बिहार: ‘वक़्फ़ तो बहाना है, संविधान निशाना है’

“यह कानून असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी है। यह हमारे धार्मिक स्थलों और विरासत भवनों को छीनने का प्रयास है। जब तक केंद्र की सरकार वक़्फ़ का यह काला कानून वापस नहीं लेती है तब तक यह संघर्ष जारी रखेंगे…”।
यह कथन इमारते-शरिया के ओहदेदार का है। लेकिन इन बातों के मनोभावों से कहीं अधिक क्षोभ के मनोभाव परिलक्षित हो रहे थे, पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जुटे हज़ारों हज़ार की संख्या में जुटे लोगों के चेहरों से। जो वहां पहुंचे थे केंद्र की मौजूदा सरकार द्वारा वक़्फ़ संशोधन की आड़ में मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकारों पर हमला किये जाने के विरोध में पहुंचे थे।
29 जून को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में ‘इमारते शरिया’ और ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ समेत कई अन्य सामाजिक जन संगठनों के आह्वान पर ‘वक़्फ़ बचाओ, संविधान बचाओ सम्मेलन का आयोजन किया गया था। जिसमें बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल,ओडिशा व झारखंड समेत कई अन्य राज्यों से मुस्लिम समाज के लोग शामिल हुए।
चर्चा है कि बिहार व पटना गांधी मैदान के हालिया दस वर्षों के इतिहास में इतना विशाल जन जुटान-प्रदर्शन नहीं हुआ था। अमूमन पूरे गांधी मैदान के चप्पे चप्पे में उपस्थित प्रदर्शनकारियों की अनगिन तादाद दिखला रही थी कि “वक़्फ़ संशोधन” की आड़ में केंद्र की मौजूदा सरकार द्वारा वक़्फ़ की अकूत संपत्तियों को हड़पने की कोई भी साजिश नहीं चलने दी जाएगी।
तीखी गर्मी और उसस के बावजूद कार्यक्रम के मंच से लेकर दूर दूर तक ठसाठस भरे लोगों और खासकर युवाओं की सरगर्मी पूरे शबाब पर थी, जो मंच से वक्ताओं के भाषणों के समर्थन में जोशो-खरोश के साथी तालियाँ और नारों से प्रदर्शित हो रही थी।
कार्यक्रम को आयोजक संगठनों के प्रतिनिधियों के अलावा बिहार इंडिया गठबंधन के प्रमुख नेताओं ने संबोधित किया। कांग्रेस बिहार के अध्यक्ष ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राहुल गांधी द्वारा भेजे गए सन्देश को पढ़कर सुनाया।
राजद नेता तेजस्वी यादाव ने अपने संबोधन में कहा कि- पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक हिन्दुस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि देश की आज़ादी की लड़ाई कैसे हम सबों ने मिलकर लड़ी है। सभी धर्मों के लोगों ने कुर्बानियां दी हैं। देश किसी अकेले का नहीं है। ऐसे में कोई सरकार यदि देश में नफ़रत और लोगों को बांटने की राजनीति करके अपन राज चलाना चाहेगी तो देश की जनता उसे नहीं चलने देगी। बिहार में यदि इंडिया गठबंधन की सरकार बनी तो हम भाजपा सरकार के ‘वक़्फ़ संशोधन’ काला कानून को किसी कीमत पर नहीं लागू होने देंगे।
भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि ये लड़ाई हम सबकी साझी लड़ाई है। अभी हमारे सामने बिहार का विधान सभा चुनाव है और ज़रूरत है कि इस चुनाव में संविधान विरोधी लोगों और नफ़रत फैलाने वालों को पहले बिहार की सत्ता से बाहर करना होगा। उन्होंने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई का हवाला दिया कि सुप्रीम कोर्ट जज ने जब पूछा कि क्या इसके बाद चर्च, गुरुद्वारे और हिन्दुओं के मंदिरों के लिए भी कानून बनेंगे तो सरकार का वकील कुछ नहीं बोल पाया।
दीपंकर ने इस दौरान केंद्र सरकार के इशारे पर चुनाव आयोग द्वारा “मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम” चलाये जाने का पुरज़ोर विरोध करते हुए कहा कि हर दिन देश के संविधान की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार और मोदी जी समेत उसके सारे नेता, आज गरीबों के वोट देने के संविधानिक अधिकार को ही ख़त्म करने पर आमादा हैं। जिसे एकजुट विरोध से ही रोका जा सकता है।
राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने शायराना अंदाज़ में कहा कि वक़्फ़ बिल मुसलामानों के लिए उसी तरह है बर्बादी का सामान है कि- हमीं को कातिल कहेगी दुनिया हमारा ही कत्लेआम होगा। यह बिल मुसलमानों को मंजूर नहीं है।
माले बिहार विधायक दल नेता महबूब आलम ने कहा कि ऊपर से देखने में “वक़्फ़ संशोधन कानून” के जरिये मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन मुसलमान तो बहाना हैं, संविधान पर निशाना है। यह सवाल अवाम और गरीब गुरबों का सवाल है। भाजपा जो देश बांटने की साजिश कर रही है, इस एकजुट होकर ही नाकाम किया जा सकता है।
वीआईपी नेता मुकेश ने कहा कि भाजपा के नीयत में है गरीबों के अधिकारों को छीनना। इस काले कानून से न सिर्फ मुसलमानों के अधिकारों को कम करने की कोशिश की जा रही है बल्कि इबादतगाहों और मुसलामानों की विरासत को लूटने की कोशिश है।
सांसद पप्पू यादव ने कहा कि मुसलमान के नाम पर “सनातन संस्कृति” थोपने की साज़िश है। जिसे इस राज्य की जनता कभी नहीं चलने देगी।
कार्यक्रम को राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी, राज्य सभा सदस्य संजय यादव, जहानाबाद सांसद सुरेन्द्र यादव तथा माले विधायक गोपाल रविदास के अलावा इंडिया गठबंधन के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी संबोधित किया और वक़्फ़ संशोधन कानून को तत्काल रद्द करने की मांग की।
इस कार्यक्रम को लेकर मुख्यधारा की मीडिया में अधिकांश का सांप्रदायिक नज़रिया एक बार फिर खुलकर सामने आ गया कि हज़ारों हज़ार की संयमित जनभागीदारी वाले कार्यक्रम की खबर को लगभग दबा दिया गया। किसी अखबार में खबर छपी भी तो बिलकुल अन्दर के पन्नों में। उलटे इस कार्यक्रम को लेकर भाजपा नेताओं-प्रवक्ताओं के बयानों को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया।
बहरहाल, इस कार्यक्रम ने इतना तो स्पष्ट कर ही दिया कि कई राज्यों की तरह बिहार के भी बहुसंख्यक मुसलमानों के साथ साथ व्यापक धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक व सामाजिक शक्तियां “वक़्फ़ संशोधन कानून” के विरोध में खडी हैं। साथ ही भाजपा सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के संविधान प्रदत्त धार्मिक आज़ादी व पहचान पर किये जा रहे नित नए हमलों के विरोध में एकजुट प्रतिवाद निरंतर जारी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार, संस्कृतिकर्मी और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं।)
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