कटाक्ष: सरकार को नयी जनता तो चुनने दो यारो!

वोटबंदी के ख़िलाफ़ बिहार में 9 जुलाई को हुए इंडिया गठबंधन के प्रदर्शन का दृश्य
इन विरोधियों ने क्या अति ही नहीं कर रखी है। बताइए, मोदी जी पर एक पैसे की धांधली का इल्जाम गोदी मीडिया के दरबार में साबित नहीं कर पाए, तो खामखां बेचारे के चुनाव आयोग के ही पीछे पड़ गए। गला फाड़-फाड़ कर सोशल मीडिया पर शोर मचा रहे हैं कि बिहार में मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के नाम पर धांधली हो रही है। और पता है कि इन्हें धांधली किस-किस चीज में दिखाई दे रही है? कहते हैं कि सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है। मोदी जी के विरोध के अंधे विपक्षियों को अच्छी से अच्छी चीज में धांधली ही दिखाई देती है।
इनसे पूछिए क्या धांधली हो गयी? कहेंगे कि चुनाव आयोग ने तो कहा था कि बीएलओ के अवतार में स्कूृल मास्टर, आंगनवाड़ी बहनजी, वगैरह घर-घर जाएंगे, मतदाता सूची गणना प्रपत्र भरवाएंगे, दस्तखत करवाएंगे या अंगूठा लगवाएंगे, जरूरी प्रमाणपत्र जमा करेंगे और चुनाव आयोग की वेबसाइट पर फार्म अपलोड करेंगे। पर यहां तो कितने ही लोगों के घर पर न बीएलओ के पांव पड़े, न बीएलओ ने कोई फार्म दिया, न फार्म भरवाया, न दस्तखत कराया/ अंगूठा लगवाया, न फार्म वापस लिया, न जरूरी सार्टिफिकेट जमा किए। वोटर और बीएलओ की देखा-देखी तक नहीं हुई, यहां तक कि वोटर और गणना फार्म की भी देखा-देखी नहीं हुई, पर...। अरे, पर क्या? चुनाव आयोग की वेबसाइट पर वोटर का गणना फार्म अपलोड भी हो गया। इक्का-दुक्का वोटर का नहीं, पूरे के पूरे परिवारों का फार्म अपलोड हो गया। इक्का-दुक्का परिवारों का भी नहीं, पूरे के पूरे मोहल्ले-टोलों का फार्म खुद ब खुद अपलोड हो गया । यह धांधली नहीं तो और क्या है?
अब कोई इन अंध-मोदी विरोध के मारों से पूछे कि इसमें धांधली क्या है? किस जमाने में रहते हैं ये लोग? लगता है इन्होंने ऑटोमैटिक का नाम ही नहीं सुना है। भइया ये इक्कीसवीं सदी की पहली चौथाई की पूंछ है। पूंछ बोले तो एकदम पूंछ का भी आखिरी सिरा। यहां ड्राइवर रहित गाड़ियां सड़कों पर फर्राटा भरने के लिए सरकारी इजाजतों की रस्सियां तुड़ाने पर आमादा हैं। ट्राइल भी हो चुके हैं। इजाजत मिलना आज-कल की ही बात है यानी आज कहीं और कल कहीं। और ये लोग एक मामूली से फार्म के खुद ब खुद भरकर, खुद ब खुद वेबसाइट पर अपलोड हो जाने को, सिर्फ इसलिए धांधली का मामला बनाने पर तुले हुए हैं कि सेकुलरिज्म के चक्कर में आसमानी करिश्मा तो मान नहीं सकते हैं। अब इन्हें कौन समझाए कि यह चुनाव आयोग की ऑटोमैटिक व्यवस्था का कमाल है। एकदम सिंपल है। मशीन ने पुरानी मतदाता सूची में से नाम लिया और नयी मतदाता सूची का गणना फार्म बनाकर अपलोड कर दिया। सच पूछिए तो चुनाव आयोग ने तो पहले ही इशारा कर दिया था कि नयी मतदाता गणना में ऑटोमैटिक मार्ग की भी मदद ली जाएगी। नहीं तो जब सारी राजनीतिक पार्टियां चिल्ला रही थीं कि इतने थोड़े से समय में मतदाता सूचियों का विशेष, गहन, पुनरीक्षण हो ही नहीं सकता है, यह असंभव है, तो चुनाव आयोग मंद-मंद यूं ही नहीं मुस्कुरा रहा होता।
और तो और सुप्रीम कोर्ट तक ने कहा कि टाइमिंग ठीक नहीं लगती है, तब भी चुनाव आयोग ने यही कहा कि सब ठीक हो जाएगा। आखिर, उसे पता जो था कि सब काम ऑटोमैटिकली फटाफट हो जाएगा।
अब प्लीज कोई यह मत कहना कि यह तो बीएलओ लोगों के खुद ही गणना फार्म भरकर, खुद ही फर्जी दस्तखत/ अंगूठा लगाकर, फार्म जमा कर लेने का मामला है। माना कि कई वायरल वीडियो में ऐसा होता दिखाई भी दे रहा है, पर यह सच नहीं है। वायरल होने से ही कोई वीडियो सच नहीं हो जाता है। वीडियो झूठा भी हो सकता है। और झूठा होने को तो उन लोगों की वीडियो गवाही भी झूठी हो सकती है, जो कूद-कूदकर बता रहे हैं कि उन्होंने न बीएलओ के दर्शन किए, न गणना फार्म के। सीधे चुनाव आयोग की वेबसाइट पर इसके संदेश के दर्शन किए कि उनका गणना फार्म जमा हो गया है। और मान लीजिए, बीएलओ ने खुद ही फार्म भरकर खुद ही उस पर दस्तखत कर भी दिया, तो क्या हो गया? आखिर, बीएलओ निचले दर्जे के कर्मचारी होते हैं। कुछ एक्स्ट्रा रहमदिल भी हो ही सकते हैं। नहीं देखी जा रही होगी उनसे गरीब वोटरों की परेशानी। लिया और खुद ही फार्म भर दिया। न वोटर को परेशानी, न बीएलओ को घर-घर चक्कर मारने की हैरानी और डिपार्टमेंट से लेकर चुनाव आयोग तक की मूंछ भी ऊंची; वह कर डाला बल्कि टैम से पहले कर डाला, जो सब असंभव कहते थे! डबल इंजन है, तो कुछ भी मुमकिन है!
सच पूछिए तो बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। बात और गहरी है। देश में अमृत काल चल रहा है। और अमृत काल में आत्मनिर्भरता चल रही है। माना कि चुनाव आयोग स्वायत्त है। माना कि स्वायत्त का मतलब, सरकार से स्वायत्त होना होता है। लेकिन, इसका मतलब यह तो नहीं है कि आत्मनिर्भरता के मोदी जी के दर्शन से चुनाव आयोग अछूता ही रह जाएगा। विपक्षी जिसे धांधली कहकर प्रचारित कर रहे हैं, वह असल में तो चुनाव आयोग की आत्मनिर्भरता है। चुनाव आयोग ही मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण कर रहा है, चुनाव आयोग ही लोगों के फार्म भर रहा है, चुनाव आयोग ही नयी मतदाता सूचियां तैयार कर रहा है; इससे ज्यादा आत्मनिर्भरता क्या होगी? मतदाता बीच में आया ही नहीं और मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण भी हो गया; यह चुनाव आयोग की आत्मनिर्भरता नहीं तो और क्या है?
इस सब चक्कर में मतदाता सूचियों से छांट-छांटकर गरीब और कमजोर मतदाताओं के नाम काटे जाने का शोर मचाने वाले, नाहक तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बना रहे हैं। आठ करोड़ के करीब कुल गिनती में से तीस-पैंतीस लाख के नाम कटने पर, कम से कम इतनी हाय-हाय करना नहीं बनता है। बड़े-बड़े राज्यों में, सूचियों में ऐसी छोटी-मोटी कटौतियां होती रहती हैं। वैसे भी क्या मोदी जी को इतने बड़े बिहार के मतदाताओं की सूची में से, इतने से नाम काटने के लिए भी किसी की इजाजत की जरूरत होगी? फिर एक सौ चालीस करोड़ भारतवासियों का आशीर्वाद जीतने का क्या फायदा? ब्रेख्त ने तो कहा था कि--जनता ने सरकार का विश्वास खो दिया है, सरकार को चाहिए कि अपने लिए नई जनता चुन ले। कम्युनिस्ट था, उसका यह सुझाव था। मोदी जी क्या अपने लिए इत्ती सी नई जनता भी नहीं चुन सकते हैं!
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं)
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