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वाराणसी के गाँव में कोका कोला फैक्ट्री के खिलाफ फिर से हुआ विरोध प्रदर्शन

ये कहानी यह साफ़ कर रही है कि लोगों की जिंदगी में ख़ुशियाँ  पहुँचाने  का दवा  करने  वाली कम्पनी सालों से हज़ारों  लोगों के जीवन में अंधकार लाने का मुख्य कारण बनी हुई है।  
coca cola
image courtesy: DNA India

उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले में स्थित आदर्श गाँव नागेपुर में रविवार को लोगों ने पास में स्थित कोका कोला फैक्टरी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन  किया।  ये गाँव खुद प्रधानमंत्री के कार्य क्षेत्र में आता है और यहाँ के लोग कई सालों से पास में स्थित कोका कोला फैक्ट्री का विरोध कर रहे हैं। रविवार को इलाके के लोगों ने यहाँ  कोका कोला  फैक्ट्री के विरोध में नारे लगाए और सरकार से फैक्ट्री को बंद करने की माँग की । 

 स्थानीय लोगों का कहना  है कि ये कोका कोला फैक्ट्री लाखों लीटर भूजल का दोहन कर रही है जिससे इलाके का जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है। इसका असर आस पास के दर्जनों गॉंवों पर हो रहा है और वहाँ पर कुंएं, तालाब और हैंडपंप सूख गए हैं।  गाँव वालों का आरोप है कि जल स्तर गिरने  की वजह से  खेती और पीने के लिए पानी तक नहीं मिलता और गर्मियों में ये फैक्ट्री पहले से भी ज़्यादा भूजल का दोहन कर रही है। इस आंदोलन  में सालों ने जुड़े हुए नंदलाल  लाल मास्टर ने आरोप लगाया है कि फैक्ट्री की वजह से इलाके का भूजल स्तर इतना  गिर गया है कि भूजल विभाग ने इस ब्लॉक को अतिद्रोहित क्षेत्र  घोषित  कर दिया है और किसानों के हैंड हैंडपंप और बोरवेल  लगाने पर प्रतिबंध  लगा दिया है , लेकिन फैक्ट्री  फिर भी चल रही है।  गाँव वालों ने ये चेतावनी दी  है कि अगर इस फैक्ट्री को जल्द ही बंद  नहीं किया गया तो वह सड़कों  पर एक बड़े आंदोलन  की तैयारी  करेंगे। 

इस फ़ैक्टरी के विरोध की कहानी बहुत पुरानी  है। ग़ौरतलब है कि 1999 में वाराणसी शहर से 25 किलोमीटर दूर मेंहदीगंज में  शुरू हुई ये कोका कोला की फैक्ट्री शुरू से ही स्थानीय विरोध का कारण रही है। ये  कोका  कोला की काँच की बोतलें बनाने वाली सबसे बड़ी  फैक्ट्री है और Hindustan Coca-Cola Beverages Pvt Ltd के अंतर्गत आती है। 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक फैक्ट्री शुरू होने के 11  साल बाद तक इस इलाके का जल स्तर करीब 26 फ़ीट तक कम हो गया था।  इसके अलावा ये भी आरोप है कि फ़ैक्टरी द्वारा  ज़हरीला  कचरा  फेंकने  की वजह से ज़मीन में ज़हर घुल गया है जिससे आस पास की फ़सलों, पेड़ पौधों और दर्जनों गाँवों के लोगों की सेहत पर भयानक असर पड़ा  है। लेकिन शुरू से ही कोका  कोला कम्पनी इन सभी मुद्दों को बेबुनियाद बताती रही है। 

10 मई  2003  को फैक्ट्री के सामने  करीब 100 लोगों ने विरोध प्रदर्शन  किया जिसे पुलिस ने लाठीचार्ज करके दबाया। इसके बाद लगातार  लोगों के बढ़ते  आक्रोश  की वजह से Central Pollution Control Board (CPCB) ने इस मामले में जाँच  के आदेश  दिए। 14 नवंबर 2004 में भी इसी  तरह का एक विरोध प्रदर्शन हुआ जिसमें 300 लोगों ने हिस्सा  लिया। इसके बाद 2008  में  नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर और मेग्सेसे अवार्ड विजेता सनदीप पांडेय ने हाई कोर्ट के आर्डर  की अवेहलना करते हुए फैक्ट्री के सामने  प्रदर्शन  किया और गिरफ्तारी  दी थी। उनका भी यही आरोप था कि फैक्ट्री पर्यावरण  को भयानक नुकसान पहुँचा रही है। 

कई सालों तक स्थानीय लोगों, महिलाओं और समाजिक  संगठनों के विरोध के बाद जून 2014  में Uttar Pradesh Pollution Control Board  ने फ़ैक्टरी को बंद करने  के आदेश दिए। मीडिया को दिए अपने बयान में बोर्ड  के सचिव जे.ऐस यादव ने कहा था कि ये इसीलिए किया जा रहा है क्योंकि फ़ैक्टरी ने लाइसेंस के नियमों की अवहेलना की है, जल स्तर को बहुत कम किया है और ज़मीन को बेहिसाब प्रदूषित  किया है। कम्पनी को जल स्तर को दोबारा बेहतर करने और पानी की दो गुना भरपाई करने  के आदेश दिए गए।  इससे पहले 2014 में ही कम्पनी पर गाँव  की ज़मीन पर फ़ैक्टरी  बनाने  के आरोप लगे जिसके बाद उन्हें मुआवज़ा  देना  पड़ा था। Uttar Pradesh Pollution Control Board  के द्वारा  फैक्ट्री को बंद किये जाने  के निर्णय के खिलाफ कम्पनी  नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल  में गयी , जिसने  इस आदेश  पर रोक लगा दी। लेकिन National Green Tribunal ने अपने आदेश में ये कहा  कि फैक्ट्री को हर मिनट 600 बोतलों से कम उत्पादन  करना  होगा वार्ना  फैक्ट्री को बंद कर दिया जायेगा। 

लगातार विरोध के चलते कम्पनी ने जून 2014 में 168 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की और उसे अपनी योजना से पीछे हटना  पड़ा।  इस निर्णय को पर्यावरण  और समाजिक  कार्यकर्ताओं ने स्थानीय लोगों की जीत  बताया।  लेकिन ये समस्या  फिर भी नहीं सुलझी , क्योंकि फैक्ट्री तो अभी भी मौजूद थी ।  इसी के चलते 2015 मेहंदीगंज के 18 गॉंवों की ग्रामीण परिषदों ने फिर से State Pollution Control Board को इस फैक्ट्री को बंद करने  की माँग  करते हुए पत्र  लिखा।  

तबसे लगातार आस  पास के गाँवों  के लोगों की स्थिति बेहद ख़राब होती जा रही है। इन गर्मियों में पानी की किल्लत उसी आक्रोश को फिर से उभार रही है जो सालों से लोगों में मौजूद है । ये कहानी यह साफ़ कर रही है कि लोगों की जिंदगी में ख़ुशियाँ पहुँचाने  का दवा  करने  वाली कम्पनी सालों से हज़ारों  लोगों के जीवन में अंधकार लाने का मुख्य कारण बनी हुई है।  

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