अडानी और हसदेव अरण्य वन के हाथी

भारत के 41 कोयला ब्लॉकों की विवादास्पद नीलामी के साथ आगे बढ़ने को लेकर मोदी के दृढ़ संकल्प पर विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र की मोदी सरकार के बीच संघर्ष पैदा हो रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य के हसदेव अरण्य वन में एक प्रस्तावित हाथी रिज़र्व इस मायने में अहम साबित हो सकता है कि इन जैवविविधता वाले वनों में कोयला खनन का कार्य आगे बढ़ पाता है या नहीं। लेकिन,अगर खनन कार्य को आगे बढ़ाने के लिए इस रिज़र्व से समझौता किया जाता है, तो इससे स्थानीय आदिवासियों के सामने मानव-हाथी संघर्ष छिड़ने की संभावना बन सकती है।
‘पिछली सरकार ने इस हाथी रिज़र्व के लिए महज 400 वर्ग किलोमीटर का प्रस्ताव रखा था। मेरी सरकार ने इसे बढ़ाकर 1950 वर्ग किलोमीटर तक कर दिया है। यह दुनिया का सबसे बड़ा हाथी रिज़र्व है।'
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने यह बात अप्रैल 2020 में हाथी रिज़र्व और कोयला खनन के बीच के संघर्ष को हल करने को लेकर बात करते हुए अपनी सरकार की योजना का ज़िक़्र किया था। मगर, दूसरी तरफ़ संरक्षणवादियों को इस बात का डर है कि यह रिज़र्व अडानी की कोयला खदानों से घिरकर कहीं ‘खुली हाथी जेल’ न में बदल जाये।
छत्तीसगढ़ एक मध्य भारतीय राज्य है, जहां भारत के सबसे बड़े जंगल में से एक के नीचे कोयले का विशाल क्षेत्र है। अडानी पहले से ही इस क्षेत्र में एक बड़ी कोयला खनन के कार्य में लगा हुआ है। जिस ज़मीन और पानी पर स्थानीय लोग निर्भर हैं, उनके क्षरण को लेकर इस खनन कार्य की आलोचना होती रही है, लेकिन अब इस हसदेव अरण्य वन में नये खदानों की एक श्रृंखला विकसित करने की योजना है। कंपनी के कार्यों को लेकर बढ़ते विवाद की जांच-पड़ताल करने के लिए मैंने फ़रवरी 2020 में अडानीवॉच की ओर से इस क्षेत्र का दौरा किया था।
खनन के चलते किस तरह मानव-हाथी संघर्ष बदतर हुआ है
हसदेव अरण्य उस बड़े वनाच्छादित गलियारे का हिस्सा है,जो मध्य भारत से गुज़रते हुए 1500 किलोमीटर तक फैला हुआ है। यह क्षेत्र भारत के स्थानीय लोगों,आदिवासियों का एक पारंपरिक आवास स्थल है, और सैकड़ों हाथियों का निवास स्थान भी है।
हसदेव अरण्य से होकर गुज़रने वाले राजमार्ग पर मैं स्थानीय वन विभाग द्वारा लगाये गये उन कई साइन बोर्डों को देखते हुए गुज़रा था,जिस पर लिखा था,'सावधान: यह हाथी प्रभावित क्षेत्र है'। जिस तरह से इस संदेश को तैयार किया गया है,उससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रशासन किन लोगों को अनधिकार प्रवेश करने वाले के रूप में देखता है।
लेकिन, भारत का यह हिस्सा ऐतिहासिक रूप से अपने हाथियों के लिए जाना जाता है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक़, मध्य भारत में लगभग 27,000 जंगली हाथियों की कुल आबादी का 10% रहता है। मीतू गुप्ता राज्य के वन्यजीव बोर्ड के सदस्य हैं और राज्य की राजधानी रायपुर में एक संरक्षण एनजीओ, कंज़र्वेशन कोर इंडिया चलाती हैं। वह बताती है कि स्थानीय लोक-कथायें बताती हैं कि कभी इस क्षेत्र से हाथियों को पूरे उपमहाद्वीप में भेजा जाता था। हाथियों के आस-पास मौजूद होने के चलते पारंपरिक घरों को इस तरह से बनाया जाता रहा है कि अन्न भंडारों को हाथी के हमले से सुरक्षित रखा जा सके; इन घरों में एक तरफ का दरवाज़ा ख़ास तौर पर परिवारों के लिए होता है, ताकि अगर कोई हाथी घर की तरफ़ रुख़ करता है,तो इस दरवाज़े से सुरक्षित निकला जा सके।
हालांकि, इस तरह की नौबत कभी आयी नहीं, क्योंकि हाथी और मनुष्य,दोनों ने बड़े पैमाने पर एक दूसरे के इलाक़े में जाने से परहेज ही किया है, और हाथी के गुज़रने के जो मार्ग है,उस पर मानव बस्तियां बनाने से भी परहेज किया गया है। गुप्ता कहती हैं कि हाल के दशकों में जबसे इस क्षेत्र में तेज़ी से औद्योगिक कार्य होने शुरू हुए हैं, समस्या तभी से शुरू हुई है। सरकारी आंकड़ों पर आधारित विभिन्न रिपोर्टों में कहा गया है कि पिछले पांच वर्षों में मुठभेड़ों के दौरान 325 लोगों और 70 हाथियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।
हसदेव अरण्य के आदिवासी और स्थानीय आंदोलनकारी इस बात से सहमत हैं कि इसके लिए बढ़ते विकास कार्य ही ज़िम्मेदार हैं। इस हाथी रिज़र्व में मेरे साथ जाने वाले एक कार्यकर्ता, जिन्होंने नाम प्रकाशित नहीं किये जाने का अनुरोध किया, उनका कहना है कि हाथी मार्ग को अच्छी तरह से जानने-समझने के बावजूद वन विभाग इसे औपचारिक रूप से चिह्नित करने से जानबूझकर बच रहा है।
सफ़र के दिन के बाद के हिस्से में हम जैसे ही एक कोयला खदान की तरफ़ गये, तो मुझे ऐसे ही एक मार्ग के बारे में रामलाल करियाम ने बताया था। करियाम उस एचएबीएसएस (हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति) के सदस्य हैं,जो इस आदिवासी क्षेत्र के निवासियों द्वारा स्थापित एक संगठन है।करियाम उस गांव के रहने वाले हैं,जिसके बगल के खनन ब्लॉक में अगर खनन का कार्य होता है,तो उनका गांव का वजूद ख़तरे में पड़ जायेगा। वह जानवरों की दुर्दशा को समझते हैं,वे कहते हैं- ‘उन्हें खदान के आसपास चलने और सड़क के क़रीब आने के लिए मजबूर किया जाता है। '
अडानी, कोयला खनन और कांग्रेस पार्टी
भारत सरकार की तरफ़ से हसदेव अरण्य वन में ऐसे तीस कोयला ब्लॉक की पहचान की गयी है, और इसमें किसी हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए कि भारत का सबसे बड़ा निजी बिजली उत्पादक,द अडानी ग्रुप उन ब्लॉकों के दोहन में रुचि रखता है। इन जंगलों के नीचे पांच अरब टन कोयला पड़ा है। अडानी के लिए खनन एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है। इसकी वेबसाइट पर छत्तीसगढ़ के सात कोयला खदानों और दो लौह-अयस्क खानों की सूची है, जिनमें अडानी ‘माइन डेवलपर और ऑपरेटर’(MDO) है। यह भारत का सबसे बड़ा निजी कोयला खदान करने वाला समूह बन गया है।
हसदेव अरण्य के इस हिस्से में एक कोयला ब्लॉक में कार्य चल रहा है और इसका खनन अडानी द्वारा किया जा रहा है, जहां यह पश्चिमी भारतीय राज्य राजस्थान की सरकार के स्वामित्व वाली बिजली कंपनी का एमडीओ है। इस खदान के लिए 100,000 से अधिक पेड़ों को काट दिया गया था और कुछ हिस्सों को अभी भी साफ़ किया जा रहा है। इस खदान से सटे दो ब्लॉक भी इसी कंपनी को पट्टे पर दिये गये हैं, और अडानी ने इन दोनों के ठेके भी हासिल कर लिये हैं। हालांकि, स्थानीय समुदायों द्वारा चलाया जा रहा प्रतिरोध का एक उग्र आंदोलन इनके रास्ते में बाधा बनकर खड़ा हो गया है। एचएबीएसएस द्वारा कार्रवाई को लेकर समितियां बनायी गयी हैं और आसपास के शहरों में विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं।
दिसंबर 2018 में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की छत्तीसगढ़ राज्य के चुनाव में जीत हासिल हुई, तो इस जीत को यहां के वनों में रहने वालों ने आशा के क्षण के रूप में महसूस किया। छत्तीसगढ़ राज्य में पंद्रह वर्षों तक उस भाजपा का शासन रहा था, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी है और जिसे उद्योगपतियों के अनुकूल पार्टी मानी जाती है। यह भाजपा की राज्य सरकार ही थी,जिसने स्थानीय समुदाय की आपत्तियों के बावजूद हसदेव अरण्य वन में पहली कोयला खदान खोलने की अनुमति दी थी। उस समय विरोध में कांग्रेस पार्टी आदिवासी समुदायों के समर्थन में मज़बूती के साथ खड़ी हुई थी, और राज्य के मूल्यवान पारिस्थितिकी तंत्र की क़ीमत पर कोयला खनन के कार्य शुरू करने की उन योजनाओं को लगातार चुनौती दे रही थी।
जून 2015 में कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष, राहुल गांधी एचएबीएसएस के मुख्यालय,यानी हसदेव अरण्य वन के मदनपुर गांव का दौरा किया था। गांधी ने वहां आदिवासियों से कहा था, ‘कांग्रेस पार्टी और मैं आपके साथ हैं’।
हाथी रिज़र्व के प्रस्ताव
अगस्त 2019 में नयी कांग्रेस सरकार ने दो मुख्य मुद्दों पर अपनी योजनाओं को सामने रखा। ये दो मुद्दे थे- हाथियों का संरक्षण और कोयला खनन से हसदेव अरण्य वन की सुरक्षा। यह योजना 1995-वर्ग किलोमीटर के रिज़र्व-लेमरू एलीफेंट रिज़र्व बनाने की थी। 400 वर्ग किलोमीटर के इस रिज़र्व के लिए पहले सरकार के इन प्रस्ताव को 2011 में कोयला लॉबी के दबाव के चलते टाल दिया गया था।
1990 के दशक के बाद से भारत में 25 से अधिक हाथी रिज़र्व स्थापित किये गये हैं। इनमें क़रीब 58,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आते हैं और इन रिज़र्व में 20,000 से ज़्यादा हाथी रहते हैं। इन रिज़र्वों को राष्ट्रीय उद्यानों का दर्जा हासिल नहीं है। आदिवासियों की पारंपरिक गतिविधियां इन हाथी रिज़र्व के भीतर जारी रह सकती हैं, जहां मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन पर ज़ोर है। इन रिज़र्वों के भीतर विकास की विभिन्न गतिविधियों की अनुमति है। हालांकि, किसी लुप्तप्राय प्रजाति की स्पष्ट पहचान को सरकारों और निगमों द्वारा लागू निर्धारित मानदंड को स्वीकार करना होगा।
सरकार की घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ के वन विभाग ने इस बात का ऐलान कर दिया कि इस रिज़र्व की सीमा के बाहर दस किलोमीटर के बफ़र ज़ोन में किसी तरह के कोयला खनन कार्य की अनुमति नहीं होगी। उद्योग समूहों ने दावा किया कि इसका नतीजा जंगल में खनन पर प्रतिबंध के रूप में सामने आयेगा। व्यवसाय के काग़ज़ात में इस बात को लेकर एक झल्लाहट दिखी कि इस प्रस्तावित हाथी रिज़र्व से कोयला खनन पर ‘ख़राब असर’ पड़ेगा। हालांकि, मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा अनुमोदित, और सरकार द्वारा अधिसूचित इस प्रस्ताव को अभी औपचारिक रूप से तैयार किया जाना बाक़ी है।
जब मैंने फ़रवरी में हसदेव अरण्य का दौरा किया था, तो उस समय स्थानीय लोगों से पता चला था कि प्रस्तावित लेमरू एलीफेंट रिज़र्व की सीमाओं में पारसा केंटे क्षेत्र में नयी खानों के लिए प्रस्तावित कोयला ब्लॉक शामिल नहीं है। यहां तक कि इन प्रस्तावित खानों को बाहर करने के लिए 'बफ़र जोन' तैयार किया गया था।
इस रिज़र्व सीमाओं का एक नक्शे की एक प्रति अडानीवॉच के पास है और जिसे ख़ास तौर पर अडानीवॉच और न्यूज़क्लिक द्वारा इसे प्रकाशित किया जा रहा है, यह नक्शा इस बात की पुष्टि करता है कि यह मामला ऐसा ही है। इस नक्शे को छत्तीसगढ़ सरकार के वन मानचित्रण अनुभाग द्वारा तैयार किया गया है। इस नक्शे को राज्य की तमाम नौकरशाही से मंज़ूरी मल चुकी है और अब इसे मुख्यमंत्री की मंज़ूरी का इंतज़ार है। एक अनाम स्रोत, जो इस बारे में जानने की स्थिति में है,उसने मुझसे इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि हसदेव अरण्य में प्रस्तावित इन नये खानों को हाथी रिज़र्व की सीमा से कम से कम दस किलोमीटर दूर सुनिश्चित करने के लिए नक्शा तैयार करने वाले अधिकारियों को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया था।
जब हमने इसके बारे में पूछा, तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने न्यूज़क्लिक के साथ एक साक्षात्कार में इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि यह रिज़र्व 'दुनिया में सबसे बड़ा' रिज़र्व होगा।
यह दावा साफ़ तौर पर ग़लत है। अफ़्रीका और इंडोनेशिया में हाथियों के संरक्षण के लिए बने ऐसे रिज़र्व हैं,जो 1995 वर्ग किलोमीटर में बने इस प्रस्तावित लेमरू हाथी रिजर्व से बहुत बड़े हैं। भारत के झारखंड, असम, मेघालय, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और उत्तराखंड राज्यों में भी बड़े हाथी रिज़र्व हैं, जिनमें से कुछ तो 5000 वर्ग किलोमीटर से भी ज़्यादा क्षेत्रफल वाले हैं।
लेमरू के प्रस्तावित नक्शे को दिखाते हुए आलोक शुक्ला, जो छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (छत्तीसगढ़ बचाने के अभियान, राज्य भर में लोगों के आंदोलनों और कार्यकर्ता अभियानों का एक समूह निकाय) के संयोजक हैं, बताते हैं कि इस प्रस्तावित हाथी रिज़र्व से कोयला ब्लॉक को बाहर छोड़ देने से हाथी जंगल के एक भाग तक सीमित हो जायेंगे, जबकि वे हज़ारों किलोमीटर की दूरी तक स्वतंत्र रूप से आते-जाते रहे हैं।
दीवार पर टंगे छत्तीसगढ़ के नक्शे की तरफ़ इशारा करते हुए वह बताते हैं कि प्रस्तावित रिजर्व के पश्चिम और उत्तर-पश्चिम में हसदेव कोयला ब्लॉक हैं, पूर्व में एक और बड़ा कोयला खदान है, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में कोरबा शहर और एक औद्योगिक क्षेत्र है, और दक्षिण-पश्चिम में है हसदेव नदी पर एक बड़ा जलाशय है। गुप्ता बताती हैं कि हाथी एक ऐसी प्रजाति है, जो किसी क्षेत्र तक सीमित नहीं रह सकता। एक अकेला हाथी कुछ ही महीनों में 3,000 वर्ग किलोमीटर से ज़्यादा तक की दूरी तय कर सकता है।
वह चेताते देते हुए कहती हैं कि प्रस्तावित हाथी रिज़र्व प्रभावी रूप से ‘एक खुली हाथी जेल’ में बदल जायेगा।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी ने हसदेव अरण्य के उन आदिवासियों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किये गये अपने दिखावे की नीतिगत उपायों में से एक के रूप में इस इस प्रस्ताव की घोषणा की है, जो कोयला खनन से अपनी भूमि और अपनी आजीविका के विनाश का सामना कर रहे हैं। हालांकि, ऐसा लगता है कि सरकार चला रही इस पार्टी ने उद्योग के इन तर्कों को स्वीकार कर लिया है कि यह रिज़र्व कोयला खदानों पर 'छाया' बनकर मंडरायेगी। इस प्रकार,जैसा कि इस रिज़र्व के मामले को लटकाया जा रहा है,इससे उसकी निर्धारित मंशा के उलट अडानी जैसी खनन कंपनियों को फ़ायदा पहुंचता दिख रहा है ।
इसलिए, कोयला खनन से हाथी-मानव संघर्षों को बढ़ावा मिलेगा, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में हसदेव अरण्य जंगलों पर लड़ाई जारी है।
(अडानीवॉच के कॉर्डिनेटर, ज्योफ़ लॉ की तरफ़ से मिले योगदान सहित)
मूल आलेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।