बिहार ‘वोटबंदी’: चुनाव आयोग के फ़रमान के ख़िलाफ़ छिड़ा सियासी संग्राम

“तटस्थ रहने” के मीडिया-आदर्श के तमाम तकाज़ों के लिहाज़ से भी यदि आप बिहार के मौजूदा राजनितिक स्थितियों का ईमानदार जायजा लेंगे तो पायेंगे कि- कैसे देश के चुनाव आयोग के हालिया फरमान से बिहार राज्य के प्रत्येक वोटर की वर्तमान सूची को सार्वजनिक रूप से निरस्त्र किया जा चुका है।
क्योंकि चुनाव आयोग ने सरकारी घोषणा जारी कर राज्य में नया वोटर लिस्ट बनाने के लिए “विशेष गहन पुनरीक्षण” (एसआईआर) करने की घोषणा कर दी है। जिसके लिए समय अवधि भी 25 जुलाई निर्धारित कर पूरे प्रदेश में नीचे से लेकर ऊपर तक कर्मचारियों व आला-अधिकारीयों की टीमें दौड़ायी जा रहीं हैं।
साथ ही मीडिया से हर दिन “सूचना-विज्ञापनों” द्वारा व्यापक प्रचार करने के साथ साथ तमाम स्तर के निर्वाचन पदाधिकारियों द्वारा प्रेस-वार्ता करवाकर चुनाव आयोग के नए फरमान के अनुपालन सम्बन्धी प्रशासनिक आदेश जारी करने का सिलसिला जारी है।
इस सबसे ऐसी अफरा-तफरी मच गयी है कि हर मतदाता आतंकित सा हो रहा है कि- क्या वह सरकार के अनुसार राज्य का “वैध वोटर” रह पायेगा? क्योंकि अब तक की तो स्थापित परम्परा यही रही है कि- निर्वाचन आयोग की ओर से अधिकारी-कर्मचारी घर-घर पहुंचकर मतदाताओं की मदद करते थे। लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि वोटरों को ही चुनाव आयोग के समक्ष अपने नागरिक होने का प्रमाण देने का फरमान मानने को बाध्य किया जा रहा है।
सूचनाएं यह भी मिल रहीं हैं कि जगह-जगह निर्वाचन अधिकारीगण धमकी भरे लहजे में लोगों को बुला बुलाकर यही समझा रहे हैं कि- नागरिक होने की पहचान नहीं दोगे तो वोट कैसे दे सकोगे?
हास्यास्पद स्थिति ये है कि जिस “आधार कार्ड” को केंद्र की सरकार, देश के सभी नागरिकों के लिए सबसे अनिवार्य सरकारी कागज़ मानने का अनुपालन करवा रही है, चुनाव आयोग ने उसे अमान्य घोषित कर दिया है। विगत कई वर्षों से निर्गत वोटरों का अपना वोटर आईडी भी मान्य नहीं है। कहा जा रहा है है कि यदि 2003 के बाद जन्म लिए हो तो माता-पिता का भी जन्म-प्रमाणपत्र जमा करो अथवा ज़मीन का स्थायी मालिकाना कागज़ दिखाओ। इस संबंध में कुल 11 प्रावधान दिए गए हैं जिसे 25 जुलाई तक चुनावकर्मियों/ऑनलाइन जमा कर देना है। जिसकी सघन जांच-पुनरीक्षण के बाद ही तय होगा कि वोट देने का अधिकार है अथवा नहीं।
पूरे राज्य में हर तरफ से यही सवाल उठ रहा है कि- पीढ़ी दर पीढ़ी के निवासियों से लेकर वर्षों से भूमिहीन रहने को अभिशप्त लाखों लाख गरीब-गुरबे कहाँ से मकान/ज़मीन के स्थायी कागज़ात, मैट्रिक का सर्टिफिकेट और माँ-बाप के सरकारी कागज़ात, वो भी इतने कम समय में कहाँ से ला सकेंगे। अगर नहीं लायेंगे तो सरकार-प्रशासन की नज़रों में वे अब से राज्य के नागरिक नहीं रह पायेंगे और उन्हें वोट देने के मौलिक अधिकार से भी वंचित कर दिए जायेंगे।
प्रदेश की “डबल इंजन सरकार” के घटक दलों में इसे लेकर अभी तक तो पूरा समर्थन दिख रहा है, लेकिन राज्य के परेशान-हाल लोगों के सवालों पर “सघन चुप्पी” है। जबकि परेशान-हाल लोगों व राज्य के वोटरों की ओर से राज्य के वामपंथी दल और इंडिया गठबंधन के तमाम घटक दलों ने “चुनाव आयोग के फरमान” को असंवैधानिक और जनता के लोक्तांत्रिक अधिकारों पर खुला हमला करार देते हुए ज़ोरदार विरोध अभियान छेड़ रखा है।
भाकपा माले ने तो विवादास्पद “नोटबंदी” की भांति इसे केंद्र सरकार द्वारा बिहार की जनता पर सरासर “वोटबंदी” थोपने का आरोप लगाते हुए इसे तत्काल वापस कराने और अपने मताधिकार की रक्षा के लिए राज्य की जनता से ज़ोरदार जनदबाव खड़ा करने का आह्वान किया है।
वहीं, प्रदेश के इंडिया गठबधन ने एक स्वर से आरोप लगाया है कि पिछले 20 वर्षों के कुशासन से त्रस्त बिहार की जनता जब बिहार के शासन में बदलाव चाह रही है और “डबल इंजन” की सरकार को हटाना चाहती है, तो आसन्न हार से घबरायी भाजपा-जदयू सरकार अब लोगों के मताधिकार को ही ख़त्म कर देने पर आमादा है।
इंडिया गठबंधन दल यह भी कह रहे हैं कि- पिछले विधान सभा चुनाव में “जंगल राज” का डर दिखाकर प्रदेश की कुर्सी पर काबिज़ होने वाले भाजपा-जदयू की एनडीए गठबंधन सरकार के शासन में हर जगह अपराध का खुला तांडव हो रहा है। आये दिन बच्चियों-महिलाओं पर बर्बर अत्याचार-हत्या की घटनाएं बेलगाम हैं। राज्य के गरीब-गुरबे-दलित-वंचितों पर सामंती-दबंगता के हमले बेतहाशा बढ़े हैं। बीपीएससी से लेकर हर नौकरी-परीक्षा में “पेपर-लीक” का संगठित कुचक्र से राज्य के छत्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। सरकार की जुमलेबाजी से क्षुब्ध युवाओं द्वारा रोज़ी-रोज़गार की मांग करने पर पुलिस की लाठियां बरस रहीं हैं। ऐसे में केंद्र की सत्ता पर काबिज़ भाजपा सरकार ‘वोट देने’ के ऐन मौके पर राज्य के लोगों से “नागरिकता पहचान” मांग कर उनके वोट देने के मौलिक अधिकार को ही ख़त्म करने की साजिश कर अपना तानशाह चरित्र दिखला रही है।
यह खुला सच है कि- पूरे राज्य में फैली भयावह अफरा-तफरी और परेशान-हाल जनता के बढ़ते विक्षोभ को देखते हुए “चुनाव आयोग” को हर दिन नयी नयी घोषणाएं कर लोगों को तथाकथित रूप से आश्वस्त करना पड़ रहा है कि- वोटर लिस्ट से किसी का नाम नहीं कटेगा। जैसे भी हो आप मतदाता पुनरीक्षण फॉर्म भर कर कर्मचारी को दे दीजिये। लेकिन दूसरी ओर, यह भी हिदायत देना जारी रखे हुए है कि आयोग ने “मतदाता-पहचान” साबित करने के जो ग्यारह बिंदु दिए हैं, उसमें कोई बदलाव नहीं होगा।
चुनाव आयोग का एक बेतुका फरमान यह भी है कि जितने भी प्रवासी मजदूर हैं, वे जहाँ अभी मेहनत-मजूरी कर रहे हैं वहीँ पर वोट डालें, अपने प्रदेश बिहार आकर वोट डालने की कोई ज़रूरत नहीं है।
गौर तलब है कि देश के चुनाव आयोग द्वारा बिहार की जनता पर “एसआईआर” थोपे जाने को असंवैधानिक करार देकर इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। जिसे कोर्ट द्वारा स्वीकार भी कर लिया गया है।
वहीं हर दिन प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में सड़कों पर “वोटबंदी” नहीं चलेगी, ‘मताधिकार बचाओ, लोकतंत्र बचाओ’ के आह्वान के साथ विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला लगातर जारी है।
इंडिया गठबंधन ने राज्यव्यापी विरोध आन्दोलन खड़ा करने और भाजपा-जदयू सरकार के साथ साथ “चुनाव आयोग” के लोकतंत्र विरोधी रवैये के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का व्यापक आह्वान कर रखा है।
नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले सभी जन संगठनों के साथ साथ नागरिक समाज के लोगों में भी चुनाव आयोग के इस संविधान विरोधी कृत्य के खिलाफ गहरा आक्रोश है और वे भी ‘नागरिक जन दबाव’ संगठित करने के अभियान चला रहे हैं।
बहरहाल, देखना है कि 9 जुलाई को केंद्र सरकार के मजदूर विरोधी रवैये के खिलाफ आहूत देशव्यापी मजदूरों की ऐतिहासिक हड़ताल का सक्रिय समर्थन करते हुए बिहार इंडिया गठबंधन द्वारा “वोटबंदी” के ख़िलाफ़ पूरे बिहार में ‘राज्यव्यापी चक्का जाम’ का क्या प्रभाव पड़ता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार, संस्कृतिकर्मा और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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