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कटाक्ष: स्वावलंबन की एक झलक पर...

भारत में हुआ तो क्या हुआ, जुर्म भारत वालों के ख़िलाफ़ हुआ तो क्या हुआ, नुक़सान भारत का हुआ तो क्या हुआ– उंगली उठाने वाले तो विदेशी हैं।
LIC

सिंपल सी बात है। दुश्मन का दोस्त कौन– दुश्मन! और दुश्मन का दुश्मन कौन– दोस्त बल्कि हीरो! 

पहले हिंडनबर्ग ने और अब वाशिंगटन पोस्ट ने किस पर हमला किया है– राष्ट्र सेठ पर, राष्ट्र सेठ की दौलत पर, राष्ट्र सेठ के साम्राज्य पर। हिंडनबर्ग भी विदेशी और वाशिंगटन पोस्ट भी विदेशी। और विदेशी अमेरिका का सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन भी, जिसने हमारे राष्ट्र सेठ के लिए घूसखोरी के मामले में समन भेजे हैं। 

पर अमेरिका वाले समन भेजते समय यह भूल गए कि अब भारत में मोदी जी की यानी भारत-भक्ति फर्स्ट वाली सरकार है। और वह भी छप्पन इंच की छाती वाली सरकार। समन जारी करने वाले अमेरिकी विभाग और समन का निशाना बनने वाले राष्ट्र सेठ के बीच, मोदी सरकार फौलादी दीवार बनकर खड़ी है। बाहर से कोई भी समन बल्कि कोई भी प्रहार आएगा, उसे पहले इस फौलादी दीवार से टकराना होगा। यह बीमा से भी बढक़र बीमा का, मोदी जी की गारंटी का मामला है। बीमा की सुरक्षा में कभी कोई चूक हो भी जाए, मोदी जी की गारंटी में कभी चूक नहीं हो सकती। 

सेठों के लिए गारंटी में तो अपने मोदी जी, गारंटी के भी पूरा होने की गारंटी करते हैं, जैसी डबल गारंटी की बात कभी-कभी चुनाव के टैम पर पब्लिक से भी कहते हैं।

और हां! इससे फर्क नहीं पड़ता है कि हिंडनबर्ग ने भारत सेठ की भारतीय शेयरधारकों से ठगी का खुलासा किया था। अमेरिकी सिक्यूरिटीज कमीशन ने भारत सेठ के खिलाफ भारतीय अधिकारियों को घूस देने का मामला बनाया है। वाशिंगटन पोस्ट ने, भारतीय जीवन बीमा निगम के 32 हजार करोड़ रुपये से, भारत सेठ की अवैध तरीके से मदद किए जाने का और वह भी मोदी सरकार के कहने पर मदद किये जाने का भंडा फोड़ किया है। 

भारत में हुआ तो क्या हुआ, जुर्म भारत वालों के खिलाफ हुआ तो क्या हुआ, नुकसान भारत का हुआ तो क्या हुआ– उंगली उठाने वाले तो विदेशी हैं। 

जुर्म करने वाला, जुर्म की मार खाने वाला, जुर्म कराने वाला, सब स्वदेशी हैं, जबकि सवाल उठाने विदेशी। इक्का-दुक्का देसी भी सवाल उठा रहे होंगे, पर विदेशियों के सवाल उठाने के बाद, विदेशियों की नकल पर। विदेशियों की नकल करने वालों का भारतीय होना भी कोई भारतीय होना है, लल्लू! अमृत काल में मोदी जी भारत को ऐसे नकली भारतीयों से ही तो मुक्त करा रहे हैं। यानी यह सिर्फ भारत सेठ की रक्षा की नहीं, स्वदेशी की रक्षा की लड़ाई है और वह भी रूसी तेल खरीदें कि नहीं खरीदें टाइप की छोटी-मोटी नहीं, बड़ी वाली लड़ाई। एक महाकाव्यात्मक लड़ाई। स्वदेशी की रक्षा की इससे बड़ी लड़ाई क्या होगी? और अब कोई कुछ भी कहे, बात कुछ भी हो, हम तो स्वदेशी की रक्षा करने वालों के साथ हैं, और आप!

और ये वाशिंगटन पोस्ट  वालों ने ऐसा क्या नया भंडाफोड़ कर दिया है, जिसका अमेरिका से लेकर भारत तक, सभी मोदी विरोधी शोर मचा रहे हैं? भारत सेठ की कंपनियों की मुश्किल के वक्त में मदद करने के लिए जिस एलआईसी के 32 हजार करोड़ रुपये लगाने के भंडाफोड़ की बातें की जा रहीं हैं, वह किस की है? भारत की। एलआईसी में लगा पैसा किस का है– भारत के लोगों का! एलआइसी का नफा-नुकसान किस का है, भारत के लोगों का! 

जिस भारत सेठ की कंपनियों को फायदा पहुंचाने के आरोप लगाए जा रहे हैं, वह सौ टंच भारतीय है, यह तो हम पहले ही सिद्ध कर चुके हैं। और रही बात मोदी सरकार की, जिस पर एजी समूह को इस तरह अनुचित फायदा पहुंचवाने का इल्जाम लगाया जा रहा है, उसका तो खुद ही सबकी भारतीय नापने और सब को पर्याप्त भारतीय होने न होने के सर्टिफिकेट बांटने का स्पेशलाइजेशन है। उसकी भारतीयता पर सवाल उठाने वाला इस धरती पर पैदा नहीं हुआ और अगर पैदा हो भी गया तो धरती के जेल वाले हिस्से में ही पाया जाएगा यानी सवाल उठाने लायक ही नहीं रह जाएगा। जेल में सवाल उठाया, किसने सुना? जब यह भारतीयों द्वारा, भारतीयों को और भारतीयों के हिस्से से फायदा पहुंचाने का मामला है, तो इसमें अमेरिकियों को इतनी ताक-झांक  करने की क्या जरूरत है? ये हमारे घर के अंदर की बात। दूर हटो, दूर हटो ए दुनिया वालो, ये मामला हमारा है!

और सबसे बड़ी बात ये एलआईसी का राष्ट्र सेठ की या किसी की भी मदद करना, भला जुर्म कैसे हो गया? एलआईसी का तो काम ही इंश्योरेंस यानी भरोसा देने का है। और इंश्योरेंस वाला भरोसा तो होता ही इसलिए है कि वक्त, जरूरत पर काम आए। राष्ट्र सेठ का मुश्किल टैम था। अमेरिका वालों ने समन जारी कर दिए। भारत में घूसखोरी हुई, उसके लिए भाई लोगों ने अमेरिका में मामले-मुकदमे शुरू कर दिए? पर उसका भी क्या रोना रोएं। अमेरिकियों की दूसरों के फटे में पांव फंसाने की बुरी आदत है। खुद इनके हिसाब से घूस लेने वाला, घूस देने वाला, घूस दिलाने वाला, सब भारत में थे बल्कि सर्टिफाइड भारतीय थे, फिर भी मामला-मुकदमा अमेरिका में। क्या यह भारत के साथ खुल्लम खुल्ला अन्याय नहीं है? और इस अन्याय की वजह से जब हमारे राष्ट्र सेठ की तरफ से बाजार से मुंह फेर लिया, बैंकों ने उनकी कंपनियों में पैसा लगाना बंद कर दिया, तब एलआईसी जीवन रक्षक बनकर सामने आयी। और यही तो एलआईसी का काम है। बल्कि यही तो उसका कमाई का मॉडल है। एलआईसी ने वाशिंगटन पोस्ट के जवाब में एकदम सही कहा है--हम यह नहीं बताएंगे कि हमने क्या किया है, पर जो किया है, बहुत सोच-समझकर किया है? और किसी के कहने से नहीं, सिर्फ और सिर्फ अपने मन से किया है। नफा हो या नुकसान हो, मेरी मर्जी!

और कोई चोरी थोड़े ही है, जो हो रहा है, छाती ठोक के हो रहा है। मोदी जी ने तो पहले ही कह दिया था कि अब बस स्वावलंबन होगा। हम हर्गिज बर्दाश्त नहीं करेंगे कि कोई बाहर वाला आकर, हमारे यहां हो रही ठगी, बेईमानी को, ठगी और बेईमानी कहकर भारत को  बदनाम करे। रही देश वालों की बात, तो स्वावलंबन का विरोध करने की इजाजत तो उन्हें भी नहीं दी जाएगी।  राष्ट्र सेठ हमारा। राष्ट्र सेठ की मदद करने वाली एलआईसी हमारी। राष्ट्र सेठ की मदद कराने वाली सरकार हमारी। इससे ज्यादा स्वावलंबन क्या होगा? और जब इतना स्वावलंबन हो रहा है, किसी को भ्रष्टाचार-व्रष्टाचार की बात करनी चाहिए क्या? बचपन में पढ़ा था– स्वावलंबन की एक झलक पर न्यौछावर कुबेर का कोष! कहां कुबेर का कोष और कहां सिर्फ 32 हजार करोड़ रुपये! हंगामा है क्यों बरपा,  राष्ट्र सेठ की थोड़ी सी ही तो मदद की है। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं)

 

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