूना में इसकी स्थापना की थी। बिहार में होमरूल लीग की स्थापना 16 दिसम्बर 1916 में हुई। इसके अध्यक्ष मौलाना मजहरूल हक, उपाध्यक्ष सरफराज हुसैन खान और पूर्गेन्दू नारायण सिंह तथा मंत्री चन्द्रवंशी सहाय और वैद्यनाथ नारायण नियुक्त किए गए थे।
बिहार में मज़दूर आंदोलन
बिहार में औद्योगिक मजदूर वर्ग ने मजदूर आंदोलन चलाया। दिसंबर 1919 में पहली बार मुंगेर के जमालपुर में मजदूरों की हड़ताल प्रारंभ हुई। वर्ष 1920 में एसएन हैदर एवं व्यायकेश चक्रवर्ती के मार्गदर्शन में जमशेदपुर वर्क्स एसोसिएशन बनाया गया। वर्ष 1925 और 1928 के बीच मजदूर संगठन की स्थापना हुई। सुभाषचंद्र बोस, अब्दुल बारी, जयप्रकाश नारायण इसके प्रमुख नेता थे।
बिहार में स्वराज पार्टी
चौरा-चौरी कांड से दुःखी होकर गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को समाप्त कर दिया जिसके बाद देशबंधु चितरंजन दास तथा मोतीलाल नेहरू और विट्ठलभाई पटेल ने एक स्वराज दल का गठन किया।
बिहार में स्वराज दल का गठन फरवरी वर्ष 1923 में हुआ। नारायण प्रसाद अध्यक्ष, अब्दुल बारी सचिव एवं कृष्ण सहाय तथा हरनन्दन सहाय को सहायक सचिव बनाया गया। मई 1923 में नई कार्यकारिणी का गठन हुआ। 2 जून 1923 को पटना में स्वराज दल की एक बैठक हुई जिसमें पटना, तिरहुत, छोटा नागपुर एवं भागलपुर मंडलों में भी स्वराज दल की शाखाओं को गठित करने की घोषणा की गई।
तारापुर गोलीकांड
मुंगेर जिले के तारापुर थाना में तिरंगा फहराते हुए 60 क्रांतिकारी शहीद हुए थे। 15 फ़रवरी 1932 की दोपहर सैकड़ों आजादी के दीवाने मुंगेर जिला के तारापुर थाने पर तिरंगा लहराने निकल पड़े । इनकी शहादत के बाद स्थानीय थाना भवन पर तिरंगा लहराया। आजादी मिलने के बाद से हर साल 15 फ़रवरी को स्थानीय नागरिकों द्वारा तारापुर दिवस मनाया जाता है।
बिहार में भारत छोड़ो आंदोलन
बिहार में भारत छोड़ो आंदोलन को सरकार द्वारा बलपूर्वक दबाने का प्रयास किया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि क्रान्तिकारियों को गुप्त रूप से आंदोलन चलाने के लिए मजबूर होना पड़ा। 9 नवम्बर 1942 को दीवाली की रात में जयप्रकाश नारायण, रामनन्दन मिश्र, योगेन्द्र शुक्ला, सूरज नारायण सिंह आदि व्यक्ति हजारीबाग जेल की दीवार फांदकर भाग गए। सभी शैक्षिक संस्थान हड़ताल पर चले गए और राष्ट्रीय झंडे लहराये गये। 11 अगस्त को विद्यार्थियों के एक जुलूस ने सचिवालय भवन के सामने विधायिका की इमारत पर राष्ट्रीय झंडा लहराने की कोशिश की।
प्राचीन समय में शिक्षा का केंद्र था बिहार
प्राचीन समय में बिहार शिक्षा का केंद्र था। विश्व भर से छात्र बिहार के विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय और ओदंतपुरी विश्वविद्यालय प्राचीन बिहार के गौरवशाली अध्ययन केंद्र थे। प्रसिद्ध चीनी विद्वान यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने कई वर्षों तक यहाँ सांस्कृतिक व दर्शन की शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत व संस्मरणों में नालंदा के विषय में काफी कुछ लिखा है।
आजादी के बाद बिहार में हुए महत्वपूर्ण घटनाओं की बात करें तो यहां वर्ष 1974 में छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
1974 का छात्र आंदोलन
वर्ष 1974 में बिहार से शुरू हुआ छात्र आंदोलन गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत पूरे देश में फैल गया। इस आंदोलन का नेतृत्व लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने किया था। 18 मार्च के दिन विधान मंडल के सत्र की शुरुआत होनी थी और राज्यपाल दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले थे। वहीं पटना के आंदोलनकारी छात्रों की योजना थी कि वे राज्यपाल को विधान मंडल भवन में जानें रोकेंगे। उधर प्रशासन राज्यपाल आरडी भंडारे को किसी भी कीमत पर विधान मंडल भवन पहुंचाने की कोशिश कर रहा था लेकिन छात्रों ने राज्यपाल की गाड़ी को रास्ते में रोक लिया। पुलिस ने छात्रों-युवकों पर निर्ममतापूर्वक लाठियां बरसाईं।
1967 में संयुक्त विधायक दल की सरकार
बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। 5 मार्च 1967 को महामाया प्रसाद सिन्हा इस सरकार में मुख्यमंत्री बने। इसे संयुक्त विधायक दल (संविद) सरकार का नाम दिया गया।
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